Friday, May 20, 2011

इस ब्लॉग की आखिरी पोस्ट?

इस ब्लॉग का अंत, तुरंत!

जी नहीं, बात वह नहीं है जो आप नहीं समझ रहे हैं। अगर आप यह ब्लॉग पढते हैं तो आपको अच्छी तरह पता है कि, मुझे टंकी पर चढने का कोई शौक नहीं है। मैं तो चाहता हूँ कि मैं रोज़ लिखूँ, परिकल्पना वाले रोज़ मेरे लेखन को इनाम दें, विभिन्न चर्चा मंच इसे चर्चित करें, यार-दोस्त इसे फेसबुक पर मशहूर करें, सुमन जी   "सुपर नाइस" की टिप्पणी दें, आदि, आदि। मगर मेरे चाहने से क्या होता है, वही होता है जो मंज़ूरे खुदा होता है।

... और खुदा को कुछ और ही मंज़ूर था। मुझे भी कहाँ पता था। वह तो भला हो फैमिली रेडियो का जो लगातार चीख-चीख कर यह कहता रहा। नहीं, उसने यह स्पष्ट नहीं कहा कि मैं लिखना बन्द कर दूँ। रेडियो ने तो यह भी स्पष्ट नहीं कहा कि लोग मेरे ब्लॉग को पढना और इसको प्रमोट करना रोकें। इस रेडियो ने इतना ही कहा है कि बाइबिल के वचन और गहन गणनाओं के अनुसार शनिवार 21 मई, 2011 को शाम 6 बजे संसार का अंत हो जायेगा।

फैमिलीरेडिओ की हिन्दी साइट 
खुदा के ये बन्दे न सिर्फ रेडियो पर प्रलय का प्रचार कर रहे हैं बल्कि अपनी बस लेकर सारे अमेरिका में घूम रहे हैं, भाषण दे रहे हैं, और बडे, बडे होर्डिंग लगा रहे हैं। इनके साथ चल रहे कई लोग अपना काम-धाम छोडकर निश्चिंत हो गये हैं, क्योंकि उनके हिसाब से दुनिया, बस्स ....

संसार के खात्मे की बात पुरानी संस्कृतियों में गहराई तक धंसी हुई थी। तब का मानव महाशक्तिशाली प्रकृति को नाथना सीख नहीं पाया था।  प्राकृतिक आपदाओं से जैसे-तैसे बचते-बचते शायद संसार के अचानक समापन की धारणा  काफी बलवती हुई। फिर, विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ ऐसे विचार सिर्फ कथा-कहानियों या छद्म-विज्ञान चलचित्रों तक ही सीमित रह गये।

अंतिम अंक
इस्राइल के पुनर्निर्माण ने जजमैंट डे, डूम्स डे, रैप्चर, प्रलय, आदि की परिकल्पनाओं को एक बार फिर से हवा दे दी क्योंकि बाइबिल में इन दोनों ही घटनाओं की भविष्यवाणी थी। वैसे मई 21, 2011 कोई पहली तारीख नहीं है जब प्रलय की घोषणा की गयी हो। इससे पहले भी अनेकों बार ऐसी भविष्यवाणी की गयी है, और जैसा कि हम सब जानते हैं, हर बार गलत सिद्ध हुई है। वाय2के समस्या की बात हो या हैड्रॉन कोलाइडर द्वारा ब्लैक होल निर्माण का भय हो, सभी निर्मूल सिद्ध हो चुके हैं। फैमिली रेडियो वाले संघ के प्रमुख, 89 वर्षीय हैरोल्ड कैम्पिंग ने भी इससे पहले 1994 में संसार के अंत की बात का प्रचार किया था। एक रेडियो इंटरव्यू में इस बारे में पूछे जाने पर उसने अपनी गलती स्वीकारते हुए कहा कि उसे पहले ही पता था कि तब उसकी गणना पूर्ण नहीं थी। मगर इस बार ... नो चांस!

तो भैया, जब हम ही नहीं रहेंगे तो जे बिलागिंग कैसे करैंगे?

[मेरे जैसे भोले भाले मित्रों के लिये डिस्क्लेमर: मई 21, 2011 को संसार के खात्मे की खबरें फैलाई जा रही हैं, मगर मेरा उन पर कोई विश्वास नहीं है। इस आलेख को एक व्यंग्य के रूप में लिख रहा हूँ। ]

मज़ेदार बात यह है कि प्रलय की प्रतीक्षा में बैठे फैमिली रेडियो की वैब साइट पर कॉपीराइट का नोटिस बरकरार है। क्या पता खुदा इरादा बदल ले और इन्हें अपनी किताबों के सर्वाधिकार के लिये दुनियावी अदालत में मुकद्दमा लडना पडा तो? हम तो आपसे पुनः मिलते हैं, इसी समय, इसी जगह, अगले दिन, अगले सप्ताह, हर रोज़!
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सम्बन्धित कडियाँ
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* अमरीकी अभियंता द्वारा प्रलय की गणना (अंग्रेज़ी में)
* फैमिली रेडियो (हिन्दी सहित अनेकों भाषाओं में)
* सीएनएन विडिओ क्लिप (यूट्यूब)
* Harold Camping Gets Doomsday Prediction Wrong
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अपडेट
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टिप्पणियों में आप लोगों के प्रश्नों के बाद मैने पता किया कि समय 6 बजे साँय, ईस्टर्न टाइम है (भारत में - 22 मई सुबह के 3:30) अर्थात इन लोगों का विश्वास है कि पिट्सबर्ग में 6 बजते ही यमराज जी अपना कार्यक्रम शुरू कर देंगे। भक्तजन तो उसी समय स्वर्ग पहुँचा दिये जायेंगे जबकि हम जैसे पापी 6 मास तक तडपेंगे और फिर 21 अक्टूबर में संसार का कम्प्लीट खात्मा होने पर शायद नरक में ट्रांसफर कर दिये जायेंगे।
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Wednesday, May 18, 2011

पैसा हाथ का मैल है? वाकई?

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बचपन से हम यह सुनते आये हैं कि पैसा हाथ का मैल है। बाद में एक मिलती-जुलती कहावत और सुनने में आने लगी: पैसे से खुशी नहीं खरीदी जा सकती है। बहुत सी अन्य आधारहीन बातों की तरह हम भोले-भाले लोगों में से कई इस बात पर भी यक़ीन करने लगे।

वैसे तो ऐसी अफवाह ज़रूर विदेश से ही आयी होगी क्योंकि लक्ष्मीनारायण के पूजक आस्तिक भारतीय तो ऐसी बातें नहीं फैला सकते। रहे नास्तिक, वे तो अपने स्वयम् के अस्तित्व पर भी विश्वास नहीं करते भला ऐसी अविश्वसनीय बात कैसे मान लेते। मगर फिर भी यह अफवाह विभिन्न रूपों में फेसबुक पर काफी लोगों का स्टेटस वाक्य बनी। आज के युग में श्री, समृद्धि और धन की उपयोगिता से कोई इनकार नहीं कर सकता है। सामान्य अवलोकन से ही यह पता लग जाता है कि धनाभाव किस प्रकार दुख का कारण बनता है। मतलब यह कि धन के घटने-बढने से आमतौर पर व्यक्ति की खुशी का स्तर भी घटता बढता रहता है।

न्यू जर्सी के प्रिंसटन विश्वविद्यालय में अब विशेषज्ञों ने वार्षिक आय की एक ऐसी जादुई संख्या का पता लगाया है जिसके बाद व्यक्तिगत प्रसन्नता पर सम्पन्नता का प्रभाव घटने लगता है। उन्होंने इस संख्या का निर्धारण अमेरिका के कारकों के हिसाब से किया है। अन्य देशों के स्थानीय अंतरों के कारण वहाँ यह संख्या भिन्न हो सकती है परंतु सिद्धांत लगभग वही रहेगा।

अनुसन्धानकर्ताओं ने प्रसन्नता के दो रूप माने, भावनात्मक और भौतिक। सन 2008 व 2009 के दौरान साढे चार लाख से अधिक अमरीकियों पर किये गये इस अनुसन्धान के बाद निष्कर्ष यह निकला कि बढती आय के साथ-साथ दोनों प्रकार की प्रसन्नता बढती जाती है। परंतु 75,000 डॉलर वार्षिक के जादुई अंक के बाद आय संतोष की मात्रा तो बढाती रहती है परंतु प्रसन्नता की मात्रा में कोई इजाफा नहीं कर पाती। जबकि 75,000 से कम आय पर दोनों प्रकार की खुशियाँ आय के अनुपात में न्यूनाधिक होती रहती हैं। आय अधिक होने से लोग अपने स्वास्थ्य को भी अच्छा रख सके जो अंततः अधिक प्रसन्नता का कारक बना परंतु उसकी भी सीमायें रहीं। इसी प्रकार व्यक्तिगत सम्बन्धों में आये बदलाव, तलाक़ आदि के कारक और परिणाम की सहनशक्ति पर भी आय के अनुसार प्रभाव पडा।

कुल मिलाकर - पैसा खुशी देता है, परंतु एक निश्चित सीमा तक ही जो कि व्यक्तित्व, देश और काल पर निर्भर करती है।

17 मई को हमारे वरिष्ठ कवि और ब्लोगर श्री सत्यनारायण शर्मा "कमल" जी की पत्नी की पुण्यतिथि है। हमारी संवेदनाएं उनके साथ हैं।
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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सब माया है - इब्न-ए-इंशा
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Sunday, May 15, 2011

पिट्सबर्ग का अंतर्राष्ट्रीय लोक महोत्सव [इस्पात नगरी से - 39]

सप्ताहांत में पिट्सबर्ग का अंतर्राष्ट्रीय लोक महोत्सव देखने का अवसर मिला। यह उत्सव पिछले 54 वर्षों पिट्सबर्ग में होता रहा है। जिसमें विभिन्न देशों, और देशविहीन राष्ट्रीयताओं के लोग अपनी संस्कृति की जानकारी देते रहे हैं। देश, संस्कृति, वेश-भूषा और लोक कलाओं का परिचय देते हुए विभिन्न किओस्क, देश-विदेश की हस्तकलाओं की दुकानें, अंतर्राष्ट्रीय भोजन के स्टाल, बच्चों को लोककलायें सिखाने वाले बूथ और लोकसंगीत व लोकनृत्य के कार्यक्रम। प्रस्तुत हैं कुछ झलकियाँ, चित्रों के माध्यम से।
भारतीय दल की प्रस्तुति
सोनिया महाजन का नृत्य दल

भारत और नेपाल के ध्वज

हमने क्या इकट्ठा किया
बुद्ध की मालायें, ॐ के चिह्न आदि भी मिले परंतु भारतीय बूथ पर नहीं बल्कि एक विनम्र चीनी महाशय की दुकान पर। हमने झट से लपक लिये। बच्चों के लिये काष्ठ के कुछ खिलौने भी लिये। और डाक टिकटों के बूथ पर मिलीं निशुल्क टिकटें और बहुमूल्य जानकारियाँ। वैसे मिले तो समोसे और भटूरे भी जो हमने श्रीमती जी की नज़र बचाकर गटक लिये।  

"स्टैम्पमैन" जॉन
"स्टैम्पमैन" जॉन का बूथ कई सालों से देख रहा हूँ। अपने सहयोगियों के साथ वे अपनी ओर से बच्चों को डाक टिकट, पुस्तिकायें और विभिन्न जानकारियाँ देते हैं। उनके उत्साह को देखकर उनकी आयु का अन्दाज़ लगाना कठिन है।
मेरा भारत महान

विचार शून्य की मांग और मोसम की धमकी के बाद जोडे गये चित्र:
कालेधन के अलावा भी बहुत कुछ है स्विट्ज़र्लैंड में

लिथुआनिया की पारम्परिक वेश-भूषा

बल्गैरिया

कंस के कारागार में बालगोपाल कृष्ण कन्हैया 

चीन का बूथ

विएतनाम की कलाकृतियाँ

भारत से एक और नृत्य प्रदर्शन - नन्दिनी मण्डल की छात्रायें 

फिलिपींस का एक प्रदर्शन

फिलिपींस का मण्डप

सीरिया


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