tag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post1925740749109867103..comments2024-03-23T20:44:05.692-04:00Comments on * An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीय *: क्रोध कमज़ोरी है, मन्यु शक्ति है - सारांशSmart Indianhttp://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comBlogger60125tag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-66836643635397345892022-07-17T09:18:36.535-04:002022-07-17T09:18:36.535-04:00Bahut bdiya trah se aapne samjha Diya h sirBahut bdiya trah se aapne samjha Diya h sirAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-52576355341076460552019-11-21T15:57:01.904-05:002019-11-21T15:57:01.904-05:00Woah! I'm really digging the template/theme of...Woah! I'm really digging the template/theme of this website.<br />It's simple, yet effective. A lot of times it's very hard to <br />get that "perfect balance" between user friendliness and appearance.<br />I must say that you've done a superb job with <br />this. Also, the blog loads extremely fast for me on Opera.<br />Superb Blog!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-46450034146253693472019-10-26T08:38:31.875-04:002019-10-26T08:38:31.875-04:00Asking questions are in fact pleasant thing if you...Asking questions are in fact pleasant thing if you are not understanding <br />something fully, but this post offers nice understanding yet.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-78069249183642035852018-04-09T14:01:59.440-04:002018-04-09T14:01:59.440-04:00बहुत सार्थक और सटीक व्याख्या | मन्यु और क्रोध का ...बहुत सार्थक और सटीक व्याख्या | मन्यु और क्रोध का अंतर अत्यंत महत्वपूर्ण | आज हम केवल क्रोध करते हैं , मन्यु को भूल गए हैं | स्सर्व्जनिक हित के लिए मन्यु अत्यंत आवश्यक है बल्कि विश्व कल्याण के लिए भी | राम का रावण के संहार के लिए मन्यु का प्रयोग हुआ था कंस के संहार के लिए कृष्ण ने मन्यु का प्रयोग किया था | Sadanand prasad guptahttps://www.blogger.com/profile/03435494108592254535noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-4831664259231864882018-04-09T13:55:51.324-04:002018-04-09T13:55:51.324-04:00सचमुच सार्थक व्याख्या | भारत ने मन्यु करना छोड़ ...सचमुच सार्थक व्याख्या | भारत ने मन्यु करना छोड़ दिया वह अब केवल क्रोध ही करता है | महाभारत काल में भी मन्यु का ह्रास होता दिखता है ,कृष्ण आकर अर्जुन को मन्यु के लिए प्रेरित करते हैं | आज मन्यु की नितांत आवश्यकता है आतंकवाद और अन्याय भ्रष्टाचार पर काबू पाने के लिए |Sadanand prasad guptahttps://www.blogger.com/profile/03435494108592254535noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-12390224075264610442016-10-25T20:26:17.711-04:002016-10-25T20:26:17.711-04:00यह सारा विवेचन आज ,टिप्पण में आये विचार-विमर्ष सहि...यह सारा विवेचन आज ,टिप्पण में आये विचार-विमर्ष सहित पढ़ कर,बहुत समाधान हुये .<br />ऐसी बौद्धिक वार्तायें पढ़ कर उपलब्धि का आनन्द प्राप्त होता है .प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-56073172230981948202016-03-27T02:09:16.849-04:002016-03-27T02:09:16.849-04:00अद्भुत लेख. अद्भुत वार्तालाप. गिरिजेश जी का आभार क...अद्भुत लेख. अद्भुत वार्तालाप. गिरिजेश जी का आभार कि आज इस पुराने लेख तक ले आये. आपके लेख की प्रत्येक पंक्ति सोचने को मजबूर करती है. राजेंद्र गुप्ता Rajendra Guptahttps://www.blogger.com/profile/01811091966460872948noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-40707096304317689252012-12-24T01:29:41.912-05:002012-12-24T01:29:41.912-05:00क्रोध से मनुष्य अपना ही नुक्सान कर बैठता है, उसमें...क्रोध से मनुष्य अपना ही नुक्सान कर बैठता है, उसमें सही - गलत का भेद करने की शक्ति समाप्त हो जाती है इसलिए ही तो कहा गया है प्रेम से सबका दिल जीता जा सकता है परन्तु क्रोध से केवल नाश होता है!Best SEO Companyhttp://www.truewaytechnology.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-79229778940775846032012-05-14T03:07:01.051-04:002012-05-14T03:07:01.051-04:00आदरणीय सुज्ञ जी - आभार आपका | हाँ - आपकी बात समझ आ...आदरणीय सुज्ञ जी - आभार आपका | हाँ - आपकी बात समझ आती है | इस दृष्टी से देखा जाय - तो उनकी "लाचारी" कायरता से ही उपजी हुई थी | आभार यह इतना साफ़ साफ़ समझाने के लिए | इसलिए आप दोनों से पूछती रहती हूँ बार बार | देखिये - ऐसे समझाने से समझ में आ ही गया :) | विवशता और मर्यादा का फर्क भी समझ आ रहा है | <br /><br />क्षमा चाहूंगी - बार बार प्रश्न पूछ कर आप दोनों को परेशान करती हूँ | परन्तु अब यह समझ आ गया की वह "लाचारी" कायरता का ही एक रूप थी | <br /><br />यह भी समझा सकें कि "क्रोध" भी कायरता ही है ( यह मैं समझ पा रही हूँ की यह क्रोध कायरता से "उपजता है" - परन्तु क्रोध कायरता "ही है" यह नहीं समझ पा रही हूँ ) - तो आभार होगा | यह अभी क्लियर नहीं हुआ है मुझे |Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-3027143642796177272012-05-14T03:05:50.067-04:002012-05-14T03:05:50.067-04:00आदरणीय सुज्ञ जी - आभार आपका | हाँ - आपकी बात समझ आ...आदरणीय सुज्ञ जी - आभार आपका | हाँ - आपकी बात समझ आती है | इस दृष्टी से देखा जाय - तो उनकी "लाचारी" कायरता से ही उपजी हुई थी | आभार यह इतना साफ़ साफ़ समझाने के लिए | इसलिए आप दोनों से पूछती रहती हूँ बार बार | देखिये - ऐसे समझाने से समझ में आ ही गया :) | विवशता और मर्यादा का फर्क भी समझ आ रहा है | <br /><br />क्षमा चाहूंगी - बार बार प्रश्न पूछ कर आप दोनों को परेशान करती हूँ | परन्तु अब यह समझ आ गया की वह "लाचारी" कायरता का ही एक रूप थी | <br /><br />यह भी समझा सकें कि "क्रोध" भी कायरता ही है ( यह मैं समझ पा रही हूँ की यह क्रोध कायरता से "उपजता है" - परन्तु क्रोध कायरता "ही है" यह नहीं समझ पा रही हूँ ) - तो आभार होगा | यह अभी क्लियर नहीं हुआ है मुझे |Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-34468518045502994752012-05-13T08:00:04.541-04:002012-05-13T08:00:04.541-04:00आभार |
जी - सवाल अवश्य करूंगी - ऊपर अभी ही आदरणीय...आभार |<br /><br />जी - सवाल अवश्य करूंगी - ऊपर अभी ही आदरणीय सुज्ञ जी से कहा कि आप दोनों गुरुजनों से सवाल कर के मेरे लिए कुछ समझने का साधन हो सकता है | परन्तु यह पोस्ट एक बहुत अलग विषय पर है | इस विषय पर चर्चा कहीं और सही :)Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-28399412694989872572012-05-13T01:36:48.704-04:002012-05-13T01:36:48.704-04:00असहमति आपका अधिकार है। हाँ, आप सवाल करेंगी तो उत्त...असहमति आपका अधिकार है। हाँ, आप सवाल करेंगी तो उत्तर देने का प्रयास अवश्य करूंगा। मातृदिवस की शुभकामनायें!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-7945174854081858182012-05-13T01:08:58.956-04:002012-05-13T01:08:58.956-04:00लेकिन असहमत अब भी हूँ :)
यह चर्चा मेरी महाभारत व...लेकिन असहमत अब भी हूँ :) <br /><br />यह चर्चा मेरी महाभारत वाली श्रुंखला में जारी रख सकते हैं, यहाँ इस पोस्ट का विषय परिवर्तित हो रहा है |<br /><br />मुझे नहीं लगता की महाभारत युद्ध को टालना धर्म पक्ष के लोगों (जैसा आपने ऊपर कहा - अर्जुन / भीम) के नियंत्रण में था | क्योंकि अधर्म पक्ष वाले भी धर्म पक्ष वालों की सज्जनता और बड़ों को दिए (misplaced) आदर को कायरता समझ कर अपनी जिदों पर अड़े हुए थे | <br /><br />परन्तु यह अवश्य कहूँगी कि - महाभारत के युद्ध का निर्णय भीम और अर्जुन, द्रोण और भीष्म ने नहीं बल्कि धर्मराज और धृतराष्ट्र ने लिया था | और धर्मराज ने यह निर्णय अपनी पत्नी के अपमान का प्रतिशोध लेने (निजी वजह) से नहीं , बल्कि अंतिम विकल्प के रूप में लिया था | इसी तरह धृतराष्ट्र ने यह पुत्र मोह और कुंठा की वजह से लिया था | यह (अन्यायों के विरोध करने का निर्णय) भले ही १३ साल पहले लिए गया होता - तब भी इतना ही रक्तरंजित युद्ध होना था - इस रक्तपात में कोई कमी नहीं आने वाली थी |<br /><br />आपको यह टिपण्णी विषय परिवर्तित करती हुई लगे - तो इसे प्रकाशित न करें |Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-62912008368197940952012-05-13T01:08:46.338-04:002012-05-13T01:08:46.338-04:00लेकिन असहमत अब भी हूँ :)
यह चर्चा मेरी महाभारत व...लेकिन असहमत अब भी हूँ :) <br /><br />यह चर्चा मेरी महाभारत वाली श्रुंखला में जारी रख सकते हैं, यहाँ इस पोस्ट का विषय परिवर्तित हो रहा है |Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-25087257055778254252012-05-12T11:30:37.487-04:002012-05-12T11:30:37.487-04:00@जब प्रभु अवतार लेकर आते हैं - तो वे मानव मर्यादाओ...@जब प्रभु अवतार लेकर आते हैं - तो वे मानव मर्यादाओं में खुद को बाँध कर आते हैं, और मानव मर्यादाओं से विवश होते हैं | श्री राम भी मर्यादाओं में बंधे थे|<br /><br />शिल्पा जी,<br />जैसे आपने क्रोध और मन्यु के अन्तर को जान लिया ठीक वैसे ही विवशता और मर्यादा में अन्तर है। क्रोध और मन्यु में बारीक नहीं नितांत विरोधी अन्तर है। चिंतन अति सुक्ष्म जरूर है पर भारी अन्तर है मन्यु कल्याणकारी है वहीं क्रोध पतनकारी। <br /><br />अनुशासन मर्यादा संयम आदि में आत्मनियंत्रण है। स्वयं खुद पर स्वीकार किया गया संकल्प या प्रण। किन्तु विवशता, लाचारी, परवशता किसी बाहरी शक्ति य विचार द्वारा थोपा गया होता है। किसी भी तरह की प्रतिकूलताओं से शिथिल बनकर लाचार या विवश हो जाने वाला कायर ही कहलाएगा। कौन उसे वीर का सम्मान देगा। किन्तु दृढ मनोबल से स्वयं पर अनुशासन करने वाला, मर्यादा धारी निश्चित ही वीर माना जाएगा।<br /><br />इसलिए विवशता/ लाचारी/ परवशता जिस किसी प्रकार से जन्मे, भय से ही उत्पन्न होती है। कुछ खो देने का भय, बुरा माना जाने का भय, अपनो को खो देने का भय, प्रेम से वंचित रहने का भय, सम्मान खोने का भय। और जो भय से भयाक्रांत हो जाय कायर ही होता है। <br />जो ऐसे सभी भय से उभर कर उन भय के कारणों को समूल नष्ट करने निदान स्वरूप मर्यादाएं धारण करता है शौर्यवान कहलाता है। इसलिए मर्यादा व विवशता भी परस्पर विपरित भाव है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-54519840391968635152012-05-12T10:15:19.643-04:002012-05-12T10:15:19.643-04:00बिलकुल सच है | मूल में तो अहंकार ही है |बिलकुल सच है | मूल में तो अहंकार ही है |Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-45012174020934200762012-05-12T10:10:42.062-04:002012-05-12T10:10:42.062-04:00जी | आभार |जी | आभार |Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-62602744375587753292012-05-12T09:55:15.377-04:002012-05-12T09:55:15.377-04:00@ऊपर के उदाहरण में भीम और अर्जुन क्रोधित थे - लाचा...@ऊपर के उदाहरण में भीम और अर्जुन क्रोधित थे - लाचारी से<br />कृष्ण ने वस्त्रापूर्ति की, जिसके लिये क्रोध की आवश्यकता नहीं थी। भीम, अर्जुन चाहते तो बिना क्रोधित हुए भी सारी सभा भंग कर सकते थे, जो महाभारत अंततः हुआ वह एक दिन में निबट सकता था यदि उस दिन कायरता की छाँव न होती। कायरता ही रहेगी, उसका बहाना वचन, कर्तव्य, मज़हब जो भी हो, वह लाचारी, क्रोध, बल्कि क्रूरता के रूप में भी प्रस्फुटित हो सकती है।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-77897351146805846302012-05-12T04:02:42.221-04:002012-05-12T04:02:42.221-04:00आदरणीय अनुराग जी - आभार |
आदरणीय सुज्ञ जी - आपका...आदरणीय अनुराग जी - आभार | <br /><br />आदरणीय सुज्ञ जी - आपका आभार | पहली बात तो - please इसे अनधिकार चेष्टा न कहें | मैं इस विषय की एक विद्यार्थी भर हूँ - और आप और अनुराग जी जैसे विद्वानों से विषय को समझने के प्रयास में प्रश्न कर रही हूँ - बस | शिष्य के पूछने पर गुरु का समझाना - अनाधिकार चेष्टा नहीं होती :) | गीता में कहा गया है कि "प्रश्न और परिप्रश्न कर के ही विषय को ठीक से समझा जा सकता है |" सो आप दोनों ज्ञानीजनों से पूछ रही हूँ |<br /><br />मेरे विचार में <b>ये सब कमजोरियां - सब एक दूसरे को पोषित करती संगिनियाँ, सखियाँ, सहेलियां तो है - परन्तु ये सब "एक ही" नहीं हैं |</b> विवशता/ लाचारी/ परवशता अनेक प्रकार से जनित हो सकती है - आवश्यक नहीं की वह कायरता जनित ही हो | जैसे - जब प्रभु अवतार लेकर आते हैं - तो वे मानव मर्यादाओं में खुद को बाँध कर आते हैं, और मानव मर्यादाओं से विवश होते हैं | श्री राम भी मर्यादाओं में बंधे थे |<br /><br />ऊपर के उदाहरण में भीम और अर्जुन क्रोधित थे - लाचारी से - क्योंकि वे भ्रम वश यह समझ बैठे थे की भाई के अधर्म (पत्नी को दांव पर लगाना ) को भी शिरोधार्य करना उनका कर्त्तव्य है | वे लाचार हुए - द्रौपदी का अपमान हुआ - वे क्रोधित हुए | इसी प्रकरण में - भीष्म भी लाचार थे - क्योंकि उन्होंने स्वयं को प्रतिज्ञा में बांध लिया था, द्रोण भी लाचार थे - क्योंकि द्रुपद से बदला लेने के लिए उन्होंने स्वयं को धुताराष्ट्र का रिनी बना लिया था | इसमें कायरता नहीं थी - <b>भीम, अर्जुन, भीष्म, द्रोण - इनमे से एक भी व्यक्ति किसी भी परिभाषा से कायर नहीं था उस वक्त - लेकिन विवश ये सभी थे</b> | क्योंकि इसमें ये सब ही निज क्षति के डर से नहीं बल्कि अपनी अपनी मर्यादा से विवश थे | विवशता और कायरता के बीच वैसी ही पतली रेखा है - जैसी मन्यु और क्रोध के बीच है |Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-53064706195986145712012-05-12T02:04:07.946-04:002012-05-12T02:04:07.946-04:00superiority complex और inferiority complex दोनो ही...superiority complex और inferiority complex दोनो ही अहंकार जनित अवगुण या कमजोरियाँ है। अहंकार पर चोट या अहंकारवश क्रोध की उत्पत्ति प्रमाणीत सिद्ध है। विवशता लाचारी के कारण क्रोध आने के पिछे भी आखिर तो अहंकार अभिमान ही तो कारण है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-65781186492573262842012-05-12T00:32:57.250-04:002012-05-12T00:32:57.250-04:00शिल्पा जी, आपकी बात सही है, कमज़ोरियाँ एक दूसरे की...शिल्पा जी, आपकी बात सही है, कमज़ोरियाँ एक दूसरे की सगी होती हैं। किसी ज़ंजीर को तोड़ने के लिये सबसे कमज़ोर कड़ी को तोड़ना काफ़ी है। <br /><br />सुज्ञ जी, आपके विद्वतापूर्ण विचारों और अनुभवी दृष्टि का सदा स्वागत है, कृपया अनाधिकार कहकर शर्मिन्दा न करें। क्रोध और कायरता का सम्बन्ध स्पष्ट करने का आभार!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-12386246090411693612012-05-12T00:23:52.625-04:002012-05-12T00:23:52.625-04:00विद्वानों की सभा में अनधिकार घुसने का प्रयास कर रह...विद्वानों की सभा में अनधिकार घुसने का प्रयास कर रहा हूँ… :)<br /><br />@कायरता वाली बात कुछ समझ आ नहीं रही | <br /><br />मान्यवर्या शिल्पा जी,<br /><br />'क्रोध' पर हम समग्र दृष्टि से चिन्तन करें तो 'कायरता' स्पष्ट परिलक्षित होती है।<br />लाचारी, मजबूरी, विवशता, परवशता सभी कायरता के ही लक्षण है, बस मात्र कायरता के भद्र संरक्षण शब्द मात्र। वीर कितने भी दुष्कर विचार के आगे न लाचार होता है न विवश न उस विचार के वश होता है। सुक्ष्म चिंतन करें, क्रोध स्वयं विवशता जैसी कमजोरियों की देन है। और विवश परवश होना कायरता ही है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-60956313745606769522012-05-12T00:05:58.865-04:002012-05-12T00:05:58.865-04:00एक और प्रश्न |
क्या superiority complex या inferi...एक और प्रश्न | <br />क्या superiority complex या inferiority complex भी क्रोधके कारक होते होंगे ?<br /><br />superiority complex अर्थात झूठी श्रेष्ठता के अवधारणा की वजह से इससे ग्रसित व्यक्ति अपने विचारों को दूसरो के विचारों से श्रेष्ठ मान कर अपनी विचारधारा को सारे समाज पर थोपने का प्रयास करेगा - और स्वाभाविक ही है की इसमें सफल नहीं होगा | न इस जनतंत्र के समय में, न पुराने राजतंत्र के समय में (राजा और मंत्रियों के अलावा बाकी नागरिक जन तब भी बराबर माने जाते होंगे | न राम राज्य में, न रावण राज्य में | जो सच ही में श्रेष्ठ हों, उनकी बात और है - क्योंकि उनकी बातें लोग follow करते हैं - जैसे - सुभाषचंद्र बोस जी | मैं सच्ची superiority की नहीं, false सुपेरिओरिटी काम्प्लेक्स की बात कर रही हूँ | इस असफलता से जनित पराजय, निराशा और कुंठा से फिर क्रोध आएगा |<br /><br />inferiority complex अर्थात हीनभावना से ग्रसित व्यक्ति अपने ही मन में यह माने बैठा होगा की मैं हीन हूँ, दूसरों से कमतर हूँ | तब - दूसरे उसे भले ही नीचा न दिखा रहे हों, उसका अपमान न कर रहे हों, तब भी उसे बारम्बार यह भ्रान्ति होती रहेगी की वह अपमानित किया जा रहा है | इससे जन्म लेगी कुंठा और कुंठा से जन्म लेगा क्रोध | <br /><br />क्या यह कारण logical लगते हैं ?Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-42846587806728160272012-05-11T23:03:38.903-04:002012-05-11T23:03:38.903-04:00आभार |
जी - क्रोध वीरता तो हरगिज़ नहीं है - क्रोध...आभार |<br /><br />जी - क्रोध वीरता तो हरगिज़ नहीं है - क्रोध एक कमजोरी है , नकारात्मक ऊर्जा है, हार और लाचारी का आभास है, ..... आदि तो मैं मानती हूँ | कायरता वाली बात कुछ समझ आ नहीं रही | मेरी ही अल्पबुद्धि का दोष होगा :)<br /><br />जी - इशोपनिषद से शुरुआत करती हूँ | आगे मार्गदर्शन दीजियेगा :)Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-389494201472682482012-05-11T22:53:35.457-04:002012-05-11T22:53:35.457-04:00नई टिप्पणी के लिये आभार! सुन्दर और सटीक उदाहरण। आप...नई टिप्पणी के लिये आभार! सुन्दर और सटीक उदाहरण। आपने तीन बिन्दुओं पर बातें कीं, 1. क्रोध के कारणों में कायरता या लाचारी, 2. साक्षी व निमित्त भाव, और 3. उपनिषदों का अध्ययन, मैं अपनी बात कहने का प्रयास कर रहा हूँ: <br /><br />1. कायरता या लाचारी क्रोध के अनेकानेक कारणों में से हैं और उन्हें सन्दर्भ और परिप्रेक्ष्य में देखना होगा। क्रोध वीरता है या वीरोचित गुण है - इस बात से शुरू हुई इस वार्ता में मन्यु का ज़िक्र करते हुए क्रोध का वही सन्दर्भ मुख्यतः आया है। क्रोध वीरता से न केवल अलग है बल्कि उसका विरोधी अवगुण है और स्वभावतः कायरता है। जहाँ लाचारी, अभिमान आदि क्रोध के कारकों में से हैं वहीं क्रोध स्वयम्ं कायरता का ही एक रूप है।<br /><br />2. मैं शायद इसकी शास्त्रीय व्याख्या का अधिकारी नहीं हूँ। कुछ भक्तों से समझने का प्रयास किया मगर शायद मेरी बुद्धि अभी उतनी तरल नहीं हुई है कि पूरी तरह ग्रहण कर सकूँ। फिर भी मेरे विचार में कर्तव्य निर्लिप्त होकर किया जाना चाहिये। मैं (और मेरे - मित्र, शत्रु, स्वार्थ, धर्म, देश, लिंग, जाति, भाषा, क्षेत्र, आयु, वैवाहिक-सामाजिक-आर्थिक स्थिति आदि) से ऊपर उठे बिना साक्षी या निमित्त कैसे हुआ जा सकता है?<br /><br />3. अध्ययन के बारे में भी मैं निपट अनाड़ी हूँ, फिर भी ईशोपनिषद से आरम्भ करने को कहूँगा। इसमे केवल 18 मंत्र हैं। मैने पहला स्क्रिप्चर वही समझा था। <br /><br />शुभमस्तु!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.com