Monday, December 30, 2013

प्रेमिल मन - एक कविता

चावल, चीनी और चाय से बनी स्वर्णकण आच्छादित जापानी मिठाई मोची (餅)
(अनुराग शर्मा)

दुश्मनों का प्यार पाना चाहता है
हाथ पे सरसों उगाना चाहता है

इंतिहा मासूमियत की हो गयी है
प्यार में दिल मार खाना चाहता है

इक नदी के दो किनारे लोग नाखुश
हर कोई "उस" पार जाना चाहता है

धूप और बादल में समझौता हुआ है
खेत बस अब लहलहाना चाहता है

जिस जहाँ में साथ तेरा मिल न पाये
दिल वहाँ से छूट जाना चाहता है

बचपने में जो खिलौना तोड़ डाला
मन उसी को आज पाना चाहता है

रात दिन भटका सारे जगत में वो
मन तुम्हारे द्वार आना चाहता है

कौन जाने फिर मनाने आ ही जाओ
दिल हमारा रूठ जाना चाहता है

एक बाज़ी ये लगा लें आखिरी बस
दिल तुम्ही से हार जाना चाहता है

दुश्मनों का साथ देने चल दिया वह
कौन आखिर मात खाना चाहता है

बहर से करते सरीकत क्या कहेंगे
केतली में ज्वार आना चाहता है
सपरिवार आपको, आपके मित्रों, परिजनों और शुभचिंतकों को नव वर्ष 2014 के आगमन पर हार्दिक मंगलकामनाएँ

Tuesday, December 24, 2013

संगीता रिचर्ड बनाम देवयानी खोबरागड़े बनाम भावुक भारतीय

शहीद सूबेदार कुंवर पाल
दिसंबर 2013: मेरठ के सूबेदार कुँवर पाल गुरुवार को भारतीय शांति सैनिकों के शिविर पर हुए हमले में मारे गए। दक्षिणी सूडान से उनके शव को लाने में हो रही देरी पर उनके परिवार और गाँव में बहुत रोष है। उनकी पत्नी के भाई कहते हैं, "कोई नेता होता तो दो घंटे में इंतज़ाम हो जाता. यहाँ सेना के जवान के लिए कोई सुविधा नहीं है?"

दिसंबर 2013: न्यूयॉर्क में अपनी नौकरानी के शोषण और प्रताड़ना तथा अमेरिकी वीसा प्रक्रिया के साथ धोखाधड़ी के आरोप में न्यूयॉर्क में पकड़ी गई देवयानी खोबरागड़े को सस्पेंड करने के बजाय भारत सरकार अमेरिका के खिलाफ हर तरह के विरोध दर्ज़ करने के बाद देवयानी को राजनीतिक प्रतिरक्षा का लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से उसे संयुक्त राष्ट्र के स्थाई प्रतिनिधि के रूप में प्रोन्नत करती है। खबरें देखने पर पता लगता है कि देवयानी खोबरागड़े ने वीसा प्रक्रिया में तो धोखाधड़ी की ही थी, साथ ही नौकरानी द्वारा कानूनी सहायता लेने पर उसके परिवार के खिलाफ भारत में धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज़ कराकर उसके पति को भी गिरफ्तार कराया था। बात यहीं नहीं रुकी, देवयानी ने नौकरानी का पासपोर्ट रद्द कराया और फिर पासपोर्टविहीन होने के कारण उसे अवैध आप्रवासी बताकर अमेरिकी सरकार पर दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास द्वारा उसकी गिरफ्तारी के लिए दवाब डाला। एक ओर एक निम्न-मध्यवर्गीय घरेलू नौकरानी और दूसरी ओर एक शक्तिशाली नौकरशाह परिवार। दवाब बढ़ता गया और अंततः बात यहाँ तक पहुँची कि अमेरिकी सरकार को संगीता के परिवार को दमन से बचाने के लिए अमेरिका लाना पड़ा।

दोनों परिस्थितियों की तुलना करने पर न केवल शहीद सूबेदार के परिजनों के शब्द सही साबित होते हैं बल्कि हमारे महान राष्ट्र के आदर्श वाक्य "सत्यमेव जयते" को भी गहरी चोट पहुँचती है और मेरे जैसा सामान्य बुद्धि वाला एक भारतीय यह सोचने को बाध्य होता है कि देश की वर्तमान व्यवस्था किस किस्म के लोगों को लाभ पहुँचाने में लगी है और एक गरीब भारतीय नागरिक के दमन के लिए उसके लिए हमारी मशीनरी कितना दूर तक जा सकती है।

एक ओर निहित स्वार्थ के लिए कानून को नचाने वाले नेता और नौकरशाह हैं और दूसरी ओर वे सैनिक हैं जिनके सिर आतंकवादी काट लेते हैं, जिनके शरीर को पड़ोसी देश की सेना अपमानजनक रूप से क्षत-विक्षत करती है। जिनकी विधवाओं को देने के नाम पर बने "आदर्श" के फ्लैट कुछ भ्रष्ट नेता और नौकरशाह मिलकर बाँट लेते हैं।

एक ओर पूरा भारतीय नौकरशाही तंत्र है और दूसरी ओर एक घरेलू सहायिका संगीता रिचर्ड है जो अपने घर-परिवार से दूर एक समृद्ध राजनयिक के परिवार की सेवा में लगी है और जब अपने पैसे या समय के बारे में कानूनन जायज़ शिकायत करती है तो उसकी मालकिन अपने प्रभाव का प्रयोग करके एक ऐसे इकरारनामे के आधार उसके पति को भारत में चार सौ बीसी के आरोप में गिरफ्तार करवाती है,जो आगे चलकर मालकिन देवयानी के खुद के अपराध का प्रमाण बनता है। देवयानी को इतने पर भी तसल्ली नहीं होती तो अपने रसूख का प्रयोग कर अमेरिकी प्रशासन और दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास पर दवाब डलवाती है कि पासपोर्ट रद्द होने के बावजूद भी अमेरिका में रुकी हुई सहायिका को गिरफ्तार करके सज़ा काटने के लिए भारत क्यों नहीं भेजा जा रहा है। जबकि वह पासपोर्ट तो संगीता की मर्ज़ी और जानकारी के बिना (संभवतः देवयानी की पहल पर) रद्द किया गया था। इस जोश में वह अमेरिकी दूतावास को गलती से यह भी बता बैठती है कि भारत में संगीता और उसके पति के खिलाफ कोर्ट और पुलिस के जोश का आधार देवयानी का तैयार किया गया एक ऐसा दूसरा इकरारनामा (25,000 रुपये मासिक का) है जो उसने संगीता को नौकरी देते समय लिखवाया था और घरेलू नौकरानी का वीसा दाखिल कराते समय, अमेरिकी कानून की प्रतिबद्धता (न्यूयॉर्क में 9.75 डॉलर प्रति घंटा या अधिक) की बात पर हस्ताक्षर करते समय उनके शोषण-विरोधी श्रम क़ानूनों की काट के लिए उन्हीं के विरुद्ध बनाए गए इस इकरारनामे की बात छिपा ली गई थी। वीसा अर्ज़ी में घोषित और अमेरिका में रहते हुए न्यूनतम वेतन या उससे अधिक वेतन देने के वादे वाले इकरारामे से इतर (कम पैसे वाला) कोई भी इकरारनामा अमेरिका में कार्य के नियमों का खुला उल्लंघन है, और 25,000 रुपये मासिक के ऐसे छिपे हुए और समांतर समझौते का उद्देश्य सिर्फ इतना ही हो सकता है कि संगीता को नियम से कम वेतन दिया जाय और यदि कभी वह अपने अधिकारों के बारे में जान जाये और उनकी मांग करे तो उसे भारत में कानूनी कार्यवाही के नाम से धमकाया जा सके। क्या ऐसा इकरारनामा भारतीय संविधान के तहत कानूनी माना जाएगा? मुझे इसमें शक है लेकिन कानूनी विशेषज्ञों की राय जानना चाहूँगा।

देवयानी सरकारी सुविधाओं का पूर्ण लाभ उठा रही थीं। खबरें हैं कि वे अमेरिका के सबसे महंगे इलाकों में से एक मैनहेटन में चार बेडरूम के निवास में रह रही थीं जहां पति और दो बच्चों के परिवार और नौकरानी के साथ एक राजनयिक के रहने योग्य घर का किराया मात्र ही एक भारतीय राजनयिक के तथाकथित "मामूली" वेतन से कहीं अधिक होगा। उनकी न्यूयोर्क पोस्टिंग का एक आधार उसी नगर में जन्मे उनके अमेरिकी पति आकाश सिंह राठोर का निवास भी था। इससे पहले 1999 में जब आकाश सिंह राठोर बर्लिन में थे तब देवयानी को बर्लिन पोस्टिंग दिलाने के लिए उनसे दो रैंक ऊपर रहे महावीर सिंघवी की उपस्थिति को नकार कर नियमों में बदलाव किया गया था, यह बात महावीर सिंघवी द्वारा भारत सरकार के विरुद्ध दायर मुकदमे का निर्णय सिंघवी के पक्ष में करते समय भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी मानी थी। सिंघवी को नौकरी से सस्पेंड किया गया था। खबर है कि उन्हें बहाल कराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। आप समझ ही गए होंगे कि यह खबर कहीं नहीं है कि जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही होगी या नहीं।

शहीदों की विधवाओं के पुनर्वास के नाम पर मुंबई में हुए आदर्श सोसाइटी फ्लैट घोटाले की जांच करने वाले न्यायिक जांच आयोग ने देवयानी खोबरागड़े को उन 25 आवंटियों की सूची में रखा है जिन्होने आवंटन के अयोग्य होते हुए भी सोसाइटी में फ्लैट प्राप्त किया था। हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जे ए पाटिल की अगुवाई वाले दो सदस्यीय आयोग की रपट में देवयानी के सेवानिवृत्त आईएएस पिता और बेस्ट (BEST) के तत्कालीन महाप्रबंधक उत्तम खोबरागड़े पर आरोप है कि उन्होंने आदर्श सोसाइटी का फ्लोर एरिया बढ़ाने के लिए बेस्ट का नजदीकी प्लॉट हस्तांतरित कर दिया था। इस काण्ड में भी जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही होने की खबर नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र विधानसभा ने तो रिपोर्ट में राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों विलाराव देशमुख, सुशील कुमार शिंदे और अशोक चव्हाण का नाम होने के कारण रिपोर्ट को ही अमान्य कर दिया है। अमेरिका में काम कर रही नौकरानी को अमेरिका में निर्धारित न्यूनतम वेतन देने की बात पर राजनयिकों के कम वेतन का रोना रोने वालों को यह ध्यान रखना चाहिए कि देवयानी द्वारा इस फ्लैट के लिए दिये गए एक करोड़ दस लाख रुपये के लिए किसी बैंक लोन का कोई रिकार्ड जांच समिति को नहीं मिला है।

देवयानी से संबन्धित पिछली तीन घटनाएँ तो सत्तासीन हठधर्मी के बाइप्रोडक्ट के रूप में प्रकाश में आ गईं। लेकिन हमारे आसपास हर रोज़ न जाने ऐसी कितनी घटनाएँ हो रही हैं जहाँ भ्रष्ट नेता-नौकरशाह-अपराधी गठबंधन आम भारतीय नागरिकों के अधिकारों का हनन करता रहता है और उन्हीं को नेतृत्व प्रदान करने का ढोंग भी रचता है। दुख की बात यह है कि इस मामले के सामने आने तक देवयानी ने महिला अधिकारों की रक्षक की छवि बनाकर रखी थी। भारत में रहते हुए अपने सम्बन्धों, बाहुबल और सत्ता के मद में चूर लोग कई बार यह बात भूल जाते हैं कि (भारत के बाहर) अधिकांश विकसित देशों के विकास के मूल में एक सुदृढ़ कानूनी व्यवस्था है। वे देश तरक्की इसलिए कर सके क्योंकि वहाँ सामंतों द्वारा अधीनस्थों के खिलाफ कानून-पुलिस-नियम आदि का दुरुपयोग कर पाना आसान नहीं है।

नौकरों के मानवाधिकार का हनन भारत में आम है लेकिन अमेरिका में पहले भी कई भारतीय धनाढ़्यों का नाम इस अपराध में सामने आया है। मई 2007 में न्यूयॉर्क के धनपति व्यापारी महेंद्र मुरलीधर सभनानी और उनकी पत्नी वर्षा सभनानी को अपने लॉन्ग आइलैंड (न्यूयॉर्क) स्थित घर में इंडोनेशियाई मूल की दो महिलाओं को कई सालों से गुलामों की तरह रखने और निरंतर प्रताड़ित करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था।

सन 2001 में बर्कले कैलिफोर्निया में एक गर्भवती किशोरी की मृत्यु की जांच जब आगे बढ़ी तो भारत में इंजीनियरिंग कॉलेज और धर्मार्थ संस्था चलाने वाले एक परोपकारी भारतीय व्यवसाई का नाम सामने आया जिसने बर्कले से अभियांत्रिकी में स्नातकोत्तर किया था। जांच आगे बढ़ी तो पता लगा कि अमेरिका में नौकरी दिलाने के बहाने भारतीय लड़कियों को अमेरिका लाकर उनके शोषण का बड़ा रैकेट चल रहा था। अंत में वीसा फ्रॉड, करचोरी और मानव तस्करी के आरोप में लकी रेड्डी को 97 महीने कारावास, बीस लाख डॉलर के जुर्माने की सज़ा तो मिली ही, अदालत के आदेश पर उसने पीडिताओं को 89 लाख डॉलर का भुगतान भी किया।

इस साल के आरंभ में न्यूयॉर्क राज्य में ही 30,000 वर्ग फुट के 34 कमरों वाले घर में रहने वाली भारतीय मूल की एनी जॉर्ज को अपनी घरेलू नौकरानी के शोषण के अपराध में सजा हुई थी। इस कांड में नौकरानी भी भारतीय मूल की (केरल से लाई गई) थी। सुबह साढ़े पाँच से रात के 11 बजे तक बिना छुट्टी लगातार काम करने के बाद एक बड़ी अलमारी में ज़मीन पर सोने वाली परिचारिका अङ्ग्रेज़ी नहीं बोल सकती थी।

देवयानी से पहले के कई मामलों में भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका भी रही है। 2011 में न्यूयॉर्क उपदूतावास के ही कॉन्सुलर प्रभु दयाल पर उनकी भारत से लाई गई घरेलू नौकरानी संतोष भारद्वाज ने मिलते जुलते आरोप लगाए थे। खोबरागड़े की तरह प्रभुदयाल ने भी अमेरिका से मांग की थी कि संतोष को पकड़कर भारत भेज दिया जाये। उस मुकदमे में भी भारत सरकार अपने अधिकारी की ओर से लड़ी और गरीब भारतीय नागरिक के जायज़ अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने का काम अमेरिकी सरकार ने किया। बाद में ऐसी खबरें आईं कि प्रभुदयाल ने अदालती व्यवस्था के बाहर समझौता कर लिया था।

2010 में इसी उपदूतावास की प्रेस सचिव डॉ नीना मल्होत्रा भी अपनी घरेलू नौकरानी शांति गुरुङ्ग के साथ इसी स्थिति का सामना कर चुकी हैं जिन पर फरवरी 2012 में अपनी नौकरानी को देने के लिए 15 लाख डॉलर का हर्जाना लगाया गया था। इस केस में नीना और उनके पति ने दिल्ली हाईकोर्ट से शांति को भारत के बाहर कोई कानूनी कार्यवाही न करने देने का आदेश दिलाया था।

हाँ, यह पहली बार हुआ है जब बात इतनी आगे पहुँच गई कि आरोपी को गिरफ्तार करने की नौबत आ गई। यदि खोबरागड़े की पहल पर भारतीय व्यवस्था द्वारा संगीता के परिवार को भारत में प्रताड़ित करने और अमेरिका पर उसकी गिरफ्तारी और वापसी का ऐसा गहरा दवाब नहीं बनाया जाता तो शायद मामला ऐसे टकराव तक नहीं पहुँचता।

दुख की बात है कि जैसे ही ऐसी कोई भी खबर आती है हमारे राष्ट्रीय प्रेम की केतली में ज्वार आ जाता है और हम सही-गलत सब भूलकर अमेरिका को लतियाने बैठ जाते हैं। इतना भी याद नहीं रहता कि दूसरा पक्ष अमेरिका नहीं है, एक अन्य भारतीय नागरिक है जो भारतीय न्याय व्यवस्था में केवल जेल जाने के लिए अभिशप्त है। भारतीय कानून के कागज के सहारे जब शक्तिशाली नेता या राजनयिक एक घरेलू नौकर को "मेरी मानो या जेल जाओ" की धमकी देते हैं तो यह भी उसी राष्ट्रव्यापी भ्रष्टाचार का ही एक भयानक चेहरा है जिसे हम नकार नहीं सकते। अपने शोषण का विरोध करने वाली घरेलू नौकरानियों को अमेरिकी वीसा उल्लंघन के लिए भारत में गिरफ्तार करवाने की मांग करने वाले भारतीय राजनयिकों को अपनी कानूनी ज़िम्मेदारी याद रहे तो देश की छवि चकनाचूर होते रहने से बचेगी।
कुछ लोग अपने अपराध का नहीं, अपने प्रति हुई कानूनी कार्यवाही का प्रायश्चित करते हैं
अब बातें उन भावनात्मक सवालों की जिन्हें सोशल मीडिया में भोले-भारतीयों द्वारा बारंबार उठाया जा रहा है। इनमें से अधिकांश का स्रोत देवयानी, उसके परिवारजनों और कुछ नेताओं से जुड़ा है।

1. अमेरिका जिस तरह संगीता को बचा रहा है उसके जासूस होने की संभावना है।
- संगीता को बचाने का प्रयास अमेरिकी मानवाधिकार प्रतिबद्धता के एकदम अनुकूल है। यदि भारत में ऐसी प्रतिबद्धता दिख जाये तो हमारी वंचित और दरिद्र जनता के न जाने कितने सपने साकार हो जाएँ। देवयानी का तो पति ही अमेरिकी नागरिक है, क्या इतने भर से आप देवयानी और उसके पति पर भी जासूस होने का आरोप लगाने का साहस करेंगे? कमजोर को लतियाने और दबंग से डर जाने की आदतें छोड़िए और कभी कभी दिमाग पर ज़ोर डालने की कोशिश भी कीजिये। अमेरिकी कानून में यह प्रयास है कि अवैध आप्रवासियो को भी अपने या परिवार के इलाज या शिक्षा आदि में कोई बाधा न पहुँचे और उनके मानवाधिकारों की रक्षा हो। अपनी शरणागत-वत्सल परंपरा तेज़ी से भूलने वाले देश को आज के अमेरिका से काफी कुछ सीखने की ज़रूरत है

2. देवयानी दलित है, यह केस उच्चजातियों की साजिश है।
- देवयानी का परिवार भारत के बड़े धनिक और राजनीतिक शक्ति-सम्पन्न परिवारों में से एक है। उसे मेडिकल कॉलेज और नौकरी में कानून के तहत आरक्षण भले ही मिला हो लेकिन इस मामले में दलित कार्ड का प्रयोग करना भी वंचितों और दलितों का मखौल उड़ाने जैसा है। इस केस में यदि कोई दलित है तो वह संगीता है।

3. यह अमेरिका की हिन्दू विरोधी साजिश है
- संगीता के नाम में रिचर्ड देखते ही आपको हिन्दू याद आ गए? इससे पहले शांति गुरुङ्ग और संतोष भारद्वाज को बचाने में तो अमेरिका हिन्दू विरोधी नहीं था। वैसे, मीडिया में जितनी सामग्री उपलब्ध है उसके अनुसार देवयानी का परिवार हिन्दू नहीं नव-बौद्ध (माइनस हिन्दू) लगता है। सच यह है कि अमेरिका एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है और ऐसे कयास बड़े बचकाने हैं।

4. भारत में अमेरिकी राजनयिकों को गिरफ्तार किया जाये क्योंकि उनमें से कोई भी अमेरिका के हिसाब से न्यूनतम वेतन नहीं देता होगा।
- कुतर्क का यह एक उत्तम उदाहरण है। हमें तो यह भी नहीं पता कि उनमें से कितनों के घर में नौकर हैं। और फिर आप भारत में भारत के कानून के पक्षधर हैं कि अमेरिका के? यह सच है कि भारत में भी न्यूनतम वेतन आदि के क़ानूनों के निर्माण और अनुपालन की ज़रूरत है और इस दिशा में प्रयास होना चाहिए। अमेरिका में हर कार्यालय में न्यूनतम वेतन के सरकारी निर्देश बुलेटिन बोर्ड पर किसी दर्शनीय स्थल पर लगाए जाने का प्रावधान भी है। हम भी कानून बनाने और उसे लागू करने के बाद इस प्रकार की छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दे सकते हैं।
जिस तेज़ी से न्यूयॉर्क में भारतीय राजनयिक नौकरों के दमन और शोषण के मामलों में फंस रहे हैं भारतीय उप-दूतावास को अपने ही परिसर में उच्च-स्तरीय स्कैन सुविधाओं से लेस एक भारतीय-कामगार-शोषण-जेल-सेल खोलने के मामले पर विचार करना चाहिए ताकि अधिकारियों को शारीरिक जांच से न गुज़रना पड़े।
5. अमेरिकी दूतावास के समलैंगिक कर्मचारियों को भारतीय कानून के तहत गिरफ्तार किया जाये
- पुनः, क्या आपको पता है कि देश भर के सारे समलैंगिक अमेरिकी दूतावास में ही रहते हैं? आज़ादी के छः दशक बाद भी जिस देश की राजधानी तक को विकास छू भी नहीं गया है, वहाँ अमेरिकी समलैंगिकों को पकड़ने को प्राथमिकता बनाना, साफ दिखा रहा है कि हमारे नेता देश की जनता की जरूरतों के बारे में कितने जागरूक हैं।    

6. पासपोर्ट रद्द होने के बाद संगीता रिचर्ड फ्यूजिटिव (भगोड़ी अपराधी) है, उसके अमेरिका रुकने का कोई कानूनी आधार नहीं है, उसे गिरफ्तार करके भारत भेजा जाये
- संगीता को भारत से राजनयिक पासपोर्ट बनवाने के बाद उसके वीसा के कागजों पर झूठ लिखकर अमेरिका लाकर कानून से अधिक काम और कम वेतन देने के बाद उसका पासपोर्ट रद्द कराकर उसे अवैध बनाने वाली जब देवयानी है तो फिर संगीता गिरफ्तार क्यों हो? बल्कि भारतीय कानून उसे किस आधार पर फ्यूजिटिव कह सकता है? और अगर वह फ्यूजिटिव है तो उसे विदेश ले जाकर फ्यूजिटिव बनाने वाले के प्रति भारतीय कानून के तहत क्या कार्यवाही की जा रही है? संगीता कानूनी तरीके से वैध वीसा और पासपोर्ट पर अमेरिका आई है और यहाँ रहते हुए किसी गैरकानूनी गतिविधि में लिप्त नहीं है। उसके खिलाफ कोई पुराना आपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं है। पासपोर्ट न होना कोई अपराध नहीं है। वह इस कांड की मूल पीड़िता है, उसके खिलाफ कोई भी कानूनी आधार नहीं बनता, न यहाँ, न भारत में।

7. भारतीय राजनयिकों का वेतन इतना कम है कि वे अमेरिका के न्यूनतम वेतन के नियमों का पालन नहीं कर सकते
- इससे लचर तर्क कोई हो सकता है क्या? आप सिविल सरवेंट हैं, भारत से नौकरानी लाना आपकी कानूनी बाध्यता नहीं है। पैर उतने ही पसारिए जितनी चादर है। वैसे वेतन कम होने की बात पूरी तरह से सही नहीं है क्योंकि अधिकारियों को मूल वेतन के अलावा अनेक मोटे भत्ते भी मिलते हैं। शशि थरूर ने तो एक टीवी कार्यक्रम में यह भी कहा है कि राजनयिकों को नौकरानी के वेतन का भी आंशिक भुगतान मिलता है। वैसे, भारत में करोड़ों की संपत्ति की स्वामिनी, मैनहेटन में रहने वाली देवयानी के केस में तो वेतन कोई मायने ही नहीं रखता। फिर भी अगर सरकार को इस मुद्दे पर अपने अधिकारियों से इतनी ही सहानुभूति है और वह नौकरानी रखने की परंपरा का पोषण करना चाहती है तो अमेरिका स्थित राजनयिकों के घरेलू सहायकों के लिए कानून-सम्मत वेतन और सभी ज़रूरी सुख-सुविधाओं की पक्की व्यवस्था करे और उल्लंघन करने वाले राजनयिकों को कड़ी सज़ा का प्रावधान करे।

8. देवयानी को बेटी के सामने हथकड़ी लगाई गई
- जहां इतने झूठ वहाँ एक और सही। भारत से इतर अमेरिका के कानून में पकड़े जाने पर हथकड़ी लगाना सामान्य कानूनी प्रक्रिया है। फिर भी देवयानी के केस में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था यह बात अब स्पष्ट हो चुकी है। न उसे बेटी के सामने पकड़ा गया और न ही हथकड़ी लगाई गई।

9. देवयानी को नशेड़ियों, यौनकर्मियों और अपराधियों के साथ रखा गया
- यह बचकाना आरोप पढ़कर ऐसा लगता है जैसे कि देवयानी का साथ देने के लिए अमेरिकी सरकार ने नशेड़ियों, यौनकर्मियों और अपराधियों की विशेष व्यवस्था की थी। अव्वल तो देवयानी के पास यह जानने का कोई आधार नहीं है कि वहाँ उपस्थित अन्य लोग कौन थे। दूसरे, वे भी आरोपी ही रहे होंगे। अपने आपको निरपराध घोषित करने वाले व्यक्ति दूसरों को एक जनरल स्टेटमेंट देकर नशेड़ी, यौनकर्मी और अपराधी कैसे कह देते हैं यह बात समझ आ जाये तो इस केस की अन्य बातें समझना भी आसान हो जाएगा। लगता है कि कुछ लोग सोचते हैं कि जैसे वे अपने घरेलू नौकर भी अपने साथ विदेश ले जाते हैं वैसे ही अदालत/थाने में अपनी विशेष सेल भी साथ लेकर चलेंगे।

10. देवयानी को राजनयिक सुरक्षा मिलनी चाहिए थी
- जहां तक मैं समझता हूँ, राजनयिक कारण से ही पकड़े जाने में देर हुई। देवयानी को आधिकारिक मामलों में सीमित राजनयिक सुरक्षा उपलब्ध है जो व्यक्तिगत नौकर के लिए किए गए वीसा फ्रॉड या वेतन अपराध पर लागू नहीं होती है। अगर वे संगीता के खिलाफ बदले की कार्यवाही को अति की हद तक नहीं बढ़ातीं तो अमेरिकी सरकार को न तो झूठे इकरारनामे का पता लगता और न ही संगीता के परिवार की सुरक्षा की चिंता करनी होती। देवयानी, उसके पिता और भारत-सरकार के सहयोग से संगीता पर हो रहे सरकारी दमन ने यह सिद्ध कर दिया कि शोषण की बात न केवल सच्ची है बल्कि यदि समय पर एक्शन न लिया गया तो संगीता और उसका परिवार सुरक्षित नहीं है। यदि यह अति न की जाती तो यह मामला केवल न्यूनतम वेतन न देने का ही रहता और शायद प्रभुदयाल मामले की तरह ही समुचित हरजाना देने पर निबट भी जाता।

11. देवयानी की जांच का उद्देश्य उसे अपमानित करना था
- कानूनरहित वातावरण में रहने का एक बड़ा खामियाजा यह है कि लोग टिकट खिड़की पर पंक्ति भी तब तक नहीं लगा सकते जब तक कि लाठीचार्ज न हो जाये। जिस देश में रेल में काली और बाहर खाकी वर्दी पहनकर कोई भी उगाही कर सकता हो वहाँ व्यवस्था के मुद्दों को समझ पाना थोड़ा कठिन तो हो ही जाता है। भारत में पिछले दिनों निर्भया कांड के मुख्य आरोपी ने कड़ी सुरक्षा वाली सेल में आत्महत्या कर ली तो मीडिया पर काफी हल्ला हुआ। इसके पहले उत्तर प्रदेश के मुख्य सर्जन के हत्याकांड केस में अभियुक्त पुलिस कस्टडी में संदिग्ध परिस्थितियों में मर गए। एक प्रमुख आतंकवादी कस्टडी से भाग गया। हर साल न जाने कितने आरोपी पुलिस कस्टडी में मारे जाते हैं जिनकी ज़िम्मेदारी किसी पर नहीं आती क्योंकि अधिकांश परिस्थितियों में यह तय ही नहीं हो पाता है कि मृत्यु का कारक क्या था, शस्त्र कैसे अंदर पहुँचा आदि। कितने मामलों में तो यह भी सिद्ध नहीं हो पाता कि पुलिस ने मृतक को पकड़ा भी था कि नहीं क्योंकि देश में कोई सिद्ध प्रणाली ही नहीं है। हर ज़िम्मेदारी को "सब कुछ चलता है" और "जुगाड़" के नियमान्तर्गत निबटाया जा रहा है। भारत के भाग्य-विधाता तो भ्रष्टाचार और लोकपाल पर चर्चा में व्यस्त हैं लेकिन विकसित देशों में सरकारी न्याय-कारागार-पुलिस व्यवस्था के अंदर लाये गए सभी व्यक्तियों के बारे में व्यवस्थित कार्यक्रम है जिसे उन्नत बनाने के प्रयास चलते रहते हैं। इस प्रणाली के तहत न केवल हर आने जाने वाले की पुख्ता जानकारी हर समय मौजूद रहती है बल्कि इस बात का भी अतिसंभव प्रयत्न रहता है कि किसी प्रकार के गैरकानूनी पदार्थ की आवाजाही न हो सके। इन्हीं नियमों के अंतर्गत कुछ स्थानों में शारीरिक जांच का प्रबंध भी है। ऐसी जगह पर एक विदेशी नागरिक ही नहीं, उस व्यवस्था का निर्माता भी आरोपी के तौर पर जाएगा तो उसकी भी वैसी ही जांच होगी।
अमेरिकी प्रशासन की यह व्यवस्था आज देवयानी के लिए नहीं बनी, बल्कि लंबे समय से स्थापित है और इसका उद्देश्य बिना किसी भेदभाव के पुलिस, न्याय, गवाह, आरोपी, मुजरिम, मुलजिम आदि सबकी सुरक्षा निश्चित करना है। शारीरिक जांच में लगाए गए सुरक्षाकर्मी (महिलाओं के केस में महिला, पुरुषों के केस में पुरुष) को जांच से गुज़र रहे व्यक्ति का स्पर्श करने की मनाही है।

सीधी-सच्ची बात यह है कि इतने सारे आपराधिक मामलों के सामने आने के बावज़ूद भी भारत सरकार घरेलू नौकरानी साथ ले जाने की प्रवृत्ति को बढ़ावा ही क्यों देती है? क्या अमेरिका में रहने वाले सभी आप्रवासी अपनी-अपनी नौकरानियाँ लेकर आते हैं? बेहतर हो कि इस बार कुछ सबक लिया जाय और राजनयिकों को भी श्रम, मानवाधिकार और कानून का सम्मान करने की शिक्षा दी जाये। वीसा अर्जियों पर झूठ लिखने के प्रति उन्हें सख्त चेतावनी दी जाये और सरकार का स्टैंड ऐसे किसी भी झूठ के साथ खड़े न होने का रहे। उन्हें यह भी याद दिलाया जाये कि वे जनसेवक (सिविल सेरवेंट्स) हैं दासस्वामी (स्लेव मास्टर्स/मालिक) नहीं। उन्हें कड़े शब्दों में बताया जाये कि व्यक्तिगत खुंदक के चलते वे दूसरों के पासपोर्ट रद्द करने/कराने से बचें। साथ ही घरेलू नौकरानियों सहित सभी भारतीय नागरिकों के अधिकारों की रक्षा का वचन दिया जाये और उनके खिलाफ बदले की कार्यवाही करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्यवाही का विधान हो। सरकारी दमन का शिकार बने ऐसे नागरिकों के विरुद्ध लगाए गए सभी आरोपों की जांच हो और झूठे मुक़द्दमे वापस लिए जाएँ।

इस मुद्दे को अमेरिका की "चौधराहट" या "दादागिरी" समझने वाले मित्रों से मेरा यही अनुरोध है कि अगर अपनी धरती पर हो रहे अन्याय के विरुद्ध खड़े होना चौधराहट है तो भारत के लिए भी चौधरी बनाने का एक ज़बरदस्त मौका है। और वह है एक आम भारतीय नागरिक संगीता रिचर्ड और उस जैसी अनेक शोषित और पीड़ित भारतीय महिलाओं के शोषण के खिलाफ प्रतिबद्धता दिखाना। शर्म की बात है कि विदेश हमारे नागरिक के अधिकार के लिए खड़ा है और हम उनसे कुछ सीखने के बजाय अपने ही नागरिक के असंवैधानिक दमन में पार्टी बने हुए हैं।

यद्यपि इस मामले में आर्थिक भ्रष्टाचार भी सामने आया है लेकिन भ्रष्टाचार केवल पैसे के लेनदेन तक सीमित नहीं होता है। सत्ता के दुरुपयोग के उपरोक्त सारे कृत्य भी मेरी नज़र में भ्रष्टाचार के ही उदाहरण हैं। विदेशों में पोस्टेड राजनयिक भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए उन पर महती ज़िम्मेदारी है। ऐसे पदों के लिए ऐसे लोग चुने जाने चाहिए जिनकी न्याय-निष्ठा, निष्पक्षता और ईमानदारी अटूट और विश्वसनीय हो। बस एक बात मेरी समझ में नहीं आती है कि "सत्यमेव जयते" के देश में भ्रष्टाचार का झण्डा ऐसी बुलंदी के साथ कैसे रह रहा है? और फिर जब अमेरिका ने अपनी धरती पर "एक भारतीय के विरुद्ध" हुए मानवाधिकार उल्लंघन के एक अपराध को रोकने की कोशिश की तो हमने इसका इतना कडा विरोध क्यों किया? हमारे नेताओं और नौकरशाहों को तय करना चाहिए कि वे भारत के "सत्यमेव जयते" के आग्रह के रक्षक हैं कि भक्षक। और साथ ही हमारी जनता को हर बार एक नई तरह से भावनात्मक मूर्ख बनते रहने का भोलापन छोड़ने का प्रयास करना चाहिए।
* संबन्धित कड़ियाँ *
या देवी सर्वभूतेषु ...
देवयानी और उत्तम खोबरागड़े पर सीबीआई चार्जशीट
देवयानी पर लगाए अदालती आरोप की प्रति
देवयानी खोबरागड़े की स्वघोषित संपत्ति
देवयानी खोबरगड़े कांड फेसबुक पृष्ठ
Multi-Millionaire Devyani – Slave Wage Payer?
The Other Side of the Story
अहिसा परमो धर्मः
नकद धर्म - स्वामी रामतीर्थ के शब्दों में
[नोट: मैं कोई सरकारी अधिकारी नहीं हूँ, न ही इस केस से संबन्धित कागजातों की मूलप्रतियाँ मुझे दिखाई गई हैं। पूरा आलेख विश्वसनीय और सार्वजनिक सूत्रों में प्रकाशित समाचारों, अपनी सहज बुद्धि और भारत व अमेरिका में नौकरशाहों के साथ हुए अनुभवों के साथ-साथ भारत भर में आसानी से देखे जा सकने वाले घरेलू नौकरों तथा दबंग नौकरशाहों के व्यवहार और प्रवृत्तियों पर आधारित है।]

Saturday, December 14, 2013

"क्यूरियस केस ऑफ केजरीवाल" - राजनीतिक परियोजना प्रबंधन

बहुसंख्य भारतीय जनता इतनी निराशा और अज्ञान में जीती है कि कब्रों पे चादर चढ़ाती है, आसाराम और रामपाल से मन्नतें मांग लेती है, ज़ाकिर नायक जैसों को धर्म का विशेषज्ञ समझती है और कई बार तो जेहादी-माओवादी आतंकियों और लेनिन-स्टालिन-सद्दाम-हिटलर जैसे दरिंदों तक को जस्टिफ़ाई करने लगती है। जनता के एक बड़े समूह की ऐसी दबी-कुचली पददलित भावनाओं को भुनाना बहुत सस्ता काम है ...
राजनीतिक सफलता के कुछ सूत्र

1) परेटो सिद्धांत (Pareto principle) - 80% प्रभाव वाले 20% काम करो, बस्स! - कम लागत में बड़ी इमारत बनाओ। शिवाजी ने छोटे किलों से आरंभ किया। मिज़ोरम (राज्य) का खबरों में आना कठिन है, गंगाराम (अस्पताल) ज़रूर आसान है। चूंकि दिल्ली सत्ता और मीडिया, दोनों के केंद्र में है, मीडिया को मणिपुर, अरुणाचल या कश्मीर तक जाने का कष्ट नहीं करना पड़ता। जब एक दिल्ली शहर को कब्ज़ाकर देशभर को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है तो येन-केन-प्रकारेण वही करना ठीक है, मीडिया को भी फायदा है, घर बैठे खबर "बन" जाती है, और बाहर निकलने की जहमत बच जाती है।

2) जन-प्रभाव वाले महत्वाकांक्षी व्यक्तियों को सपने दिखाकर साथ लाओ - अन्ना हज़ारे से बाबा रामदेव तक, किरण बेदी से अग्निवेश तक, कलबे जवाद से तौकीर रज़ा तक ... कोई अनशन करे, कोई लाठी खाये, किसी का तम्बू उजड़े, सबका सीधा लाभ आप तक ही पहुँचे।

3) उन जन-प्रभाव वाले महत्वाकांक्षी व्यक्तियों के तेज को हरकर अपने में समाहित करो - किरण बेदी, अग्निवेश आदि का अनैतिक आचरण उजागर हुआ या कराया गया; बेचारे बाबा रामदेव की छवि तो ऐसी डूबी या डुबाई गई कि फिर कभी राजनीति में न घुस सकेंगे, अन्ना हज़ारे के प्रभाव का भरपूर उपयोग कर बाद में उन्हें दूध की मक्खी जैसे छिटक दिया गया। और यह क्रम आगे भी चलता रहेगा। काम में आने के बाद लोग लात मारकर निकले जाते रहेंगे - कुल मिलाकर सभी प्रभावशाली व्यक्तियों के प्रभाव का लाभ केवल केजरीवाल को मिलना चाहिए।

4) शत्रु-मित्र-तटस्थ सभी को शुभ संकेत दो - कॉङ्ग्रेस खुश थी क्योंकि बीजेपी के वोट कट रहे थे, बीजेपी खुश थी क्योंकि कॉङ्ग्रेस के खिलाफ माहौल बन रहा था, सपा और बसपा खुश क्योंकि वे सोच रहे थे कि बिल्लियों की लड़ाई में वे चांदी काट लेंगे। दुनिया भर में पिटने के बाद भारत और नेपाल में भी अपनी साख गँवाकर हाशिये पर पड़े कम्युनिस्टों की खाली केतली में भी उम्मीदों का ज्वार चढ़ने लगा। हालांकि ऐसे संकेत हैं कि बीजेपी ने अपनी हानि को चुनाव से कुछ समय पहले भाँप तो लिया था लेकिन वे उसकी प्रभावी काट नहीं सोच सके।

5) बीच-बीच में अपना मखौल उड़वाओ - अलग दिखने के लिए अजीब सी वेषभूषा अपनाओ। कम खतरनाक दिखने के लिए अजीब-अजीब से बयान देते रहो। खिल्ली ज़्यादा उड़े या विरोध कड़ा हो जाये तो पलटी खा लो। लेकिन प्रतिद्वंदियों को मस्त रहने दो, कभी चौकन्ने न होने पाएँ।

6) रोनी सूरत बनाए रखो - हार गए तो भाव कम नहीं होगा। जीतने के बाद तो पाँचों उंगलियाँ घी में होनी हैं।

7) करो वही जो सब करते हैं और खुद तुम जिसका विरोध करते दिखते हो, लेकिन कम मात्रा में धीरे-धीरे करो और इतनी होशियारी (या मक्कारी) से करो कि अगर स्टिंग ऑपरेशन भी हो जाये तो बेशर्मी से उसका विरोध कर सको।

8) संदेश प्रभावी रखो - विरोधियों को जेल भिजाने की धमकी दो इससे उन पर समर्थन का दवाब बना रहेगा। अगर कोई समर्थन न करे तो उसे भी शर्तनामा भेज दो, इससे अपने पक्ष में हवा बनती है।

9) सम्मोहन करो - झाड़ू-पंजे का स्पष्ट संबंध भी ऐसा धुंधला कर दो कि चमकता सूरज भी न दिखे, जब समर्थन देने-लेने के निकट सहयोग का संबंध स्पष्ट हो तब भी यह सहयोग न दिख पाये।

10) अपनी मंशा कभी ज़ाहिर न होने दो - चुनाव से काफी पहले से तैयारी चुनाव की करते रहो लेकिन बात भ्रष्टाचार, समाजवाद, महंगाई आदि की करो।

11) ऊँचे सपने दिखाओ - नालों, मलबे, कूड़े, रिश्वत, बदबू, और अव्यवस्था में गले तक डूबी राजधानी में व्यवस्था की नहीं, हेल्पलाइन की बात करो, लोकपाल की बात करो, मुफ्त पानी-बिजली की बात करो, जिन नेताओं से जनता त्रस्त है, उन्हें जेल भिजाने की बात करो। धरती पर स्वर्ग लाने के सपने दिखाओ  ... एक शहर भले न संभाले, पूरा देश बदलने की बात करो।

12) युवा शक्ति का भरपूर प्रयोग करो - कैच देम यंग - सच यह है कि युवा कुछ करना चाहता है, परिवर्तन का कारक बनने को व्यग्र है। देश-विदेश में जो कोई भी देश की दुर्दशा से चिंतित है उसे अपने लाभ के लिए हाँको। कम्युनिस्ट समूह इस शक्ति का शोषण अरसे से करते रहे हैं, तुम बेहतर दोहन करो।

13) आधुनिक बनो - यंत्रणा नहीं, यंत्र का प्रयोग करो - आधुनिक तकनीक, इन्टरनेट, सोशल मीडिया, डिजिटल इंगेजमेंट, एनजीओ, स्वयंसेवा, धरना, प्रदर्शन आदि के प्रभाव को पहचानो। असंगतियों को बढ़ा-चढ़ाकर बताओ। विपक्षियों पर इतनी बार आरोप लगाओ कि वह खुद ही सफाई देते फिरें ...

14) पुरानी अस्तियों को नई पैकिंग दो - अन्ना को "गांधी" का नाम दो, "गांधी टोपी" को "आम आदमी" तक पहुँचाओ, "मैं अन्ना हूँ" की जगह "मैं आम आदमी हूँ" लिखो। तानाशाही को स्व-राज का नाम दो।

अंतिम पर अनंतिम सूत्र 

15) बेशर्म बने रहो - सबको पता है बिजली मुफ्त नहीं हो सकती, पानी भी सबको नहीं मिलेगा, भ्रष्टाचारी नेता और नौकरशाह जेल नहीं जाएंगे - अव्वल तो ज़िम्मेदारी लेने से बचो। गले पड़ ही जाये तो पोल खुलने पर अपनी असफलता का ठीकरा एक काल्पनिक शत्रु, जैसे "सब मिले हुए हैं जी", "पूंजीवाद", "सड़ेला सिस्टम", "अल्पमत" या "कानूनी अड़चनें" पर फोड़ दो और सत्ता पर डटे रहो ... फिर भी बात न बने और असलियत खुलने को हो तो इस्तीफा देकर शहीद बन जाओ ... और फिर ...

... और फिर यदि न घर के रहो न घाट के तो केजरीवाल-टर्न लेकर जनता से फिर अपना पद मांगने लगो ... इस देश की जनता बड़ी भावुक है, छः महीने में किसी के भी कुकर्म भुला देती है।

अब कुछ सामयिक पंक्तियाँ / एक कविता
हर चुनाव के लिए मुकर्रर हो
 एक सपना
 हर बार नया
 जो दिखाये
 शिखर की ऊँचाइयाँ
 साथ ही रक्खे
 जमीनी सच्चाईयों से
 बेखबर ....
 
बाबा रामदेव के मंच से सात दिन में शीला दीक्षित की सरकार के लोगों के खिलाफ अदालती आदेश लाने का वायदा
* संबन्धित कड़ियाँ *
केजरीवाल - दो साल की बिना काम की तनख्वाह - नौ लाख रुपये
आतंकवाद पर सवाल किया तो स्टूडियो छोड़कर भागे केजरीवाल
साँपनाथ से बचने को नागनाथ पालने की गलतियाँ
दलाल और "आप" की टोपी
केजरीवाल कम्युनिस्ट हैं - प्रकाश करात
अग्निवेश का असली चेहरा
किरण ने जो किया वह न तो चोरी है न भ्रष्टाचार - केजरीवाल

Saturday, November 2, 2013

कुबेर ऐडविड (कुबेर वैश्रवण) उत्तर के दिक्पाल

कुबेर का चित्र: विकिपीडिया के सौजन्य से
वयं यक्षाम: का मंत्र देने वाले यक्षराज कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं। उनकी राजधानी हिमालय क्षेत्र के अलकापुरी में स्थित है। यक्ष समुदाय जलस्रोतों और धन संपत्ति का संरक्षक है। विश्रवस्‌ ऋषि और उनकी पत्नी इळविळा के पुत्र कुबेर की पत्नी हारिति है। भारत में हर पूजा से पहले दिक्पालों की पूजा का विधान है जिसमें उत्तर के दिक्पाल होने के कारण कुबेर की पूजा भी होती है। गहन तपस्या के बाद मरुद्गणों ने उन्हें यक्षों का अध्यक्ष बनाया और पुष्पक विमान भेंट किया। तपस्या का वास्तविक अर्थ क्या है?

निधिपति कुबेर के गण यक्ष हैं जो कि संस्कृत साहित्य में मनुष्यों से अधिक शक्तिशाली, ज्ञान की परीक्षा लेते हुए, निर्मम प्राणी हैं। जैन साहित्य में इन्हें शासनदेव व शासनदेवी भी कहा गया है। महाभारत के यक्षप्रश्न की याद तो हम सब को है। कुबेर की सम्मिलित प्रजा का नाम पुण्यजन है जिसमें यक्ष तथा रक्ष दोनों ही शामिल हैं। ।

महर्षि पुलस्त्य के पुत्र महामुनि विश्रवा ने भारद्वाज जी की कन्या इळविळा का पाणिग्रहण किया। उन्हीं से कुबेर की उत्पत्ति हुई। इसलिये उनका पूरा नाम कुबेर ऐडविड और कुबेर वैश्रवण है। विश्रवा की दूसरी पत्नी, दैत्यराज माली की पुत्री कैकसी के रावण, कुंभकर्ण और विभीषण हुए जो कुबेर के सौतेले भाई थे। विश्रवा की पुत्रों में कुबेर सबसे बड़े थे। रावण ने अपनी मां और नाना से प्रेरणा पाकर कुबेर का पुष्पक विमान और उनकी स्वर्णनगरी लंकापुरी तथा समस्त संपत्ति पर कब्जा करने के हिंसक प्रयास किए।

रावण के अत्याचारों से चिंतित कुबेर ने जब अपने एक दूत को रावण के पास क्रूरता त्यागने के संदेश के साथ भेजा तो रावण ने क्रुद्ध होकर उस दूत को मार-काटकर अपने सेवक राक्षसों को खिला दिया। यह घटनाक्रम जानकर कुबेर को दुख हुआ। अंततः यक्षों और राक्षसों में युद्ध हुआ। बलवान परंतु सरल यक्ष, मायावी, नृशंस राक्षसों के आगे टिक न सके, राक्षस विजयी हुए। रावण ने माया से कुबेर को घायल करके उनका पुष्पक विमान ले लिया। कुबेर अपने पितामह पुलत्स्य के पास गये। पितामह की सलाह पर कुबेर ने गौतमी के तट पर शिवाराधना की। फलस्वरूप उन्हें 'धनपाल' की पदवी, पत्नी और पुत्र का लाभ हुआ। कुछ जनश्रुतियों के अनुसार कुबेर का एक नेत्र पार्वती के तेज से नष्ट हो गया, अत: वे एकाक्षीपिंगल भी कहलाए। तपस्थली का वह स्थल कुबेरतीर्थ और धनदतीर्थ नाम से विख्यात है। ब्रजक्षेत्र में स्थित माना जाने वाला यह तीर्थ कहाँ है?

धनार्थियों के लिए कुबेर पूजा का विशेष महत्व है। परंपरा के अनुसार लक्ष्मी जी चंचला हैं, कभी भी कृपा बरसा देती हैं। लेकिन कुबेर संसार की समस्त संपदा के रक्षक हैं। उनकी अनिच्छा होते ही धन-संपदा अपना स्थान बदल लेती है। समस्त धन के संरक्षक कुबेर की मर्जी न हो तो लक्ष्मी चली जाती हैं। दीपावली पर बहीखाता पूजन के साथ कुबेर पूजन, तुला पूजन तथा दीपमाला पूजन का भी रिवाज है। महाराज कुबेर के कुछ मंत्र:
आह्वान मंत्र: आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु। कोशं वर्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।
कुबेर मंत्र: ॐ कुबेराय नम:
कुबेर मंत्र: धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च। भगवान् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पद:।।
अष्टाक्षर कुबेर मंत्र: ॐ वैश्रवणाय स्वाहा।
षोडशाक्षर कुबेर मंत्र: ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नम:
पंच्चात्रिशदक्षर कुबेर मंत्र - ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।


और हाँ, भारतीय रिज़र्व बैंक के आगे कुबेर की नहीं, यक्ष और यक्षी/यक्षिणी की मूर्ति है। और हँसता हुआ चीनी लाफिंग बुद्धा भी बुद्ध नहीं बल्कि शायद एक यक्ष है। और हाँ, बाबा शोभन सरकार को शायद कुबेर पूजन की ज़रूरत है।
तमसो मा ज्योतिर्गमय
दीपावली की शुभकामनायें। आपका जीवन ज्योतिर्मय हो!

दिग्दर्शक मिलता नहीं खुद राह गढ़ने चल पड़े
सूरज नहीं चंदा नहीं कुछ दीप मिलकर जल पड़े

Tuesday, October 29, 2013

केसर पुष्प - इस्पात नगरी से [66]

खबर आई कि केसर (Saffron, ज़ाफ़रान) की खेती की पहचान बनाने के उद्देश्य से आज 29 अक्तूबर 2013 मंगलवार को विस्सु, जम्मू-कश्मीर में राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित केसर मेला धूमधाम से शुरू हुआ है। केसर उगाने वाले किसान और बड़ी संख्या में पर्यटक भी उपस्थित थे। 

डेढ़ सौ से अधिक सुगन्धित रसायनों से भरा केसर संसार के सबसे महंगे मसालों में से एक है। इसका स्वाद मुझे कोई ख़ास पसंद नहीं लेकिन कुछ साल पहले यूँ ही मन में आया कि पिट्सबर्ग की जलवायु इसे उगाने के अनुकूल होने का लाभ उठाया जाए। बोने के लिए खोज शुरू की गयी और फिर एक ऑनलाइन स्टोर से केसर की गांठें (bulbs) मंगाई गईं।


अगस्त के महीने में थैले में बंधी हुई गाँठें आ गईं। बाहर बाग में लग भी गईं। कुछ ही दिन में उनमें घास जैसे पत्ते भी आ गए। लेकिन उस साल बहुत बर्फ  पड़ने के कारण पौधे बर्फ से ढँके रहे। चूंकि गाँठें हर वर्ष नई हो जाती हैं इसलिए केसर के फूलों की आशा को अगले वर्ष पर टाल दिया गया। लेकिन उस साल जब कुछ नहीं उगा तो अगले साल नई गाँठें लाकर उन्हें घर के अंदर गमलों में उगाया। कुछ फूल आए तो साहस बढ़ा।

 





तरह तरह के गमले, तरह तरह के फूल

सीजन पूरा होने पर मैंने गमले खाली करके गाँठों को ज़मीन में प्रतिरोपित कर दिया और भूल गया। पिछले हफ्ते यूँ ही घास के बीच नीले फूल पर नज़र गई। अरे वाह, यह तो केसर ही लग रहा है।  

एक-एक करके कुछ फूल आ गए हैं। तीन तो खिल भी चुके हैं। एक दो दिन खिलकर मुरझा जाएंगे। तब तक केसर की खुशबू और सौन्दर्य का आनंद ले रहा हूँ।


नीली पंखुड़ियों के अंदर लंबे वाले गहरे लाल तन्तु ही केसर हैं, संसार का सबसे महंगा मसाला।

    
यह प्रयोग सफल होने के बाद मैंने अधिक मात्रा में केसर कंद मंगाए और खुद लगाने के अलावा 50 से अधिक कंद व गमले में लगे पौधे अपने मित्रों, पड़ोसियों, व सहकर्मियों में बाँटे जिनमें से चार-पाँच ने उनके पुष्पित होने की सूचना भी दी। 

[आलेख व चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Photos by Anurag Sharma]
* सम्बन्धित कड़ियाँ *
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला
* कश्मीर का केसर

Saturday, October 5, 2013

भविष्यवाणी - कहानी [भाग 4]

कहानी भविष्यवाणी में अब तक आपने पढ़ा कि पड़ोस में रहने वाली रूखे स्वभाव की डॉ रूपम गुप्ता उर्फ रूबी को घर खाली करने का नोटिस मिल चुका था। उनका प्रवास भी कानूनी नहीं कहा जा सकता था। समस्या यह थी कि परदेस में एक भारतीय को कानूनी अड़चन से कैसे निकाला जाय। रूबी की व्यंग्योक्तियाँ और क्रूर कटाक्ष किसी को पसंद नहीं थे, फिर भी हमने प्रयास करने की सोची। रूबी ने अपनी नौकरी छूटने और बीमारी के बारे में बताते हुए कहा कि उसके घर हमारे आने के बारे में उसे शंख चक्र गदा पद्मधारी भगवान् ने इत्तला दी थी। बहकी बहकी बातों के बीच वह कहती रही कि भगवान् ने उसे बताया है यहाँ गैरकानूनी ढंग से रहने पर भी उसे कोई हानि नहीं होनी है जबकि भारत के समय-क्षेत्र में प्रवेश करते ही वह मर जायेगी। उसके हित के लिए हमने भी एक खेल खेलने की सोची।
भाग १ , भाग २ , भाग ३ ; अब आगे की कथा:
(चित्र व कथा: अनुराग शर्मा)

"भगवान् मेरे सामने आकर बताते हैं सारी बात?" वह आत्मविश्वास से बोली, "ठीक वैसे ही जैसे आप खड़े हैं यहाँ।"

"अच्छा! लेकिन हमें तो आज उन्होंने यह बताया कि आप उनकी बात ठीक से समझ नहीं पा रही हैं। जैसा कि आपको पता है, उन्होंने ही हमें यहाँ आकर आपकी सहायता करने को कहा है।"

"मुझे तो ऐसा कुछ बोले नहीं।"

"बोले तो थे मगर आप समझीं ही नहीं। उन्होंने आपको कई बार बताने की कोशिश की कि वीसा के लिए पुलिस द्वारा न पकड़ा जाना एक सामान्य बात है, लेकिन घर आखिर घर ही होता है। ऐसा न होता तो अपार्टमेंट मैनेजमेंट आपको निकालने का नोटिस ही क्यों भेजता? भगवान् आपको बेघर थोड़ी करना चाहेंगे।"

"आपकी बात गलत है। भगवान् ने ही इन्हें नोटिस भेजने को कहा। ये अपना अपार्टमेंट खाली करायेंगे तभी तो भगवान् मझे खुद आकर लेके जायेंगे।"

उसके आत्मविश्वास को देख मेरा माथा ठनका। खासकर खुद ले जाने की बात सुनकर। मैं जानना चाहता था कि कहीं वह कोई आत्मघाती गलती तो नहीं करने वाली। अगर उसे त्वरित मानसिक सहायता की ज़रुरत है तो उसमें देर नहीं होनी चाहिए थी।"

कैसे ले जायेंगे वे आपको?

"यहाँ से" उसने खिड़की की और इशारा करते हुए कहा।

"क्या?" मैं अवाक था, अगर यह खिड़की से कूदी तो कुछ भी नहीं बचने वाला।

"हाँ ..." मुझे खिड़की के पास ले जाकर उसने बड़े से पार्किंग लॉट के दूर के एक खंड को इंगित करके बताया कि भगवान् का विमान उसे लेने आने पर वहीं रुकेगा।

" ... यहाँ से उनका विमान आयेगा और मुझे अपने साथ ले जाएगा" वह तुनकी, "आपको विश्वास नहीं आया? आप तो कह रहे थे कि भगवान् आपसे भी बात करते हैं।"

"हाँ, बात भी करते हैं और आपको ले जाने की बात भी बताई थी। साथ ही यह भी बोले कि आपके बारे में उनके मन में एक दूसरा प्लान भी है।" मैंने भी एक पत्ता फेंका, "पूरी बात वे अगले सप्ताह तक ही बताएँगे।"

"मुझे भी उनकी बात ठीक से समझ नहीं आई थी ..." वह रुकी, फिर झिझकते हुए बोली, "मैं एमबीबीएस पीएचडी ज़रूर हूँ, लेकिन स्मार्ट बिलकुल नहीं हूँ। सीधी बात भी बड़ी देर से समझ आती है मुझे।"

"अच्छा!" मैंने  अचम्भे का अभिनय क्या, "पढाई कहाँ से की थी आपने?"

कुछ देर वहां रुककर मैंने बातों बातों में उससे उसके बारे में सारी ज़रूरी जानकारी हासिल कर ली। रूबी ने पीएचडी तो फ्रांस में की थी लेकिन भारत में उसका मेडिकल कॉलेज संयोग से वही निकला जो रोनित का था। घर आकर मैंने सबसे पहले रोनित को फोन किया। मैं रूबी को जानता हूँ और वह मेरी पड़ोसन है, यह सुनकर रोनित को आश्चर्य हुआ। उसके हिसाब से तो रूबी का केस एकदम होपलेस था। वह रोनित से सीनियर थी इसलिए उन दोनों का व्यक्तिगत परिचय तो नहीं था लेकिन रूबी की मानसिक अस्थिरता सारे कॉलेज में मशहूर थी। रोनित के अनुसार रूबी से बुरी तरह पक गए प्रबंधन और फैकल्टी का सारा जोर उसे जल्दी से जल्दी डिग्री थमाकर बाहर का रास्ता दिखाने में था। स्थिति की गंभीरता को समझकर उसने अपने कोलेज के सभी पुराने संबंधों को खड़काकर रूबी के परिवार से सम्बंधित जानकारी जल्दी ही निकालकर मुझे देने का वायदा किया। फोन रखते ही मैंने इंटरनेट खंगालना शुरू कर दिया।

उसकी नौकरी में सहायता के उद्देश्य से देर रात जब तक मैंने इंटरनेट की सहायता से उसकी प्रोफेशनल प्रोफाइल और रिज्यूमे तैयार की, रोनित का फोन आया। उसने बताया कि उसे रूबी के परिवार की पूरी जानकारी मिल गयी थी। उसके माँ-बाप इस दुनिया में नहीं थे और इकलौती बहन तो फोन पर उसका नाम सुनते ही रोनित पर चढ़ बैठी. उसने तो फोन पर रूबी को अपनी बहन मानने से भी इनकार कर दिया और रोनित को चेतावनी दी कि दोबारा फोन आने पर पुलिस में जायेगी।

बस एक व्यक्ति है। नंबर मिल गया है लेकिन तुमसे बात किये बिना उसे फोन करना मैंने ठीक नहीं समझा। तुम चाहो तो अभी बात कर सकते हैं।

इसका कौन है वह?

"उसका पति है ... उनके संबंधों की ज़्यादा जानकारी नहीं मिली है, लेकिन यह पक्का है कि वे हैं पति-पत्नी" फिर कुछ रूककर बोला, " ... वैसे जब उसकी सगी बहन उसका नाम सुनते ही इतना भड़क गयी तो पति का भी क्या भरोसा।

"वह खुद भारत जाने का मतलब अपनी मौत बताती है। भारत में भरोसे का कोई संबंधी नज़र नहीं आता। यहाँ अगर नौकरी फिर से बन जाए तो सारा झंझट ही ख़त्म।" मैंने सुझाव दिया।

"हाँ, यही करके देखते हैं। वैसे तो बड़ी विशेषज्ञ है वह। दुनिया के सबसे बड़े जर्नल्स में छप चुकी है। भगवान् जाने, काम पर क्या तमाशा किया होगा।"

कथा का अगला भाग

Friday, October 4, 2013

पितृ पक्ष - महालय

साल के ये दो सप्ताह - इस पखवाड़े में हज़ारों की संख्या में वानप्रस्थी मिशनरी पितर वापस आते थे अपने अपने बच्चों से मिलने, उनको खुश देखकर खुशी बाँटने, आशीष देने. साथ ही अपने वानप्रस्थ और संन्यास के अनुभवों से सिंचित करने। दूर-देश की अनूठी संस्कृतियों की रहस्यमयी कथाएँ सुनाने। रास्ते के हर ग्राम में सम्मानित होते थे। जो पितर ग्राम से गुज़रते वे भी और जो संसार से गुज़र चुके होते वे भी, क्योंकि मिलन की आशा तो सबको रहती थी। कितने ही पूर्वज जीवित होते हुए भी अन्यान्य कारणों से न आ पाते होंगे, कुछ जोड़ सूनी आँखें उन्हें ढूँढती रहती होंगी शायद।

साल भर चलने वाले अन्य उत्सवों में ग्रामवासी गृहस्थ और बच्चे ही उपस्थित होते थे क्योंकि 50+ वाले तो संन्यासी और वानप्रस्थी थे। सो उल्लास ही छलका पड़ता था, जबकि इस उत्सव में गाम्भीर्य का मिश्रण भी उल्लास जितना ही रहता था। समाज से वानप्रस्थ गया, संन्यास और सेवा की भावना गयी, तो पितृपक्ष का मूल तत्व - सेवा, आदर, आद्रता और उल्लास भी चला गया।

भारतीय संस्कृति में ग्रामवासियों के लिए उत्सवों की कमी नहीं थी। लेकिन वानप्रस्थों के लिए तो यही एक उत्सव था, सबसे बड़ा, पितरों का मेला। ज़ाहिर है ग्रामवासी जहाँ पितृपूजन करते थे वहीं पितृ और संतति दोनों मिलकर देवपूजन भी करते थे। विशेषकर उस देव का पूजन जो पितरों को अगले वर्ष के उत्सव में सशरीर आने से रोक सकता था। यम के विभिन्न रूपों को याद करना, जीवन की नश्वरता पर विचार करते हुए समाजसेवा की ओर कदम बढ़ाना इस पक्ष की विशेषता है। अपने पूर्वजों के साथ अन्य राष्ट्रनायकों को याद करना पितृ पक्ष का अभिन्न अंग है। मृत्यु की स्वीकृति, और उसका आदर -
मालिन आवत देखि करि, कलियाँ करीं पुकार। फूले फूले चुन लिए, काल्हि हमारी बार।। ~ कबीर

केवल अपनी वंशरेखा के पितर ही नहीं, बल्कि परिवार में निःसंतान मरे लोगों के साथ-साथ गुरु. मित्र, सास, ससुर आदि के श्राद्ध की परम्परा याद दिलाती है कि कृतज्ञता भारतीय सभ्यता के केंद्र में है। अविवाहित और निःसंतान रहे भीष्म पितामह का श्राद्ध सभी वर्णों द्वारा किया जाना भी अपने रक्त सम्बंध और जाति-वर्ण आदि से मुक्त होकर हुतात्माओं को याद करने की रीति से जोड़ता है। मैं और मेरे के भौतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर, आज और अभी के लाभ को भूलकर, हमारे और सबके, बीते हुए कल के सत्कृत्यों और उपकार को श्रद्धापूर्वक स्मरण करने का प्रतीक है श्राद्ध।

आज पितृविसर्जनी अमावस्या को अपने पूर्वजों को विदा करते समय उनके सत्कर्मों को याद करने का, उनके अधूरे छूटे सत्संकल्पों को पूरा करने का निर्णय लेने का दिन है।

क्षमा प्रार्थना
अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया। दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर।।
गतं पापं गतं दु:खं गतं दारिद्रयमेव च। आगता: सुख-संपत्ति पुण्योऽहं तव दर्शनात्।

पिण्ड विसर्जन मन्त्र
ॐ देवा गातुविदोगातुं, वित्त्वा गातुमित। मनसस्पतऽइमं देव, यज्ञ स्वाहा वाते धाः॥

पितर विसर्जन मन्त्र - तिलाक्षत छोड़ते हुए
ॐ यान्तु पितृगणाः सर्वे, यतः स्थानादुपागताः ।। सर्वे ते हृष्टमनसः, सवार्न् कामान् ददन्तु मे॥ ये लोकाः दानशीलानां, ये लोकाः पुण्यकर्मणां ।। सम्पूर्णान् सवर्भोगैस्तु, तान् व्रजध्वं सुपुष्कलान ॥ इहास्माकं शिवं शान्तिः, आयुरारोगयसम्पदः ।। वृद्धिः सन्तानवगर्स्य, जायतामुत्तरोत्तरा ॥

देव विसजर्न मन्त्र - पुष्पाक्षत छोड़ते हुए
ॐ यान्तु देवगणाः सर्वे, पूजामादाय मामकीम्। इष्ट कामसमृद्ध्यर्थ, पुनरागमनाय च॥

सभी को नवरात्रि पर्व पर हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएँ!

Tuesday, September 24, 2013

शव पुष्प - इस्पात नगरी से [65]

क्या आप बता सकते हैं कि भारत का सबसे बड़ा पुष्प कौन सा होता है और कहाँ पाया जाता है?
जब तक आप उत्तर ढूंढें, संसार के सबसे बड़े पुष्प से पिट्सबर्ग में हुई मेरी संक्षिप्त मुलाक़ात से प्राप्त जानकारी यहाँ देख और पढ़ सकते हैं. आकार के मामले में संसार का सबसे बड़ा सुमन भारत के पूर्व में सुमात्रा द्वीप में प्राकृतिक रूप से बड़ी मात्रा में उगता है. प्याज लहसुन की तरह ही यह पौधा गाँठ/बल्ब से उगता है. स्वरुप भी लगभग वैसा ही है. फूल के पल्लवित होने पर उसमें से तीव्र दुर्गन्ध भी आती है ताकि मक्खी, भुनगे आदि आकर उसके परागण में सहायता करें. गाँठ वाले अधिकाँश पौधों की तरह ही अपना पल्लवन-चक्र पूरा होने के बाद यह पौधा सतह के ऊपर से फिर गायब हो जाता है, अगले चक्र के इंतज़ार में. इस दुस्सह दुर्गन्ध के कारण ही इस फूल को शव पुष्प (corpse flower) कहा जाता है.

परिपक्व पौधे में बस एक ही पत्ती होती है

पौधे में पहला फूल आने में 8-10 साल लग जाते हैं

पित्त्स्बर्ग में खिलते पुष्प के मार्ग में मजाकिया सन्देश लगाने का प्रयास

शव पुष्प की ऊंचाई 8 से 20 फीट तक हो सकती है

सुमात्रा के बाहर पहली बार यह पुष्प लन्दन में 1889 में खिला और 1937 में पहली बार अमेरिका में.

कहीं सुना था, "जिन लाहौर नहीं वेख्या ..." लेकिन प्रकृति के चमत्कार देखकर लगता है कि अपने संसार को लाहौर तक सीमित रखना शायद ठीक नहीं है. फ़िप्स कंजर्वेटरी, पिट्सबर्ग में इस साल "रोमेरो" नामक एक फूल के विकास के क्रम को एक स्टिल कैमरा द्वारा नियमित अंतराल पर लिए गए चित्रों से एक विडिओ क्लिप में गतिमान किया गया है जो कि यूट्यूब पर उपलब्ध है और मैंने भी यहाँ एम्बेड की है ताकि आप उसका आनंद ले सकें.




[आलेख व चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Photos by Anurag Sharma]
* सम्बन्धित कड़ियाँ *
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला

Saturday, September 21, 2013

भविष्यवाणी - कहानी [भाग 3]

कहानी भविष्यवाणी में अब तक आपने पढ़ा कि पड़ोस में रहने वाली रूखे स्वभाव की डॉ रूपम गुप्ता उर्फ रूबी को घर खाली करने का नोटिस मिल चुका था। उनका प्रवास भी कानूनी नहीं कहा जा सकता था। समस्या यह थी कि परदेस में एक भारतीय को कानूनी अडचन से कैसे निकाला जाय। रूबी की व्यंग्योक्तियाँ और क्रूर कटाक्ष किसी को पसंद नहीं थे, फिर भी हमने प्रयास करने की सोची। रूबी ने कहा कि हमारे उसके घर आने के बारे में उसे शंख चक्र गदा पद्मधारी भगवान् ने इत्तला दी थी।
भाग १
भाग २
अब आगे की कथा:
"और क्या क्या बताया था आपके शंख चक्र गदा पद्मधारी भगवान् ने?" मैंने पूछा

"अपने को हुशियार समझते, आयेंगे समझाने लोग ..." उसने तुनककर कहा

"आप स्थिति की गंभीरता को नहीं समझ रही हैं। यदि व्यवस्था को पता लगा कि आपका कार्य-वीसा वैलिड नहीं रहा है, तो आपको वापस भेज देंगे।"

"मेरे साथ यह नहीं होने वाला. कार्य दूर, मेरा तो वीसा ही छः महीने पहले ख़त्म हो गया था। होना होता तो अब तक जेल भी हो सकती थी।"

"हाँ, यह तो गनीमत है आप अमेरिका में हैं। और कोई देश होता तो वीसा के बिना अब तक न जाने क्या दुर्दशा हुई होती। लेकिन गैरकानूनी होना तो कहीं भी सही नहीं है। आपके लिए भारत वापस जाना ही सही है। आप परेशान न हों, हम आपके टिकट की व्यवस्था कर देंगे।"

"मैंने आपका क्या बिगाड़ा है? आप मुझसे परेशान हैं? मुझे मारना चाहते हैं?

"नहीं, आपके पास वापसी का टिकट नहीं है, हम घर वापस जाने में आपकी मदद करना चाहते हैं। बस इतनी सी बात है।" समझाने की कमान इस बार श्रीमती जी ने संभाली।

"टिकट दिलाने में मरने-मारने की बात कहाँ से आ गयी?" पूछे बिना रहा नहीं गया मुझसे।

उसने मेरी और ऐसे देखा जैसे संसार में मुझसे बड़ा नादान कोई और न हो। फिर कुछ सोचकर मेरे पास आई और बोली, "इतना समझ लो कि मैं बस उतने दिन ही ज़िंदा हूँ, जितने दिन यहाँ हूँ। आइएसटी (IST भारतीय समय) मेरा काल है और ईएसटी (EST पूर्वोत्तर अमेरिका का स्थानीय समय) मेरा जीवनकाल. मुझे भारत भेजने की बात करने वाला मेरा हत्यारा ही होगा।"

"मुझे कुछ समझ नहीं आया, ठीक से समझायेंगी?"

"जिम में तो आप देखते थे न मुझे? स्विमिंग पूल में भी देखती थी मैं आपको ..."

मुझे याद आया कि अकस्मात नज़र मिलने पर मुस्कान का जवाब तो दूर, मुँह चिढाकर नज़र फेर लेती थी वह।

" ... मेरी नौकरी ऐसे ही नहीं ख़त्म हुई है, वह सब एक षड्यंत्र था मेरे खिलाफ। दुर्घटना हुई थी, फिजियोथेरेपी भी कराती थी मैं और स्विमिंग, योगा, सब तरह के व्यायाम भी करती थी।"

"तो?"

"तो, यह दर्द ठीक होने वाला नहीं। अब मैं नौकरी नहीं कर सकती। भगवान् ने बताया कि इंडिया जाते ही मर जाऊंगी।"

"अच्छा, कैसे बताया भगवान् ने?" मुझे रास्ता सूझने लगा था। अब आगे की योजना ज़्यादा कठिन नहीं लगी, "... भगवान् कान में बोले थे कि चिट्ठी भेजी थी?"

[क्रमशः]
 

Wednesday, September 11, 2013

त्सुकूबा पर्वत - एक तीर्थयात्रा जापान में

(आलेख व चित्र: अनुराग शर्मा)

कुछ समय पहले की एक पोस्ट "अई अई आ त्सुकू-त्सुकू" में हम मिले थे त्सुकूबा नगर के कुछ विशिष्ट पक्षियों से। आइये आज चलते हैं त्सुकूबा पर्वत की एक तीर्थ यात्रा पर।  

रास्ते से त्सुकूबा पर्वत का दृश्य
जापानी दंतकथाओं के अनुसार, हज़ारों वर्ष पहले एक देवी ने जापान के दो प्रमुख पर्वतों से धरा पर अवतरित होने की अपनी इच्छा प्रकट की । सर्वोच्च शिखर वाले फूजी पर्वत ने देवी के आशीर्वाद की कोई ज़रूरत न समझते हुए अहंकार पूर्वक न कर दी जबकि स्कूबा पर्वत ने विनम्रता से देवी का स्वागत भोजन व जल के साथ किया। समय बीतने पर माऊंट फूजी अपने गर्व और ठंडे स्वभाव के कारण बर्फीला और बंजर हो गया जबकि स्कूबा पर्वत हरियाली और रंगों की बहार से आच्छादित बना रहा ।

जापानी ग्रंथों के अनुसार उनके प्रथम पूर्वज दंपत्ति श्रीमती इजानामी और श्री इजानागी नो मिकोतो इसी पर्वत के नन्ताई और न्योताई शिखरों पर रहते थे। मिथकों के अनुसार जापान राष्ट्र इन्हीं दोनों की संतति है। दोनों चोटियों पर इनके भव्य स्वर्णजटित काष्ठ मंदिर आज भी हैं।

त्सुकूबा सान पर्वत परिसर का तोरणद्वार
अपनी संक्षिप्त जापान यात्रा में स्कूबा पर्वत का दर्शन मेरी एक ऐसी उपलब्धि रही जिसे आपके साथ बाँटना चाहूँगा। इसके शिखर-युग्म नन्ताई सान तथा न्योताई सान क्रमशः 871 व 877 मीटर ऊँचे हैं। स्कूबा पर्वत को जापानी भाषा में त्सुकुबासान (Tsukubasan) कहते हैं। स्कूबा पर्वत की बहुत सी विशेषताएँ हैं। उदाहरण के लिए जापान के अधिकांश पर्वतों के विपरीत यह ज्वालामुखी नहीं है। मुख्यतः गैब्रो और ग्रेनाईट से बना हुआ यह हरा-भरा पर्वत जापान के मुख्य पर्वतों में से एक है। दूर से नीलगिरी जैसे दिखने वाले इस पर्वत को स्थानीय भाषा में "बैंगनी" पर्वत भी कहते हैं।

सुबह अपने कमरे से निकलकर होटल की लॉबी में पहुँचा तो वहाँ उत्सव का सा माहौल था। एक किनारे पर साज सज्जा के साथ एक विकराल सी मूर्ति भी लगी थी। पूछने पर पता लगा कि जापानी योद्धा (समुराई) की यह मूर्ति बालक दिवस के प्रतीक के रूप में लगाई गयी है।

त्सुकूबा के टोड देवता
बाहर आकर टैक्सी ली। स्कूबा सान कहते ही ड्राइवर ने जोर से "हई" कहा और चल पडा। पथ भारत के किसी उपनगर जैसा ही था मगर बहुत साफ़ और स्पष्ट। भीड़-भाड़ और शोर भी नहीं था। नगर से बाहर का परिदृश्य भारत के किसी ग्रामीण इलाक़े जैसा ही था। दूर-दूर तक फैले खेतों के बीच में खपरैल पड़े एक या दोमंजिला घरों के समूह। कई घरों के आगे भारत की तरह ही स्कूटर या छोटी-बड़ी कारें दिख रही थीं मगर कुत्ता, बिल्ली, गाय, घोड़ा आदि नज़र नहीं आया। अब समझ में आया कि जापानी ऑटोमोबाइल उद्योग को इतनी तरक्की क्यों करनी पडी? थोड़ी देर बाद टैक्सी पहाड़ पर चढ़ने लगी। सड़क सँकरी हो गयी और नैनीताल के रास्तों की याद दिलाने लगी। लगभग एक घंटे में हम त्सुकुबायामा पहुँचे जहाँ इजानामी देवी के मठ पर एक विशालकाय टोड की मूर्ति ने हमारा स्वागत किया। आठ हज़ार येन लेकर ड्राइवर ने जोर से "हई" कहा और चलता बना।

यहाँ से ऊपर जाने के लिए मैंने रोपवे लिया। बादलों से घिरे रोपवे से जिधर भी देखो अलौकिक दृश्य था। रोपवे से उतरने पर देखा कि पहाडी पर हर तरफ बर्फ छिटकी हुई थी। रोपवे से न्योताई सान मठ तक जाने के लिए पत्थरों को काटकर बनाई गयी सीढ़ियों की कठिन खड़ी चढ़ाई चढ़कर ऊपर पहुँचा तो देखा कि छोटे बड़े लोगों के अनेक समूह वहाँ पहले से उपस्थित थे और पर्वत शिखर पर खड़े प्राकृतिक दृश्यों का आनंद ले रहे थे।

त्सुकूबा पर्वत पर स्थित एक मठ का दृश्य
लकड़ी के बने हुए छोटे से मठ पर सुनहरी धातु (शायद सोना) का काम था। मठ के अधिष्ठाता देव इजानागी नो मिकोतो शायद अपने काष्ठ-कोष्ठक में विश्राम कर रहे थे इसलिए उनके दर्शन नहीं हुए। शिखर से घाटी का दृश्य मनोरम था परन्तु वहाँ ग्रेनाईट के चिकने प्रस्तरों से बने शिखर पर खड़े होने से सैकड़ों फीट गहरी सीधी ढलान में गिरने का भय सताने लगा सो हमने नन्ताई सान के केबिल कार स्टेशन तक पद-यात्रा का मन बनाया और बर्फ से ढँकी सँकरी पथरीली ऊबड़-खाबड़ पगडंडी पर चल पड़े। रास्ते में आते-जाते समूहों ने जब सर झुकाकर “कुन्निचिवा” कहा तो हमने भी मुस्कराकर उन्हें "नमस्ते" कह कर अचम्भे में ड़ाल दिया। रास्ते में एक छोटी सी मठिया ऐसी भी मिली जो मृत-जन्मा (stillborn) बच्चों को समर्पित थी। नन्ताई सान पहुँचकर हमने स्कूबा सान के मुख्य मठ तक जाने के लिए केबिल कार (incline) ली। चीड, ओक, चैरी, आलूबुखारे और अन्य हरे-भरे वृक्षों के बीच से गुज़रते हुए हम एक सुरंग से भी निकले और तेंतीस अंश के झुकाव पर लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी छः-सात मिनट में पूर्ण कर मुख्य मठ तक पहुँच गए।

स्कूबा सान का मुख्य मठ काफ़ी नीचाई पर ज़्यादा समतल जगह पर बना हुआ है और शिखरों पर बने मठों के मुकाबले काफ़ी बड़ा और भव्य है। इसके काष्ठ भवनों में जोड़ने के लिए धातु की कीलों के स्थान पर लकड़ी और रस्सी का ही प्रयोग हुआ है। मठ के आसपास की पगडंडियों के इर्द-गिर्द छोटे फेरी वाले खिलौने, कागज़ और लकड़ी की सज्जा वस्तुएँ बाँसुरी, घुँघरू, छड़ियाँ, के साथ-साथ मेंढक, उल्लू आदि की मूर्तियाँ भी बेच रहे थे। त्वचा को आकर्षक बनाने के लिए टोड का तेल भी मिल रहा था अलबत्ता ख़रीदते हुए कोई नहीं दिखा। पूछने पर पता लगा कि यह तेल टोड की त्वचा से निकलता है और इसकी प्राप्ति के लिए उसे मारा नहीं जाता है।

मुख्य मंदिर का परिसर द्वार
कुछ जोड़े पारंपरिक वेशभूषा में देवी का आशीर्वाद लेने आये हुए थे। दिखने में सब कुछ किसी पुराने भारतीय मंदिर जैसा लग रहा था मगर उस तरह की भीड़भाड़, शोरगुल और रौनक का सर्वदा अभाव था। मंदिर के बाहर ही प्रसाद में चढ़ाए जाने वाली मदिरा के काष्ठ-गंगालों के ढेर लगे हुए थे। एक बूढ़ी माँ अपनी पोती को मंदिर के आसपास की हर छोटी-बड़ी चीज़ से परिचित करा रही थीं।

मंदिर के जापानी देवदार से बने भव्य द्वार के दोनों और अस्त्र-शस्त्र लिए दो रक्षक खड़े थे। द्वार के ऊपर लकड़ी के और अन्दर पत्थर के हिम तेंदुए या शार्दूल जैसे कुछ प्राणी बने हुए थे। मंदिरों के इस प्रकार के पारंपरिक द्वार को जापानी भाषा में तोरी कहते हैं जोकि तोरण का अपभ्रंश हो सकता है। ज़िक्र आया है तो बता दूं कि भगवान् बुद्ध को जापानी में बुत्सु (या बडको) कहते हैं। कमाकुरा के अमिताभ बुद्ध (दाई-बुतसू = विशाल बुद्ध) तथा जापान की अन्य झलकियाँ भी आप बर्गवार्ता पर अन्यत्र देख सकते हैं।

यद्यपि मूल मंदिर काफ़ी प्राचीन बताया जाता है परन्तु मंदिर का वर्तमान भवन 1633 में तोकुगावा शोगुनाते साम्राज्य के काल में बनवाया गया था। इस मंदिर का काष्ठ शिल्प जापान के मंदिर स्थापत्य का एक सुन्दर नमूना है। मुख्य भवन के द्वार पर रस्सी के बंदनवार के बीच में जापानी शैली का घंटा टँगा हुआ था। मूलतः शिन्तो मंदिर होने के बावजूद पिछले पाँच सौ वर्षों से यह स्थल बौद्धों और सामान्य पर्यटकों का भी प्रिय है।
मेरे शब्दों में इस मंदिर की तारीफ़ शायद गूँगे के गुड जैसी हो इसलिए चित्र देखिये और स्कूबा पर्वत की वसंत-काल यात्रा का आनंद उठाइये। इस जापान यात्रा में काष्ठ-स्थापत्य और प्राकृतिक सौंदर्य के अतिरिक्त जिस एक बात ने मुझे मोहित किया वह है जापानियों की अद्वितीय विनम्रता।

(यह यात्रावृत्तान्त सृजनगाथा पर जनवरी 5, 2010 को प्रकाशित हो चुका है।)
अब देखें स्कूबासान की तीर्थयात्रा के कुछ नए चित्र

रोपवे स्टेशन

रोपवे स्टेशन कुछ और दूर जाने पर

एक और मठ

केबल कार

मार्ग की एक सुरंग

मुख्य मंदिर का काष्ठद्वार

एक छोटा मठ

एक काष्ठद्वार

काष्ठद्वार की सज्जा की एक झलक

जापानी अखबार में भारतीय मॉडल

Monday, September 2, 2013

भविष्यवाणी - कहानी [भाग 2]

(चित्र व कथा: अनुराग शर्मा)

कहानी भविष्यवाणी की पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि पड़ोस में रहने वाली रूखे स्वभाव की डॉ रूपम गुप्ता उर्फ रूबी को घर खाली करने का नोटिस मिल चुका था। उनका प्रवास भी कानूनी नहीं कहा जा सकता था। समस्या यह थी कि परदेस में एक भारतीय को कानूनी अडचन से कैसे निकाला जाय। अब आगे की कथा:


हम लोगों ने कुछ देर तक विमर्श किया। कई बातें मन में आईं। अपार्टमेंट प्रबंधन से बात तो करनी ही थी। यदि वे कुछ दिनों की मोहलत दें तो मैं स्थानीय परिचितों से मिलकर उसकी नई नौकरी ढूँढने में सहायता कर सकूँगा। लेकिन मेरा मन यह भी चाहता था कि रूबी को भारत वापस लौटाने का कोई साधन बने। टिकट खरीदकर देने में मुझे ज़्यादा तकलीफ नहीं थी। अगर कोई कानूनी अडचन होती तो किसी स्थानीय वकील से बात करने में भी मुझे कोई समस्या नहीं थी। श्रीमती जी उसके खाने पीने और अन्य आवश्यकताओं का ख्याल रखने को तैयार थीं।

शाम सात बजे के करीब हम दोनों उसके अपार्टमेंट के बाहर खड़े थे। मैंने दरवाजा खटखटाया। जब काफी देर तक कोई जवाब नहीं आया तो एक बार फिर कोशिश की। फिर कुछ देर रूककर इंतज़ार किया और वापस मुड़ ही रहे थे कि दरवाजा खुला। तेज़ गंध का एक तूफान सा उठा। सातवीं मंज़िल पर स्थित दरवाजे के ठीक सामने बिना पर्दे की बड़ी सी खिड़की से डूबता सूरज बिखरे बाल और अस्तव्यस्त कपड़ों में खड़ी रूबी के पीछे छिपकर भी अपनी उपस्थिति का बोध करा रहा था। उसने हमें अंदर आने को नहीं कहा। दरवाजे से हटी भी नहीं। बल्कि जब उसने हम दोनों पर प्रश्नवाचक दृष्टि डाली तो मुझे समझ ही नहीं आया कि क्या कहूँ। मुझे याद ही न रहा कि मैं वहाँ गया किसलिए था। श्रीमती जी ने बात संभाली और कहा, "कैसी हो? हम आपसे बात करने आए हैं।"

कुछ अनमनी सी रूबी ज़रा हिली तो श्रीमती जी घर के अंदर पहुँच गईं और उनके पीछे-पीछे मैं भी अंदर जाकर खड़ा हो गया। इधर उधर देखा तो पाया कि छोटा सा स्टुडियो अपार्टमेंट बिलकुल खाली था। पूरे घर में फर्नीचर के नाम पर मात्र एक स्लीपिंग बैग एक कोने में पड़ा था। दूसरे कोने में किताबों और कागज-पत्र का ढेर था। कपड़े घर भर में बिखरे थे। एक लैंडलाइन फोन अभी भी हुक्ड रहते हुए हमें मुँह सा चिढ़ा रहा था। घर में भरी ऑमलेट की गंध इतनी तेज़ थी कि यदि मैं सामने दिख रही बड़ी सी खिड़की खोलकर अपना सिर बाहर न निकालता तो शायद चक्कर खाकर गिर पड़ता।

एक गहरी सांस लेकर मैंने कमरे में अपनी उपस्थिति को टटोला। मैं कुछ कहता, इससे पहले ही एक कोने की धूल मिट्टी खा रहे रंगीन आटे से बने कुछ अजीब से टूटे-फूटे नन्हे गुड्डे गुड़िया पड़े दिखाई दिये। मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि वे क्या हैं, कि श्रीमती जी ने सन्नाटा तोड़ा,

"हम चाहते थे कि आज आप डिनर हमारे साथ ही करें।"

"आज तक तो कभी डिनर पर बुलाया नहीं, आज क्या मेरी शादी है?"

मुझे उसका बदतमीज़ अकखड़पन बिलकुल पसंद नहीं आया, "रहने दो!" मैंने श्रीमती जी से कहा।

"आपके पड़ोसी और भारतीय होने के नाते हमारा फर्ज़ बनाता है कि हम ज़रूरत के वक़्त एक दूसरे के काम आयें", मैं रूबी से मुखातिब हुआ। उसकी भावशून्य नज़रें मुझ पर गढ़ी थीं।"

"आप घबराइए नहीं, सब कुछ ठीक हो जाएगा।" श्रीमती जी का धैर्य बरकरार था।

"सब ठीक ही है। मुझे पता है!" एक लापरवाह सा जवाब आया।

"क्या पता है?" लगता है मैं बहस में पड़ने वाला था।

"कि आप आने वाले हैं मुझे समझाने ..."

"अच्छा! कैसे?"

"अभी मैं भगवान से बातें कर रही थी ..."

"भगवान से ?"

"हाँ! वे ठीक यहीं खड़े थे, इसी जगह ... शंख चक्र गदा पद्म लिए हुए। उन्होने ही बताया।"

उसका कटाक्ष मुझे इस बार भी पसंद नहीं आया। बल्कि एक बार तो मन में यही आया कि उसकी करनी उसे भुगतनी ही है तो हम लोग बीच में क्यों पड़ रहे हैं।


[क्रमशः]

Friday, August 30, 2013

भविष्यवाणी - कहानी [भाग 1]

(चित्र व कथा: अनुराग शर्मा)

रोज़ की तरह सुबह तैयार होकर काम पर जाने के लिए निकला। अपार्टमेंट का दरवाजा खोलते ही एक मानवमूर्ति से टकराया। एक पल को तो घबरा ही गया था मैं। अरे यह तो ... मेरे दरवाजे पर क्यों खड़ी थी? कितनी देर से? क्या कर रही थी? कई सवाल मन में आए। अपनी झुंझलाहट को छिपाते हुए एक प्रश्नवाचक दृष्टि उस पर डाली तो वह सकुचाते हुए बोली, "आपकी वाइफ घर पर हैं? उनसे कुछ काम था, आप जाइए।"

मुझे अहसास हुआ कि मैंने अभी तक दरवाजा हाथ से छोड़ा नहीं था, वापस खोलकर बोला, "हाँ, वह घर पर हैं, जाइए!"

दफ्तर पहुँचकर काम में ऐसा व्यस्त हुआ कि सुबह की बात एक बार भी मन में नहीं आई। शाम को घर पहुँचा तो श्रीमती जी एकदम रूआँसी बैठी थीं।

प्रवासी मरीचिका
"क्या हुआ?"

"सुबह रूबी आई थी ..."

"हाँ, पता है, सुबह मैं निकला तो दरवाजे पर ही खड़ी थी। वैसे तो कभी हाय हॅलो का जवाब भी नहीं देती। तुम्हारे पास क्यों आई थी वह?"

"बहुत परेशानी में है।"

"क्या हुआ है?"

"उसको निकाल रहे हैं अपार्टमेंट से ... कहाँ जाएगी वह?"

"क्यों?"

बात निकली तो पत्थर के नीचे एक कीड़ा नहीं बल्कि साँपों का विशाल बिल ही निकल आया। श्रीमती जी की पूरी बात सुनने पर जो समझ आया उसका सार यह था कि रूबी यानी डॉ रूपम गुप्ता पिछले एक वर्ष से बेरोजगार हैं। एक स्थानीय संस्थान की स्टेम सेल शोधकर्ता की नौकरी से बंधा होने के कारण उनका वीसा स्वतः ही निरस्त है इसलिए उनका यहाँ निवास भी गैरकानूनी है। खैर वह बात शायद उतनी खतरनाक नहीं है क्योंकि अमेरिका इस मामले में उतना गंभीर नहीं दिखता जितना उसे होना चाहिए। डॉ साहिबा के मामले में खराब बात यह थी कि उन्होने छः महीने से घर का किराया नहीं दिया और अब अपार्टमेंट प्रबंधन ने उन्हें अंतिम प्रणाम कह दिया है।

"कल उसे अपार्टमेंट खाली करना है। यहाँ से जाने के लिए टैक्सी बुक करनी थी। बिल की वजह से उसका फोन भी कट गया है, इसीलिए हमारे घर आई थी, फोन करने।"

"फोन नहीं घर नहीं, नौकरी नहीं, तो टैक्सी कैसे बुक की? और कहाँ के लिए? इस अनजान शहर, पराये देश में कहाँ जाएगी वह? कुछ बताया क्या?"

"क्या बताती? दूसरी ही दुनिया में खोई हुई थी। मैंने उसे कह दिया है कि हम लोग मिलकर कोई राह ढूँढेंगे।"

"कल सुबह आप बात करना मैनेजमेंट से, आपकी तो बात मानते हैं वे लोग। आज मैंने रूबी को रोक दिया टैक्सी बुलाने से। हमारे होते एक हिन्दुस्तानी को बेघर नहीं होने देंगे परदेस में।"

"कोशिश करने में कोई हर्ज़ नहीं है लेकिन नौकरी छूटते ही, कम से कम वीसा खत्म होने पर भारत वापस चले जाना चाहिए था न। इतने दिन तक यहाँ रहने का क्या मतलब है?"

"वह सब सोचना अब बेकार है। हम करेंगे तो कुछ न कुछ ज़रूर हो जाएगा।"

वैसे तो कभी सीधे मुँह बात नहीं करती। न जाने किस अकड़ में रहती है। फिर भी यह समय ऐसी बातें सोचने का नहीं था। मैंने सहज होते हुए कहा, "ठीक है। कल मैं बात करता हूँ। बल्कि कुछ सोचकर कानूनी तरीके से ही कुछ करता हूँ। अकेली लड़की दूर देश में किसी कानूनी पचड़े में न फँस जाये।"

[क्रमशः]