tag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post1785673903235021477..comments2024-03-23T20:44:05.692-04:00Comments on * An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीय *: हज़ार साल छोटी बहनSmart Indianhttp://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-78046985821530518882012-01-29T07:32:10.343-05:002012-01-29T07:32:10.343-05:00यहाँ एक शहर है जहां सिर्फ संस्कृत में ही बातचीत हो...यहाँ एक शहर है जहां सिर्फ संस्कृत में ही बातचीत होती है - कन्नडा नहीं बोली जाती |आम बोलचाल की भाषा भी संस्कृत है - छोटे बच्चे से लेकर बड़े लोगों तक ...Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-5664934092208026192008-07-31T14:46:00.000-04:002008-07-31T14:46:00.000-04:00वाद-विवाद से ही संवाद बनता है , आप समय-समय पर विचा...वाद-विवाद से ही संवाद बनता है , आप समय-समय पर विचार का जो छोंक लगते हैं अच्छा लगता है.मैं भी मानता हूँ , संस्क्रत प्राचीन है.और वेद भी. इस विषय पर भी अवश्य विचार करें कि वेद आज घरों से लुप्त क्यों ?<BR/>आशा है आप ज्ञानवर्धक कैप्सूल लोगों को देते रहेंगे.شہروزhttps://www.blogger.com/profile/02215125834694758270noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-25233062596183959892008-07-31T05:33:00.000-04:002008-07-31T05:33:00.000-04:00लेख भी पढ़ा और सभी कि टिप्पणियाँ भी.सही बात तो ये ह...लेख भी पढ़ा और सभी कि टिप्पणियाँ भी.<BR/>सही बात तो ये है कि भाषाओँ के सम्बन्ध में अपना ज्ञान भी शुन्य है हालाँकि MA हिंदी करते हुए इस बारे में पढा जरूर पर ...........<BR/>इस लेख से अच्छी जानकारी मिली . बहस के चक्कर में मैं पड़ना नहीं चाहताज़ाकिर हुसैनhttps://www.blogger.com/profile/14153966464681275532noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-53663553130888440302008-07-31T03:56:00.000-04:002008-07-31T03:56:00.000-04:00बहुत समय के बाद किसी गम्भीर विषय पर कोई चर्चा देखन...बहुत समय के बाद किसी गम्भीर विषय पर कोई चर्चा देखने को मिली। पढ कर अच्छा लगा।adminhttps://www.blogger.com/profile/09054511264112719402noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-5038326458900506302008-07-31T03:38:00.000-04:002008-07-31T03:38:00.000-04:00बड़ी सुरुचिपूर्ण और ज्ञान वर्धक चर्चा यहाँ चल रही ह...बड़ी सुरुचिपूर्ण और ज्ञान वर्धक चर्चा यहाँ <BR/>चल रही है ! मेरे जैसे कुछ लोग जिनको <BR/>इस विषय पर समझ नही है वो कुछ भी <BR/>कहने से बच रहें हैं ! पर मैं आप सभी<BR/>विषय के जानकारों से निवेदन करना<BR/>चाहता हूँ की कृपया किसी भी मुद्दे को<BR/>व्यक्तिगत तौर पर ना लेकर विषय पर<BR/>चर्चा जारी रखें तो हम जैसे लोग भी<BR/>इसकी जान कारी प्राप्त कर सकेंगे ! आप<BR/>क्रपय्या ये ना समझे की दुसरे चुप बैठे <BR/>हैं तो हम क्यों बोले ? दुसरे भी विषय<BR/>को समझना चाहते हैं ! और वो आपकी<BR/>बात सुनना चाहते हैं !<BR/><BR/>मैं विशषत: आ. दिनेश राय जी द्विवेदीजी ,<BR/>ज्ञान दत्त जी पांडेजी , अशोक पांडे जी<BR/>एवं भाई अभय तिवारी जी से अनुरोध<BR/>करना चाहूँगा की आप लोगों को इस <BR/>विषय का ज्ञान है ! आपके वक्तव्य <BR/>बहुत सारवान हैं ! और ये हम सब की <BR/>धरोहर रहेंगे ! अत: आप अपने विचार<BR/>और व्यक्त करें तो सभी लाभान्वित भी<BR/>होंगे और ज्ञान का विस्तार भी होगा ! <BR/>इसमे सहमत और असहमत होने का <BR/>सवाल नही हैं !<BR/><BR/>आप सभी को और भाई पित्सबर्गिया<BR/>को विशेष तौर पर धन्यवाद देना<BR/>चाहूँगा की उनके चुने हुए विषय <BR/>इस स्तर के होते हैं की हम जो नही<BR/>समझ पा रहे हैं वो भी समझने की<BR/>कोशीश कर रहे हैं ! और आप गुणी<BR/>जनों से संवाद स्थापित करने का <BR/>मौका मिल रहा है ! <BR/>धन्यवाद !ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-25010098352231507252008-07-30T17:25:00.000-04:002008-07-30T17:25:00.000-04:00hajaar ya sastra saal chhoti bahan hi sahi... badi...hajaar ya sastra saal chhoti bahan hi sahi... badi bahan hamesha maan ke samaan hoti hai... ma ho ya bahan, badi to badi hi rahegi na...Pragyahttps://www.blogger.com/profile/16628365720892083937noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-10333409908205843702008-07-30T13:48:00.000-04:002008-07-30T13:48:00.000-04:00मैं इस विषय पर पकड़ नहीं रखता हूं, इस लिये आप लोगो...मैं इस विषय पर पकड़ नहीं रखता हूं, इस लिये आप लोगो की बात ही धयान से पढ रहा हू,<BR/>धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-32066015267362312622008-07-30T11:46:00.000-04:002008-07-30T11:46:00.000-04:00मैं यहां यही कहना चाहता हूं कि "इतिहास" का प्रयोग ...मैं यहां यही कहना चाहता हूं कि "इतिहास" का प्रयोग कर कई लोग अपने पूर्वाग्रहों को कन्वोल्यूटेड लॉजिक के माध्यम से इतिहास सम्मत बताते हैं। यह मार्क्सवादी विचार वाले भी करते हैं और हिन्दू फण्डामेण्टलिस्ट भी।<BR/><BR/>एक विचारधारा के परिपोषण में इतिहास का दुष्प्रयोग नहीं होना चाहिये। भारतीय सभ्यता, संस्कृति और उसकी एडॉप्टिबिलिटी की क्षमता सशक्त है। उसका डेलीबरेट डिनिग्रेशन निन्दनीय है। ठीक उसी प्रकार जैसे इस सभ्यता के समक्ष अन्य सब को छोटा समझना गलत है।<BR/> <BR/>संस्कृत के समक्ष फारसी को न्यून समझना मेरा ध्येय नहीं है। बल्कि एक भाषा के समक्ष दूसरी को कमतर आंकना सही नहीं है। <BR/><BR/>पर संस्कृत की प्राचीनता में किसी कन्वोल्यूटेड तर्क से पानी मिलाना भी ठीक नहीं। यह टिप्पणी कृपया पिछली पोस्ट पर की गयी टिप्पणी के सन्दर्भ में देखने का कष्ट करें।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-43982330932291678772008-07-30T11:06:00.000-04:002008-07-30T11:06:00.000-04:00अनुराग भाई, मेरी टिप्पणी से यदि आप आहत हुए हों तो...अनुराग भाई, मेरी टिप्पणी से यदि आप आहत हुए हों तो कृपया क्षमा करेंगे। विदेश में रहकर भी आप हमारी भारतीय संस्कृति की बात करते हैं, आपका आहत महसूस करना हमारे लिये भी उतना ही कष्टदायी है। मेरा उद्देश्य विमर्श को सिर्फ आगे बढ़ाना था, आपकी बात को काटना नहीं। जहां मैं असहमति के लिए स्पेस नहीं देखता, खुद ही टिप्पणी करने से बचता हूं। अभय भाई का उद्देश्य भी शायद बात को आगे बढ़ाना ही था, काटना नहीं। सादर व साभार।Ashok Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/14682867703262882429noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-8135085753427067162008-07-30T10:20:00.000-04:002008-07-30T10:20:00.000-04:00बात को कहने ओर उसे समझाने की गहरी पकड़ आपकी लेखनी म...बात को कहने ओर उसे समझाने की गहरी पकड़ आपकी लेखनी में है...बाकी सभी लोग इस विषय पर कह चुके है...डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-11990528919509818132008-07-30T07:29:00.000-04:002008-07-30T07:29:00.000-04:00अगर बहन भी मान ले तो एक प्राकृतिक रूप से बड़ी होगी ...अगर बहन भी मान ले तो एक प्राकृतिक रूप से <BR/>बड़ी होगी ही ! भले ही वो आधा घंटा बड़ी हो !<BR/>और यहाँ तो इतिहास आदि साफ़ साफ़ इशारा <BR/>करते हैं की असलियत क्या है ? और इसमे <BR/>लेखक की ये बात ज्यादा दम रखती है की<BR/>अन्तर एक हजार साल का होगा ! और है भी !ताऊजीhttps://www.blogger.com/profile/15156113325400105875noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-31942710756632119512008-07-30T07:18:00.000-04:002008-07-30T07:18:00.000-04:00"चुप रहने वाले शिक्षक से बोलने वाला शिक्षकबेहतर है..."चुप रहने वाले शिक्षक से बोलने वाला शिक्षक<BR/>बेहतर है क्योंकि वह समाज को बदलता है. !<BR/>हाँ अगर मेरा प्रमाणिकता वाला मजाक पसंद <BR/>नहीं आया तो आज से मजाक बंद!"<BR/><BR/>मित्र पितस्बर्गिया , आप का विषय और मजाक<BR/>दोनों सार वान् होते हैं ! आप शुरू से ही बड़ी <BR/>ज्ञान दायक और सुरुची पूर्ण विषय पर लिखते <BR/>आ रहे हैं ! शब्दों से यात्रा अपनी संसकृति तक <BR/>जाती है ! आपसे निवेदन है की आप अबाध <BR/>गति से इसी तरह सारवान विषय पर जानकारी<BR/>देते रहें ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद !<BR/><BR/>चलते चलते एक सवाल:- के बारे में मुझे सिर्फ़<BR/>इतनी जानकारी है की यह सर्व प्रथम जर्मनी <BR/>में शुरू हुआ था ! समय आदि की निश्चित<BR/>जानकारी नही है ! पर मुझे ऐसा याद आ रहा <BR/>है की OPPENHEIMIR नामक वैज्ञानिक बम आदि घटनाओं से त्रस्त हो कर गीता को पढ़ने के लिए संस्कृत सीखी थी ! शायद उस घटना से सम्बद्ध हो !<BR/><BR/>पर आपसे निवेदन है की इस विषय पर पुरी<BR/>जानकारी अवश्य देवे ! अब दिमाग में नई <BR/>खटखट आपने शुरू कर दी है ! कृपया<BR/>इसकी जानकारी अवश्य और जल्दी दें !<BR/><BR/>पुन: आपको धन्यवाद और शुभकामनाए !ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-77435591695766142642008-07-30T04:18:00.000-04:002008-07-30T04:18:00.000-04:00achcha lekh likha haiachcha lekh likha haivipinkizindagihttps://www.blogger.com/profile/06698270014124048966noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-49665571186232319532008-07-30T04:03:00.000-04:002008-07-30T04:03:00.000-04:00अति उत्तम आलेख और सार्थक परिचर्चा.लाभान्वित हो रहे...अति उत्तम आलेख और सार्थक परिचर्चा.<BR/>लाभान्वित हो रहें हम भी.<BR/>और कया कहे की चर्चा जारी रहे.बालकिशनhttps://www.blogger.com/profile/18245891263227015744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-17983240096009634052008-07-30T02:06:00.000-04:002008-07-30T02:06:00.000-04:00इस विषय पर मेरी जानकारी नही के बराबर है।लेकिन आप क...इस विषय पर मेरी जानकारी नही के बराबर है।लेकिन आप का लेख पढ़ कर और साथीयॊ की टिप्पणीयां पढ़ कर अच्छा ज्ञानवर्धन हो रहा है।इसे जारी रखे।आप सभी का धन्यवाद।परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-23212749700281555392008-07-30T00:01:00.000-04:002008-07-30T00:01:00.000-04:00अभय भाई,मैं खफा होने वालों में बिल्कुल नहीं हूँ. अ...<B><I>अभय भाई,</I></B><BR/><BR/>मैं खफा होने वालों में बिल्कुल नहीं हूँ. अपनी तो दुश्मनों से भी दुआ-सलाम है, आप तो मेरे छोटे भाई जैसे हैं. अगर मेरे किसी भी कथन से आपको अपनी मौजूदगी अवांछित लगी तो यह मेरी भाषा की कमी हुई और मैं आइन्दा इसके बारे में और चौकन्ना रहूँगा. <BR/><BR/>आपने एक राय रखी और मैंने उसका ही एक और पहलू सामने रखा - उद्देश्य सिर्फ़ शंका-निर्मूलन है. आपकी टिप्पणियों और लेखों से भी मैं उतना ही सीख रहा हूँ जितना अपने बुजुर्गों से सीखा है. <BR/><BR/>आते रहिये, बहसें तो चलती रहेंगी, कभी कभी कटाक्ष भी होते रहेंगे (मजाक करना मेरी आदत में शुमार है), मगर याद रखिये - चुप रहने वाले शिक्षक से बोलने वाला शिक्षक बेहतर है क्योंकि वह समाज को बदलता है. हाँ अगर मेरा प्रमाणिकता वाला मजाक पसंद नहीं आया तो आज से मजाक बंद!<BR/><BR/><B>Blessings!</B>Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-55151996987742868632008-07-29T23:42:00.000-04:002008-07-29T23:42:00.000-04:00अनुराग जी,ऐसा मालूम होता है कि मेरे कल की टिप्पणी ...अनुराग जी,<BR/><BR/>ऐसा मालूम होता है कि मेरे कल की टिप्पणी को आप ने अन्यथा ले लिया! आप को चोट पहुँचाने या आप के बाबा के अनादर करने का मेरा कोई आशय नहीं था। यदि आप को ऐसा लगा तो मैं माफ़ी चाहता हूँ। <BR/>पुरानी पारसी (फ़ारसी तो वो अरबों के संसर्ग में आने के बाद कहाई) और संस्कृत को बहने कहने के पीछे मेरा तात्पर्य उनकी समान्तरता पर है। जो आपने स्वयं रेखांकित की है। और अशोक पाण्डेय जी ने भी अपनी टिप्पणी में बताया है। मैं अपनी राय में संस्कृत की बेटियाँ हिन्दी, मराठी, बंगला, पंजाबी मलयालम आदि भाषाओं को कहूँगा। जिनमें बाहु और बाज़ू जैसे समान्तर शब्द नहीं बिलकुल रूप परिवर्तित शब्द मिलते हैं जैसे विरूप का बुरा, कृषक का किसान, कश्यप का कछुआ आदि। ये मेरी राय है। आप हिन्दी और संस्कृत का कोई और भी रिश्ता मानने के लिए स्वतंत्र है। <BR/>दूसरी बात मैंने आप की बात को ग़लत नहीं कहा.. बस ये कहा कि प्रामाणिक नहीं है। मैक्समुलर ने वेदों का जो काल निर्णीत किया है वह मात्र एक अनुमान है ऐसा वह स्वयं कहते हैं। पुरानी पारसी का कालखण्ड जो भी हो भाषा में कोई ऐसा विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है जिससे उसे दूसरी पीढ़ी का माना जा सके। मुझे स्वयं ये बात तार्किक लगती है कि आर्य (जिन्हे कहा जाता है यानी भारोपीय लोग) भारत से ईरान और योरोप में गए बजाय इसके कि मध्येशिया से फैले मगर इसे अधिकतर लोग नकारते हैं.. इसके पक्ष में मैने एक लेख लिखा था..चाहे तो <A HREF="http://nirmal-anand.blogspot.com/2007/07/blog-post_21.html" REL="nofollow">यहाँ देखें </A>.. <BR/>अंत में एक बात और आप जब टिप्पणी आमंत्रित करते हैं तो दूसरों की राय माँगते हैं। मैंने विषय पर अपनी राय ही तो दी थी आप को कोई गाली तो नहीं दी। फिर भी अगर आप को इस तरह की बात आप का व्यक्तिगत अपमान लगता है तो मैं आगे से आप के चिट्ठे पर टिप्पणी करने से बचूँगा।<BR/>सादरअभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-48644505261116157042008-07-29T23:25:00.000-04:002008-07-29T23:25:00.000-04:00no offence, मैं किसी भी भाषा से जुड़ा नहीं हूँ और न...no offence, मैं किसी भी भाषा से जुड़ा नहीं हूँ और न ही मेरा कोई पूर्वाग्रह है - आप लोगों की टिप्पणियों से मुझे रोज़ नयी जानकारी मिल रही है <BR/><BR/><B><I>नीरज भाई,</I></B><BR/>१. मैंने आज तक कभी नहीं सुना-पढ़ा कि अवेस्ता वेदों से पुरानी हो सकती हैं - यह मेरे लिए एकदम नयी बात है. एनसाइक्लोपिडिया ब्रिटैनिका के अनुसार अवेस्ता छठी शती ईसा पूर्व से अस्तित्व में आयी थी. हालांकि पहले हमारी बात फारसी की हो रही थी (मगर जब बात आ ही गयी है तो...) . मुझे आपकी बात में संदेह नहीं है. हो सकता है कि अवेस्ता वेदों की तरह श्रुति रूप में पहले से अस्तित्व में रही हों मगर वह भाषा फर्क हो सकती है और भाषांतर (ह->ज; स->ह; व->b आदि) लिप्यांतर के कारण भी हो सकता है. संस्कृत तो चल रही है परन्तु दुर्भाग्य से पहलवी और अवेस्ता दोनों ही प्रचलन से बाहर हैं इसलिए हम और आप सिर्फ़ कयास ही लगा सकते है. एनसाइक्लोपिडिया ब्रिटैनिका के अनुसार:<BR/><BR/><B>"Of the ancient Iranian languages, only two are known from texts or inscriptions, Avestan and Old Persian, the oldest parts of which date from the 6th century BC. Avestan was probably spoken in northeastern Iran, and Old Persian is known to have been used in southwestern Iran. Other ancient Iranian languages must have existed,..."</B> <BR/><BR/><B><I>अरविन्द भाई,</I></B> <BR/>वेद और अवेस्ता में साम्यता है मगर एक अजीब सी बात भी है - अवेस्ता के देव अच्छे लोग नहीं हैं - इन्द्र भी दरअसल एक शत्रु है - देवता है अहुर (=असुर :- स->ह नियम के अनुसार) . ऐसा लगता है जैसे यह एक ही सिक्के के दो विपरीत पहलू थे.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-69345062790094883662008-07-29T22:21:00.000-04:002008-07-29T22:21:00.000-04:00अच्छा विमर्श चल रहा है .मैं यह देख कर विस्मित रह ग...अच्छा विमर्श चल रहा है .मैं यह देख कर विस्मित रह गया कि ईरानियों के धरम ग्रन्थ अवेस्ता और ऋग्वेद में बहुत साम्य है भाषा ही नही पात्रों में भी -पर सिन्धु अब हिंदू हो गया ,इस पहेली में पुराइतिहास का एक बड़ा अध्याय छुपा हुआ है .Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-88609353382599461362008-07-29T21:33:00.000-04:002008-07-29T21:33:00.000-04:00मुझे इसमें बहस जैसी कोई बात नजर ही नहीं आती, अतः म...मुझे इसमें बहस जैसी कोई बात नजर ही नहीं आती, अतः मैं अलग होता हूँ.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-20561065827405249222008-07-29T21:25:00.000-04:002008-07-29T21:25:00.000-04:00"इसके विपरीत ईरानी भाषा का प्राचीनतम रूप ईसा से लग..."इसके विपरीत ईरानी भाषा का प्राचीनतम रूप ईसा से लगभग ५०० वर्ष पहले अस्तित्व में आया।" <BR/><BR/>जब बात चली ही है तो अगर आप इसको अवेस्ता वाली ईरानी भाषा न मानें तब ठीक है । अन्यथा इसका मतलब है कि अवेस्ता भी ५०० ईसा पूर्व के समकालीन है जिसे कोई भी इतिहासविद/भाषाविद नहीं मानेगा ।<BR/><BR/>Conservative estimate से भी अवेस्ता कम से कम ऋगवेद के समकालीन है (अगर ऋगवेद के पुरानी नहीं तो) ।Neeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-20628529637393781452008-07-29T20:40:00.000-04:002008-07-29T20:40:00.000-04:00बात सच है कि ये मुद्दा बहुत गहन है। ठोस सबूत शायद ...बात सच है कि ये मुद्दा बहुत गहन है। ठोस सबूत शायद बहुत ही कम मिलें आज, अंगरेजों ने बहुत से सबूत बरबाद किये हैं। संग्रहालयों में कुछ मिल जाये शायद? मैं इस विषय पर पकड़ नहीं रखता हूं, इसलिये यहीं पर अपनी बात खत्म करते हुये सिर्फ इतना ही कहूंगा - <B>आज हमें संस्कृत और संस्कृति सीखने की अधिक आवश्यकता है। यदि संस्कृत सीखने से आम जनता और देश का फायदा हो सकता है तो क्या फर्क पड़ता है कि वो फारसी कि मां है या बहन?</B>Anil Kumarhttps://www.blogger.com/profile/06680189239008360541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-44848505926666444662008-07-29T20:31:00.000-04:002008-07-29T20:31:00.000-04:00संतुलित आलेख है आप का। दृष्टिकोण भी वैज्ञानिक। सभी...संतुलित आलेख है आप का। दृष्टिकोण भी वैज्ञानिक। सभी भाषाओं को मनुष्य ने ही जन्म दिया है। इस लिए सभी बहनें हीं हैं। कुछ दूर की कुछ पास की। जो जितनी पुरानी हैं उतनी ही समृद्ध हैं। सभी अभिव्यक्ति का माध्यम हैं। लेकिन पुरातन होने से कोई भी भाषा अभिव्यक्ति के लिए पूरी तरह समर्थ नहीं हो सकती। क्यों कि यह अभिव्यक्ति का संपूर्ण माध्यम नहीं है। इसी कारण बात करते समय लोग मुद्राएँ बनाते हैं, हाथो के संकेतों का प्रयोग करते हैं आदि आदि। अभिव्यक्ति का संपूर्ण माध्यम न होने के कारण। मनुष्य इसे अधिक उपयोगी बनाने के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है। नतीजा है कि भाषा निरंतर परिवर्तित होती रहती है और नयी भाषाएँ जन्म लेती रहती हैं।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com