tag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post6024194780397166468..comments2024-03-23T20:44:05.692-04:00Comments on * An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीय *: खाली प्याला - चौथी कड़ीSmart Indianhttp://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-35865853262634205682009-02-12T18:25:00.000-05:002009-02-12T18:25:00.000-05:00आपकी लेखनी में जादू है बहुत रोचक है आगे की कड़ी का...आपकी लेखनी में जादू है बहुत रोचक है आगे की कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार हैAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-23013657488524182262009-02-12T12:21:00.000-05:002009-02-12T12:21:00.000-05:00बहुत सुंदर, इंताजार करते है अगली कडी का.धन्यवादबहुत सुंदर, इंताजार करते है अगली कडी का.<BR/>धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-19309572194457720582009-02-12T09:54:00.000-05:002009-02-12T09:54:00.000-05:00Padh rahi hun....par yah sahi nahi,saamne thali ra...Padh rahi hun....par yah sahi nahi,saamne thali rakh do kour munh me dalte hi aap thalee sarka lete hain........रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-24359739041103702272009-02-12T09:41:00.000-05:002009-02-12T09:41:00.000-05:00दिलचस्प !दिलचस्प !डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-11338339659984918982009-02-12T07:54:00.000-05:002009-02-12T07:54:00.000-05:00विभिन्न भावों से भरी एक ऐसी कहानी जिसमें करुणा लग...विभिन्न भावों से भरी एक ऐसी कहानी जिसमें करुणा लगता है वीर रस पर भारी पड गयी। रोचक, गंभीर और मार्मिक कहानी/संस्मरण। अगली कडी का इंतजार है।Atul Sharmahttps://www.blogger.com/profile/09200243881789409637noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-58390909107141977422009-02-12T07:50:00.000-05:002009-02-12T07:50:00.000-05:00आप बड़े नेक इंसान हैं. आभार.आप बड़े नेक इंसान हैं. आभार.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-17559747062745979012009-02-12T07:35:00.000-05:002009-02-12T07:35:00.000-05:00"एकमात्र प्रेरणा उसका बेटा ही था" ये तो हर औसत भार..."एकमात्र प्रेरणा उसका बेटा ही था" ये तो हर औसत भारतीय के साथ होता है. चाय का कप और उससे उपजा गुस्सा उसे न प्रकट कर पाना.... संस्मरण अच्छा चल रहा है!Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-16371325376631082562009-02-12T07:34:00.000-05:002009-02-12T07:34:00.000-05:00मेरे मित्र कहते हैं कि मेरा चेहरा तो शीशे की तरह स...<B>मेरे मित्र कहते हैं कि मेरा चेहरा तो शीशे की तरह साफ़ है जिसके भाव कोई अंधा भी पढ़ सकता है।</B><BR/><BR/>शायद यही कारण है कि आपकी रचनाओं मे संवेदन्शीलता और मानविय पक्ष गहराई से उभर कर सामने आता है. अगली कडी का इन्तजार है.<BR/><BR/>रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-51366251283909393662009-02-12T04:35:00.000-05:002009-02-12T04:35:00.000-05:00हां ये सच है कभी-कभी किसी पर चाह कर भी इंसान गुस्स...हां ये सच है कभी-कभी किसी पर चाह कर भी इंसान गुस्सा नही उतार पाता।गुस्से के मामले मे अपने दोस्तो सहकर्मियो और तमाम जाने-अंजाने लोगो के बीच बहुत बदनाम हूं,शायद बचपन से ही गुस्सा अपना सबसे करीबी दोस्त रहा है,मगर मेरे साथ भी कई बार ऐसा हुआ है कि मै मन मसोस कर रह गया हूं।खैर आप लिखते बहुत अच्छा है इसमे कोई शक़ नही,अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा।Anil Pusadkarhttps://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-1637713337574166052009-02-12T01:48:00.000-05:002009-02-12T01:48:00.000-05:00समतल मैदान में के चौडे पाट में बह रही धीर-गम्भीर ...समतल मैदान में के चौडे पाट में बह रही धीर-गम्भीर नदी की तरह आपकी यह संस्मरण श्रृंखला रोचकता और जिज्ञासा भाव बढाते हुए चल रही है। इस अंक की शब्दावली और वाक्य विन्यास अतिरिक्त रूप से उल्ल्ेखनीय और प्रशंसनीय तत्व हैं।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-80843183802547047662009-02-12T00:48:00.000-05:002009-02-12T00:48:00.000-05:00मुझे लगता है कि ज़िंदगी से हर दांव हारे हुए उस बेब...मुझे लगता है कि ज़िंदगी से हर दांव हारे हुए उस बेबस इंसान पर आता हुआ मेरा रहम उन खाली प्यालों पर आए हुए मेरे गुस्से से कहीं भारी था।<BR/>" आज की कड़ी के ये अन्तिम शब्द बहुत कुछ कह गये और हम भी सोचते रह गये......जिन्दगी के हर दावं से हारा व्यक्ति क्या सच मे दया का पात्र बन जाता है.....क्यों इंसान हार जाता है क्यूँ????????? कोशिश कामयाब नही होती या फ़िर सही दिशा मे नही होती..खैर ये तो हमारे जहन मे उठ्ठे कुछ आधे अधूरे सवाल हैं....आज की कड़ी कुछ भावुक पक्ष लिए हुए है ...अच्छा लगा ये पक्ष " <BR/><BR/>Regardsseema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.com