Friday, April 15, 2011

नाउम्मीदी - कविता


निराशा अपने मूर्त रूप में

जितनी भारी भरकम आस
उतना ही मन हुआ निरास

राग रंग रीति इस जग की
अब न आतीं मुझको रास

सागर है उम्मीदों का पर
किसकी यहाँ बुझी है प्यास

जीवन भर जिसको महकाया
वह भी साथ छोडती श्वास

संयम का सम्राट हुआ था
बन बैठा इच्छा का दास

जिसपे किया निछावर जीना
वह क्योंकर न आता पास

कुछ पल की कहके छोड़ा था
गुज़र गये दिन हफ्ते मास

तुमसे भी मिल आया मनवा
फिर भी दिन भर रहा उदास

जिसके लिये बसाई नगरी
उसने हमें दिया वनवास

अपनी चोट दिखायें किसको
जग को आता बस उपहास

(चित्र ऐवम् कविता: अनुराग शर्मा)

Wednesday, April 13, 2011

अखिल भारतीय नव वर्ष की शुभ कामनायें! एक और?

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लगता है कि भारत में नये साल का सीज़न चल रहा है। आरम्भ भारत के राष्ट्रीय पंचांग "श्री शालिवाहन शक सम्वत" से हुआ। फिर हमने क्रोधी/खरनामसम्वस्तर की युगादि मनाई और अब विशु और पुत्तण्डु। भारत और भारतीय संस्कृति से प्रभावित क्षेत्रों के सौर पंचांगों के अनुसार आज की संक्रांति नव-वर्ष के रूप में मनाई जाती है।

सौर नववर्ष की यह परम्परा केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। विभिन्न क्षेत्रों में आज के नव वर्ष के लिये प्रयुक्त विभिन्न नाम या तो संस्कृत के शब्दों संक्रांति, वैशाखी या मेष से बने हैं या फिर इनके तद्भव रूप हैं। सूर्य की मेष राशि से संक्रांति और विशाखा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा मास इस पर्व के विभिन्न नामों का उद्गम है।

विभिन्न क्षेत्रों से कुछ झलकियाँ

1.सोंगक्रान - थाईलैंड
2.वर्ष पिरप्पु, पुतंडु - तमिल नव वर्ष - वैसे तमिलनाडु सरकार ने 2008 में अपना सरकारी नव वर्ष अलग कर लिया है जोकि मकर संक्रांति (पोंगल) के दिन पडता है परंतु आज के दिन की मान्यता अभी भी उतनी ही है। ज्ञातव्य है कि मणिपुर राज्य का नववर्ष चैइराओबा भी मकर संक्रांति के साथ ही पडता है।
3.पोइला बोइसाख - बॉंग्गाब्दो (बंगाल, त्रिपुरा ऐवम् बांगलादेश)
4.रोंगाली बिहु - असम राज्य और निकटवर्ती क्षेत्र
5.विशुक्कणी, विशु नव वर्ष - केरल
6.बिखोती - उत्तराखंड
7.विशुवा संक्रांति, पोणा संक्रान्ति, नव वर्ष - उडीसा
8. बैसाखी, वैशाखी - समस्त उत्तर भारत
9. बिसु, तुलुवा नववर्ष - कर्नाटक
10. मैथिल नव वर्ष (जुडे शीतल?)
11. थिंग्यान संग्क्रान नव वर्ष - म्यानमार
12. अलुथ अवुरुधु - सिन्हल नव वर्ष - श्रीलंका
13. चोलच्नामथ्मे (Chol Chnam Thmey) - कम्बोडिआ

शुभ वैसाखी! है न अनेकता में एकता का अप्रतिम उदाहरण?


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कुसुमाकर कवि

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रंग भरे कुदरत ने इन्द्रधनुष प्यार का
याद तेरी हर तरफ मौसम ये बहार का

मुँह लगा के पीनी मुझे तो नागवार है
देखकर चढे नशा तौ जादू है खुमार का

हैसियत नहीं यहाँ से खाक भी उठा सकूँ
देखने चला हूँ रंग-रूप इस बज़ार का

खुद से मैं छिपा हुआ सामने न आ सकूँ
फटी जेब खाली हाथ आर का न पार का

छन्द लय और बहर कुछ मुझे पता नहीं
बोल आप से लिये कवि हूँ मैं उधार का


[कुसुमाकर कवि = जो कवि नहीं है लेकिन बहार के मौसम में कविता जैसा कुछ कहना चाहता है।]
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