Sunday, March 17, 2013

वादा - कविता

(अनुराग शर्मा)

तेरे मेरे आँसू की तासीर अलहदा है
बेआब  नमक सीला, वो दर्द से पैदा है

तन माटी है मन सोना इंसान है हीरे सा
बेगार में दिल देना अनमोल ये सौदा है

बदनाम सदा से थे पर नाम हुआ उनका
औकात से यह उनकी तारीफ ज़ियादा है

हिज़्र तेरा दोज़ख, जन्नत तेरे कदमों में
सिजदे में मेरा सिर है मरने का इरादा है

जब दूर है चश्मे-बद, हैं बंद मेरी आँखें
क्यूँ हुस्न है पोशीदा क्यूँ चाँद पे पर्दा है

ये जान तेरे हाथों ये दिल भी तुम्हारा है
न मुझको हिलाओ तन बेजान है मुर्दा है

उम्मीद है काफिर की हयात ताज़ा होंगे
आएंगे तुझे मिलने अपना भी ये वादा है


  

Friday, March 8, 2013

या देवी सर्वभूतेषु ...

मातृभूमि और मातृभाषा से जुड़े रहने के उद्देश्य से केबल का भारतीय पैकेज लिया हुआ था। जो चैनल, जब खोलो तब या तो सास, ननद बहू एक दूसरे के खिलाफ षड्यंत्र रचती नज़र आती थीं या कोई पीर, तांत्रिक, बाबा अपनी जादुई कृपा बरसाते दिखते थे। ज़ी के अंतर्राष्ट्रीय संस्करण पर तो हिन्दी समाचारों का भी चुनाव, प्रस्तुति, वाचन, भाषा आदि हर स्तर पर इतना बुरा हाल था कि हर समाचार कार्यक्रम के बाद रक्त का दवाब शायद बढ़ ही जाता होगा। अब ढलती उम्र में स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी ज़रूरी है, सो न चाहते हुए भी इन अति-निम्न-स्तरीय चैनलों का पत्ता काटना ही पड़ा।

लेकिन टीवी बंद कर देने भर से दुर्घटनाएँ तो नहीं रुकतीं। समाचार बंद नहीं होते। दूसरा पक्ष यह भी है कि समाचार का मतलब मीडिया और सोशल मीडिया के परोसे विज्ञापन भर भी नहीं होता। समाचारों के व्यवसायीकरण के बाद जिन विषयों में आपकी रुचि है, जो घटना आपको उद्वेलित करती है उसके बारे में आपको पता ही नहीं लगता है जब तक कि समाचार-व्यवसायियों के लिए उस घटना की कोई बाजारू-कीमत (मार्केट वैल्यू) न हो।

न जाने कितनी ही खबरें हमारे पास आने से पहले ही अंग्रेज़ीनुमा हिन्दी में आँय-बाँय कहने वाले टीवी समाचार-निर्माताओं के पेपरवेट तले दाब दी जाती हैं। आज महिला दिवस पर इनमें से कुछ खबरों का संघर्ष स्वाभाविक है ताकि हम साल में कम से कम एक दिन यह सोचें कि हमारा देश, हमारा समाज जा किधर रहा है।

एक जोड़ा पर और असीमित आकाश
दिसंबर में दिल्ली में हुए बलात्कार और हत्याकांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था लेकिन देश की नारियां रोज़ ही अनेक कठिनाइयों से गुजरती हैं। कुछ तो बहादुरी से मुक़ाबला करते जान दे देती हैं, कुछ जीती हैं इस उम्मीद में कि कल आज से बेहतर होगा और कुछ ऐसे टूटती हैं कि अपनी जान खुद ही दे देती हैं। कौन बनेगा करोड़पति में आ चुकीं झारखंड की सोनाली को मुहल्ले के गुंडों की अनुचित हरकतों का विरोध करने की कीमत तेज़ाब से अपना चेहरा और दृष्टि खोकर चुकानी पड़ी थी। मामला स्पष्ट था फिर भी उनके पिता को अपना पक्ष रखने के लिए अनगिनत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। यहाँ तक कि सोनाली ने एक बार सरकार से इच्छामृत्यु की अपील भी कर डाली थी। लेकिन कई मामले सोनाली जैसे साफ नहीं होते। केरल के कुन्नूर की निवासी माँ-बेटी सुल्फजा (58) और सरीना (23) इस साल जनवरी में अजमेर स्थित ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की गर्म खौलती विशाल कढाही 'छोटी देग' में कूद गई थीं। काफी प्रयासों के बाद भी वे दोनों केवल तीन दिन तक जीवित रहीं। परिवार में एक पिता-पुत्र भी हैं जो घटनास्थल पर नहीं थे। गरीबी, और अवसाद के अलावा इस परिवार के बारे में अधिक कुछ भी पता नहीं लगा।

बेघर बच्चों की दुर्गति की खबरें तो अक्सर पढ़ने को मिलती थीं लेकिन अब घरेलू नौकरी के नाम पर लड़कियों की तस्करी और फिर महानगरों में उनका शोषण भी सामान्य होता जा रहा लग रहा है। पिछले साल अपनी तेरह वर्षीया नौकरानी को द्वारका (दिल्ली) के घर में बाहर से बंद करके विदेशयात्रा पर चले जाने वाले डॉक्टर की बात तो आपको याद होगी ही। हरियाणा में रोहतक के बहुचर्चित अपना घर मामले में सौ से अधिक बालिकाओं के संस्थागत यौन शोषण में घर की कर्ता-धर्ता जसवंती और अन्य अनेक सरकारी-असरकारी लोगों की गँठजोड़ के आसार दिखते हैं।

नेपाल से लाई गई 12 वर्षीय घरेलू नौकरानी को आठ महीने तक प्रताड़ित करने के मामले में 42 वर्षीय फिल्म अभिनेत्री हुमा खान को दिसंबर 2012 मे सजा सुनाई गई। हुमा के सहआरोपी शमीउद्दीन शेख पर उस बालिका के साथ कई बार दुराचार करने का आरोप था लेकिन सबूतों के अभाव में शमीउद्दीन बरी हो गया।

भारत में छेड़छाड़, दहेज-हत्या, प्रताड़न जैसे अपराधों के अलावा महिलाओं की खरीद-बेच भी एक गंभीर समस्या है जिसके तार अंतर्राष्ट्रीय तस्करों, जिहादियों, आतंकवादियों के गिरोहों और भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों के धृष्ट गँठजोड़ के सहारे अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश तक फैले हुए हैं।

लेकिन यह अमानवीयता दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं। इस अपसंस्कृति का निर्यात भारत उपमहाद्वीप के बाहर भी हो रहा है। भारतीय नारी विदेश में भी अबला बनाई जा रही है। सन 2007 में न्यूयॉर्क की पुलिस ने सुगंध का व्यापार करने वाले भारतीय मूल के करोड़पति दंपति महेंद्र मुरलीधर सभनानी और वर्षा सभनानी को अपने घर में इंडोनेशियाई मूल की दो महिलाओं को कई सालों तक गुलामों की तरह बंदी बनाकर रखने, बेगार लेने और प्रताड़ित करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। इन महिलाओं को बात-बेबात मारा-पीटा जाता था, कभी बार-बार ठंडे पानी से नहाने को मजबूर किया गया तो कभी बहुत-सी मिर्च फाँकने पर। इन दोनों को न तो वेतन मिलता था और न ही घर से बाहर निकलने की आज़ादी थी। एक दिन एक महिला किसी तरह भागकर फटे कपड़ों में बाहर घूमती दिखी। किसी चौकन्ने नागरिक ने गड़बड़ी भाँपकर पुलिस को सूचना दी, तब सारा मामला खुला। ये महिलाएं पर्यटक वीसा पर अमेरिका आई थीं और उनके पासपोर्ट सभानानी परिवार के कब्जे में थे।

अवैध कागजातों के जरिये ही अलबनी (न्यू यॉर्क राज्य) लाई गई वलसम्मा मथाई को एक विशाल महल के भारतीय मूल के मालिकों की रोज़ 17 घंटे तक सेवा करने के एवज में सोने के लिए एक बड़ी अलमारी मिली थी। उनके हिस्से में न छुट्टी के लिए कोई दिन था और न ही उस घर को छोड़कर जाने की आज्ञा। महल की मालकिन "ऐनी जॉर्ज" ने अदालत में अपने को बेकसूर बताते हुए कहा कि निजी हैलिकॉप्टर दुर्घटना में मरे अपने पति की गतिविधियों के बारे में उसे कुछ पता नहीं है। कोई स्वतंत्र निर्णय लेने पर पति तो उसकी पिटाई ही करता था।

हैदराबाद से अवैध रूप से लंडन ले जाई गई उस भारतीय महिला की कहानी और भी दुखद है जिसे समान परिस्थितियों में तीन परिवारों शमीनीयूसूफ़-अलीमुद्दीन, शहनाज़-एनकार्टा, शशि-बलराम ने न केवल आर्थिक-श्रम शोषण किया बल्कि उनका यौन शोषण भी होता रहा।

ऐसा भी नहीं है कि इस प्रकार के अपराधों में केवल अनिवासियों का नाम आया हो। भारत सरकार के उच्च पदों पर रहने वाले लोगों पर भी विदेशों में इस प्रकार के शोषण के आरोप लगते रहे हैं। न्यूयॉर्क में भारत के वाणिज्यदूत प्रभु दयाल का मामला भी वैसा ही है। उन पर पैंतालीस वर्षीया संतोष भारद्वाज ने रोज़ाना, हफ़्ते के सातों दिन, करीब 15 घंटों तक घर का काम करने पर मजबूर करने और न्यायिक न्यूनतम ($7.5 डॉलर प्रति घंटा) से भी कम वेतन (एक डॉलर) देने का मुक़दमा न्यूयॉर्क की संघीय अदालत में दायर किया है, जिसमें प्रभु दयाल के साथ उनकी पत्नी चांदनी औऱ बेटी अकांक्षा का नाम भी शामिल है। कम वेतन, अधिक काम के अतिरिक्त उन्हें एक छोटी सी कोठारी में ही सोना पड़ता था। सन 2011 में एक दिन जब प्रभु दयाल किसी मीटिंग में थे और उनकी पत्नी सो रही थीं, संतोष मौक़ा पाकर उनके घर से निकल भागीं और पुलिस के पास पहुँचीं। मज़े कि बात यह है कि इस मुकदमे के दौरान प्रभु दयाल के परिवार के वकील रवि बत्रा के नेतृत्व में 100 भारतीयों ने प्रभु दयाल के समर्थन में प्रदर्शन भी किया। इनका कहना था कि भारतीय समुदाय किसी भी तरह प्रभु दयाल को अकेला नहीं छोड़ सकता। संतोष भारद्वाज के पास अमरीका में रहने के लिए वैध दस्तावेज़ नहीं हैं। यदि पल भर के लिए बाकी सारी बातें झूठ मान भी ली जाएँ तो एक भारतीय राजनयिक का एक अवैध आप्रवासी को घरेलू नौकर रखना क्या दर्शाता है?

न्यूयॉर्क में ही एक अदालत ने फरवरी 2012 में भारतीय उपदूतावास की प्रेस सलाहकार नीना मल्होत्रा और उनके पति जोगेश मल्होत्रा को अपनी सेविका शांति गुरूङ्ग पर किए गए बर्बर अत्याचारों और मानसिक प्रताड़ना के लिए 15 लाख डॉलर का मुआवजा देने का आदेश दिया था। इन पति-पत्नी ने भी अपनी सेविका के कागज-पत्र अपने कब्जे में लेने के बाद उसका घर से आवागमन बंद कर दिया था और धमकाते थे कि बाहर निकलने पर उसे पुलिस से पकड़वाने, पीटने, बलात्कार करने के बाद सामान की तरह वापस हिंदुस्तान भिजवा देंगे। वीसा बनवाने के समय उन्होने 17 वर्षीय शांति से कई सारे झूठ बुलवाए थे।

इन घटनाओं की पीडिताओं को संसार के समृद्धतम देश में रहते हुए न तो कभी मानसिक प्रसन्नता का अनुभव हुआ होगा और न ही यहाँ उपलब्ध उन्नत सुविधाओं यथा चिकित्सा आदि से साबका पड़ा होगा जबकि इनके नियोक्ता (या शोषक?) पढे लिखे और शक्तिशाली धनिक थे। सारी दुनिया में महिला दिवस एक पर्व होगा, होगा उल्लास का दिन लेकिन शोषक प्रवृत्ति वाले धनाढ्यो की सताई महिलाओं के लिए साल में एक बार आने वाले इस दिन का कोई मतलब नहीं है।
"अफ़ग़ान पुरुषों को शिक्षित होने की ज़रूरत है। क्षमा कीजिये, अफ़ग़ानिस्तान के पुरूषों का आचरण अच्छा नहीं है। उन्हें और पढ़ने की ज़रूरत है।" ~ अफ़गान राजकुमारी "इंडिया"
वैसे नारी उत्थान की सारी ज़िम्मेदारी हम भारतीयों के मजबूत चौड़े कंधों पर ही नहीं सिमटी। देश के उत्तर में नेपाल, भूटान और तिब्बत के आगे एक देश चीन भी है जहां मार्क्स, माओ वगैरह के नाम पर दुनिया भर की समस्याओं को सुलझाकर समाज को एकदम बराबर कर दिये जाने के दावे किए जाते हैं। तो खबर यह है कि वहाँ की महिलाएं अपने पेट पर कपड़े आदि बांधकर गर्भवती दिखने का प्रयास कर रही हैं ताकि ट्रेन, बस आदि में उन्हें भी सीट मिलने की संभावना बने।

हर दिन पिछले दिन से बेहतर हो! आपको महिला दिवस की बधाई!