tag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post2967647201778981965..comments2024-03-23T20:44:05.692-04:00Comments on * An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीय *: चुटकी भर सिन्दूरSmart Indianhttp://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comBlogger43125tag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-80931740688165401162012-08-06T18:35:27.918-04:002012-08-06T18:35:27.918-04:00खामख्वाह सुलगने वालों के लिये 'निठल्लू का चूल्...खामख्वाह सुलगने वालों के लिये 'निठल्लू का चूल्हा' प्रतीक मज़ेदार है। :)Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-25191765831230998602012-07-05T15:55:34.033-04:002012-07-05T15:55:34.033-04:00लोग विचारने लगें तो फिर दिक्कत ही क्या थी :)लोग विचारने लगें तो फिर दिक्कत ही क्या थी :)Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-8597183360827869982012-07-05T11:40:25.617-04:002012-07-05T11:40:25.617-04:00आपकी पर उपदेश देने वालों पर की गई बात बहुत सही है....आपकी पर उपदेश देने वालों पर की गई बात बहुत सही है. <br />बढ़िया लेख.<br />आज ही मैंने मुम्बई में नर्सों से सज संवार की अपेक्षा पर लेख लिखा है.<br />घुघूतीबासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-54953519346737999682012-07-04T10:33:25.903-04:002012-07-04T10:33:25.903-04:00Mere sanskaar samaaj kee den hain. Alag-alag samaa...Mere sanskaar samaaj kee den hain. Alag-alag samaaj me alag-alag reeti-riwaaj hain. Apane reeti-riwaajon ko uchch samajhanaa manushya kee kamjoree hai. Apne riwaajon ko ham datum maante hain. Usase nimna ko ghrinashpad aur uphaas yogya.Maithil brahmanon men machhalee kaa prachlan hai. Atah we log murgaa yaa phir anya maansaahar se ghrina lekin machhalee kee prashansaa kartehain. Anya shaakaahaaree brahmanon ke liye machhalee bhee tyaajya hai. Lahsun-pyaaj nahee khaane balon ke liye ye shaakaahaar bhee tyaajya hain.kamaljeehttps://www.blogger.com/profile/03272383786479759149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-59006399375600735902012-07-03T13:19:05.506-04:002012-07-03T13:19:05.506-04:00बात नई बिलकुल ही नहीं है किन्तु कहने का ढंग एकदम ...बात नई बिलकुल ही नहीं है किन्तु कहने का ढंग एकदम नया, अनूठा और भरपूर रोचक। किसी को निशाने पर लिए बिना सब को, सब कुछ कह देने का ऐसा तरीका पहली ही बार देखा/जाना।<br /><br />वाह।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-68441389668122494672012-07-03T07:21:34.707-04:002012-07-03T07:21:34.707-04:00अनुराग भाई..बहुत ही भावपूर्ण पोस्ट लिखी है आपने!!!...अनुराग भाई..बहुत ही भावपूर्ण पोस्ट लिखी है आपने!!!विक्रांत बेशर्माhttps://www.blogger.com/profile/07105086711896834472noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-18789167875126042372012-07-03T06:25:53.647-04:002012-07-03T06:25:53.647-04:00क्या ही अच्छा हो जिसका जो मन हो उसको वैसा करने दिय...क्या ही अच्छा हो जिसका जो मन हो उसको वैसा करने दिया जाय ... हां परम्परा का पालन जरूर हो पर दोनों तरफ से हो तो अच्छा है ... दबाव न हो तो जयादा अच्छा है ..दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-87647696411420487462012-07-03T05:14:48.924-04:002012-07-03T05:14:48.924-04:00श्रंगार व्यक्ति की रूचि पर छोड़ देना चाहिए...श्रंगार व्यक्ति की रूचि पर छोड़ देना चाहिए...Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-60098941959694880002012-07-03T01:34:40.796-04:002012-07-03T01:34:40.796-04:00सजना संवरना सबको पसंद है, यह एक अच्छी बात भी है दे...सजना संवरना सबको पसंद है, यह एक अच्छी बात भी है देखने भर से आप उस व्यक्ति के व्यक्तित्व का अंदाजा लगा सकते है !<br />कई बार सौन्दर्य के पीछे कुरूप मन भी दिखाई देता है इसलिए उपरी सजा संवरा सौन्दर्य तात्कालिक प्रभावित करता है ! तन के साथ अगर मन भी सुंदर हो तो <br />क्या बात है ! सुहाग के चिन्ह केवल प्रेम के प्रतीक है,जिसे परम्परा का हिस्सा बनाया गया है ! वैसे भी आजकल स्त्री, पुरुष की सोच में <br />काफी परिवर्तन आ चूका है क्या पहने क्या न पहने ये उनकी व्यक्तिगत सोच है !<br />बेहतरीन आलेख .....आभार !Sumanhttps://www.blogger.com/profile/02336964774907278426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-3744686712868684782012-07-03T00:24:17.013-04:002012-07-03T00:24:17.013-04:00मुझे लगता है सजने धजने से आदमी मे आत्मविश्वास भी आ...मुझे लगता है सजने धजने से आदमी मे आत्मविश्वास भी आता है। इस बार सोचा था कि अब बाल सफेद ही रहने दूँ मगर खुद को सच मे उम्र से अधिक बूढी महसूस करती हूँ बीमारी मे सजने संवरने का दिल नही होता लेकिन मैने महसूस किया है कि जिस दिन खुद पर कुछ ध्यान दूँ उस दिन खुद को स्वस्थ महसूस करती हूँ।ापने मन मुताविक आदमी को जरूर शालीनता सेसज धज कर रहना शाहिये। शुभकामनायें।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-75703447905704860722012-07-02T23:59:47.907-04:002012-07-02T23:59:47.907-04:00व्यक्तिगत स्वतंत्रता से ही रोचक विविधता संभव होती ...व्यक्तिगत स्वतंत्रता से ही रोचक विविधता संभव होती है, जो जीवन में रंग भरती है.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-51818982975532159592012-07-02T22:28:59.307-04:002012-07-02T22:28:59.307-04:00पारंपरिक साज-श्रृंगार का अपना महत्त्व है.यह किसी क...पारंपरिक साज-श्रृंगार का अपना महत्त्व है.यह किसी के लिए संस्कार तो किसी के लिए महज़ फैशन भर का मामला है.इसलिए दोनों स्थितियाँ अपनी-अपनी जगह सही हैं.आज हम जबरन मांग में सिन्दूर नहीं भरवा सकते.विवाहित स्त्री के लिए ही पहले से इस तरह के नियम बने हैं,पुरुषों के लिए नहीं.संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-4258087748101106622012-07-02T22:02:04.335-04:002012-07-02T22:02:04.335-04:00वस्त्राभूषण की रूचि-अरूचि, प्रदर्शन-प्रतीक, सहजता-...वस्त्राभूषण की रूचि-अरूचि, प्रदर्शन-प्रतीक, सहजता-असहजता सभी व्यक्तिगत मंतव्यों और मानसिकता के अधीन रहते है। कोई महिला अगर अपने तरीके से सज-संवर कर ही आत्मगौरव महसुस करना चाहती है तो उसे अधिकार है वहीं कोई विधवा निर्धारित सुहाग-चिह्न का परित्याग कर शोक-दुखादि को प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त करना चाहती है तो यह भी उसका अधिकार है, बस बचा जीवन महत्वपूर्ण है, वह कुछ भी निर्धारण करे उसके अपने लिए सहज होना चाहिए।<br /><br />मध्यकाल में जब नारी पराश्रीत थी सुहाग का बहुत बड़ा महत्व था तब उसी महत्व को रेखांकित करते प्रतीक चिह्नों का अभ्युदय हुआ। अब वह समर्थ है और अपने पैरों पर जीवन-संग्राम कर सकती है। ऐसे में प्रतीक औचित्यहीन हो जाते है और शृंगार व्यक्तिगत रूचि तक सीमित।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-68338007682482763662012-07-02T12:36:35.244-04:002012-07-02T12:36:35.244-04:00हम महिलाएँ तो ये सब लिख-लिख कर थक गए...अब आपके लिख...हम महिलाएँ तो ये सब लिख-लिख कर थक गए...अब आपके लिखने का ही असर हो शायद और महिलाओं को उनके हाल...उनकी रुचिनुसार श्रृंगार के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया जाये.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-39463312710849469232012-07-02T12:19:46.899-04:002012-07-02T12:19:46.899-04:00सिंदूर ,चूड़ी आदि शृंगार प्रसाधनों में गिनाये गये ...सिंदूर ,चूड़ी आदि शृंगार प्रसाधनों में गिनाये गये हैं .आज प्रतिमान बदल रहे हैं <br />अब महिलायें बाहर निकल कर काम करती हैं जहाँ निर्धारित सुहाग-चिह्न पहन कर जाना उन्हें अपने कार्य-स्थल के अनुकूल नहीं लगता.उनका अपना व्यक्तित्व है .कैसे रहें यह उनकी व्यक्तिगत रुचि की बात है.प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-6875706710805307722012-07-02T12:16:25.915-04:002012-07-02T12:16:25.915-04:00हमेशा से यही मानना रहा है कि यह सबकी
अपनी इच्छा पर...हमेशा से यही मानना रहा है कि यह सबकी<br />अपनी इच्छा पर निर्भर है कि वे क्या पहने और कैसे रहें ...... ? वैसे हमारे समाज और परिवारों में आजकल टोकाटाकी काफी कम हो गयी है ..... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-5891621130398476382012-07-02T12:13:02.655-04:002012-07-02T12:13:02.655-04:00Bhool sudhaar :
बहुत ही महत्वपूर्ण विषय,
धन्यवाद!...Bhool sudhaar :<br /><br />बहुत ही महत्वपूर्ण विषय,<br />धन्यवाद!स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-13372413598650878862012-07-02T12:12:47.732-04:002012-07-02T12:12:47.732-04:00अधिकतर लोग अपने लिए अलग पैमाने बनाते हैं और दूसरों...अधिकतर लोग अपने लिए अलग पैमाने बनाते हैं और दूसरों के लिये अलग. इसी का नतीजा है ये सब.दयानिधि वत्सnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-46708239427923034752012-07-02T12:04:19.934-04:002012-07-02T12:04:19.934-04:00क्या ही अच्छा होता हम भी देख पाते लोगों को खलीता, ...क्या ही अच्छा होता हम भी देख पाते लोगों को खलीता, धोती, गमछा, जनेऊ और खडाऊं पहने हुए। रोज़-रोज़ पतलून, पैंट-शर्ट, कोट, टक्सीडो , सफारी, जैकेट, विंड चीटर, रंनिंग शूज, बूट, शूज पहने देख कर तंग आ गए हैं। भारतीयता भारतीय पुरुषों में देखने को आँखें तरस गयीं हैं अब तो । :)<br />बहुत महत्वपूर्ण ही विषय, <br />धन्यवाद!स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-73786290217921757452012-07-02T11:27:20.483-04:002012-07-02T11:27:20.483-04:00समाज अपनी दिशा स्वयं तय कर लेगा।समाज अपनी दिशा स्वयं तय कर लेगा।बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-26763331407140520332012-07-02T10:18:39.092-04:002012-07-02T10:18:39.092-04:00अच्छा लगना अति व्यक्तिगत है, उस पर टोका टोकी क्यों...अच्छा लगना अति व्यक्तिगत है, उस पर टोका टोकी क्यों की जाये भला..प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-35155149253106657522012-07-02T10:03:03.166-04:002012-07-02T10:03:03.166-04:00सजाव श्रृंगार के मामले में एक दिक्कालीय सांस्कृतिक...सजाव श्रृंगार के मामले में एक दिक्कालीय सांस्कृतिक सापेक्षता है मगर अब विश्व एक साझे सांस्कृतिक युग की और बाद रहा है -सौदर्य के ये सभी प्रतिमान बदल ही जायेगें देर सबेर ....मेरे मन की बात तो यह है कि सहज सौन्दर्य को इनमें से किसी भी बनाव श्रृंगार की दरकार नहीं है!Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-272725052020363692012-07-02T09:30:52.274-04:002012-07-02T09:30:52.274-04:00शानदार आलेख।
सजना-संवरना, स्मार्ट और सुंदर बने रह...शानदार आलेख।<br /><br />सजना-संवरना, स्मार्ट और सुंदर बने रहना, सजग रहने की निशानी है। सफेद बाल लिये, दाढ़ी बढ़ाकर घूमना जीवन जीने की अपनी शैली हो सकती है लेकिन जो अपनी सुंदरता के प्रति सचेत रहते हैं उनकी आलोचना करना बुरी बात है। यह भी देखने की बात है कि लापरवाही कौन कर रहा है। वे जो वैज्ञानिक हैं, दार्शनिक हैं, हमेशा अपनी सोंच में डूबे रहने वाले कवि हैं या वो जो 'काम का न काज का दुश्मन अनाज का' है और 'निठल्लू का चूल्हा' बना बेमतल सुलग रहा है।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-49745638557222385922012-07-02T09:18:05.070-04:002012-07-02T09:18:05.070-04:00सिंदूर लगाना
प्रेम का प्रतीक हैं या सुहागिन होने क...सिंदूर लगाना<br />प्रेम का प्रतीक हैं या सुहागिन होने का ??<br />शादी क्या मन से होती हैं या इसमे तन का होना अति आवश्यक हैं<br />रेखा जिस को प्रेम करती हैं<br />वो जब तक इस दुनिया में हैं रेखा अपने को सुहागिन मान रही हैं<br />अगर रेखा ने अपने मन से किसी को अपना सर्वस्व मान लिया हैं तो क्या ये करना गुनाह है ??<br />प्रेम की पराकाष्ठा विवाह नहीं हैं प्रेम की पराकाष्ठा प्रेम करने वाले का समर्पण हैं जिस से वो प्रेम करता हैं उसके लिये<br />विवाह सामजिक बंधन हैं , प्रेम मन का बंधन हैं<br />सिंदूर सिंगार भी हो सकता हैं , प्रेम की पराकाष्ठा का प्रतीक भी हो सकता हैं<br />रेखा की मांग में सिंदूरी रेखा , अमित { टंकण की गलती की हैं } प्रेम हैंरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-67938942284369919582012-07-02T08:50:52.326-04:002012-07-02T08:50:52.326-04:00अद्भुत श्रृंगारिक ज्ञानवर्धक जानकारी मिली .श्रृंगा...अद्भुत श्रृंगारिक ज्ञानवर्धक जानकारी मिली .श्रृंगार महिला ही नहीं पुरुषों का भी प्रिय शौक है , <br />कृष्ण को ही देख लीजिये ......Ramakant Singhhttps://www.blogger.com/profile/06645825622839882435noreply@blogger.com