tag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post3019972917986592645..comments2024-03-23T20:44:05.692-04:00Comments on * An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीय *: शाकाहार और हत्याSmart Indianhttp://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-19359693784250169602013-02-11T05:04:50.186-05:002013-02-11T05:04:50.186-05:00मुझे गर्व है शाकाहारी और हिन्दू होने पर मुझे गर्व है शाकाहारी और हिन्दू होने पर Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09595674099856188551noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-10834105159422158882013-02-11T05:02:42.594-05:002013-02-11T05:02:42.594-05:00bahut sundar yahi hai ................mansahar ko ...bahut sundar yahi hai ................mansahar ko muh tod jawab<br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09595674099856188551noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-4539330347437886632010-11-23T01:19:19.085-05:002010-11-23T01:19:19.085-05:00अस्त्र फेंककर मारा जाता है| शस्त्र को फेंका नहीं ज...अस्त्र फेंककर मारा जाता है| शस्त्र को फेंका नहीं जाता| मैंने किसी का कमेन्ट नहीं पढ़ा जवाब देने से पहले, इसलिए मेरे जवाब को बेमान्टी न समझा जाए :)Neerajhttps://www.blogger.com/profile/11989753569572980410noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-90725901863745631692008-09-10T14:08:00.000-04:002008-09-10T14:08:00.000-04:00भईया हम करीब १५,१६ साल से शाका हारी हुये हे, हम क्...भईया हम करीब १५,१६ साल से शाका हारी हुये हे, हम क्या हमारे साथ साथ कई जर्मन भी शाका हारी हुये हे ओर जब हम मांसा हारी थे ओर फ़िर शाका हारी हुये इन् दोनो मे हम ने अपने आप मे बहुत परिबर्तन देखा.<BR/>आप का लेख बहुत ही अच्छा लगा धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-21199555808570357892008-09-10T09:45:00.000-04:002008-09-10T09:45:00.000-04:00अच्छा आलेख!!अच्छी जानकारी मिली, आभार.-------------...अच्छा आलेख!!अच्छी जानकारी मिली, आभार.<BR/><BR/>-------------<BR/><BR/>आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-26683697353999863902008-09-10T09:05:00.000-04:002008-09-10T09:05:00.000-04:00सारे लेख पढ़े, अभिषेक जी के भी! द्विवेदीजी और रंजना...सारे लेख पढ़े, अभिषेक जी के भी! द्विवेदीजी और रंजना जी की टिप्पणि(यां) बहुत सही थी। मैं शुद्ध शाकाहारी हूँ और कुछेक मांसाहारियों को शाकाहारी बनाने की धृष्टता भी कर चुका हूँ। <BR/>पर एक बात देखी है जिन लोगों ने ठान ही लिया है कि उन्हें वही भोजन करना है, उन्हें आप कितने ही तर्क दे दो, वे उससे ज्यादा कुतर्क मांसाहार के समर्थन में दे देंगे...सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-13064779961234570452008-09-10T07:19:00.000-04:002008-09-10T07:19:00.000-04:00Anonymous said... yadi aapki baaten log amal me la...Anonymous said... <BR/>yadi aapki baaten log amal me laane lage to aisa hoga ki baap boodha ho jaayega to bete jibah kar lenge aur daawat udayenge.<BR/>September 10, 2008 5:26 AM "<BR/><BR/>एनोनीमस जी , स्वस्त भोजन करेंगे तो आपकी तर्क क्षमता भी बढेगी और ऐसे बेतुके विचार आपके दिमाग में नहीं आयेंगे. एक महीने तक कर के देखिये - आपकी झुंझलाहट भी कम होगी और इंशा अल्लाह आपका कमेन्ट भी बेहतर हो जायेगा. <B>इंग्लॅण्ड की जेलों में ऐसे प्रयोग हुए हैं जहाँ अच्छा खाना खाने से अपराधियों की मनोवृत्ति में गज़ब का सुधार आया.</B><BR/><BR/>परवरदिगार आप पे और आपके बुढापे पर रहम करे और आपके <B>बेटों</B> को आप पर दया करने की सद्बुद्धि दे!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-89952319462334515362008-09-10T07:14:00.000-04:002008-09-10T07:14:00.000-04:00@ दीपक जी,बहुत धन्यवाद, सवाल को मान देने के लिए. आ...@ दीपक जी,<BR/>बहुत धन्यवाद, सवाल को मान देने के लिए. आपने अस्त्र और शास्त्र में जो अन्तर बताया है वह सही है मगर शब्दार्थ कुछ हिल गए हैं यह ब्रह्मास्त्र, परमाण्विक अस्त्र, आग्नेयास्त्र आदि से पता लगता है. <BR/><BR/>@अभिषेक जी,<BR/>अस्त्र-शास्त्र का आपका अन्तर बिल्कुल ठीक है. साथ ही इस श्रृंख्ला लिखने को उकसाने के लिए (कोई बुरा अर्थ नहीं है - हनुमान जी को भी समुद्र फलांगने के लिए उकसाना पड़ा था) ढेरों धन्यवाद.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-50164329924193471742008-09-10T06:03:00.000-04:002008-09-10T06:03:00.000-04:00बहुत सुंदर लिखा है. बधाईबहुत सुंदर लिखा है. बधाईशोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-71177987938566362442008-09-10T05:49:00.000-04:002008-09-10T05:49:00.000-04:00अच्छी व्याख्या चल रही है... अस्त्र फ़ेंक कर चलाये ज...अच्छी व्याख्या चल रही है... अस्त्र फ़ेंक कर चलाये जाने वाले हथियार को कहते हैं और शस्त्र हाथ में रखकर चलाये जाते हैं.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-37775359772757842122008-09-10T05:26:00.001-04:002008-09-10T05:26:00.001-04:00yadi aapki baaten log amal me laane lage to aisa h...yadi aapki baaten log amal me laane lage to aisa hoga ki baap boodha ho jaayega to bete jibah kar lenge aur daawat udayenge.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-37755054266223441862008-09-10T05:26:00.000-04:002008-09-10T05:26:00.000-04:00yadi aapki baaten log amal me laane lage to aisa h...yadi aapki baaten log amal me laane lage to aisa hoga ki baap boodha ho jaayega to bete jibah kar lenge aur daawat udayenge.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-78296116729720214452008-09-10T04:13:00.000-04:002008-09-10T04:13:00.000-04:00शाकाहार पर लिखी आपकी सभी पोस्ट पढ़ी.आपकी बहुत बहुत ...शाकाहार पर लिखी आपकी सभी पोस्ट पढ़ी.आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ जो आपने इस विषय पर इतना सार्थक,इतना कुछ कहा.यूँ तो ऐसा नही है कि इन बातों को पढ़कर मांसाहारी शाकाहरी हो जायेंगे.पर हम आशा तो कर सकते हैं कि शायद यह किसी के मन को छू जाए तो आज न सही कल को शाकाहार को प्रेरित हो जायें.जो यह कहते हैं कि सभ्य समाज में भी पुरातन काल में भी मांस भक्षण का प्रचलन था,तो पहली बात तो यह कि यदि यह प्रचलन था भी तो यह नही भूलना चाहिए कि उस समय विशेष में तो नरबलि का भी प्रचलन था और धर्म के नाम पर पशु ही नही मनुष्यों कि भी बलि दी जाती थी पर समय के साथ मनुष्य समाज ने नरबलि को निषिद्ध कर दिया.कई क़ानून बने और इसे धार्मिक कृत्य नही,हत्या का दर्जा दिया गया.आज ये निरीह पशु पक्षी अपनी रक्षा को एकजुट नही हो सकते तो मनुष्य अपने शक्ति सामर्थ्य का दुरूपयोग कर उनकी हत्या करने को स्वतंत्र है.हाँ,पुरातन काल में मांसभक्षण का प्रचलन था परन्तु इसे तब भी तामसिक भोजन ही माना जाता था और अधिकांशतः क्षत्रियों में तथा सैनकों को युद्ध में नरसंहार को उत्प्रेरित करने हेतु इस प्रकार का तामसिक आहार खिलाया जाता था.मांस मदिरा ये सब विलास तथा अखाद्य तामसिक आहार कि श्रेणी में आते थे.<BR/>आज यदि हम स्वयं को सभ्य सुसंस्कृत मानते हैं तो क्या हमें अपने आहार विहार को सुव्यवस्थित कर खाद्य अखाद्य पर पुनर्विचार नही करना चाहिए ?<BR/>जीभ के स्वाद के लिए किसी कि हत्या करना कहाँ तक जायज है.?कहा जाता है कि पेड़ पौधों में भी तो जीवन होता है,शाकाहार भी करें तो भी तो उसकी भी तो हत्या करते हैं.बात सही है कि पेड़ पौधों में भी जीवन होता है.परन्तु "जड़" और "चेतन" इन दो शब्दों से तो लोग परिचित होंगे ही.पेड़ पौधे जड़ और मनुष्य के साथ सभी चलायमान जीव चेतन की श्रेणी में आते हैं.प्रकृति ने प्रत्येक जीव की संरचना ऐसे की है और समस्त प्रकृति और इसके जीवन चक्र को संतुलित रखने हेतु प्रत्येक जीव के खाद्य अखाद्य की व्यवस्था कर दी है.मनुष्य को छोड़ सभी जीव जंतु प्रकृति के इस नियम का पूर्णतः पालन करते हैं.जिसके लिए जो निर्धारित है वह जीव वही खाता है.मनुष्य के लिए भी जैसी उसकी शारीरिक संरचना है उसके लिए शाकाहार का ही प्रावधान है.न मनुष्य के दांत ऐसे हैं जो सीधे सीधे मांसाहार कर सके न ही उसकी आंतें ऐसी हैं जो सीधे से कच्चे मांस को पचा सके.तो फ़िर भिन्न भिन्न प्रकार से मसाले तेल लगाकर उसे पकाकर खाने योग्य बनाने में मनुष्य अपनी बुद्धि और योग्यता खर्च करता है और अखाद्य को खाद्य बनाता है..<BR/>मांसाहारी स्वयं एक प्रयोग कर देखें और निर्णय कर लें.सबसे पहले अपने सामने उस पशु विशेष को,जिन्हें वे खाते हैं,मरता हुआ देखें और चाहें तो स्वयः ही उनकी हत्या करें.फ़िर उसे साफ़ सुथरा कर रोजाना सात दिनों तक लगातार मांसाहार करें और चित्त की अवस्था देखें.फ़िर अगले सात दिनों तक जिस किसी देवी देवता को इष्ट मानते हों उसका ध्यान करते हुए पवित्र मन से यह सोचते हुए कि प्रभु तुम्हारे दिए हुए अन्न को तुमको समर्पित करना है यह सोचते हुए भोजन पकाएं भगवान् को अर्पित करें और फ़िर सात दिनों तक विशुद्ध शाकाहार करें.और स्वयं ही इन दोनों सप्ताहों में अपने मानसिक अवस्था का आकलन करें और देखें गुने कि किस काल खंड में मनोअवास्था अधिक शांत और प्रफ्फुल्लित रहा.<BR/>कहा गया है.......जैसा खाओ अन्न ,वैसा होवे मन.........एकदम सत्य कथन है स्वयं ही आजमाकर देख सकते हैं.शाकाहार केवल आहार नही,एक संस्कार भी है जो दया करुणा से मन को भर संवेदनशीलता को प्रखर करती है और एक संवेदनशील व्यक्ति समाज को जितना सुंदर सुव्यवस्थित बना सकता है उतना असंवेदनशील बना सकता है क्या? .रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-9974628664962081742008-09-10T03:22:00.000-04:002008-09-10T03:22:00.000-04:00रोचक ज्ञान दे रहे हैं आप ...रोचक ज्ञान दे रहे हैं आप ...रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-11105328690079212232008-09-10T02:05:00.000-04:002008-09-10T02:05:00.000-04:00भाई आपके ज्ञान को नमन ...आपने कितनी मेहनत इस पोस्ट...भाई आपके ज्ञान को नमन ...आपने कितनी मेहनत इस पोस्ट के लिए की होगी ये दिख ही रहा है ....खास तौर से संस्कृत के शलोको में ......डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-65167130617920985022008-09-10T01:21:00.000-04:002008-09-10T01:21:00.000-04:00यह तो पहले लगा कि हम शाकभोजी यह क्या पढ़ रहे हैं; प...यह तो पहले लगा कि हम शाकभोजी यह क्या पढ़ रहे हैं; पर बहुत दमदार मसाला निकला पोस्ट में। <BR/>कस के जमाये रहिये!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-14135390410499247022008-09-10T01:18:00.000-04:002008-09-10T01:18:00.000-04:00आपने एक उपयोगी चर्चा का लाभ पाठको को दिया ! एवं स...आपने एक उपयोगी चर्चा का लाभ पाठको को दिया ! एवं सभी के अमूल्य विचारो से लाभान्वित किया ! आदरणीय द्विवेदी जी के विचार बड़े उपयुक्त जान पड़े ! unako धन्यवाद ! <BR/>और आपने एक कटु सत्य का खुलासा किया की लोग शाश्त्रो का हवाला देकर किस तरह अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते है ! और गौमांस खाना हो तो अगला श्लोक छोड़ दो ! और हमारे शाश्त्रो के साथ ऐसा ही किया गया है ! आपने बहुत सुंदर विवेचन किया !<BR/>आपका पुन: आभार ! आगे भी कोई ऎसी ही श्रंखला शुरू करिए जिससे आपके पांडित्य और अनुभव का सभी लाभ ले सके !<BR/> धन्यवाद !ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-88132256296364762272008-09-10T00:41:00.000-04:002008-09-10T00:41:00.000-04:00अस्त्र याने जिसका परिचालन हाथ से ही होता है और जो ...अस्त्र याने जिसका परिचालन हाथ से ही होता है और जो हाथ मे ही रहता है जैसे तलवार और शस्त्र याने जिसे फ़ेक कर मारा जाये जैसे भाला इत्यादि॥<BR/><BR/>साभार <BR/>दीपकदीपकhttps://www.blogger.com/profile/08603794903246258197noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-53172762702037750042008-09-10T00:19:00.000-04:002008-09-10T00:19:00.000-04:00द्विवेदी जी,मैं आपसे बिल्कुल सहमत हूँ और आपकी विद्...द्विवेदी जी,<BR/>मैं आपसे बिल्कुल सहमत हूँ और आपकी विद्वता और सहजता का कायल भी हूँ. मैं भी यह मानता हूँ कि मानवता ने बहुत छोटे समय में आदमखोरी से शाकाहार तक की यात्रा पूरी की है. जैसे आपने भविष्य के भोजन की बात की है, उसी सन्दर्भ में मेरा सोचना है कि एक महान विचार को बहुत समय तक रोका नहीं जा सकता है. जैसे कि बहुत से तानाशाह आज भी जनतंत्र को रोकने की असफल कोशिश कर रहे हैं या बहुत से धर्मांध स्वतंत्र विचार का हनन कर रहे है. मगर आख़िर वे होनी (सद्विचार की विजय - सत्यमेव जयते के अनुसार) को कब तक रोक सकेंगे? शाकाहार भी कुछ इसी तरह का विचार है जो मानव के विकास के साथ-साथ प्रखर होना ही है. मैंने जानकर अन्य बहुत से उद्धरणों का ज़िक्र नहीं किया क्योंकि मैं एक बेकार की बहस शुरू किए बिना आम प्रचलित धारणाओं की बात ही करना चाह रहा था.<BR/><BR/>बहुत धन्यवाद, आते रहिये और अपने विचारों से मेरा और अन्य पाठकों का मार्गदर्शन करते रहिये.<BR/>सादर,Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-73259937495230599042008-09-10T00:17:00.000-04:002008-09-10T00:17:00.000-04:00फिरदौस भैया,तारीफ़ के लिए शुक्रिया. आपके द्वारा पढ...फिरदौस भैया,<BR/>तारीफ़ के लिए शुक्रिया. आपके द्वारा पढी गयी "किसी किताब" ने ऐसे लेखों की ज़रूरत को सिद्ध कर दिया. धन्यवाद.<BR/><BR/>जितेन्द्र जी, <BR/>आपने सारी कड़ियाँ ध्यान से पढीं और अपने विचार भी रखे - आभार!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-13362994009960821642008-09-10T00:07:00.000-04:002008-09-10T00:07:00.000-04:00sunder vyakhya!sunder vyakhya!जितेन्द़ भगतhttps://www.blogger.com/profile/05422231552073966726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-69281715285805811572008-09-09T23:45:00.000-04:002008-09-09T23:45:00.000-04:00बहुत अच्छा विषय है...काफ़ी जानकारी मिली...पिछले दिन...बहुत अच्छा विषय है...काफ़ी जानकारी मिली...पिछले दिनों एक किताब पढ़ी थी...उसमें बताया गया था कि भीष्म ने युधिष्ठर से कहा था कि पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए ब्राहमणों को गोमांस खिलाना सर्वोत्तम है...फ़िरदौस ख़ानhttps://www.blogger.com/profile/09716330130297518352noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-11098604180713559132008-09-09T23:24:00.000-04:002008-09-09T23:24:00.000-04:00जब जैविक विकास के क्रम में मनुष्य यानी होमोसेपियन ...जब जैविक विकास के क्रम में मनुष्य यानी होमोसेपियन अस्तित्व में आया तब जंगली था। वहाँ से आज तक उस की सामाजिक विकास यात्रा बहुत लंबी है। हो सकता है भारत में गौमांस भक्षण प्रचलित रहा हो। उस एक श्लोक के अलावा भी इस के अनेक उदाहरण मिल जाएंगे। एक तो महाभारत के वनपर्व में है जहाँ चर्मण्यवती नदी के उद्गम का उल्लेख आता है। लेकिन क्या उस से उस के बाद का विकास धूमिल हो जाएगा? यह एक व्यर्थ का प्रश्न है कि कोई भी जाति पहले क्या खाती थी? मनुष्य ने भी आग के आविष्कार के पहले कच्चा मांस ही खाया होगा अन्य जानवरों की भांति। वे हमारे पूर्वज भी थे। क्या आज कोई भी मांसभक्षी कच्चा मांस खाना चाहेगा? <BR/><BR/>मांसाहार मनुष्य की उस अवस्था का भोजन हो सकता है जब वह विकसित नहीं था। लेकिन उस का भविष्य का भोजन शाकाहार ही है। वही मनुष्य जाति को जीवित रख सकेगा। <BR/>भारत में यदि कभी गौमांस खाया जाता था, तो भी हमें गर्व है कि हम ने इतनी प्रगति की कि हम उसे त्याग सके। हमने इतनी प्रगति की कि हम ने बहुत बड़ी संख्या में शुद्ध शाकाहारी पैदा किए। जिन की संख्या कभी घटती नहीं। हमेशा बढ़ती ही है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com