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बागवानी पर कुछ आलेख
सेतु पत्रिका
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Saturday, August 30, 2014
ठेसियत की ठोसियत
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मिच्छामि दुक्खड़म ( मिथ्या मे दुष्कृतम ) जैसे ऋषि-मुनियों का ज़माना पुण्य करने का था वैसे आजकल का ज़माना आहत होने का है। ठेस आजकल ऐसे लगत...
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Wednesday, August 27, 2014
अपना अपना राग - कविता
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(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा) हर नगरी का अपना भूप अपनी छाया अपनी धूप नक्कारा और तूती बोले चटके छन्नी फटके सूप फूट डाल ताकतवर बनते ...
16 comments:
Saturday, August 23, 2014
जोश और होश - बोधकथा
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चेले मीर ने सारे दांव सीख लिए थे। जीशीला भी था, फुर्तीला भी। नौजवान था, मेहनती था, बलवान तो होना ही था। फिर भी जो इज्ज़त उस्ताद पीर की थी, उ...
15 comments:
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