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हमारे ज़माने में लोग अपनी डायरी में इधर-उधर से सुने हुए शेर आदि लिख लेते थे और अक्सर मूल लेखक का नाम भूल भी जाते थे। आजकल कई मासूम लोग अपने ब्लॉग पर भी ऐसा कर बैठते हैं। मगर कई कवियों को दूसरों की कविताओं को अपने नाम से छाप लेने का व्यसन भी होता है। कहीं दीप्ति नवल की कविता छप रही है, कहीं जगजीत सिंह की गायी गयी गज़ल, और कहीं हुल्लड़ मुरादाबादी की पैरोडी का माल चोर ले जा रहे हैं। और कुछ नहीं तो चेन-ईमेल में आयी तस्वीरें ही छप रही हैं।
चेन ईमेल के दुष्प्रभावों के बारे में अधिकांश लोग जानते ही हैं। यह ईमेल किसी लुभावने विषय को लेकर लिखे जाते हैं और इन्हें आगे अपने मित्रों व परिचितों को फॉरवर्ड करने का अनुरोध होता है। ऐसे अधिकांश ईमेल में मूल विषय तक पहुँचने के लिये भी हज़ारों ईमेल पतों के कई पृष्ठों को स्क्रोल डाउन करना पडता है। हर नये व्यक्ति के पास पहुँचते हुए इस ईमेल में नये पते जुडते जाते हैं और भेजने वालों के एजेंट तक आते हुए यह ईमेल लाखों मासूम पतों की बिक्री के लिये तैयार होती है। ऐसे कुछ सन्देशों में कुछ बातें अंशतः ठीक भी होती हैं परंतु अक्सर यह झूठ का पुलिन्दा ही होते हैं। मेरी नज़रों से गुज़रे कुछ उदाहरण देखिये
* यूनेस्को ने 'जन गण मन' को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रगान बताया है
* ब्रिटिश संसद में लॉर्ड मैकाले का शिक्षा द्वारा भारत को दास बनाने का ड्राफ्ट
* गंगाधर नेहरू का असली नाम गयासुद्दीन गाजी था
* टाइम्स ऑफ इंडिया के सम्पादक ने मुम्बैया चूहा के नाम से पत्र लिखा
* ताजमहल तेजो महालय नामक शिव मन्दिर है
* हिटलर शाकाहारी था
* चीन की दीवार अंतरिक्ष से दिखने वाली अकेली मानव निर्मित संरचना है
ऐसे ईमेल सन्देशों पर बहुत सी ब्लॉग पोस्ट्स लिखी जा चुकी हैं और शायद आगे भी लिखी जायेंगी। फ़ॉरवर्ड करने और लिखने से पहले इतना ध्यान रहे कि बिना जांचे-परखे किसी बात को आगे बढाने से हम कहीं झूठ को ही बढावा तो नहीं दे रहे हैं। और हाँ, कृपया मुझे ऐसा कोई भी चेन ईमेल अन्धाधुन्ध फॉरवर्ड न करें।
जब ऐसी ही एक ईमेल से उत्पन्न "एक अफ्रीकी बालक की य़ूएन सम्मान प्राप्त कविता" एक पत्रकार के ब्लॉग पर उनके वरिष्ठ पत्रकार के हवाले से पढी तो मैंने विनम्र भाषा में उन्हें बताया कि यूएन में "ऐन ऐफ़्रिकन किड" नामक कवि को कोई पुरस्कार नहीं दिया गया है और वैसे भी इतनी हल्की और जातिवादी तुकबन्दी को यूएन पुरस्कार नहीं देगा। जवाब में उन्होंने बताया कि "जांच-पड़ताल कर ही इसे प्रकाशित किया गया है। कृपया आप भी जांच लें।" आगे सम्वाद बेमानी था।
भारत की दशा रातोंरात बदलने का हौसला दर्शाते कुछ हिन्दी ब्लॉगों पर दिखने वाली एक सामान्य भूल है भारत का ऐसा नक्शा दिखाना जिसमें जम्मू-कश्मीर राज्य का अधिकांश भाग चीन-पाकिस्तान में दिखाया जाता है। कई नक्शों में अरुणाचल भी चीन के कब्ज़े में दिखता है। नैतिकता की बात क्या कहूँ, कानूनी रूप से भी ऐसा नक्शा दिखाना शायद अपराध की श्रेणी में आयेगा। दुर्भाग्य से यह भूल मैंने वरिष्ठ बुद्धिजीवी, पत्रकारों और न्यायवेत्ताओं के ब्लॉग पर भी देखी है। जहाँ अधिकांश लोगों ने टोके जाने पर भूल सुधार ली वहीं एक वरिष्ठ शिक्षाकर्मी ब्लॉगर ने स्पष्ट कहा कि उन्होंने तो नक़्शा गूगल से लिया है।
मेरी ब्लॉगिंग के आरम्भिक दिनों में एक प्रविष्टि में मैंने नाम लिये बिना एक उच्च शिक्षित भारतीय युवक द्वारा अपने उत्तर भारतीय नगर के अनुभव को ही भारत मानने की बात इंगित की तो एक राजनीतिज्ञ ब्लॉगर मुझे अमेरिकी झंडे के नीचे शपथ लिया हुआ दक्षिण भारतीय कहकर अपना ज्ञानालोक फैला गये। उनकी खुशी को बरकरार रखते हुए मैंने उनकी टिप्पणी का कोई उत्तर तो नहीं दिया पर उत्तर-दक्षिण और देसी-विदेशी के खेमों में बंटे उनके वैश्विक समाजवाद की हवा ज़रूर निकल गयी। उसके बाद से ही मैंने ब्लॉग पर अपना प्रचलित उत्तर भारतीय हिन्दी नाम सामने रखा जो आज तक बरकरार है।
मेरे ख्याल से हिन्दी ब्लॉग में सबसे ज़्यादा लम्बी-लम्बी फेंकी जा रही है भारतीय संस्कृति, भाषा और सभ्यता के क्षेत्र में। उदाहरणार्थ एक मित्र के ब्लॉग पर जब हिन्दी अंकों के उच्चारण के बारे में एक पोस्ट छपी तो टिप्पणियों में हिन्दी के स्वनामधन्य व्यक्तित्व राजभाषा हिन्दी के मानक अंकों को शान से रोमन बता गये। अन्य भाषाओं और लिपियों की बात भी कोई खास फर्क नहीं है। भारतीय देवता हों, पंचांग हों, या शास्त्र, आपको हर प्रकार की अप्रमाणिक जानकारी तुरंत मिल जायेगी।
अब तक के मेरे ब्लॉग-जीवन में सबसे फिज़ूल दुर्घटना एक प्रदेश के कुछ सरल नामों पर हुई जिसकी वजह से सही होते हुए भी एक स्कूल से अपना नाम पर्मानैंटली कट गया। बाद में सम्बद्ध प्रदेश के एक सम्माननीय और उच्च शिक्षित भद्रपुरुष की गवाही से यह स्पष्ट हुआ कि स्कूल के जज उतने ज्ञानी नहीं थे जितने कि बताये जा रहे थे। उस घटना के बाद से अब तक तो कई जगह से नाम कट चुके हैं और शायद आगे और भी कटेंगे लेकिन मेरा विश्वास है कि विश्वसनीयता की कीमत कभी भी कम नहीं होने वाली।
हिन्दी ब्लॉगिंग में अपने तीन वर्ष पूरे होने पर मैं इस विषय में सोच रहा था लेकिन समझ नहीं आया कि हिन्दी ब्लॉगिंग में विश्वसनीयता और प्रामाणिकता की मात्रा कैसे बढ़े। आपके पास कोई विचार हो तो साझा कीजिये न।
हमारे ज़माने में लोग अपनी डायरी में इधर-उधर से सुने हुए शेर आदि लिख लेते थे और अक्सर मूल लेखक का नाम भूल भी जाते थे। आजकल कई मासूम लोग अपने ब्लॉग पर भी ऐसा कर बैठते हैं। मगर कई कवियों को दूसरों की कविताओं को अपने नाम से छाप लेने का व्यसन भी होता है। कहीं दीप्ति नवल की कविता छप रही है, कहीं जगजीत सिंह की गायी गयी गज़ल, और कहीं हुल्लड़ मुरादाबादी की पैरोडी का माल चोर ले जा रहे हैं। और कुछ नहीं तो चेन-ईमेल में आयी तस्वीरें ही छप रही हैं।
चेन ईमेल के दुष्प्रभावों के बारे में अधिकांश लोग जानते ही हैं। यह ईमेल किसी लुभावने विषय को लेकर लिखे जाते हैं और इन्हें आगे अपने मित्रों व परिचितों को फॉरवर्ड करने का अनुरोध होता है। ऐसे अधिकांश ईमेल में मूल विषय तक पहुँचने के लिये भी हज़ारों ईमेल पतों के कई पृष्ठों को स्क्रोल डाउन करना पडता है। हर नये व्यक्ति के पास पहुँचते हुए इस ईमेल में नये पते जुडते जाते हैं और भेजने वालों के एजेंट तक आते हुए यह ईमेल लाखों मासूम पतों की बिक्री के लिये तैयार होती है। ऐसे कुछ सन्देशों में कुछ बातें अंशतः ठीक भी होती हैं परंतु अक्सर यह झूठ का पुलिन्दा ही होते हैं। मेरी नज़रों से गुज़रे कुछ उदाहरण देखिये
* यूनेस्को ने 'जन गण मन' को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रगान बताया है
* ब्रिटिश संसद में लॉर्ड मैकाले का शिक्षा द्वारा भारत को दास बनाने का ड्राफ्ट
* गंगाधर नेहरू का असली नाम गयासुद्दीन गाजी था
* टाइम्स ऑफ इंडिया के सम्पादक ने मुम्बैया चूहा के नाम से पत्र लिखा
* ताजमहल तेजो महालय नामक शिव मन्दिर है
* हिटलर शाकाहारी था
* चीन की दीवार अंतरिक्ष से दिखने वाली अकेली मानव निर्मित संरचना है
पण्डित गंगाधर नेहरू |
जब ऐसी ही एक ईमेल से उत्पन्न "एक अफ्रीकी बालक की य़ूएन सम्मान प्राप्त कविता" एक पत्रकार के ब्लॉग पर उनके वरिष्ठ पत्रकार के हवाले से पढी तो मैंने विनम्र भाषा में उन्हें बताया कि यूएन में "ऐन ऐफ़्रिकन किड" नामक कवि को कोई पुरस्कार नहीं दिया गया है और वैसे भी इतनी हल्की और जातिवादी तुकबन्दी को यूएन पुरस्कार नहीं देगा। जवाब में उन्होंने बताया कि "जांच-पड़ताल कर ही इसे प्रकाशित किया गया है। कृपया आप भी जांच लें।" आगे सम्वाद बेमानी था।
भारत की दशा रातोंरात बदलने का हौसला दर्शाते कुछ हिन्दी ब्लॉगों पर दिखने वाली एक सामान्य भूल है भारत का ऐसा नक्शा दिखाना जिसमें जम्मू-कश्मीर राज्य का अधिकांश भाग चीन-पाकिस्तान में दिखाया जाता है। कई नक्शों में अरुणाचल भी चीन के कब्ज़े में दिखता है। नैतिकता की बात क्या कहूँ, कानूनी रूप से भी ऐसा नक्शा दिखाना शायद अपराध की श्रेणी में आयेगा। दुर्भाग्य से यह भूल मैंने वरिष्ठ बुद्धिजीवी, पत्रकारों और न्यायवेत्ताओं के ब्लॉग पर भी देखी है। जहाँ अधिकांश लोगों ने टोके जाने पर भूल सुधार ली वहीं एक वरिष्ठ शिक्षाकर्मी ब्लॉगर ने स्पष्ट कहा कि उन्होंने तो नक़्शा गूगल से लिया है।
मेरी ब्लॉगिंग के आरम्भिक दिनों में एक प्रविष्टि में मैंने नाम लिये बिना एक उच्च शिक्षित भारतीय युवक द्वारा अपने उत्तर भारतीय नगर के अनुभव को ही भारत मानने की बात इंगित की तो एक राजनीतिज्ञ ब्लॉगर मुझे अमेरिकी झंडे के नीचे शपथ लिया हुआ दक्षिण भारतीय कहकर अपना ज्ञानालोक फैला गये। उनकी खुशी को बरकरार रखते हुए मैंने उनकी टिप्पणी का कोई उत्तर तो नहीं दिया पर उत्तर-दक्षिण और देसी-विदेशी के खेमों में बंटे उनके वैश्विक समाजवाद की हवा ज़रूर निकल गयी। उसके बाद से ही मैंने ब्लॉग पर अपना प्रचलित उत्तर भारतीय हिन्दी नाम सामने रखा जो आज तक बरकरार है।
मेरे ख्याल से हिन्दी ब्लॉग में सबसे ज़्यादा लम्बी-लम्बी फेंकी जा रही है भारतीय संस्कृति, भाषा और सभ्यता के क्षेत्र में। उदाहरणार्थ एक मित्र के ब्लॉग पर जब हिन्दी अंकों के उच्चारण के बारे में एक पोस्ट छपी तो टिप्पणियों में हिन्दी के स्वनामधन्य व्यक्तित्व राजभाषा हिन्दी के मानक अंकों को शान से रोमन बता गये। अन्य भाषाओं और लिपियों की बात भी कोई खास फर्क नहीं है। भारतीय देवता हों, पंचांग हों, या शास्त्र, आपको हर प्रकार की अप्रमाणिक जानकारी तुरंत मिल जायेगी।
अब तक के मेरे ब्लॉग-जीवन में सबसे फिज़ूल दुर्घटना एक प्रदेश के कुछ सरल नामों पर हुई जिसकी वजह से सही होते हुए भी एक स्कूल से अपना नाम पर्मानैंटली कट गया। बाद में सम्बद्ध प्रदेश के एक सम्माननीय और उच्च शिक्षित भद्रपुरुष की गवाही से यह स्पष्ट हुआ कि स्कूल के जज उतने ज्ञानी नहीं थे जितने कि बताये जा रहे थे। उस घटना के बाद से अब तक तो कई जगह से नाम कट चुके हैं और शायद आगे और भी कटेंगे लेकिन मेरा विश्वास है कि विश्वसनीयता की कीमत कभी भी कम नहीं होने वाली।
हिन्दी ब्लॉगिंग में अपने तीन वर्ष पूरे होने पर मैं इस विषय में सोच रहा था लेकिन समझ नहीं आया कि हिन्दी ब्लॉगिंग में विश्वसनीयता और प्रामाणिकता की मात्रा कैसे बढ़े। आपके पास कोई विचार हो तो साझा कीजिये न।
पूर्णतया सहमत ! हाल ही एक 'लोकप्रिय' लेखिका के ब्लॉग पर यही प्रश्न उठाया था, तो दंभ भरा उत्तर आया था कि उन्हें जो उचित लगेगा उसे वो अपने ब्लॉग पर स्थान देंगी, चाहे वह चैन मेल हो!
ReplyDeleteनासा के हवाले से मोबाइल में विस्फोट हो सकने से बचने का एसएमएस आता रहा है. इन दिनों इसी तरीके से या मिस काल कर भ्रष्टाचार मिटाने का नुस्खा आया है.
ReplyDeleteफेंका-फेंकी, हाँहाँ-जीजी, हाहा-हूहू हिंदी ब्लौगिंग की पहचान हैं.
ReplyDeleteबहुतों को लगता है कि मैं अक्सर चैन मेल्स का हिंदी अनुवाद करके छाप देता हूँ इसलिए मुझे बहुतेरी चैन मेल्स फौरवर्ड कर दी जाती हैं जिन्हें मैं अक्सर खोलकर भी नहीं देखता.
ऐसे मेल्स में यह लिखा होता है कि दुनिया के बड़े-बड़े कॉरपोरेशंस में भारतीय कितने शान से काम कर रहे हैं. हद तो तब हो गयी जब एक मेल में मैंने पढ़ा कि अमेरिका में आधे से ज्यादा डॉक्टर भारतीय हैं.
जिसकी जितनी अकल होती है वह वैसी ही बातें करता है. जिम्मेदारी की भावना लिए लोग जब अधिकाधिक लिखने लगेंगे तो यह समस्या छंट जायेगी. अभी तो सब छपास के मारे हैं.
इन्टरनेट युग में सूचनाओं का सतत प्रवाह है मगर इसकी विश्वसनीयता कैसे मापी जाए , ये सचमुच यक्ष प्रश्न है ..
ReplyDeleteविश्वसनीयता का संकट तो है ब्लॉग-जगत में। किंतु आपकी इस बात में दम है कि विश्वसनीयता की कीमत कभी भी कम नहीं होने वाली।
ReplyDeleteअन्ततः तो उसी का अस्तित्व बचेगा।
बहुत उपयोगी लेख लिखा है अनुराग भाई ! चेन मेल का उद्देश्य आज पता चला, ऐसे लेख बहुत आवश्यक हैं जिससे लोग सावधान हो सकें ....
ReplyDeleteमगर यहाँ ऐसे लेख पढता ही कौन है ?? :-(
निशांत मित्र की बात से सहमत हूँ!
शुभकामनायें !!
@ब्रिटिश संसद में लॉर्ड मैकाले का शिक्षा द्वारा भारत को दास बनाने का ड्राफ्ट
ReplyDelete@गंगाधर नेहरू का असली नाम गयासुद्दीन गाजी था
पता नहीं कुछ बातों पर यकीन करने का मन करता है ....... और सत्य प्रतीत होती हैं : वर्तमान की कारगुजारियों को देखते हुए.........
.विश्वसनीयता का संकट ?
ReplyDeleteकिसे परवाह है, अपने आलेखों के विश्वसनीय होने की ..
जहाँ ( निशाँत जी के शब्दों में ) फेंका-फेंकी, हाँहाँ-जीजी, हाहा-हूहू हिंदी ब्लौगिंग की पहचान हैं !
अधिकतर पिटे हुये लोग यहाँ ( हिन्दी ब्लॉगिंग में ) अपने आत्म-मुग्ध प्रमाद को पोसने के लिये ही उपस्थित हैं,
जहाँ तेल लगाने वालों की भरमार हो, दृष्टि में भैंगापन हो, वहाँ किसे परवाह है, अपने आलेखों के विश्वसनीय होने की ..
उपर की टिप्पणी में आशीष श्रीवास्तव ने एक उदाहरण दिया ही है, टुटपुँजियों द्वारा आपका या मेरा " विश्वासयोग्य" सूची से हटाया जाना, भारतीय चरित्र में धँसे हुये स्त्रैणता का द्योतक है.... हमारे मध्य के कितने लोगों में वाईकी पर योगदान देकर भारत और हिन्दी का गौरव बढ़ाने का पौरुष है ? अनुराग जी, मैं शायद अधिक कटु होता जा रहा हूँ.. आशा है अभी यह बुरादे के स्तर पर नहीं पहुँची है ... ऎसी टिप्पणी देने की घृष्टता के लिये क्षमा ! खेमों में बँटे रहना हमारा दुर्भाग्य है !
बहुत पहले मैंने भी हिंदी में लिखने वालों को टेबल राइटर कहा था और कहा था कि 80% माल कूड़ा है तो लोगों ने मुझे इतना गरियाया कि... तौबा!
ReplyDeleteपर हिंदी की ही बात नहीं है, आमतौर पर इंटरनेट पर हर भाषा में हर माल 80% कूड़ा ही है. गूगल ट्रांसलेट जैसे मशीनी अनुवाद उपकरणों ने आग में घी का काम किया है.
ऐसे में सुई और मोती चुनकर ही काम चलाना होगा...
@मैं शायद अधिक कटु होता जा रहा हूँ.. आशा है अभी यह बुरादे के स्तर पर नहीं पहुँची है
ReplyDeleteडा० अमर कुमार जी,
मैंने बुरे इरादे की बात की है, कटुता की नहीं। यदि कटुता असहनीय होगी तो टिप्पणी मॉडरेशन सन्देश में उसका स्पष्ट ज़िक्र होगा।
रतलामी जी, आपके अवलोकन से सहमत हूँ। दरअसल मैं उस सामान्य कूडे की बात नहीं कर रहा था। मैं तो उस विशिष्ट कूडे की ओर ध्यान दिलाना चाहता था जहाँ ब्लॉग लेखक विशेषज्ञता का भ्रम देते हुए कूडा प्रस्तुत करता है।
ReplyDeleteझूठ किसी के द्वारा भी प्रचारित की जाए हमेशा झूठ ही रहेगी। हो सकता है उसका कार्यकाल कुछ लम्बा हो। रही बात ब्लाग की, तो लोग लिखने की होड़ा-होड़ी में कुछ भी लिख रहे हैं। कितना ही बड़ा चिंतक क्यों ना हो, कोई भी प्रतिदिन अपनी बात नहीं लिख पाता। इस कारण कभी अनुवाद तो कभी अन्य लेखकों की रचनाओं की चोरी आम बात हो गयी है। हम स्वस्थ बहस कभी नहीं करते हैं। इसी कारण किसी भी बिन्दु पर उचित विचार प्राप्त नहीं हो पाते। हमारा एक दूसरे से सहमत होना जरूरी नहीं है बस जरूरी है कि विभिन्न विचारों का लेखन। जिससे हमारा दृष्टिकोण एकाकी नहीं बन सके।
ReplyDeleteसच तो ये है कि मुफ्त की ब्लागरी ने हमारी चिंतन परम्परा के संकट और वैचारिक अवमूल्यन को उजागर कर डाला है !
ReplyDeleteमेरे विचार से जो जैसा है , वैसा ही अभिव्यक्त होगा ! फिर क्या हुआ जो आप भीड़ को देख/सुन/पढ़कर दुखी हैं ?
एक पाठक की हैसियत से हो सकता है कि मैं गलत होऊं ,पर मित्रों के प्रोफाइल्स के बजाये उनकी समझ पर ज्यादा भरोसा करता हूं और इसी आधार पर उन्हें निरंतर पढ़ने को वरीयता देता हूं !
प्रोफाइल्स पर जाति/धर्म/उपाधियों और पुरुस्कारों के रत्न,पठनीयता को प्रभावित कर डालेंगे,सोच कर सावधान रहता हूं बस !
इससे क्या फ़र्क पड़ता है जो भीड़ भरे स्कूलों से अपना नाम कट जाता है :)
@ अली जी,
ReplyDeleteमैं दुखी कतई नहीं हूँ। अगर ऐसा दिखा तो मेरे सम्प्रेषण की कमी है।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअनुराग जी - फिर से बहुत अच्छी पोस्ट | :)) | कुछ बातों पर ध्यान दें -
ReplyDelete१) चेन मेल यदि फॉरवर्ड करनी भी हो , तो फॉरवर्ड विंडो में जाने के बाद ऊपर के सारे एड्रेसेस डीलीट कर दिए जाएँ - जिससे यह साथ पास ना हों
२) यदि कई लोगों को आप फॉरवर्ड कर रहे हैं एक साथ, तो एड्रेसेस " टू " के बजाय "बी सी सी " की जगह में डालना चाहिए - जिससे एड्रेसेस की कॉपी सारे रेसीपिएन्ट्स तक ना पहुंचे |
३) रही आधी अधूरी जानकारी को अपने ब्लॉग में अपने नाम से प्रकाशित करने की बात - तो अन्फोर्चुनेटली हर व्यक्ति का ब्लॉग उसकी अपनी पर्सनल पत्रिका है - जिसका लेखक भी वही है - सम्पादक भी यही - और प्रकाशक भी | :(( - तो कोई रोक टोक हो नहीं सकती | लेकिन यह तो हो सकता है ना कि पाठक जा ब्लॉग पसंद ना करें - वहां ना जाएँ - तो अपने आप ही ऐसी प्रेक्टिसेस चेक होंगी - उदहारण के लिए --
४) कल स्टार न्यूज़ - एक हिंदी न्यूज़ चैनल - जिन्हें शायद कांग्रेस से कुछ अंडर्स्टेडिंग मिली हो सत्ताधारी पार्टी से - बार बार कह रहे थे - "रामदेव का ड्रामा" "रामदेव का धोखा" आदि आदि - यानि कि मोटे तौर पर वही जो दिग्गी जी कह रहे थे | रात के ती आर पी रेटिंग से पता चला होगा कि हर बार जब यह कहा गया - तो दर्शकों ने चैनल बदल दिया - तो आज वही चैनल "बाबा रामदेव" के गुण गा रही है ...
बड़ा सवाल है, हम छोटे व्लॉगर हैं इसलिये कुछ कहना छोटे मुँह बड़ी बात नहीं होगी? समाधान निकलने तक एक दंभ भरा(जैसा ही) कमेंट - बड़ों की देखादाखी हम भी अपनों की पोस्ट पर, अपनी मनपसंद पोस्ट्स पर विश्वास करना, तारीफ़ करना बोले तो ’फेंका-फेंकी, हाँहाँ-जीजी, हाहा-हूहू ’ टाईप काम करते रहेंगे और अपनी छपासेच्छा को पालते पोसते रहेंगे।
ReplyDeleteएक सवाल हमारा भी, "ऐ ’वाईकी’ की हुंदा है?"
एक सुझाव, हालाँकि पहले भी एक ब्लॉग पर हाहा हूहू करते दिया था, "जो भी ब्लॉगिंग करना चाहे, पहले उसे कुछ पैरामीटर पर पूरा उतरने को कहा जाये जिनमें से सबसे अहम पैरामीटर कम से कम दो(संख्या घटाई बढ़ाई जा सकती है) विश्वसनीय, विद्वान ब्लॉगर्स से रिकमेंडेशन लाना जरूरी हो। बड़ों का बड़प्पन भी अक्षुण्ण रहेगा और अगला बंदा भी सारी उम्र दबा रहेगा।
हमारे तो जी कमेंट भी ऐसे मिलेंगे कि छपास की खाज पूरी होती दिखेगी:) वैसे बुरा इरादा का संधि बुरादा होगा या बुरैदा?
मुझे यह मानवीय स्वभाव से जुडा ऐसा 'सनातन संकट' लगता है जो प्रलय तक बना रहेगा। इतना ही किया जा सकता है कि मैं व्यक्तिगत स्तर पर जो कुछ भी प्रस्तुत कर रहा हूँ, पहले उसकी विश्वसनीयता और किसी प्रस्तुति पर विश्वास करने से पहले उसकी विश्वसनीयता जॉंच लूँ।
ReplyDeleteदुखी होते हुए इसका आनन्द लेने का अभ्यास करना ही ठीक रहेगा।
सनातन संकट निबटाते रहने के लिए ही सनातन प्रयास ज़रूरी हैं
Deleteविश्वसनीयता के साथ माल न होने का भी संकट भी जोड़ा जा सकता है. जब कुछ भी नहीं और कोई पोस्ट छापना हो और जिनकी यह मजबूरी हो कि कैसे न कैसे ही, कुछ भी करके पोस्ट छाप दी जाये तो अक्सर ऐसा होता है..
ReplyDeleteवैसे ताजमहल के बारे में तो पी एन ओक साहब ने एक पुस्तक भी लिखी है जो शायद भारत में प्रतिबन्धित कर दी गयी थी. सच और झूठ क्या है, पता नहीं किन्तु उस पुस्तक में दिये गये तथ्यों का पूरी प्रामाणिकता के साथ खंडन होना चाहिये था जो नहीं हुआ. उसमें दिये गये तथ्यों की जांच करायी जाती तो बहुत अच्छा होता..
good post liked it
ReplyDeletesahmat.....
ReplyDeletejai baba banaras.....
भूल - चूक माफ़ होना चाहिए,
ReplyDeleteपर यह आदत खतरनाक है सो उपाय
होना चाहिए
इंसाफ होना चाहिए ||
. @ संजय @ मो सम कौन ?
ReplyDeleteवाईकी..
वाईकिपीडिया का सँक्षिप्त नाम है । जो कि विश्वस्तर पर परस्पर सहयोग से तैया्र किये जाने वाला विश्वकोश है, जिसने पिछले सात वर्षों में एक आँदोलन का रूप ले लिया है ... इसमें दर्ज़ जानकारियों की सत्यता असँदिग्ध मानी जाती है । अनगिनत भाषाओं के अलावा इसमें 16 भारतीय भाषाओं का खँड भी है । मातृभाषाप्रेमी स्वेच्छा से इसमें योगदान देते हैं । लिंक है [ http://hi.wikipedia.org/wiki ]
बड़ा ब्लॉगर छोटा ब्लॉगर...
कृपया इसे परिभाषित करें ! यह लाइन किसने और कब खींची है ?
क्या कहे ... हम तो विश्वास करते है
ReplyDelete"...जैसे सूप सुहाय ,सार सार को गहि लहे थोथा देय उडाय" पूरा दोहा याद नहीं आ रहा
दौसौ फ़ीसदी सहमत
ReplyDelete@ डा. अमर कुमार जी:
ReplyDelete’वाईकी’ के बारे में जानकारी देने के लिये शुक्रिया। सच है कि अपना इसमें कोई योगदान नहीं है, बल्कि वक्त जरूरत(प्राय: बच्चों के होमवर्क के संबंध में) वहाँ से रेफ़रेंस लेते ही रहे हैं। लेकिन इसमें दर्ज जानकारियाँ असंदिग्ध मानी जाती है, इसमें मुझे संदेह है। कई असंगतियाँ मैंने ही नोट की थीं। मालूम नहीं था कि कभी सिद्ध करने जैसी नौबत आ सकती है नहीं तो अवश्य नोट करके रख चुका होता।
बड़े ब्लॉगर छोटे ब्लॉगर वाली लाईन किसी ने नहीं खींची, जैसे कि मैकमोहन लाईन\डूरंड लाईन आदि आदि भी जमीन पर नहीं है। फ़िर भी मेरे नजरिये से परिभाषा ये है कि जब समर्थन\सहमति ये देखकर दिये जायें कि बात किसने कही, और उससे बात का वजन बढ़ जाता है तो संबंधित पक्ष औरों के मुकाबले बड़ा ही है। अपना ही उदाहरण देता हूँ, मेरी किसी वाहियात बात पर(वैसे तो सभी वाहियात ही होती हैं अपनी:)) यदि आप आकर तारीफ़ कर देंगे या कमेंट तो किया लेकिन असहमति न जताई और इस नाते मैं सही मान लिया जाऊँ तो आप बड़े ब्लॉगर हैं।
पता नहीं मैं स्पष्ट कर पाया कि नहीं। सरकार का नौकर हूँ, लंच करने आया था ये देखा तो रुक नहीं पाया। अब शाम रात में देखता हूँ।
अनुरोध है कि इन कमेंट्स को व्यक्तिगत विरोध न माना जाये।
सहमत हूँ आपकी बातों से.ये चैन मेल तो परेशां किये रहते हैं.वैसे अजीत गुप्ता जी की बात काफी ठीक लगी.
ReplyDeleteऐसे ज़्यादातर लोग अज्ञांतावश ही करते हैं ,.. पर जब आप उन्हे ग़लती बताते हैं तो उनमें ईगो आ जाता है ... जो की ंबिल्कुल ही ग़लत है ... ग़लती मान कर उपाय निकालना हर किसी के बस की बात नही ... बहुत सी बातों को स्थापित होने में समय लगता है ... हिन्दी ब्लॉगिंग भी ऐसी ही है ... आपको ३ वर्ष पूरे होने पर बधाई ...
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉगिंग और विश्वसनीयता की बात करी है आपने। वाजिब कहना है।
ReplyDeleteअसल में ब्लॉगिंग खुरदरा लेखन है जिसमें भाषा और पठनीयता कमतर हो सकती है। पर अच्छा ब्लॉग वह है जिसमें विश्वसनीयता हो!
लोग मेरे ख्याल से ब्लॉगरी के प्रति गम्भीर कम हैं और मेहनत नहीं करते।
आपका लेख अच्छा और sarthak है chintan की भी जरुरत है ...sach कडवा होता है और aaj लोग इतने समझदार है की bhool se भी kisi ka jayka kharab करना नहीं चाहते इसलिए कई बार लिखने या फॉरवर्ड करने वाले की ग़लतफ़हमी दूर नहीं हो pati
ReplyDelete'विश्वसनीयता का संकट'सिर्फ़ ब्लागिंग में ही नहीं हर जगह है .बोलने की आदत ,लिखने में परिणत हो कर जब ब्लाग की पोस्ट बनने लगे तो छुटकारा पाना बड़ी टेढ़ी खीर है .
ReplyDeleteजहाँ ( निशाँत जी के शब्दों में ) फेंका-फेंकी, हाँहाँ-जीजी, हाहा-हूहू हिंदी ब्लौगिंग की पहचान हैं !
ReplyDeleteअधिकतर पिटे हुये लोग यहाँ ( हिन्दी ब्लॉगिंग में ) अपने आत्म-मुग्ध प्रमाद को पोसने के लिये ही उपस्थित हैं,
जहाँ तेल लगाने वालों की भरमार हो, दृष्टि में भैंगापन हो, वहाँ किसे परवाह है, अपने आलेखों के विश्वसनीय होने की
इस बात तालियाँ.
नीरज
आपसे असहमति का प्रश्न ही कहाँ उठता है....
ReplyDeleteविश्वसनीयता सचमुच एक यक्ष प्रश्न है...
बस विवेक जगाये रखना होगा...और क्या ????
यहाँ अपनी रक्षा स्वयं करें का ही नारा चलेगा...शायद सदा ही...
आज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि बहुत उम्दा आलेख है यह!
ReplyDeleteएक मिसरा यह भी देख लें!
दर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है
बहुत सुंदर प्रस्तुति सच्चाई से कही गयी दिल की बात समाज का असली चेहरा दिखाती हुई रचना
ReplyDeleteअब मेरे कहने के लिए कुछ नहीं बचा है :)
ReplyDeleteआपसे बहुत हद तक सहमत, विश्वास ही विश्वास को खींचेगा।
ReplyDeleteगुणीजन अपनी बात रख गए हैं इसलिए मेरा कहना पुनरावृत्ति ही होगा.. चेन मेलों से तो मुझे संतोषी माता के छपे पोस्ट कार्ड उ=याद आते हैं जिनको छपवाकर बांटने पर समृद्धि प्राप्त होने का दावा किया रहता था.. मेल में भी ऐसा ही कुछ रहता है कि सच्चे दोस्त हैं तो इसकी एक कोपी मुझे भी मेल बैक करो.. भैया जो दोस्ती ई-मेल पर टिकी हो उससे मेरी तौबा.. मैं इं मेलों को डिलीट कर देता हूँ..
ReplyDeleteलेकिन कई भ्रम टूटे हैं और कंट्रोवर्सी थ्योरिस्ट्स (विकीलीक्स को भी लोंग कंट्रोवर्सी थ्योरिस्ट्स कहते थे) की सच्चाई को भी बल मिला है..सोचने की बात है!!
बहुत ही अच्छी व विचारपूर्ण पोस्ट लगी आपकी. चेन मेल वाली बात से तो पूर्णत: सहमत हूँ.
ReplyDeleteअनुराग जी मैंने तो कभी इस माध्यम को इतनी गंभीरता से लिया ही नहीं की यहाँ लिखी जा रही हर बात पर विश्वास करूँ. मुझे तो यहाँ के ज्यादातर लोग अपने जैसे बतरसिया नज़र आते हैं जो प्रत्येक विषय पर थोडा इधर की और थोडा उधर की हांकना चाहते हैं. मैं सोचता हूँ की ज्यों ज्यों गंभीर लेखक और विशेषज्ञ ब्लॉग्गिंग से जुडेगें त्यों त्यों इसकी विश्वसनीयता का स्तर बढ़ता चला जायेगा. गुरु गिरिजेश राव जी से सीखे आज के सबक के अनुसार जब तक ज्यादा अच्छे लोग नहीं मिलते तब तक आपको निम्न वर्गियों को को झेलना ही पड़ेगा :-))
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग्गिंग में तीन वर्ष पुरे करने की बधाई. (इस प्रकार बधाई देने वाला मैं अकेला ही हूँ ... शर्म सी आ रही है... कहाँ करूँ.)
हाँ मैंने" सामान" को "समान" कर दिया है पर ऐसा करने में मेरी हालत पतली हो गयी.रोमन लिपि में हिंदी लिखना बड़ी टेढ़ी खीर है. मुझे से ना चाहते हुए भी बहुत सी गलतियाँ हो जाती हैं.... धन्यवाद आपका अपने अपना समझ कर भूल सुधर करवाया.
ReplyDeleteडायरी में लिख दी जाने वाली बात मुझे भी लगी थी एक बार. तब से डायरी में कुछ भी लिखता हूँ तो साथ में लिखने वाले का नाम भी लिख लेता हूँ.
ReplyDeleteये विश्वसनीयता की मात्रा कैसे बढे ये तो बड़ा भारी सवाल है. मुझे याद आ रहा है किसी अफ्रीकन देश में साहित्यिक चोरी पर बन रहे कानून के दस्तावेज में ही एक पूरा पैराग्राफ विकिपीडिया से उड़ाया हुआ था. अब ऐसा क्यों होता है ये बात तो शायद मानव-व्यवहार पर शोध करने वाले मनोवैज्ञानिक बेहतर बता पाएं. अगर लोगों को लगता है कि असली लिंक देने से उनका ब्लॉग लोकप्रिय नहीं होगा तो अंग्रेजी के कई ऐसे लोकप्रिय ब्लॉग मैं जानता हूँ जो बस अच्छी जानकारियाँ और लिंक ही पोस्ट करते हैं. मेरा पसंदीद ब्लॉग फ्यूटिलिटी क्लोजेट ही इसका अच्छा उदहारण है. मैं अपने गणित वाले ब्लॉग पर जितना संभव हो सके लिंक और रेफेरेंस डालने की कोशिश करता हूँ. अनेक फायदे हैं इसके. घाटा तो कुछ नहीं दिखता.
हिन्दी ब्लॉगिंग और विश्वसनीयता की बात करी है आपने। वाजिब कहना है।
ReplyDeleteअसल में ब्लॉगिंग खुरदरा लेखन है जिसमें भाषा और पठनीयता कमतर हो सकती है। पर अच्छा ब्लॉग वह है जिसमें विश्वसनीयता हो!
लोग मेरे ख्याल से ब्लॉगरी के प्रति गम्भीर कम हैं और मेहनत नहीं करते।
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ज्ञानदत्त जी की बात सही है..... आपकी पोस्ट से मैं भी पूरी तरह सहमत हूँ....
@विकिपीडिया की विश्वसनीयता और मान्यता
ReplyDeleteदुर्भाग्य से आज के समय में कम से कम अमेरिका और यूरोप के विश्वविद्यालयों में विकीपीडिया को एक विश्वसनीय सन्दर्भ के रूप में नहीं गिना जाता है। कारण शायद अगणित स्वयंसेवी लेखकों का होना ही है। इसी के चलते भले ही आपको हार की जीत वाले पंडित सुदर्शन पर विकी पेज न मिले मगर बहुत से ब्लॉग-कवियों पर पन्ने मिल जायेंगे। विवादास्पद मुद्दों पर इन लेखकों में कई बार जंग भी चलती रहती है। एक बार मैं एक हाइ प्रोफाइल हत्या को फ़ॉलो कर रहा था और विकिपीडिया का एक पृष्ठ 24 घंटों में 50 से अधिक बार बदलता रहा। फ़ाइनली मुख्य सम्पादकों ने उस पृष्ठ को फ़्रीज़ कर दिया।
समय के साथ जितने प्रामाणिक लेखक जुडते जायेंगे, स्थिति बेहतर होती जायेगी।
धन्यवाद! (जिनके लिये है उन्हें पता है।)
@ मगर यहाँ ऐसे लेख पढता ही कौन है ?? :-(
ReplyDeleteजो पढता है वह बढता है ;)
@ shilpa mehta
ReplyDeleteआभार! आपके सुझाव - विशेषकर BCC वाला - बहुत काम के हैं। अपनी नई पोस्ट या पुरस्कार की जानकारी मेल से भेजने वालों से भी मेरा अनुरोध यही है कि वे सन्देश पाने वालों की प्राइवेसी का आदर करते हुए सबके पते BCC में ही लिखें।
@ भारतीय नागरिक
बहुत से अन्य भवनों की तरह यदि ताज महल भी एक प्री-इस्लामिक भवन निकले तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा। परंतु एक सरसरी नज़र डालते ही आप इस विषय की चेन-ईमेल्स और उन पर आधारित आलेखों को सतही से लेकर हास्यास्पद तक पायेंगे मगर सत्यान्वेषी नहीं।
@ दीपक बाबा
इन ईमेल में इसी भावना का तो शोषण होता है। मैकाले इतना बेवक़ूफ नहीं था कि उस मेल में कही बातों को संसद में ऑन रिकॉर्ड कहता। उसके मन और कर्म में चाहे जो भी हो। वैसे ही ग़ाज़ी की कंस्पाइरेसी थेयरी उन्हीं असंतोष-भडकाऊ मौकापरस्त प्रचारवादियों के दिमाग की उपज है जो ध्यान हटाने के लिये नक्सलियों द्वारा निरीह हत्याओं के बाद सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हैं और सरकार के दमन के बाद बाबा की सच्ची-झूठी फजीहत करते हैं।
@ श्रद्धेय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी,
ReplyDeleteआपकी ग़ज़ल का मिसरा बहुत अच्छा लगा। आपका चर्चामंच अपने विशाल पाठकवर्ग के कारण हिन्दी ब्लॉग-सामग्री को प्रामाणिकता की ओर ले जाने में बहुत खास भूमिका निभा सकता है। अन्य सामूहिक मंच भी इस दिशा में चिंतन करके अपने नये सदस्यों को दिशा और सलाह दे सकते हैं।
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ReplyDeleteअनुराग जी ,
इस सुन्दर , सार्थक आलेख के लिए बधाई । सहमत हूँ आपसे।
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@- हाल ही एक 'लोकप्रिय' लेखिका के ब्लॉग पर यही प्रश्न उठाया था, तो दंभ भरा उत्तर आया था कि उन्हें जो उचित लगेगा उसे वो अपने ब्लॉग पर स्थान देंगी, चाहे वह चैन मेल हो!....
आशीष श्रीवास्तव जी ,
आपकी टिप्पणी पढ़कर दुःख हुआ ।
उत्तर में दंभ नहीं था। फिर भी यदि आपके ह्रदय को दुःख पहुंचा तो क्षमाप्रार्थी हूँ।
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ReplyDeleteमैंने जिस चेन मेल को अपने ब्लौग पर स्थान दिया । उसके विषय से मेरी पूर्ण सहमती थी और मुझे पसंद आया था इसलिए उसे फॉरवर्ड करने से बेहतर उसे अपने ब्लौग पर स्थान दिया था ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उन विचारों को पढ़ सकें।
अपने ब्लौग पर स्थान देते समय उस मेल में लिखे विषय की जिम्मेदारी भी ब्लौग मालिक की होगी।
जैसे अक्सर हम लोग किसी का आलेख पसंद आने पर उसे reshare करते हैं अथवा अपने ब्लौग पर उसे स्थान देते हैं। उसी तरह यह मेल पसंद आई इसलिए उसे अपने ब्लौग पर स्थान दिया।
जो मेल अपने ब्लौग पर लगायी थी उसका लिंक निम्न है --
LETTER OF THE EDITOR OF "THE TIMES OF INDIA" TO THE PRIME MINISTER OF INDIA
http://zealzen.blogspot.com/2011/06/letter-of-editor-of-times-of-india-to.html
आभार।
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http://mangopeople-anshu.blogspot.com/2010/11/mangopeople_15.हटमल
ReplyDeleteये मेरी उस पोस्ट का लिंक है जिसमे मैंने मेल से मिले एक रचना के रचनकार को खोजने का प्रयास किया पता चला की ये तो कई ब्लॉग पर पहले ही अपना अपना कह कर प्रकाशित किया जा चूका है जिसमे एक न्यूज चैनल के एंकर पत्रकार जो भी है भी शामिल है | एक बार एच आई वी को लेकर भी एक बड़े ब्लोगर ने इसी चेन मेल को प्रकाशित कर दिया था जिसमे लिखा था की फल वाले के हाथ कटे थे और उसे एड्स था जिससे कई लोगो को वो होगया कई टिप्पणिया उन्हें मिली केवल एक व्यक्ति ने इसे गलत कहा | तेजो महल वाली बात तो मुझे कई साल पहले मिली थी किन्तु उस को ब्लॉग पर भी ६-७ बार देख चुकी हूँ | किन्तु कोई भी उन्हें गलत मानने को तैयार नहीं है | एक लेटेस्ट नया वाला सुनिये अभी तक सुना नहीं होगा की मक्का मदीना के अन्दर शिव लिंग बना है वो हिन्दू स्थान है साबित करने के लिए कई तर्क दिए गए जिसमे मुझे एक फोटो भी दिखाई गई कहा गया जब गूगल में सर्च करियेगा मक्का मदीना तो ये वाला शिव लिंग भी आयेगा जो असल में वहा है | मैंने कहा प्रभु यदि मै आप की फोटो लोड कर दू और लादेन लिख दू तो वह लादेन सर्च करने पर आप की भी फोटो आने लगेगी तो क्या करोगे | कई ब्लॉग है जिन पर कुछ भी लिख दिया जाता है और कहा जाता है की फलाने वेद में लिख है पुराण में लिख है लोग पढ़ते है और वाह वाह कर निकल जाते है ये पूछने की जरुरत नहीं समझते है की कहा पढ़ा आप ने ये जरा प्रमाण देंगे यदि पूछिये तो प्रमाण के रूप में जो लिंक देंगे वो असल में किसी और ब्लोग्गर का लिंक होता है उसकी योग्यता का भी कुछ पता नहीं है | युवा सोचते है की जो गूगल बाबा ने कह दिया वो पत्थर की लकीर हो गई उन्हें ये नहीं समझ आता की यहाँ लिखने वाले हमारे जैसे ही लोग है वो ये नहीं देखते की लिखी हुई चीज किसने लिखी है उसकी योग्यता क्या है बस गूगल पर है तो सच है ये आम भारतीय लोगो की सोच है |
और ब्लॉग में तीन वर्ष पुरे करने की बधाई |
@ दिगम्बर नासवा जी, दीप पाण्डेय जी, अंशुमाला जी,
ReplyDeleteगद्गद हूँ, हार्दिक धन्यवाद!
लेखन में गुणवता का तो विशेष ध्यान रखा ही जाना चाहिए . आपका चिंतन सही दिशा में उचित प्रयास है
ReplyDeleteकह देने में और लिख जाने में एक अंतर तो है, असली परेशानी तब है कि लिखते समय लोग यह नहीं समझते कि लिखा हुआ मात्र रहेगा ही नहीं, आगे भी बढेगा।
ReplyDeleteविकिपीडिया भी अपवाद नहीं है, और गलतियाँ वहाँ भी बहुत हैं।
चेन मेल में डाक टिकट नहीं चिपकाना होता है, एक क्लिक कर दो...शायद..!!!
और चूँकि लोग
१) To/Cc/Bcc का मतलब/उपयोगिता नहीं जानते
२) पढ़ते ही नहीं कि subject के आगे क्या लिखा है
३) चाहते हैं कि आपके inbox में बने रहें
इसलिए धुंआधार आगे बढ़ाते रहते हैं ऐसे मेल/मैसेज।
पूछने पर ऐसे जवाब भी सुने हैं मैंने, "मुझे क्या पता, आया जैसे वैसे ही भेज दिया।" और यकीन जानिये, बड़े 'होनहार' लोगों के जवाब हैं ये।
Blogging कभी भी मेरा प्रिय विषय नहीं रहा, इस शब्द पर हमेशा से ही चुप रहा हूँ। अतः अपनी राय सुरक्षित रखने की अनुमति चाहूँगा।
पहले तो आभासी संसार में तीन साला वजूद बनाए रखने पर बधाई !
ReplyDeleteचेन मेल और सामग्री की प्रमाणिकता विषय पर आपने विचारोत्तेजन कराया -धन्यवाद !
@ Avinash Chandra:
ReplyDelete@३): एकाध जगह तो बहुत बेशर्मी से कहा कि कृपया मेल लिस्ट से हमारा नाम काट दिया जाये। मुझ कुटिल, खल को मासूमियत, अमन से लबालब संदेश हजम ही नहीं होते, लेकिन दुहाई का कोई असर नहीं हुआ। स्पैम रिपोर्ट करके देखा है, फ़िल्टर करके देख लिया - वैसी ही सामग्री हर बार नये नये लिंक्स से भेजी जाती है। उद्देश्य क्या है, खुदा जाने।
वह तो एक स्तर ऊपर की चीज है न, जिसके लिए ऐसे mails बढ़ाये (असल में बढवाए) गए थे।
ReplyDeleteएक बार मिल गई आपकी ID, बस अब तो सब सुख, अमन, चैन, राष्ट्रहित, मासूमियत, यहाँ तक कि हिंदी-संस्कृत का संरक्षण भी सब आपको ही करना/देखना/पढना है।
साथ में लगे १००० में से २-३ भी अगर फंस गए, इधर उधर क्लिक किया तो उनकी कोई व्यक्तिगत जानकारी, email account crack मिल जाए।
और कुछ नहीं तो कोई virus या trojan ही भेज दिया जाए, अलावा इसके भी खुराफातों से सुखी होना लोगों का, कोई अनजानी बात कहाँ है।
सही कहा अनुराग भाई
ReplyDeleteहम लोग गूगल से मिली जानकारी को ब्रह्म-वाक्य मानने लगे हैं
सही कहा अनुराग भाई
ReplyDeleteहम लोग गूगल से मिली जानकारी को ब्रह्म-वाक्य मानने लगे हैं
इसे मैंने नहीं पढ़ा था! काश फिर ब्लॉग में इतनी लम्बी चर्चा का दौर आये.
ReplyDeleteयह समस्या अब फेसबुक में और वाट्स एप में आ रही है.