Saturday, December 25, 2010

क्वांज़ा पर्व की बधाई! [इस्पात नगरी से - 35]

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क्वांज़ा पर जारी डाकटिकट्
क्रिसमस और हनूका के साथ ही मनाया जाने वाला एक पर्व है क्वांज़ा। अपेक्षाकृत नया पर्व क्वांज़ा अमेरिका में मुख्यतः अफ्रीकी मूल के लोगों द्वारा मनाया जाता है। एक सप्ताह चलने वाला यह उत्सव क्रिसमस के अगले दिन (26 दिसम्बर) से आरम्भ होकर नववर्ष (1 जनवरी) तक चलता है। हनूका की ही तरह इस पर्व में भी मोमबत्तियाँ जलाई जाती हैं परंतु उनकी संख्या सात होती है।

क्वांज़ा पर्व का नाम स्वाहिली भाषा के वाक्यांश "माटुंडा या क्वांज़ा" अर्थात "उपज का फल" से लिया गया था और इसकी जडें अश्वेत राष्ट्र आन्दोलन से जुडी थीं। यह उत्सव कैलिफोर्निआ राजकीय विश्वविद्यालय (लॉंग बीच) के "मौलाना कैरेंगा" व्यक्ति द्वारा 1966 के दिसम्बर में आरम्भ किया गया था। अमेरिका के इतिहास में अफ्रीकी मूल के लोगों का यह पहला अलग उत्सव था, शायद यही मौलाना कैरेंगा का उद्देश्य भी था। इस्लाम को मानने वाले मौलाना ने ईसाइयत को केवल गोरों का धर्म बताया था। मौलाना ने आरम्भ में क्वांज़ा को क्रिसमस के अश्वेत विकल्प के रूप में प्रस्तुत करते समय प्रभु यीशु के बारे में भी काफी कुछ कहा था। परंतु समय के साथ यह अलगाव बीती बात बन चुका है।

हाँ, अब यह अफ्रीकी समुदाय के आत्मगौरव और परम्पराओं से पुनर्मिलन का प्रतीक बनने की दिशा में अग्रसर है। यह पर्व गूँज़ो सबा (Nguzo Saba) नामक सात कृष्ण सिद्धांतों पर आधारित है: एकता, आत्मनिर्णय, संघ, आर्थिक सहकारिता, उद्देश्य, रचनात्मकता एवम् श्रद्धा। आज भी क्वांज़ा को क्रिसमस जैसी प्रसिद्धि भले ही न मिली हो, अमेरिका का एक बडा तबका चार दशकों से इसे मनाता रहा है।

हनूका, क्रिसमस और क्वांज़ा की हार्दिक बधाई!

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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
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Friday, December 24, 2010

हनूका पर्व की बधाई! [इस्पात नगरी से - 34]

ठंड के गहराने के साथ ही पश्चिम में उत्सवों का मौसम शुरू हो जाता है। जो क्रिसमस से नववर्ष तक अपने चरम पर होता है। क्रिसमस और नव वर्ष से तो हम सभी परिचित हैं। लगभग इसी समय यहाँ दो अन्य उत्सव भी मनाये जाते हैं - हनूका और क्वांज़ा।

बर्फ में जमी चार्ल्स नदी 
हनूका, ज़्हनूका, या चनूका, (Hanukkah, χanuˈka, Chanukah or Chanuka) यहूदियों का प्रकाशोत्सव है जो आठ दिन तक चलता है। यह उत्सव हिब्रू पंचांग के किस्लेव मास की 25 तारीख को आरम्भ होता है और इस प्रकार सामान्यतः नवम्बर-दिसम्बर में ही पडता है। नौ मोमबत्तियों वाले एक विशेष दीपदान "मनोरा (Menorah) को आठ दिन तक ज्योतिर्मय रखा जाता है। हर दिन की एक रोशनी और नवीं "शमश" हर दिन के लिये अतिरिक्त प्रयोग के लिये। क्योंकि हनूका की मोमबत्तियों का प्रयोग अन्य किसी भी काम के लिये वर्जित है। हनूका शब्द की उत्पत्ति हिब्रू की क्रिया "समर्पण" से हुई है।

जमी नदी का एक और दृश्य
हनूका का उद्गम दंतकथाओं में छिपा है परंतु उसमें भी तत्कालीन शासकों द्वारा यहूदी धार्मिक विश्वासों के दमन की टीस है। 167 ईसा पूर्व में विदेशी शासन द्वारा यहूदी धार्मिक कृत्य खतना को प्रतिबन्धित कर दिया गया और उनके मन्दिर में प्रतिबन्धित पशु सुअर की बलि देना आरम्भ कर दिया था। यहूदी इस दमन के खिलाफ एकत्र हुए। हिंसक विरोध सफल होने में एक वर्ष लगा। मन्दिर मुक्त हुआ और बाद में इस मुक्ति को एक वार्षिक उत्सव के रूप में स्थापित किया गया। मन्दिर का दीप जलाने के लिये प्रयुक्त होने वाला जैतून का तेल केवल एक दिन के लिये काफी था। नई आपूर्ति आठ दिन के बाद आयी परंतु जन-विश्वास है कि मन्दिर का दीप उन आठ दिनों तक उस एक दिन के तेल से ही जलता रहा।

हनूका की मोमबत्तियाँ अन्धेरा घिरने के एक घंटे बाद (या उसके भी बाद) ही जलाई जाती हैं और उस समय हनेरोट हलालु गीत गाया जाता है जिसमें प्रभु को पूर्वजों और पूर्व पुजारियों की रक्षा और सफलता के लिये आभार प्रकट किया जाता है, साथ ही यह प्रण भी कि इन पवित्र मोमबत्तियों का प्रयोग अपने दैनन्दिन सामान्य कार्यों में नहीं करेंगे।

हनूका पर मेरी पिछले वर्ष की पोस्ट यहाँ है।

आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें!
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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
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Tuesday, December 21, 2010

आती क्या खंडाला?

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एक हसीन सुबह को मैंने कहा, "मसूरी चलें, सुबह जायेंगे, शाम तक वापस आ जायेंगे।"
उसने कहा, "नहीं, सब लोग बातें बनायेंगे, पहले ही हमारा नाम जोड़ते रहते हैं।"

वह मुड़ गयी और मैं कह भी न सका कि बस स्टॉप तक तो चल सकती हो।

मैंने कहा, "ऑफिस से मेरे घर आ जाना, बगल में ही है।"

"नहीं आ सकती आज भैया का कोई मित्र मुुुुझे लेने आयेगा, उसके साथ ही जाना होगा" कहकर उसने फोन रख दिया, मैं सोचता ही रह गया कि दुनिया आज ही खत्म होने वाली तो नहीं। क्या कल भी हमारा नहीं हो सकता?

मैंने कहा, "सॉरी, तुम्हारा समय लिया।"
उसने कहा, "कोई बात नहीं, लेकिन अभी मेरे सामने बहुत सा काम पड़ा है।"

मैंने कहा, "कॉनफ़्रेंस तो बहाना थी, आया तो तुमसे मिलने हूँ।"
उसने कहा, "कॉनफ़्रेंस में ध्यान लगाओ, तुम्हारे प्रमोशन के लिये ज़रूरी है।"

मैंने कहा, "एक बेहद खूबसूरत लडकी से शादी का इरादा है।"
उसने कहा, "मुझे ज़रूर बुलाना।
मैंने कहा, "तुम्हें तो आना ही पड़ेगा।"
उसने कहा, "ज़िन्दगी गिव ऐंड टेक है..." और इठलाकर बोली, "तुम मेरी शादी में आओगे तो मैं भी तुम्हारी में आ जाऊंगी।"

मैं अभी तक वहीं खडा हूँ। वह तो कब की चली भी गयी अपनी शादी का कार्ड देकर।

[तारीफ उस खुदा की जिसने जहाँ बनाया]