tag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post3061731338880145420..comments2024-03-17T12:17:02.187-04:00Comments on * An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीय *: लोगो नहीं, लोगों - हिन्दी व्याकरण विमर्शSmart Indianhttp://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comBlogger25125tag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-88307682287325659052021-01-05T20:32:38.092-05:002021-01-05T20:32:38.092-05:00समीर जी,
प्रश्न यह नहीं कि अनुस्वार का प्रयोग नहीं...समीर जी,<br />प्रश्न यह नहीं कि अनुस्वार का प्रयोग नहीं करने का आग्रह किस प्रयोग में है, प्रश्न उस आग्रह के उद्गम और औचित्य पर है:<br />1) यह नियम कहाँ से आया? - (किसी को नहीं पता)<br />2) क्या बहुसंख्य हिंदीभाषी जनता इसे जानती/मानती है? (नहीं, सांख्यिकी गवाह है)<br />3) क्या हिन्दी साहित्यकार इसके साथ हैं (अहिंदीभाषियों में कुछ हद तक प्रचलित है, हिन्दी में नहीं)<br />4) क्या इसके होने से कोई लाभ है? - (अब तक कोई नहीं दिखा, उल्टे इस नियम की हानियाँ स्पष्ट दिख रही हैं। इस आलेख में दिये गए उदाहरण देखिये)<br />5) क्या यह राजभाषा विभाग द्वारा स्वीकृत है (ऐसा कोई सबूत मुझे तो नहीं दिखा)<br />6) क्या अंग्रेज़ी आदि किसी अन्य प्रचलित भाषा, या किसी अन्य भाषा में ऐसा नियम है? (लगता तो नहीं, किसी को पता हो तो कृपया बताएँ)Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-63070032815638421302021-01-03T23:21:48.158-05:002021-01-03T23:21:48.158-05:00अनुराग जी,
जहां तक मेरी जानकारी है अगर दोस्तो, मित...अनुराग जी,<br />जहां तक मेरी जानकारी है अगर दोस्तो, मित्रो, वग़ैरह बतौर मध्यम पुरुष (Second Person) बोला जा रहा है तो उसमें अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता और अगर यही शब्द अन्य पुरुष (Third Person) के तौर पर बोला जा रहा है तो अनुस्वार का प्रयोग होता है। उदाहरण के तौर पर "दोस्तो कार्यक्रम सिलसिला आगे बढ़ाते हैं और सुनते हैं एक और गीत जिस पसंद किया है आप सभी ने, जबलपुर मध्य प्रदेश से - हरिराम, घनश्याम, पवन और उनके दोस्तों ने।" इस उदाहरण में पहले दोस्तो में अनुस्वार नहीं है लेकिन दूसरे दोस्तों में अनुस्वार है। Sameer Goswamihttps://www.blogger.com/profile/08351127539727899600noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-4050700353415506152021-01-03T23:20:51.711-05:002021-01-03T23:20:51.711-05:00अनुराग जी,
जहां तक मेरी जानकारी है अगर दोस्तो, मित...अनुराग जी,<br />जहां तक मेरी जानकारी है अगर दोस्तो, मित्रो, वग़ैरह बतौर मध्यम पुरुष (Second Person) बोला जा रहा है तो उसमें अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता और अगर यही शब्द अन्य पुरुष (Third Person) के तौर पर बोला जा रहा है तो अनुस्वार का प्रयोग होता है। उदाहरण के तौर पर "दोस्तो कार्यक्रम सिलसिला आगे बढ़ाते हैं और सुनते हैं एक और गीत जिस पसंद किया है आप सभी ने, जबलपुर मध्य प्रदेश से - हरिराम, घनश्याम, पवन और उनके दोस्तों ने।" इस उदाहरण में पहले दोस्तो में अनुस्वार नहीं है लेकिन दूसरे दोस्तों में अनुस्वार है। Sameer Goswamihttps://www.blogger.com/profile/08351127539727899600noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-72741072847033642992016-12-20T06:33:01.004-05:002016-12-20T06:33:01.004-05:00लोगों लिखने और उच्चारित करने के हम आदी हैं।लोगों लिखने और उच्चारित करने के हम आदी हैं।P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-55563229420970801462015-07-23T09:30:21.158-04:002015-07-23T09:30:21.158-04:00बेशक होंगेबेशक होंगेSmart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-1124785543508317692015-03-28T10:08:10.794-04:002015-03-28T10:08:10.794-04:00निहार, तुम्हारी बात से सहमत हूँ। नियमों की उदारता ...निहार, तुम्हारी बात से सहमत हूँ। नियमों की उदारता अलग बात है और उनका अज्ञान और उल्लंघन अलग।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-86251635593881433602015-03-28T02:43:22.039-04:002015-03-28T02:43:22.039-04:00हिंदी भाषा पर क्षेत्रीय प्रभाव के असर को अलग नहीं ...हिंदी भाषा पर क्षेत्रीय प्रभाव के असर को अलग नहीं किया जा सकता. लेकिन मेरा मत है कि जो शुद्ध नहीं है, वो शुद्ध नहीं है. सवाल यह नहीं है कि अनुस्वार रहित या सहित ठीक है, या दोनों ठीक है लेकिन जो भी है , एक नियम से बंधा होना चाहिए. सिर्फ सुगमता के लिए जो मन हो हो, उसका प्रयोग हो, वह ठीक नहीं. मसलन, आजकल चन्द्रबिन्दु का प्रयोग अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. अब चाँद हो या चांद हो? नए युग के लोगों को चांद ही ठीक लगेगा. अब इसके उद्गम से अपभ्रंश तक की कहानी में कई कारण सामने आयेंगे लेकिन चाँद का सही रूप क्या है यह तो उसका मौलिक रूप ही तय करेगा. खेद इस बात का है कि स्कूलों में हिंदी शिक्षकों का स्तर ही इतना कम हो चुका है कि बच्चों का क्या दोष है. योगदान इन्टरनेट पर त्रुटिपूर्ण हिंदी लेखन से भी मिल रहा है. ओंकारनाथ मिश्र https://www.blogger.com/profile/11671991647226475135noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-80617883298171142802015-02-26T11:22:44.950-05:002015-02-26T11:22:44.950-05:00एक और उर्दू ग्रामर की पुस्तक का पृष्ठ। पहली तालिका...एक और उर्दू <a href="https://books.google.com/books?id=MccvAQAAMAAJ&pg=PA1#v=onepage&q&f=false" rel="nofollow">ग्रामर की पुस्तक का पृष्ठ</a>। पहली तालिका में अन्य बहुवचन रूपों के लिए मर्द या मर्दों (men) का प्रयोग हुआ है, पर संबोधन के लिए मर्दो (बिना नून-गुनह, यानी अनुस्वार, के)। अंत में नोट भी दिया गया है - Notice the form of the vocative plural. <br />यह बात पक्की है कि यह नियम व्याकरण में है। इसके औचित्य पर भी विवाद नहीं है। विवाद केवल इस बात का है कि आजकल के हिंदी भाषियों की majority इस नियम का पालन करती है या नहीं।Kaulhttps://www.blogger.com/profile/16384451615858129858noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-71074039704958535162015-02-26T11:10:14.108-05:002015-02-26T11:10:14.108-05:00उर्दू वाले भी यही कर रहे हैं। यह कड़ी देखें।उर्दू वाले भी यही कर रहे हैं। <a href="https://books.google.com/books?id=tAiiT5ZRX_kC&pg=PA13#v=onepage&q&f=false" rel="nofollow">यह कड़ी</a> देखें। <br />Kaulhttps://www.blogger.com/profile/16384451615858129858noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-37188124914777160972015-02-25T12:57:23.457-05:002015-02-25T12:57:23.457-05:00सवाल ,' क्या चल रहा है ' का नहीं ' क्य...सवाल ,' क्या चल रहा है ' का नहीं ' क्या चलना चाहिए ' --का होना चाहिए . डा भोलानाथ तिवारी की पुस्तक 'भाषा-विज्ञान तथा 'हिन्दी-भाषा 'में स्पष्ट कहा गया है कि बहुवचन के लिए निर्धारित छः प्रत्ययों में सर्वाधिक प्रयुक्त 'ओं ' है ( इसलिए उसे बहुवचन का रूपिम मन जाता है ) जो सम्बोधन में अनुस्वार-रहित ( ओ )हो जाता है . गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-1176145913503631642015-02-25T00:07:03.977-05:002015-02-25T00:07:03.977-05:00बहुत सार्थक जानकारी दी है इस लेख में लेकिन मै बिलक...बहुत सार्थक जानकारी दी है इस लेख में लेकिन मै बिलकुल अनपढ़ हूँ व्याकरण के मामले में !<br />बस जैसे तैसे काम चलाऊ लिख लेती हूँ :) !Sumanhttps://www.blogger.com/profile/02336964774907278426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-15108124426119222022015-02-24T19:58:20.100-05:002015-02-24T19:58:20.100-05:00एक बहुत अच्छी पुस्तक मिली है गूगल बुक्स में जिसका ...एक बहुत अच्छी पुस्तक मिली है गूगल बुक्स में जिसका नाम है "हिंदी में अशुद्धियाँ"। <a href="https://books.google.com/books?id=hyAlRG5fNQQC&pg=PA286#v=onepage&q&f=false" rel="nofollow">इसके पृष्ठ 286</a> पर जो बात लिखी है, वह शायद इस समस्या पर निर्णयात्मक प्रकाश डालती है। पहला पैरा पढ़ें। उद्धृत करता हूँ। <br />"बहुवचन संबोधनार्थक '-ओ' के बदले '-ओं' का व्यवहार पूर्णतः सादृश्यजन्य है। विभिन्न कारकीय विभक्तियों के पूर्व बहुवचन में '-ओं' व्यवहृत होता है, इसलिए प्रयोक्ता संबोधन में भी वही प्रयुक्त कर देता है, जैसे भाइयो के बदले भाइयों। नियम चल रहा है, इसलिए 'कवियो', 'बहुओ', 'माताओ', 'राजाओ' (किशोरीदास बाजपेयी 1959 : 200-201), 'लड़को', 'लड़कियो' (आर्येंद्र शर्मा 1972 : 45) को सही माना जा रहा है, जबकि एकरूपता संबोधन के इन रूपों को 'मुनियों', 'डाकुओं', 'राजाओं', 'शालाओं', 'बालकों' (कामताप्रसाद गुरु 1976 : 157-60) के अनुसार ढालती जा रही है।"Kaulhttps://www.blogger.com/profile/16384451615858129858noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-58586520068366274972015-02-24T00:26:13.060-05:002015-02-24T00:26:13.060-05:00डॉ. कौशलेन्द्रम की तरह ही "मेरा अभ्यास भाइयो ...डॉ. कौशलेन्द्रम की तरह ही "मेरा अभ्यास भाइयो और बच्चो कहने का है" और गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी की बात से भी सहमत हूँ कि "भाषा-व्याकरण के नियम भाषा के विद्वानों ने ही तय किये हैं . हर भाषा का अपना स्वरूप होता है . उसे बनाए रखने के लिए व्याकरण के कुछ नियम तो मानने ही होते हैं"। इस पर और विस्तार से मैं ने अपने विचार अपने ब्लॉग पर रखे हैं।<br />http://kaulonline.com/chittha/2015/02/sambodhan-me-anuswar/रमण कौलhttp://kaulonline.com/chitthanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-14830042391831858872015-02-22T11:22:23.696-05:002015-02-22T11:22:23.696-05:00आदरणीय अनुराग जी ,
आपने मेरी टिप्पणी को स्थान दिया...आदरणीय अनुराग जी ,<br />आपने मेरी टिप्पणी को स्थान दिया इसके लिये आभार . आपके द्वारा उठाए गए सवाल सचमुच विचारणीय हैं . जितना मैं जानती हूँ कहने का विनम्र प्रयास कर रही हूँ .<br />(1) अहिन्दी भाषी लोगों के उच्चारण को उदाहरण नहीं बनाया जाना चाहिए क्योंकि हिन्दी उनके अभ्यास में नहीं होती . इसी तरह अज्ञानतावश किये उच्चारण को भी . जैसे अब बहुत सारे लोग विद्यालय को विध्यालय बोलते सुने जाते हैं तो क्या उसे हम सही मान लेंगे ? क्योंकि भाषा सही तरीके से पढ़ाई लिखाई नहीं जाती ,लोग इसलिए गलत पढ़ते व लिखते हैं पर बहुसंख्यक के आधार पर उसे मानक तो नहीं मान सकते न. <br />(२) क्षमा करें ,’लोगो’ का अर्थ प्रतीक अंग्रेजी में है . हिन्दी में नहीं . मेरे वतन के लोगो ही सही है . बसों लोटो या भेड़ो जैसे उदाहरण भी उपयुक्त प्रतीत नहीं होते . <br />(३) भाषा-व्याकरण के नियम भाषा के विद्वानों ने ही तय किये हैं . हर भाषा का अपना स्वरूप होता है . उसे बनाए रखने के लिए व्याकरण के कुछ नियम तो मानने ही होते हैं इसमें लाभ या हानि की जानकारी तो मुझे नहीं है .<br />आप बाहर रहते हुए भी हिन्दी के बारे में इतना कुछ सोचते व लिखते हैं यह हमारे लिए बहुत प्रेरणादायक है .आभार आपका . <br />गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-46096548727405230852015-02-22T10:03:43.228-05:002015-02-22T10:03:43.228-05:00हमने यह स्नातक के समय इस गूढ़ पक्ष को समझा था, हाँ...हमने यह स्नातक के समय इस गूढ़ पक्ष को समझा था, हाँ अब धीरे धीरे जैसे जैसे अंग्रेजी की पकड़ बाजार में बड़ती जा रही है, वैसे वैसे मात्राओं की समझ भी नई पीढ़ी में कम होती जा रही हैविवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-44835865525237031502015-02-22T08:23:13.831-05:002015-02-22T08:23:13.831-05:00गिरिजा जी, आपकी बहुमूल्य टिप्पणी के लिए आभार। प्रश...गिरिजा जी, आपकी बहुमूल्य टिप्पणी के लिए आभार। प्रश्न <b>सम्बोधन कारक में अनुस्वार का प्रयोग नहीं करने के उस आग्रह के उद्गम और औचित्य</b> पर ही है। कोई भी निर्णय लेते समय भावनाओं से ऊपर उठकर निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है: <br />1) यह नियम कहाँ से आया? - (किसी को नहीं पता) <br />2) क्या बहुसंख्या जनता इसे जानती/मानती है? (नहीं, सांख्यकी गवाह है)<br />3) क्या हिन्दी साहित्यकार इसके साथ हैं (उर्दू साहित्य में प्रचलित है, हिन्दी में नहीं)<br />4) क्या इसके होने से कोई लाभ है? - (अब तक कोई नहीं दिखा, उल्टे इस नियम की हानियाँ स्पष्ट दिख रही हैं। इस आलेख में दिये गए उदाहरण देखिये)<br />5) क्या यह राजभाषा विभाग द्वारा स्वीकृत है (ऐसा कोई सबूत मुझे तो नहीं दिखा) Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-25275880844260993392015-02-22T06:28:03.659-05:002015-02-22T06:28:03.659-05:00जानकारी के लिहाज से बहुत ही अच्छा लगा आपका आलेख .....जानकारी के लिहाज से बहुत ही अच्छा लगा आपका आलेख ... जानता नहीं इसलिए कहना संभव नहीं क्या सही क्या गलत ... पर इस विषय पर कुछ खोज हो तो कुछ तथ्य जरूर सामने आयेंगे ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-76970192460062432992015-02-22T06:23:11.501-05:002015-02-22T06:23:11.501-05:00अनुराग जी , यह बेहद जरुरी विमर्श बन गया है क्योंकि...अनुराग जी , यह बेहद जरुरी विमर्श बन गया है क्योंकि अक्सर लोग इस बात का ध्यान ही नहीं रखते कि कहाँ अनुस्वार लगाना है और कहाँ नहीं . वास्तव में जहाँ सम्बोधन कारक होता है वहां अनुस्वार का प्रयोग नहीं किया जाता जैसे --वीरो , पहचानो दुश्मन को . देवियो और सज्जनो ! , छात्राओ , बाहर आओ . बच्चो , शोर मत करो . आदि . अन्य कारकों --कर्त्ता , कर्म ,करण सम्प्रदान आदि सभी कारकों में अनुस्वर का प्रयोग आवश्यक है--- वीरों का वसंत . वीरों ने प्राण निछावर किये .बच्चों का मन कोमल होता है आदि . हिंदी के लेखन में गलतियाँ प्रायः श्रुतिलेखन न करवाने के कारण होतीं हैं . अब तो पत्रिकाओं ,अखबारों और पाठ्य-पुस्तकों में भी इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है .यह एक सोचनीय विषय है . गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-68985379697428110532015-02-21T10:08:21.073-05:002015-02-21T10:08:21.073-05:00इस बारे में अधिक नहीं जानती। :(
ऊपर के वाक्य में ...इस बारे में अधिक नहीं जानती। :(<br /><br />ऊपर के वाक्य में - में(मे) और नहीं(नही) - इन दोनों (दोनो) पर अनुस्वार होंगे (होगे) या नहीं?Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-30454257413269900042015-02-21T02:01:29.565-05:002015-02-21T02:01:29.565-05:00Bahut sunder prastuti...
Welcome to my blog..Bahut sunder prastuti...<br />Welcome to my blog..JEEWANTIPShttps://www.blogger.com/profile/17470194490274952584noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-32881352813514664882015-02-19T12:23:51.859-05:002015-02-19T12:23:51.859-05:00:) सब जगह दखल ।:) सब जगह दखल ।सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-88798433316235309312015-02-19T11:19:30.634-05:002015-02-19T11:19:30.634-05:00मैं व्याकरण की बात नहीं कह रहा हूँ । हमें अनुस्वा...मैं व्याकरण की बात नहीं कह रहा हूँ । हमें अनुस्वार बहुत प्रिय है । छत्तीसगढ़ में "कंउंआँ" "केंचुंआँ" "इस तरंह" बोलने की परम्परा है । यह लोकवाणी है ... लोक जो व्याकरण नहीं जानता अपने तरीके से शब्दों का प्रयोग करता है ....और यदि जानता भी है तो परम्परा से विद्रोह नहीं करता । सभी हिंदीभाषी क्षेत्रों में शब्दों के उच्चारण और लिखने में किंचित भिन्नता मिलती है ...शायद यही भाषा की विविधता और भाषा पर क्षेत्रीय प्रभाव है । यूँ मेरा अभ्यास भाइयो और बच्चो कहने का है ....हो सकता है कि व्याकरण की दृष्टि से यह त्रुटिपूर्ण हो । <br />बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-11171021171915408942015-02-19T08:18:11.483-05:002015-02-19T08:18:11.483-05:00सुनने, पढने और लिखने में ये अखरता तो है । सुनने, पढने और लिखने में ये अखरता तो है । डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-79028108707654997182015-02-19T04:27:52.417-05:002015-02-19T04:27:52.417-05:0019 वीं शताब्दी की हिन्दी और हिन्दुस्तानी व्याकरण क...19 वीं शताब्दी की हिन्दी और हिन्दुस्तानी व्याकरण की कुछ पुस्तकों में बहुवचन सम्बोधन के अनुस्वाररहित होने की बात कही गई है। मतलब यह कि किसी को सम्बोधित करते समय लोगों की जगह लोगो, माँओं की जगह माँओ, कूपों की जगह कूपो, देवों की जगह देवो के प्रयोग का आग्रह है।.................यह शताब्दी हिन्दी के प्रमाणीकरण और सदृढ़ीरण के लिए नहीं, उसके विद्रूपीकरण, विघटन के लिए ज्यादा जानी जाती है। क्यों न अनुस्वार के साथ बहुवचन सम्बोधन (लोगो का लोगों) के प्रमाणीकरण के लिए हम-आप मुगलकाल से पूर्व के संस्कृत-हिन्दी प्रलेखों का सहारा लेते हैं? Harihar (विकेश कुमार बडोला) https://www.blogger.com/profile/02638624508885690777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-6980693376501838962015-02-19T03:41:52.498-05:002015-02-19T03:41:52.498-05:00इन छोटी और बहुत ही बारीकी की जानकारी से तो अनभिज्ञ...इन छोटी और बहुत ही बारीकी की जानकारी से तो अनभिज्ञ थे ... आज इन्टरनेट पर हिंदी लिखने के लिए हम सभी गूगल आई.एम. आई हिंदी इनपुट का प्रयोग कर रहे है. जो इसमें लिखा जाता है उसे ही हम टांक देते है . . . . . इस बेहतरीन और हिंदी की शुद्धता को 100% सही लिखने के लिए आपके द्वारा लिखा हुआ लेख बहुत ही काम आएगा. . . आपको बहुत-बहुत धन्यवाद... <br /><a href="http://gyantarang.blogspot.com" title="मेरे इस छोटे से ब्लॉग को आप सभी लोग जरूर पढ़े . उम्मीद है की यह आपके काम आयेगा. इस ब्लॉग को बनाने का उदेश्य आपके ज्ञान में वृद्धि करना है .आपको मेरे ब्लॉग पर आकर कोई निराशा नहीं होगी. आप सभी लोग जरूर आईयेगा मेरे इस छोटे से ब्लॉग पर . आप लोगो के आने का इन्तजार रहेगा. जरूर पधारे. धन्यवाद." rel="nofollow">मेरे ब्लॉग पर आप सभी लोगो का हार्दिक स्वागत है.</a>Anonymousnoreply@blogger.com