tag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post6202463826490864366..comments2024-03-23T20:44:05.692-04:00Comments on * An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीय *: क्रोध पाप का मूल है ...Smart Indianhttp://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comBlogger39125tag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-10304286647257443022012-09-30T14:11:26.312-04:002012-09-30T14:11:26.312-04:00आज फिर यहाँ आई हूँ, आज फिर शायद आपका यह आलेख किसी ...आज फिर यहाँ आई हूँ, आज फिर शायद आपका यह आलेख किसी की मदद करेगा | आभार इस विषय पर इतना सघन अध्ययन करने और इसे इतना सरल बना कर हमें देने के लिए |Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-45893277473355028612012-05-06T06:54:02.577-04:002012-05-06T06:54:02.577-04:00@ अक्रोध के साथ किसी आततायी का विवेकपूर्ण और द्वेष...@ अक्रोध के साथ किसी आततायी का विवेकपूर्ण और द्वेषरहित प्रतिरोध करना क्रोध नहीं है। इसी प्रकार भय, प्रलोभन अथवा अन्य किसी कारण से उस समय क्रोध को येन-केन दबा या छिपाकर शांत रहने का प्रयास करना अक्रोध की श्रेणी में नहीं आएगा। स्वयं की इच्छा पूर्ति में बाधा पड़ने के कारण जो विवेकहीन क्रोध आता है वह अधर्म है।<br /><br />aabhaarShilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-44743852995991771222012-03-27T11:49:38.508-04:002012-03-27T11:49:38.508-04:00घुस्से के कारण मेरा करियर खत्म हो गया आप से निवेदन...घुस्से के कारण मेरा करियर खत्म हो गया आप से निवेदन है क्योकि में तो अब खत्म हो चूका हू <br />घुस्सा न करे लोगो ने मुझे संज्ञा दी है एक श्रेष्ठ टीचर पर घुस्से में बद दिमाग व्यक्ति --अवसाद के दोर से गुजर रहा हू -गुस्सा क्यों आता है यह तो में जनता हू पर नियंत्रण करना नहीं आता -<br /><br />मेने वक्त को हराया है पर घुसे ने सब कुछ छीन लिया -इस गुस्से ने मुझे परिपक्व नहीं होने दिया <br /><br />में बहुत आभारी रहूगा यदि कोइ मेरी इस हेतु मदद करे mob --9425449480Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-87804006496667038092011-11-16T03:17:26.932-05:002011-11-16T03:17:26.932-05:00ऐसी सुन्दर, ऐसी युक्तियुक्त परिपक्व विवेचना...साधु...ऐसी सुन्दर, ऐसी युक्तियुक्त परिपक्व विवेचना...साधु साधु !!!!रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-58196327298221265142011-11-15T10:31:21.968-05:002011-11-15T10:31:21.968-05:00सही बात!
क्रोध नष्ट करने की कोशिश जारी है..
ये क...सही बात!<br />क्रोध नष्ट करने की कोशिश जारी है..<br /><br /><br />ये कितनी सही बात है - <br /><br />"क्रोध पाप ही नहीं, पाप का मूल है। अक्रोध पुण्य है, धर्म है, वरेण्य है"abhihttps://www.blogger.com/profile/12954157755191063152noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-10238815049441773592011-11-13T07:13:44.701-05:002011-11-13T07:13:44.701-05:00अक्रोध एक बड़ी ही उच्च कोटि की मनः स्थिति है. क्रोध...अक्रोध एक बड़ी ही उच्च कोटि की मनः स्थिति है. क्रोध की प्रतिक्रिया में प्रतिक्रियाविहीन रहते हुए मन को शांत रख पाना ही अक्रोध है. यह सभी के लिए संभव नहीं ........विशिष्ट लोगों का आभूषण है यह. आमजन के लिए तो क्रोध एक मनः आवेग है जिसे शास्त्रों में धारण किये जाने का निर्देश दिया गया है. यहाँ धारण का अर्थ आभूषण की तरह धारण कर प्रदर्शन करना नहीं है, दमन करना भी नहीं है ....क्रोध के कारणों की स्थिति में उत्पन्न हुए क्रोध को प्रतिक्रिया के रूप में व्यक्त न करना ही क्रोध को धारण करना है. यह धारणा दूध में जल की तरह है ...पूरी तरह मिलकर अदृश्य हो जाना ...या दूध के जैसा ही हो जाना.<br /><br />अब कोई तर्क दे सकता है कि तुलसी बाबा तो कह गए हैं- "......बोले राम सकोप तब, गए तीन दिन बीति....."<br /><br />शायद इसे ही लोग सात्विक क्रोध मान बैठे हैं. जैसाकि आपने कहा "मन्यु " को समझना होगा....इसे समझे बिना नयी कुमान्यताओं के उत्पन्न होने का खतरा है. मन्यु में किसी को क्षति पहुंचाने का भाव नहीं होता....किसी के अहित का भाव नहीं होता. राष्ट्र हित में किसी सैनिक के द्वारा की जाने वाली हिंसा के पीछे मन्यु भाव है. किन्तु चंगेज खान के सैनिकों द्वारा की गयी हिंसा में अधिकारों और संपत्ति के हरण का भाव था. स्थूलरूप में कोई कार्य भले ही एक जैसा दिखे पर उद्देश्यों का अंतर कार्यों की प्रकृति का कारण बन जाया करता है.<br /><br />अपनी संतान के प्रति माता-पिता का या अपने शिष्य के प्रति गुरु का कोपभाव उनके कल्याण की भावना से उत्पन्न होता है. सत्य और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए जिस कठोर बल की आवश्यकता होती है वह मन्यु जन्य होता है ...क्रोध और मन्यु में यही अंतर है. <br /><br />अनुराग जी ! आपके बारे में प्रचलित हुईं परस्पर विपरीत धारणाओं के बाह्य स्वरूप से परिचित होता रहा हूँ, ब्लॉग पर आज प्रथम बार आया हूँ........और अब मुझे एक तीसरी धारणा बनानी होगी. ( क्या करें, हम भारतीय बिना धारणा के रह ही नहीं सकते -:))) अमूर्त की आराधना में मूर्त की पूजा के पीछे भी कदाचित यही कारण रहा होगा.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-61591714220014247462011-11-09T00:47:12.806-05:002011-11-09T00:47:12.806-05:00सार्थक और सौदेश्य प्रस्तुति सुन्दर पोस्ट .सार्थक और सौदेश्य प्रस्तुति सुन्दर पोस्ट .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-52038349452168442202011-11-08T02:04:44.486-05:002011-11-08T02:04:44.486-05:00गहन अध्यन से उपजी आपकी ये पोस्ट सचमुच संजो के रखने...गहन अध्यन से उपजी आपकी ये पोस्ट सचमुच संजो के रखने लायक है ... बहुत ही सार्थक चिंतन ... क्रोध के दुष्परिणाम को जानते हुवे भी इस पर नियंत्रण ऐसे लेख बार बार पढ़ के ही किया जा सकता है ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-11239633522059301832011-11-07T22:44:43.118-05:002011-11-07T22:44:43.118-05:00ग्यानवर्द्धक और सार्थक आलेख। धन्यवाद।ग्यानवर्द्धक और सार्थक आलेख। धन्यवाद।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-45901368699042381072011-11-07T21:22:44.664-05:002011-11-07T21:22:44.664-05:00सत्य है क्रोध एक दुर्गुण ही है इसीलिए पाप है। क्रो...सत्य है क्रोध एक दुर्गुण ही है इसीलिए पाप है। क्रोध इतनी सहज आमान्य प्रवृति भी नहीं कि उसे नियंत्रित या दमित न किया जा सके।<br /><br />सात्विक या सार्थक क्रोध जैसी कोई बात नहीं होती, बस यह दुर्गुण अपने अहंकारवश न्यायसंगतता का आधार ढ़ूंढता है।<br /><br />सुज्ञ ब्लॉग के कथन को सम्मान देने के लिए आभार।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-51193344485248426222011-11-07T17:30:48.597-05:002011-11-07T17:30:48.597-05:00क्रोध को लेकर काफी गहरी बातें हो गईं इस पोस्ट के ब...क्रोध को लेकर काफी गहरी बातें हो गईं इस पोस्ट के बहाने....लोकेन्द्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-34415133022299796632011-11-07T14:58:23.291-05:002011-11-07T14:58:23.291-05:00अनुराग जी,
इस पोस्ट का तो प्रिंट लेकर सहेज लिया है...अनुराग जी,<br />इस पोस्ट का तो प्रिंट लेकर सहेज लिया है। कितनी भी कोशिश करो लेकिन इन प्रवत्तियों पर काबू पाना एक धीमी और सतत प्रक्रिया है। इस पोस्ट से उस भावना को और बल मिला।<br /><br />बहुत आभार,<br />नीरजNeeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-41761896546631301722011-11-07T13:31:08.159-05:002011-11-07T13:31:08.159-05:00क्रोध और अक्रोध को लेकर यह बहुत ही महत्वपूर्ण पोस...क्रोध और अक्रोध को लेकर यह बहुत ही महत्वपूर्ण पोस्ट है। मुझे इसे बार-बार पढना पढेगा। सचमुच में बहुत ही महीन अन्तर है।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-85158908179991139462011-11-07T12:01:36.707-05:002011-11-07T12:01:36.707-05:00सुज्ञ भैया की पंक्तियाँ बहुत सुन्दर हैं...... परन्...सुज्ञ भैया की पंक्तियाँ बहुत सुन्दर हैं...... परन्तु क्रोध करने वाले उसमे भी बहुत बड़ी गलती ढूंढ ही सकते हैं :) और क्रोधित हो सकते हैं |<br /><br />अनुराग जी - आपने <b>एक सवाल</b> उठाया कि "ऐसा कोई उदाहरण याद आता है जहाँ क्रोध विनाशकारी नहीं था? अवश्य बताइये"<br />-- नहीं याद आता मुझे तो :) | अब कोई शायद माता भवानी, या शिव, या राम, या कृष्ण, के "कल्याणकारी क्रोध" की बात उठाएं - तो मैं पहले ही कहना चाहती हूँ - जो कुछ इन के द्वारा किया गया बताया जाता है - उनमे से कुछ भी <b>"क्रोध" युक्त हो कर नहीं किया गया, बल्कि लोक कल्याण के लिए "कर्त्तव्य धर्म " के लिए अक्रोधित रहते हुए किया गया </b>| क्रोधित होने की सिर्फ लीला रची गयी | उसमे भी अपराधी से आखरी वक्त भी माफ़ी मांगे जाने पर माफ़ी देने की बात की गयी | वैष्णो देवी माता जी ने तो भैरव को मारना जितना हुआ - avoid किया, और सर काटने के बाद भी उसके माफ़ी मांगने पर उसकी पूजा के बिना अपने दर्शन अधूरे माने जाने का वरदान दिया | <br /><br /><b>दूसरा सवाल</b> "ऐसे उदाहरण भी दीजिये जहाँ क्रोध न होता तो विनाश को टाला जा सकता था।" - हाँ - एक नहीं - अनेकानेक उदाहरण हैं ऐसे | और ऐसे जितने भी उदाहरण याद आते हैं , अधिकतर क्रोध कहानी के "नायक /नायिका" वाले पात्रों को नहीं, बल्कि "खलनायक / खलनायिका " के पात्र को ही आया | यदि नायक नायिका का भी क्रोध रहा हो, तब भी उसका परिणाम विनाशकारी ही हुआ |<br /><br />"खलनायक / खलनायिका " की तरह के पात्र<br />१) शूर्पनखा का (राम/लक्ष्मण के ना करने से सीता पर आया) क्रोध<br />२) रावण का (बहन की बेईज्ज़ती पर) क्रोध<br />३) दुर्योधन का (भाभी के हंसी उड़ाने पर) क्रोध <br />४) ध्रितराष्ट्र का अपनी बेबसी पर क्रोध <br /><br />---<br />"नायक /नायिका" वाले पात्रों का क्रोध <br />१) द्रौपदी का क्रोध<br />२) लक्ष्मण का (शूर्पनखा पर) क्रोधAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-87914991155561706252011-11-07T11:21:49.005-05:002011-11-07T11:21:49.005-05:00ज्ञानपरक आलेख
आभारज्ञानपरक आलेख<br /><br />आभारDeepak Sainihttps://www.blogger.com/profile/04297742055557765083noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-37658314176475002672011-11-07T11:05:13.307-05:002011-11-07T11:05:13.307-05:00नायाब पोस्ट,जानकारी से लबालब,आभार.नायाब पोस्ट,जानकारी से लबालब,आभार.डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-83957266161814327492011-11-07T09:43:19.119-05:002011-11-07T09:43:19.119-05:00वांछनीय = चार पुरुषार्थ = धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष
अ...वांछनीय = चार पुरुषार्थ = धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष<br />अवांछनीय = चार पाप = काम, क्रोध, लोभ, मोह<br /><br />सुंदर सूक्तियों से सजी क्रोध पर एक गंवेषणात्मक पोस्ट। <br /><br />गूंजअनुगूंज का संदर्भ लेने पर आपका आभार!!!मनोज भारतीhttps://www.blogger.com/profile/17135494655229277134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-80991983755678403992011-11-07T08:43:29.911-05:002011-11-07T08:43:29.911-05:00क्रोध और आक्रोश में फर्क है । आक्रोश किसी भी विसंग...क्रोध और आक्रोश में फर्क है । आक्रोश किसी भी विसंगति जैसे अन्याय , अधर्म या कुकर्म पर एक सार्थक प्रतिक्रिया होती है । लेकिन क्रोध एक आंतरिक कमजोरी है जिसे वश में करना ही चाहिए ।<br />यह लोहे में लगे जंग जैसा है जो अन्दर ही अन्दर क्रोध करने वाले को खा डालता है ।<br /><br />सुन्दर आलेख ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-25641424568181269632011-11-07T08:32:50.489-05:002011-11-07T08:32:50.489-05:00बहुत ही सुन्दर संयोजन - क्रोध पर ! बधाईबहुत ही सुन्दर संयोजन - क्रोध पर ! बधाईG.N.SHAWhttps://www.blogger.com/profile/03835040561016332975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-8887031660530801542011-11-07T08:05:20.104-05:002011-11-07T08:05:20.104-05:00बहुत उम्दा!
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलव...बहुत उम्दा!<br />--<br />आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के <a href="http://charchamanch.blogspot.com/" rel="nofollow">चर्चा मंच</a> पर भी की गई है! सूचनार्थ!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-17402534005099250482011-11-07T05:38:09.656-05:002011-11-07T05:38:09.656-05:00इस विषय पर जब भी टिप्पणी करता हूँ , बाद में मुझे ह...इस विषय पर जब भी टिप्पणी करता हूँ , बाद में मुझे ही अधूरी लगती है |<br />फिर भी इतना तो कहूँगा की ये लेख मुझे बार बार पढना , समझना और आत्मसात करना होगाएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-56141320543373721782011-11-07T03:11:45.284-05:002011-11-07T03:11:45.284-05:00बहुत ही जानकारीवरक व उपयोगी आलेख !
क्रोध के ऊपर ...बहुत ही जानकारीवरक व उपयोगी आलेख !<br /><br />क्रोध के ऊपर एक दोहा गोस्वामी जी ने लिखा है उसे उद्धत करना चाहूँगा<br /><br />सुन्दरकाण्ड - (विभीषण जी रावन से ) -<br /><br />काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक नरक के पंथ ।<br />सब परिहरि रघुबीरही भजहूँ भजहिं जेहिं संत ।।<br /><br />मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है,कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।<br />http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.htmlHumanhttps://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-44023169129374002772011-11-07T03:06:38.161-05:002011-11-07T03:06:38.161-05:00बहुत सार्थक लेख...बधाई .
नीरजबहुत सार्थक लेख...बधाई .<br /><br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-34698760758861051472011-11-07T02:34:07.647-05:002011-11-07T02:34:07.647-05:00आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा 'चिंतामणि' मे...आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा 'चिंतामणि' में क्रोध पर किए गए विमर्श को आपका यह लेख आगे बढ़ाता है। <br /><br />सात्विक क्रोध का न होना भी एक कमजोरी है, पाप का लक्षण है।<br /><br />सामने हो रहे अन्याय के बावजूद आप भीष्म बने रहें तो वह गलत है। <br /><br />भले ही आप अन्याय को रोक न सकें मगर विदुर की तरह उस पर अपना प्रतिरोध जता सकें, इतना क्रोध तो होना चाहिए और वह अनासक्ति और अनन्य सत्य-निष्ठा से ही संभव है।<br /><br />बहुत अच्छा लिखा है।सृजन शिल्पीhttp://srijanshilpi.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5655265167094698544.post-83317430555368102982011-11-07T01:27:26.027-05:002011-11-07T01:27:26.027-05:00ज्ञानपरक आलेख ...ज्ञानपरक आलेख ...आशा बिष्टhttps://www.blogger.com/profile/09252016355406381145noreply@blogger.com