Saturday, February 22, 2020

कुआँ और खाई - कविता

पिट्सबर्ग आजकल
(शब्द और चित्र: अनुराग शर्मा)

जब गले पड़ें
दो मुसीबतें
जिनमें से एक
अनिवार्यतः अपनानी है।

तब एक पल
ठहरकर
सोच-समझकर
तुक भिड़ानी है।

खाई में जान
निश्चित ही जानी है
जबकि
कुएँ में पानी है।

खाई की गर्त
नामालूम
कुएँ की गहराई
तो पहचानी है।

खाई में कौन मिलेगा
किसको सुनाएँ
जबकि कुएँ से पुकार
बस्ती तक पहुँच जानी है।

मौत का तो भी अगर
दिन रहा मुकर्रर
व्यर्थ बिखरने से अच्छी
जल समाधि अपनानी है

Saturday, February 8, 2020

विभाजन - एक ग़ज़ल

कथा तुमने लिखी अपनी, मगर किस्सा हमारा था
किताबों पर नहीं दिल में भी, मेरे घर तुम्हारा था।

हमारी बात सुनने का, कभी न वक्त तुम पर था
सदायें लौटकर आईं, तुम्हें जब-जब पुकारा था।

आज़ादी तुमने चाही थी, सदा तुमको मिली भी थी
मगर मुझको मिले मुक्ति, नहीं तुमको गवारा था।

हमारा घर बचा रहता, जो संग-संग तुम चले होते
जब भी तुमने तोड़ा घर, तो मैंने फिर सँवारा था।

दीवारें ढह गईं सारी, धरातल भी हुआ अस्थिर
उड़ा जब तिनकों में छप्पर, बड़ा बेढब नज़ारा था॥

Sunday, January 12, 2020

मुझे याद है

मुझे याद हैं
लोहड़ी की रातें
जब आग के चारों ओर
सुंदर मुंदरिये हो
के साथ गूंजते थे
खिलखिलाते मधुर स्वर

मुझे याद हैं
नन्ही लड़कियाँ
जो बनतालाब की शामों को
रोशन कर देती थीं
अपनी चुन्नी में लपेटे
जगमगाते जुगनुओं से।

मुझे याद हैं
वे दिन जब
यौवन और बुढ़ापा
नहीं लगा सके थे
सेंध
मेरे शैशव में

मुझे याद हैं
अनमोल उस
बचपन की यादें
जब दौड़ता था मैं
ताकि छू सकूँ नन्ही उंगलियों से
क्षितिज पर डूबते सूरज को

मुझे याद हैं
सुहाने विगत की बातें
सब याद है मुझे

🙏 मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!