tag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post3823414401555659431..comments2024-03-23T20:44:05.692-04:00Comments on * An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीय *: माओवादी इंसान नहीं, जानवर से भी बदतर!Smart Indianhttp://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comBlogger32125tag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-60678641603787696382015-06-11T12:23:00.293-04:002015-06-11T12:23:00.293-04:00So TRUE !So TRUE !लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-26947292238113726342015-06-11T12:21:46.367-04:002015-06-11T12:21:46.367-04:00whaat! :-(whaat! :-(लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-59850782962485551412010-08-09T06:50:43.669-04:002010-08-09T06:50:43.669-04:00Blogger Mired Mirage said...
अनिल जी, हम अलग...Blogger Mired Mirage said...<br /><br /> अनिल जी, हम अलग अलग विचारधारा रख सकते हैं, अलग अलग वाद का समर्थन कर सकते हैं या किसी वाद में विश्वास नहीं रख सकते हैं किन्तु कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें समझने के लिए किसी विशेष पढ़ाई या वाद की आवश्यकता नहीं होती। यह एक आम व्यक्ति भी समझ सकता है बशर्ते उसने अपनी स्वाभाविक समझ को स्वयं विकृत न दिया हो। सहमति असहमति तो होती रहेगी किन्तु थोड़ी सी मानवता तो हममें होनी ही चाहिए। कुछ बातें हैं जिनका ध्यान किसी भी पदाधिकारी को रखना ही होगा।<br /> जैसे........<br /> १.सरकार, पुलिस, अधिकारीगण बदला नहीं लेते(या उन्हें बदला नहीं लेना चाहिए।)। वे नियम बनाए रखने के लिए नियमानुसार काम ही कर सकते हैं।<br /> २.अध्यापक विद्यार्थी से बदला नहीं लेते। अनुशासन बनाए रखने के लिए कोई नियमानुसार कार्यवाही करते हैं।<br /> ३. माता पिता बच्चे की धृष्टता के बदले वैसा ही नहीं करते। बच्चा जीभ चिढ़ाए तो वे भी जीभ नहीं चिढ़ाते। बच्चा उद्दंडता करे तो वे भी नहीं करते।<br /> ४.न्यायालय तेजाब फेंकने वालों को यह सजा नहीं देते कि उनके ऊपर भी तेजाब फेंका जाए। या बलात्कारी के साथ बलात्कार किया जाए। वे न्याय करते हैं बदला नहीं लेते।<br /> ५.जैसे को तैसा में आम नागरिक विश्वास रख सकता है और वह भी तब जब हमारी न्याय व्यवस्था उसे न्याय दिलाने में असमर्थ हो। जैसे को तैसा वाली विचारधारा सरकार अपने नागरिकों के लिए नहीं रख सकती। हाँ वह कानून द्वारा दंडित अवश्य कर सकती है।<br /> अन्यथा किसी सरकार या व्यवस्था की आवश्यकता ही क्या होगी?<br /> सभी जानते हैं कि सरकार, सेना या पुलिस के बुरे बर्ताव या बर्बरता से स्थिति सुधरती कभी नहीं हाँ अतिवादियों को और साथी अवश्य मिल जाते हैं। एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिन्होंने सरकार के विरुद्ध मोर्चे को इसीलिए चुना क्योंकि उनके साथ व्यवस्था ने अन्याय किया था।<br /> वैसे हमें व सरकार को निर्णय करना है कि हमें बदला लेना है या न्याय करना है, गलतियों को सुधारना है, अपराधियों को दंडित करना है और समस्या को सुलझाना है।<br /> एक बात और, यह हिन्दु वाली बात कहाँ से आई? क्या मुसलमान अपराधियों से प्यार करते हैं या क्रिस्चियन? या आप सोचते हें कि वे ही अतिवादी, आतंकवादी होते हैं? यह तो अहिन्दुओं के साथ अन्याय हुआ।<br /> घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-62100022262802737252010-08-09T06:49:24.777-04:002010-08-09T06:49:24.777-04:00Mired Mirage said...
मुझे माओवाद से कोई सहानु...Mired Mirage said...<br /><br /> मुझे माओवाद से कोई सहानुभूति नहीं है किन्तु मरे हुए तो शत्रु को भी आदर से विदा किया जाता है। यह फोटो देख मुझे भी लिखने का मन था।<br /> मृतक को ले जाने का यह तरीका बेहद आपत्तिजनक तो है ही, सरकार व सरकारी लोगों का यही रवैया नक्सलवादी बनाने में सहायक है। वैसे किसी दुर्घटना के बाद भी जिस तरह से मृतकों व घायलों को उठाया जाता है वह किसी विकसित या विकासशील देश को नहीं एक हजार साल पहले के युग में जीने वालों को दर्शाता है।<br /> इस फोटो पर आपत्ति होनी ही चाहिए।<br /> घुघूती बासूती<br /> 17 June 2010 3:04 PMghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-52267344676442210722010-08-09T06:48:12.572-04:002010-08-09T06:48:12.572-04:00पुरानी टिप्पणियाँः
Mired Mirage said...
मुझे ...पुरानी टिप्पणियाँः<br />Mired Mirage said...<br /><br /> मुझे माओवाद से कोई सहानुभूति नहीं है किन्तु मरे हुए तो शत्रु को भी आदर से विदा किया जाता है। यह फोटो देख मुझे भी लिखने का मन था।<br /> मृतक को ले जाने का यह तरीका बेहद आपत्तिजनक तो है ही, सरकार व सरकारी लोगों का यही रवैया नक्सलवादी बनाने में सहायक है। वैसे किसी दुर्घटना के बाद भी जिस तरह से मृतकों व घायलों को उठाया जाता है वह किसी विकसित या विकासशील देश को नहीं एक हजार साल पहले के युग में जीने वालों को दर्शाता है।<br /> इस फोटो पर आपत्ति होनी ही चाहिए।<br /> घुघूती बासूती<br /> 17 June 2010 3:04 PM <br /><br />Blogger Mired Mirage said...<br /><br /> अनिल जी, हम अलग अलग विचारधारा रख सकते हैं, अलग अलग वाद का समर्थन कर सकते हैं या किसी वाद में विश्वास नहीं रख सकते हैं किन्तु कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें समझने के लिए किसी विशेष पढ़ाई या वाद की आवश्यकता नहीं होती। यह एक आम व्यक्ति भी समझ सकता है बशर्ते उसने अपनी स्वाभाविक समझ को स्वयं विकृत न दिया हो। सहमति असहमति तो होती रहेगी किन्तु थोड़ी सी मानवता तो हममें होनी ही चाहिए। कुछ बातें हैं जिनका ध्यान किसी भी पदाधिकारी को रखना ही होगा।<br /> जैसे........<br /> १.सरकार, पुलिस, अधिकारीगण बदला नहीं लेते(या उन्हें बदला नहीं लेना चाहिए।)। वे नियम बनाए रखने के लिए नियमानुसार काम ही कर सकते हैं।<br /> २.अध्यापक विद्यार्थी से बदला नहीं लेते। अनुशासन बनाए रखने के लिए कोई नियमानुसार कार्यवाही करते हैं।<br /> ३. माता पिता बच्चे की धृष्टता के बदले वैसा ही नहीं करते। बच्चा जीभ चिढ़ाए तो वे भी जीभ नहीं चिढ़ाते। बच्चा उद्दंडता करे तो वे भी नहीं करते।<br /> ४.न्यायालय तेजाब फेंकने वालों को यह सजा नहीं देते कि उनके ऊपर भी तेजाब फेंका जाए। या बलात्कारी के साथ बलात्कार किया जाए। वे न्याय करते हैं बदला नहीं लेते।<br /> ५.जैसे को तैसा में आम नागरिक विश्वास रख सकता है और वह भी तब जब हमारी न्याय व्यवस्था उसे न्याय दिलाने में असमर्थ हो। जैसे को तैसा वाली विचारधारा सरकार अपने नागरिकों के लिए नहीं रख सकती। हाँ वह कानून द्वारा दंडित अवश्य कर सकती है।<br /> अन्यथा किसी सरकार या व्यवस्था की आवश्यकता ही क्या होगी?<br /> सभी जानते हैं कि सरकार, सेना या पुलिस के बुरे बर्ताव या बर्बरता से स्थिति सुधरती कभी नहीं हाँ अतिवादियों को और साथी अवश्य मिल जाते हैं। एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिन्होंने सरकार के विरुद्ध मोर्चे को इसीलिए चुना क्योंकि उनके साथ व्यवस्था ने अन्याय किया था।<br /> वैसे हमें व सरकार को निर्णय करना है कि हमें बदला लेना है या न्याय करना है, गलतियों को सुधारना है, अपराधियों को दंडित करना है और समस्या को सुलझाना है।<br /> एक बात और, यह हिन्दु वाली बात कहाँ से आई? क्या मुसलमान अपराधियों से प्यार करते हैं या क्रिस्चियन? या आप सोचते हें कि वे ही अतिवादी, आतंकवादी होते हैं? यह तो अहिन्दुओं के साथ अन्याय हुआ।<br /> घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-3002371828576295122010-08-09T06:45:47.124-04:002010-08-09T06:45:47.124-04:00अनुराग, इस विषय पर मैं आपके द्वारा दी गई लिंक्स पर...अनुराग, इस विषय पर मैं आपके द्वारा दी गई लिंक्स पर दो टिप्पणियाँ पहले ही कर चुकी हूँ। यहाँ पर मैं उन्हें भी दोहराऊँगी और साथ में कहूँगी कि.......<br />हमारी पुलिस व सुरक्षा बलों के लिए भारत के अंदर की लड़ाई से निपटना बहुत कठिन होता जा रहा है। इसके कई कारण हैं। सरकार के गलत या ऐसे निर्णय जो किसी जगह के मूल निवासियों के विरुद्ध जाते हों वहाँ के लोगों को राज्य विरुद्ध कर देते हैं। सेना विदेशी हमलावरों को हराने के लिए होती है न कि नरम दस्ताने पहन स्थानीय लोगों से सालों साल उलझने के लिए। उनकी ट्रेनिंग इस काम के लिए नहीं होती है। राजनैतिक समस्याओं के हल राजनीतिज्ञ जब नहीं निकाल पाते तो सेना पुलिस आदि को सदा के लिए उस आग से लड़ने के लिए झोंक दिया जाता है। इनका जीवन तो हमने नरक बना दिया है। ऐसे में कभी न कभी वे भी धेर्य खो देते हैं और स्थिति बिगड़ती चली जाती है।<br />कश्मीर को ही देखिए। क्या हमारे सिपाही भी गुलेल लेकर पत्थरमारों का मुकाबला करें? या फिर बन्दूक में गोलियों की जगह पत्थर डालने शुरू करें? यदि वे पत्थर का मुकाबला बन्दूक से करते हैं तो गलत कहलाता है। क्या वे पत्थर खाते रहें? <br />हमारी सहानुभूति उनके साथ भी होनी ही चाहिए। दुख की बात तो यह है कि जिन समस्याओं को सुलझाना चाहिए, जिनका हमें मिलकर सामना करना चाहिए वे आम नागरिक को भी दो खेमों में बाँट रही हैं। क्या यही आतंकवादियों का उद्देश्य तो नहीं था?<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-16911873744760708562010-06-22T05:16:54.507-04:002010-06-22T05:16:54.507-04:00यह पोस्ट मैंने भी देखी थी और मन वितृष्णा से भर गया...यह पोस्ट मैंने भी देखी थी और मन वितृष्णा से भर गया था...<br />आपने अपने पोस्ट में जो कुछ भी कहा, बिलकुल यही भाव मेरे भी मन में उठे थे...परन्तु मन इतना तिक्त हो गया था कि लगा इसपर यदि प्रतिकारस्वरूप कुछ कहूँगी,तो स्वयं को संतुलित रख, आक्रोश दबाकर बात कहने में सफल न हो पाउंगी...<br /><br />यही तो है नजरिया..अफ़सोस है कि ऐसे हलके ढंग से कैसे लोग इन गंभीर मसलों पर कलम चला देते हैं...<br /><br />नहीं आंक पाते लोग स्वतंत्रता या लोकतंत्र का मोल...नहीं देख पाते कि मुखबिरी के नाम पर आये दिन किस प्रकार इस पूरे क्षेत्र में गांववालों को सीधे सीधे मार दिया जाता है..लोग दहशत में रहें,इनके सम्मुख शत प्रतिशत नतमस्तक रहें इसके लिए नक्सलियों ,माओवादियों की दंडनीति क्या है, नहीं देख पा रहे लोग...नहीं सोच पा रहे कि यदि सम्पूर्ण तंत्र पर इनका नियंत्रण हो गया तो फिर आम जन जीवन कैसा होगा...<br /><br />आपका बहुत बहुत आभार कि आपने इसका प्रतिकार किया...आपके इस आलेख के एक एक शब्द को मेरा भी समझें...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-33389588764683018832010-06-21T03:52:38.399-04:002010-06-21T03:52:38.399-04:00अनुराग जी, चाहे माओवादी हों या भ्रष्ट नेता, सभी गर...अनुराग जी, चाहे माओवादी हों या भ्रष्ट नेता, सभी गरीबों का शोषण करते हैं और गरीबों में जहाँ आदिवासी हैं, वहीं हमारे सैनिक भी हैं... गरीब बेचारा तो एक तरफ विचारधारा और दूसरी ओर सिद्धांतहीन राजनीति के बीच पिस रहा है.aradhanahttp://draradhana.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-44376788032655394002010-06-20T09:30:01.382-04:002010-06-20T09:30:01.382-04:00मैंने इस लेख को पढ़ने में थोड़ी देर कर दी पर अपने ब...मैंने इस लेख को पढ़ने में थोड़ी देर कर दी पर अपने बहुत ही बढ़िया लेख लिखा है. उस ब्लॉग पर लगे दो चित्रों को देख कर मैं खुद भी सन्न था पर अपने मान के भावों को शब्दों की अभिव्यक्ति नहीं दे पाया. अपने मेरा काम कर दिया. बेहद धन्यवाद.VICHAAR SHOONYAhttps://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-23732472145093815452010-06-20T07:42:52.514-04:002010-06-20T07:42:52.514-04:00टिपण्णी द्वार अपने जिन भावों को प्रकट करना चाहता थ...टिपण्णी द्वार अपने जिन भावों को प्रकट करना चाहता था वे भाव 'मो सम कौन' द्वारा प्रकट किये जा चुके हैं. इस देश के बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक वर्ग एक विशेष चश्मे से घटनाओं को देखने का आदी है और अपनी इस प्रवृति से देश का नुक्सान ( देश के साथ गद्दारी ) कर रहा है.hem pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08880733877178535586noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-90669969600422337572010-06-20T07:42:52.515-04:002010-06-20T07:42:52.515-04:00टिपण्णी द्वार अपने जिन भावों को प्रकट करना चाहता थ...टिपण्णी द्वार अपने जिन भावों को प्रकट करना चाहता था वे भाव 'मो सम कौन' द्वारा प्रकट किये जा चुके हैं. इस देश के बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक वर्ग एक विशेष चश्मे से घटनाओं को देखने का आदी है और अपनी इस प्रवृति से देश का नुक्सान ( देश के साथ गद्दारी ) कर रहा है.hem pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08880733877178535586noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-81388354755164034372010-06-20T07:42:52.516-04:002010-06-20T07:42:52.516-04:00टिपण्णी द्वार अपने जिन भावों को प्रकट करना चाहता थ...टिपण्णी द्वार अपने जिन भावों को प्रकट करना चाहता था वे भाव 'मो सम कौन' द्वारा प्रकट किये जा चुके हैं. इस देश के बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक वर्ग एक विशेष चश्मे से घटनाओं को देखने का आदी है और अपनी इस प्रवृति से देश का नुक्सान ( देश के साथ गद्दारी ) कर रहा है.hem pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08880733877178535586noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-29686720980619892032010-06-20T07:42:52.517-04:002010-06-20T07:42:52.517-04:00टिपण्णी द्वार अपने जिन भावों को प्रकट करना चाहता थ...टिपण्णी द्वार अपने जिन भावों को प्रकट करना चाहता था वे भाव 'मो सम कौन' द्वारा प्रकट किये जा चुके हैं. इस देश के बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक वर्ग एक विशेष चश्मे से घटनाओं को देखने का आदी है और अपनी इस प्रवृति से देश का नुक्सान ( देश के साथ गद्दारी ) कर रहा है.hem pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08880733877178535586noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-20475075725376113222010-06-20T05:58:00.772-04:002010-06-20T05:58:00.772-04:00बिना किसी तस्वीर और सन्दर्भ के भी केवल सवाल ही होत...बिना किसी तस्वीर और सन्दर्भ के भी केवल सवाल ही होता तो भी मेरा उत्तर यही होता कि 'हाँ माओवादी जानवर से बदत्तर हैं!' और ऐसे तस्वीर, तुलना और अरुंधती के लेखों से सभी नहीं भटक सकते. सही आकलन किया है आपने.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-90149048006976648992010-06-19T21:05:10.980-04:002010-06-19T21:05:10.980-04:00...वे सिपाही संदर्भित ब्लॉग के लेखकों की तरह मुम्ब......वे सिपाही संदर्भित ब्लॉग के लेखकों की तरह मुम्बई के किसी एसी कमरे में बैठकर महंगी विदेशी परफ्यूम से सुवासित रुमाल से अपनी नाक ढंककर स्ट्रेचर मंगवाने का इंतज़ार नहीं कर सकते हैं....<br /><br />Wonderfully expresssed the several other aspects` of the tough life of our cop. <br /><br />People in power has the luxury to make faces and talk big. when the time comes to take action, they simple allow the culprits like Anderson to run away. Arjun Singh like traitors are many in our country. <br /><br />Its our misfortune that majority of intellectuals are busy with unimportant issues , raising voice for unnecessary and pathetic issues like language and other trivial stuff.<br /><br />Life is foremost. We need to think and talk and do something for saving lives of innocent people. Govt. must take stern actions against Maoists otherwise there will be million kasaabs within no time.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-87123998909980449212010-06-19T16:45:16.263-04:002010-06-19T16:45:16.263-04:00जितना कुछ माओवादियों के बारे में उद्घाटित हो रहा ह...जितना कुछ माओवादियों के बारे में उद्घाटित हो रहा है उससे तो लगता है कि अब माओवाद की शकल में पूँजीवाद आनेवाला है।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-28994120989733612602010-06-19T13:38:57.589-04:002010-06-19T13:38:57.589-04:00नक्सली और माओवादी घृणा के लायक ही नहीं बल्कि जूतों...नक्सली और माओवादी घृणा के लायक ही नहीं बल्कि जूतों के लायक हैं। उनके प्रति हमदर्दी रखने वालों पर मुझे दया आती है। इनकी जुबान पर तब ताला लग जाता है जब ये बेरहमी से दुधमुंहे बच्चों और बेकसूरों की हत्या कर देते हैं। सेना और पुलिस के जवानों को घेरकर और तड़पा-तड़पा कर मारते हैं। <br />हां नक्सली और माओवादी जानवर हैं।लोकेन्द्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-42723269720639109852010-06-19T10:12:40.633-04:002010-06-19T10:12:40.633-04:00इस सुन्दर आलेख के लिए आभार.इस सुन्दर आलेख के लिए आभार.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-53000155799499349672010-06-19T07:43:40.313-04:002010-06-19T07:43:40.313-04:00पता नहीं लोगों को इन्हें आतंकवादी कहने में क्या दि...पता नहीं लोगों को इन्हें आतंकवादी कहने में क्या दिक्कत है?<br />--------<br /><a href="http://ts.samwaad.com/" rel="nofollow">भविष्य बताने वाली घोड़ी।</a><br /><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">खेतों में लहराएँगी ब्लॉग की फसलें।</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-21164784015652618562010-06-19T06:00:02.911-04:002010-06-19T06:00:02.911-04:00माओवादियों या नकसली तो शायद अपने हको के लिये लडते ...माओवादियों या नकसली तो शायद अपने हको के लिये लडते है, लेकिन यह नेता किस लिये हमारा हक मारते है, क्यो गरीबो का खुन चुसते है....वारेन एंडरसन जेसो को देश से भागने मे मदद करते है, तो केसे हम इन नकस्ली को इन माऒ वादियो को बुरा कहे?? जब कि इन से बुरे लोग तो यह हरामी नेता है... ओर यही नेता इन्हे पनह भी देते है इन्हे बनाते भी यही हैराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-64928700183494574092010-06-19T04:31:13.710-04:002010-06-19T04:31:13.710-04:00माओवादियों (या दूसरे आतंकियों) को डंडे पर लटकाकर ल...माओवादियों (या दूसरे आतंकियों) को डंडे पर लटकाकर ले जाना ठीक नहीं है. उन्हें रस्सी से बांध कर घसीटते हुए ले जाया जाना चाहिये.Ghost Busterhttps://www.blogger.com/profile/02298445921360730184noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-46046329942349162372010-06-19T02:17:51.712-04:002010-06-19T02:17:51.712-04:00सैनिकों का किसी महिला के शव को इस तरह से ले जाना द...सैनिकों का किसी महिला के शव को इस तरह से ले जाना दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन हमें उन परिस्थियों के बारे में भी सोचना चाहिए जिनमें ये सैनिक काम कर रहे हैं. जंगल के इलाके में माओवादियों ने घर बना लिए होंगे लेकिन ये सैनिक कहाँ से घर लेकर आयें? दो फोटो को जिस तरह से एक जगह लगाया गया है, वह निहायत ही घटिया काम है. कभी किसी ने वह फोटो देखी है जो उस पुलिस इंस्पेक्टर का था जिसकी गर्दन माओवादियों ने अलग कर दी थी? नहीं देखा होगी किसी ने? कारण यह है की जहाँ मीडिया ने इस फोटो को बिना किसी काट-छांट के दिखाया वहीँ उस इंस्पेक्टर की बिना गर्दन वाली शरीर की फोटो को धुंधला करके दिखाया गया था.<br /><br />अगर सवाल यह है कि; "क्या माओवादी जानवर दे भी बदतर हैं?" तो जवाब हाँ ही है.Shivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-79709535699217796052010-06-19T01:18:35.295-04:002010-06-19T01:18:35.295-04:00पूरी तौर पर सहमत हूँ ! जैसे को तैसा मिलना ही चाहिए...पूरी तौर पर सहमत हूँ ! जैसे को तैसा मिलना ही चाहिए ! एक अच्छे लेख के लिए शुभकामनायें !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-22944065305640316582010-06-19T00:32:09.690-04:002010-06-19T00:32:09.690-04:00माओवादियों से वारेन एंडरसन ज्यादा खतरनाक है, उसे क...माओवादियों से वारेन एंडरसन ज्यादा खतरनाक है, उसे क्यों नहीं ऐसे लटकाते हैं, मार कर डंडों से। और न जाने कितने एंडरसन आप के आस पास ही अड्डा जमाए बैठे होंगे।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-54470324110816177702010-06-19T00:02:23.388-04:002010-06-19T00:02:23.388-04:00Yor question is not too bad , Mr. Anonymous.
Eve...Yor question is not too bad , Mr. Anonymous.<br /> <br />Ever thought, how can I be so sure about "Mister"?Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.com