Friday, July 24, 2009

तमसो मा ज्योतिर्गमय - [इस्पात नगरी से - खंड १४]

.कल पटना के एक भारतीय मित्र से बात हो रही थी. हमेशा की तरह बात राजनीति की तरफ फिसल गयी और तब मित्र ने विश्वास से कहा कि जब उच्च-शिक्षित लोग राजनीति में आयेंगे तो देश का भला होगा. जब मैंने "उच्च शिक्षित" शब्द का अभिप्राय जानना चाहा तो उनका उत्तर था, "जैसे आई आई टी से पढ़े हुए इंजिनीयर आदि..."


अगर आज उन्हें आई आई टी कानपुर से पढ़े हुए इंजिनीयर नित्यानंद गोपालिका के बारे में पता लगता तो शायद काफी तकलीफ पहुँचती. पूर्णिया का यह तीस-वर्षीय नौजवान पेंसिलवेनिया राज्य विश्व विद्यालय के प्रांगण में रहता है और जीई में प्रतिष्टित पद पर है. इंटरनेट पर एक तेरह वर्षीय बालिका से मैत्री करके कई दिनों तक उससे वार्तालाप करता रहा.

यह जानते हुए भी कि बालिका नाबालिग़ है, गोपालिका ने उससे अश्लील वार्तालाप भी किये और वेबकैम पर अपने अमान्य चित्र भी भेजे. बाद में ऐसा लगा जैसे कि बालिका उसकी बातों में आ गयी और तब पहले से नियत समय पर वह बुरे इरादे से पिट्सबर्ग के एक उपनगर में आ पहुँचा.

मज़ा तब आया जब वहां उसे किसी बालिका की जगह चाइल्ड प्रीडेटर दल के पुलिस अधिकारी मिले जिनका काम ही उस जैसे लोगों को सही रास्ते पर पहुँचाना है. आज उसके मुक़दमे की पहली सुनवाई थी. ख़बरों से ऐसा लग रहा है कि अब तक ऐसे २६० अपराधियों को पकड़ने वाले दल ने पहली बार एक भारतीय नागरिक को गिरफ्तार किया है. मगर इसका मतलब यह नहीं है कि भारतीय नर बहुत भले हैं या फिर दूसरे भारतीय पकडे नहीं गए हैं. बस इतना है कि वे भारतीय अमरीकी नागरिकता ले चुके हैं.

कुछ लोग कह सकते हैं कि इस घटना में कोई भी अपराध हुआ नहीं मगर अपराधों के मूल में पाई जाने वाली पाशविक प्रवृत्ति तो उभरी ही, ज़रुरत है उसे नियंत्रण में करने की और मुझे खुशी है कि स्थानीय पुलिस ने यह कर्त्तव्य बखूबी निभाया.

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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
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[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा। हरेक चित्र पर क्लिक करके उसका बड़ा रूप देखा जा सकता है।]

Saturday, July 18, 2009

कच्ची धूप, भोला बछड़ा और सयाने कौव्वे

लगभग दो दशक पहले दूरदर्शन पर एक धारावाहिक आता था, "कच्ची धूप।" उसकी एक पात्र को मुहावरे समझ नहीं आते थे। एक दृश्य में वह बच्ची आर्श्चय से पूछती है, "कौन बनाता है यह गंदे-गंदे मुहावरे?" वह बच्ची उस धारावाहिक के निर्देशक अमोल पालेकर और लेखिका चित्रा पालेकर की बेटी "श्यामली पालेकर" थी। "कच्ची धूप" के बाद उसे कहीं देखा हो ऐसा याद नहीं पड़ता। मुहावरे तो मुझे भी ज़्यादा समझ नहीं आए मगर इतना ज़रूर था कि बचपन में सुने हर नॉन-वेज मुहावरे की टक्कर में एक अहिंसक मुहावरा भी आसपास ही उपस्थित था।

जब लोग "कबाब में हड्डी" कहते थे तो हम उसे "दाल भात में मूसलचंद" सुनते थे। जब कहीं पढने में आता था कि "घर की मुर्गी दाल बराबर" तो बरबस ही "घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध" की याद आ जाती थी। इसी तरह "एक तीर से दो शिकार" करने के बजाय हम अहिंसक लोग "एक पंथ दो काज" कर लेते थे। इसी तरह स्कूल के दिनों में किसी को कहते सुना, "सयाना कव्वा *** खाता है।" हमेशा की तरह यह गोल-मोल कथन भी पहली बार में समझ नहीं आया। बाद में इसका अर्थ कुछ ऐसा लगा जैसे कि अपने को होशियार समझने वाले अंततः धोखा ही खाते हैं। कई वर्षों बाद किसी अन्य सन्दर्भ में एक और मुहावरा सुना जो इसका पूरक जैसा लगा। वह था, "भोला बछड़ा हमेशा दूध पीता है।

खैर, इन मुहावरों के मूल में जो भी हो, कच्ची-धूप की उस छोटी बच्ची का सवाल मुझे आज भी याद आता है और तब में अपने आप से पूछता हूँ, "क्या आज भी नए मुहावरे जन्म ले रहे हैं?" आपको क्या लगता है?

Sunday, July 12, 2009

भारत पर चीन का दूसरा हमला?

जी हाँ! चौंकिए मत। वही कम्युनिस्ट चीन जिसने 1962 में पंचशील के नारे के पीछे छिपकर हमारी पीठ में छुरा भोंका था, जो आज भी हमारी हजारों एकड़ ज़मीन पर सेंध मारे बैठा है। तिब्बत और अक्साई-चिन को हज़म करके डकार भी न लेने वाला वही साम्यवादी चीन आज फ़िर अपनी भूखी, बेरोजगार और निरंतर दमन से असंतुष्ट जनता का ध्यान आतंरिक उलझनों से हटाने के लिए कभी भी भारत पर एक और हमला कर सकता है। वीगर मुसलमानों, तिब्बती बौद्धों, फालुन गॉङ्ग एवं अन्य धार्मिक समुदायों का दमन तो दुनिया देख ही रही है, लेकिन इन सब के अलावा वैश्विक मंदी ने सस्ते चीनी निर्यात को बड़ा झटका दिया है। इससे चीन में अभूतपूर्व आंतरिक सामाजिक अशांति पैदा हो रही हैं। निश्चित है कि अपनी ही जनता की पीठ में छुरा भोंकने वाले चीनी तानाशाह चीनी समाज पर कम्युनिस्टों की ढीली होती पकड़ को फिर पक्का करने के लिए भारत को कभी भी दगा देने को तय्यार बैठे हैं।

प्रतिष्ठित रक्षा जर्नल ‘इंडियन डिफेंस रिव्यू’ के नवीनतम अंक के संपादकीय में प्रसिद्व रक्षा विशेषज्ञ भारत वर्मा ने कहा है कि चीन सन 2012 तक भारत पर हमला करेगा। भारत वर्मा की बात से कुछ लोग असहमत हो सकते हैं मगर मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि चीन जैसा गैर-जिम्मेदार देश किसी भी हद तक जा सकता है। एक महाशक्ति बनने का सपना लेकर चीन ने हमेशा ही विभिन्न तानाशाहियों और छोटे-बड़े आतंकवादी समूहों को सैनिक या नैतिक समर्थन दिया है। 9-11 तक तालेबान को खुलेआम हथियार बेचने वाले चीन के उत्तर-कोरिया, बर्मा और पाकिस्तान के सैनिक तानाशाहों से और नेपाल के माओवादियों से रिश्ते किसी से भी छिपे नहीं हैं। परंतु आज चीन की सरपरस्ती वाले यह सारे ही मिलिशिया और संगठन बदलते अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में धीरे-धीरे महत्वहीन होते जा रहे हैं।

मैं सोचता हूँ कि यदि चीन अब ऐसी बेवकूफी करता है तो इसका नतीजा चीन के लिए निर्णयकारी सिद्ध हो सकता है। यह चीनी आक्रमण यदि हुआ तो शायद 1962 की तरह ही सीमित युद्ध होगा। इस युद्ध के लंबा खिंचने की आशंका न्यून और इस में नाभिकीय हथियारों के उपयोग की संभावना नगण्य है। युद्ध किसी भी पक्ष के लिए शुद्ध लाभकारी घटना नहीं होती है मगर इस बेवकूफी से चीन का विखंडन भी हो सकता है। मैंने अपनी बात कह दी मगर साथ ही मैं इस विषय पर आप लोगों के विचार जानने को उत्सुक हूँ। कृपया बताएँ ज़रूर, धन्यवाद!
सम्बन्धित कड़ियाँ - अपडेट
* भारत-चीन में हो सकती है लड़ाई!
* राजकाज - भारत पर चीन का हमला

Saturday, July 11, 2009

तीन बच्चे राजधानी में

अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डी सी में हर साल रंग भरने वाले चेरी ब्लोसोम जापान की और से अमेरिका को एक सुंदर उपहार हैं। इस साल जब पिट्सबर्ग के तीन बच्चों ने लावण्या जी के ब्लॉग पर चेरी ब्लोसोम के बारे में पढा तो उन्होंने वहाँ जाने विचार बनाया। ज़ाहिर है, बच्चों के साथ उनके माता-पिता भी गए और उन्होंने भी डी सी की इस यात्रा का पूरा आनंद उठाया। यात्रा की विस्तृत जानकारी किसी अगली पोस्ट में देने का प्रयास करूंगा, तब तक के लिए इन तीन बच्चों के चित्र प्रस्तुत हैं "I love DC" टी-शर्ट्स में


चेरी ब्लॉसम का एक वृक्ष


ट्यूलिप की क्यारी के सामने


इन भद्र महिलाओं ने अपने चित्र खिंचाने के लिए बच्चों को धकियाया था।


सफ़ेद घर के सामने [Outside White House]


गरमी में आइसक्रीम का आनंद

Saturday, July 4, 2009

बार-बार दिन यह आए

छः जुलाई १९३५ को जब तिब्बत के एक छोटे से गाँव में ल्हामो धोण्डुप का जन्म हुआ था तब किसे पता था कि यह बालक बड़ा होकर महामहिम दलाई लामा (तेनजिन ग्यात्सो) बनकर संसार भर के करोड़ों लोगों को प्रेम और करुणा के साथ सत्य और अहिंसा की प्रेरणा ही नहीं बनेगा वरन अनेकों लोगों के लिए साक्षात अवतार जैसा मान्य होगा।

यह दलाई लामा का सरल व्यक्तित्व ही है कि वह अपने को तिब्बत, गेलुग परिवार या बौद्ध धर्म तक सीमित न रखकर संपूर्ण विश्व के नागरिक बन सके। १९४९ में चीन द्वारा तिब्बत पर हुए हमले के बाद १९५९ में नेहरू जी की सहायता से दलाई लामा और लाखों शरणार्थियों ने भारत आकर तिब्बत की निर्वासित सरकार का गठन किया। तब से यह सरकार धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में ही स्थापित है। सब जानते हैं कि चीन ने तिब्बत के अलावा सिक्किम, भूटान, लद्दाख और अरुणाचल के क्षेत्रों पर भी अपना दावा किया और इस सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र को हथियाने के प्रयास किए। अंततः सिक्किम और भूटान पर कब्ज़ा न कर पाने की स्थिति में भारत पर हमला भी किया और अंतर्राष्ट्रीय दवाब बनने पर सेना की वापसी भी कर ली परन्तु बलपूर्वक कब्जाए हुए लद्दाखी क्षेत्र अक्साई चिन को नहीं छोड़ा।

मंगोल भाषा में दलाई लामा का अर्थ है ज्ञान का महासागर। यह दलाई लामा का नेतृत्व ही है जिसने तिब्बत में चीनी दमन के ख़िलाफ़ चल रहे आन्दोलन को हिंसक नहीं होने दिया है। चीनी कब्जे में तिब्बत में जनता की खराब स्थिति का शांतिपूर्ण हल ढूँढने के लिए दलाई लामा ने अस्सी के दशक में एक शांति योजना भी प्रस्तुत की। १९८९ में दलाई लामा को शान्ति का नोबेल पुरस्कार मिला और चीन की धमकियों की परवाह किए बिना अनेकों राष्ट्रों ने उन्हें अपने देश के विशिष्ट नागरिक का दर्जा दिया है। उनको अनेकों सम्मान एवं बीसिओं डॉक्टरेट उपाधियां भी मिल चुकी हैं । भारत व अमेरिका के अलावा भी अनेकों विश्व विद्यालय उन्हें प्रवचन के लिए बुलाते रहते हैं। अपनी शांत मुस्कान के लिए प्रसिद्व दलाई लामा पचास से अधिक पुस्तकों के लेखक भी हैं।

यदि उनके जीवन संदेश को गिने-चुने शब्दों में कहना हो तो मैं चुनूंगा - अहिंसा, क्षमा, विश्व-बंधुत्व और नम्रता। दलाई लामा को जन्म दिन मुबारक!

दलाई लामा - चित्र सौजन्य: अनुराग शर्मातिब्बत संबन्धी कुछ लिंक
तिब्बत के मित्र
चीनी दमन और तिब्बती अहिंसा
भारत तिब्बत समन्वय केंद्र



Thursday, July 2, 2009

शैशव - एक कविता

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शैशव में सुख सारे थे।
सारे जग के प्यारे थे ।।

राज सभी पर अपना था।
चलते हुक्म हमारे थे।।

गुड्डे-गुडियाँ, गेंदें-गोली।
ईद, बिहू और पोंगल, होली।।

सब त्यौहार मनाते थे।
हम कितना इतराते थे।।

जीवन सुख से चलता था।
बिन मांगे सब मिलता था।।

दिन वैभव से कटते थे।
ऐसे ठाठ हमारे थे।।

शैशव में सुख सारे थे।
सारे जग के प्यारे थे ।।

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