Saturday, December 24, 2011

जब से गये तुम - कविता

कई ब्लॉग्स पर बहुत सी टिप्पणियाँ अभी भी प्रकाशित नहीं हो रही हैं। कृपया अपने ब्लॉगर डैशबोर्ड में जाकर "स्पैम" टैब देखकर वहाँ पड़ी टिप्पणियों को चुनकर "स्पैम नहीं" क्लिक करके रिलीज़ कर दीजिये। समस्या को विस्तार से जानने के लिये "ये क्या हो रहा है भाई?" पढें। धन्यवाद!
अभिषेक के ब्लॉग पर चिट्ठी पढकर कुछ पंक्तियाँ प्रस्फुटित हुईं। शायद कविता न कही जा सके, फिर भी सोचा कि साझा कर ही लूँ ...

मैं अकेला नहीं
क्योंकि
मेरे पास है खज़ाना
बीता वक़्त, टूटे वादे
वे अमिट यादें
और इन सब में
समाये तुम

जानता हूँ कि
तुम्हारी भी एक दुनिया है
नितांत अपनी, निजी
मुझसे अलग, मुझसे दूर

फिर भी
दुःख, पीड़ा या खालीपन
दूर-दूर तक नहीं दिखते
मैं भी नहीं
होता है केवल
परमानन्द
जब मेरे तसव्वुर में होते हो
तुम!


(~अनुराग शर्मा)
क्रिस्मस के बड़े दिन की हार्दिक शुभकामनायें!

Thursday, December 22, 2011

नाम का चमत्कार - भूमिका

न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो. न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।
जादूगर के मंच पर बड़े कमाल होते हैं। इसी तरह हिन्दी फ़िल्मों में भी संयोग पर संयोग होते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि ऐसे, जादू, कमाल और संयोग केवल किताबी बातें हैं। उनकी निजी ज़िन्दगी में शायद ऐसा कोई कमाल कभी हुआ ही नहीं। मैं यह नहीं मानता। मुझे तो लगता है कि वे अपने जीवन में नित्यप्रति घट रहे चमत्कार को देख पाने की शक्ति खो चुके हैं। लेकिन श्रीमान सुवाक त्रिगुणायत ऐसे लोगों में से नहीं है। शायद यही एक कारण है कि उनके इतने कठिन नाम, अति-सुरुचिपूर्ण जीवनशैली और विराट भौगोलिक दूरी के बावजूद वे अब तक मेरे मित्र हैं।

ये सुवाक की मैत्री का ही चमत्कार है कि मैंने भी आज उस्तादी उस्ताद से करने का प्रयास किया है। प्रस्तुत है, एक छोटी कहानी जो मेरे एक पसन्दीदा ब्लॉग पर प्रकाशित एक कहानी से प्रभावित तो है मगर है अपने अलग अन्दाज़ में - विडियो किल्ड द रेडियो स्टार बनाम अउआ, अउआ? नहीं! ट्वेल्व ऐंग्री मैन बनाम एक रुका हुआ फैसला? कतई नहीं!

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही
अब तो उसका वापस घर आना इतने-इतने दिन बाद होता है कि हर बार भारत नया लगता है। पिछली बार देखे हुए भारत से एकदम भिन्न। सुवाक की यह विशेषता है कि परिवर्तन अच्छा है या बुरा, इसके बारे में कोई भी उसे कुछ कहने को बाध्य नहीं कर सकता। उसके जीवन में श्वेत-श्याम कुछ भी नहीं है। दुश्मनों से दुआ-सलाम की बात हो या दोस्तों की खिंचाई, जो सुवाक को जानता नहीं, उसके लिये आदमी अजीब है मगर जो उसे जानते भी हैं उनमें भी कई उससे बचते हैं। कुछ-एक लोग उसके तौर-तरीके से सहमे रहते हैं और साज-सलीके से कुछ झिझके से रहते हैं। जो बचे वे उसकी बेबाकी से बचना चाहते हैं। एक सहकर्मिणी ने एक बार उसकी अनुपस्थिति में कहा था कि वह सुवाक से बहुत डरती थी। मेरी हँसी रोके न रुकी। कोई सुवाक से भी डरा हो, इससे बड़ा मज़ाक क्या होगा। लेकिन जीवन में जिस प्रकार चमत्कार होते हैं, उसी प्रकार मज़ाक भी बखूबी होते हैं। बल्कि कई बार तो ज़िन्दगी ऐसा मज़ाक कर जाती है कि हम हँस भी नहीं पाते। तारा और सुवाक का ब्रेकअप भी ऐसा ही एक मज़ाक था।  तारा के अनुसार उसने अपने परिवार का सम्मान बचा लिया और सुवाक? उसने तो शायद कभी कुछ खोया ही नहीं। पहले नौकरी छोड़ी, फिर शहर और फिर देश।

नाते टूटते हैं पर जुड़े रह जाते हैं। या शायद वे कभी टूटते ही नहीं, केवल रूपांतरित हो जाते हैं। हम समझते हैं कि आत्मा मुक्त हो गयी जबकि वह नये वस्त्र पहने अपनी बारी का इंतज़ार कर रही होती है। न जाने कब यह नवीन वस्त्र किसी पुराने कांटे में अटक जाता है, खबर ही नहीं होती। तार-तार हो जाता है पर परिभाषा के अनुसार आत्मा तो घायल नहीं हो सकती। न जल सकती है न आद्र होती है। बारिश की बूंद को छूती तो है पर फिर भी सूखी रह जाती है।
[नाम का चमत्कार - कहानी]

"रेडियो प्लेबैक इंडिया" पर गिरिजेश राव की कहानी "राजू के नाम एक पत्र" का ऑडियो सुनने के लिये यहाँ क्लिक कीजिये

Friday, December 16, 2011

बेहतर हो - कविता

(~ अनुराग शर्मा)

ये दिन जल्दी ढल जाये तो अच्छा हो
रात अभी गर आ जाये तो अच्छा हो
सूरज से चुन्धियाती आंखें बहुत सहीं
घनघोर घटा अब घिर आये तो अच्छा हो

बातों को तुम न पकड़ो तो अच्छा हो
शब्दों में मुझे न जकड़ो तो अच्छा हो
कौन किसे कब परिभाषित कर पाया है
नासमझी पे मत अकड़ो तो अच्छा हो

विषबेल अगर छँट पाये तो अच्छा हो
इक दूजे को सहन करें तो अच्छा हो
नज़दीकी ने थोड़ा सा असहज किया
कुछ दूरी फिर बन जाये तो अच्छा हो

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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* यूँ भी तो हो - एक इच्छा
* काश - कविता