Sunday, March 9, 2014

शब्दों के टुकड़े - भाग 5

(आलेख: अनुराग शर्मा)
विभिन्न परिस्थितियों में कुछ बातें मन में आयीं और वहीं ठहर गयीं। जब ज़्यादा घुमडीं तो डायरी में लिख लीं। कई बार कोई प्रचलित वाक्य इतना खला कि उसका दूसरा पक्ष सामने रखने का मन किया। ऐसे अधिकांश वाक्य अंग्रेज़ी में थे और भाषा क्रिस्प थी। हिन्दी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है। अनुवाद करने में भाषा की चटख शायद वैसी नहीं रही, परंतु भाव लगभग वही हैं। कुछ वाक्य पहले चार आलेखों में लिख चुका हूँ, कुछ यहाँ प्रस्तुत हैं।

1. जित्ता बड़ा दिल, उत्ता बड़ा बिल
2. किसी फिक्र का ज़िक्र करने वालों को अक्सर उस ज़िक्र की फिक्र करनी पड़ती है।
3. दोस्ती दो दिलों की सहमति से ही हो सकती है, असहयोग के लिए एक ही काफी है।
4. उदारता की एक किरण उदासी की कालिमा हर लेती है।
5. हर किसी का पक्षधर अक्सर किसी का भी पक्षधर नहीं होता, खासकर तब जब वह खुद भी दौड़ में शामिल हो।
6. अच्छी कहानियाँ पात्रों से नहीं, लेखकों से होती हैं। सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ पात्रों या लेखकों से नहीं, पाठकों से होती हैं।
7. सूमो विरोधी का बलपूर्वक सामना करता है लेकिन जूडोका विरोधी की शक्ति से ही काम चलाता है।
8. जो कुछ नहीं करते, वे गज़ब करते हैं।
9. बहरूपिये के मुखौटे के पीछे छिपे चेहरे को न पहचानकर उसे समर्थन देने वाले एक दिन खुद अपनी नज़रों में तो गिरते ही हैं, लेकिन तब तक समाज के बड़े अहित के साझीदार बन चुके होते हैं।
10. दुनिया का आधा कबाड़ा इंसानी गलतियों से हुआ। गलतियाँ सुधारने के अधकचरे, कमअक्ल और स्वार्थी प्रयासों ने बची-खुची उम्मीद का बेड़ा गर्क किया है।
11. तानाशाहों की वैचारिकी उनके हथियारबंद गिरोहों द्वारा मनवा ली जाती है, विचारकों की तानाशाही को तो उनकी अपनी संतति भी घास नहीं डालती।

आज आपके लिये कुछ कथन जिसका अनुवाद मुझसे नहीं हो सका। कृपया अच्छे से हिन्दी अनुवाद सुझायें:
  • You are not frugal until you use coupons at a dollar store
  • Don't act, just act!
  • visibility enables trust, familiarity means comfort
मुकेश निर्मित और अभिनीत "अनुराग"


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सम्बंधित कड़ियाँ
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* शब्दों के टुकड़े - भाग 1भाग 2भाग 3भाग 4भाग 5भाग 6
मैं हूँ ना! - विष्णु बैरागी
* कच्ची धूप, भोला बछड़ा और सयाने कौव्वे
* सत्य के टुकड़े - कविता
* खिली-कम-ग़मगीन तबियत (भाग २) - अभिषेक ओझा
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Monday, February 3, 2014

हिमपातकाले [इस्पात नगरी से 67]

कहाँ से आए बदरा

वीरों के पदचिन्ह
एक अकेला इस शहर में
बादल पे चलके आ
सूरज रे, जलते रहना
आसमां गा रहा है 
सूरज की गर्मी से पिघलकर फिर जमी बर्फ पानी का धोखा देकर वाहनों के लिए घातक सिद्ध होती है   
चम्बे दा गाँव, गाँव में दो प्रेमी रहते हैं 
ये कौन चित्रकार है 
रुक जाना नहीं तू कहीं हार के 
आज रपट जाएँ तो हमें न उठइयो 
ये वादियाँ, ये फिज़ाएँ बुला रही हैं मुझे 
सीधे सीधे रास्तों को हल्का सा मोड दे दो   
तुम निडर हटो नहीं, तुम निडर डटो वहीं 
वादियाँ मेरा दामन
ये कहाँ आ गए हम 
पत्ता पत्ता बूटा बूटा 
गोरी चलो न हंस की चाल ज़माना दुश्मन है 
नीले गगन के तले
हर तरफ अब यही अफसाने हैं ... 


[सभी चित्र: अनुराग शर्मा :: Photos by Anurag Sharma]

Sunday, January 19, 2014

भविष्यवाणी - कहानी भाग 5 [अंतिम कड़ी]

कहानी भविष्यवाणी में अब तक आपने पढ़ा कि पड़ोस में रहने वाली रूखे स्वभाव की डॉ रूपम गुप्ता उर्फ रूबी को घर खाली करने का नोटिस मिल चुका था। उनका प्रवास भी कानूनी नहीं कहा जा सकता था। समस्या यह थी कि परदेस में एक भारतीय को कानूनी अड़चन से कैसे निकाला जाय। रूबी की व्यंग्योक्तियाँ और क्रूर कटाक्ष किसी को पसंद नहीं थे, फिर भी हमने प्रयास करने की सोची। रूबी ने अपनी नौकरी छूटने और बीमारी के बारे में बताते हुए कहा कि उसके घर हमारे आने के बारे में उसे शंख चक्र गदा पद्मधारी भगवान् ने इत्तला दी थी। बहकी बहकी बातों के बीच वह कहती रही कि भगवान् ने उसे बताया है यहाँ गैरकानूनी ढंग से रहने पर भी उसे कोई हानि नहीं होनी है जबकि भारत के समय-क्षेत्र में प्रवेश करते ही वह मर जायेगी। उसके हित के लिए हम भी उसकी तरह भगवान से वार्तालाप करने लगे। उसके लिए नौकरी ढूँढने के साथ-साथ उसके संबंधियों की जानकारी भी इकट्ठी करनी शुरू कर दी।
भाग १ , भाग २ , भाग ३ , भाग ४ ; अब आगे की कथा:

पिट्सबर्ग का एक दृश्य
(कथा व चित्र: अनुराग शर्मा)

रूबी के पति से बात करना तो हमारी आशंका से कहीं अधिक कठिन साबित हुआ, "उस पगलैट से मेरा कोई लेना देना नहीं है। तंग आ चुका हूँ मुसीबत झेलते-झेलते …"

"कैसी बात कर रहे हैं आप? अपने काम से संसार भर में भारत का नाम रोशन करने वाली इतनी योग्य महिला को ऐसे कहते हुए शर्म नहीं आती?" मुझसे रहा न गया।

"मुझे पाठ मत पढाओ लडके! लेख उसने कोई नहीं लिखे, मैंने लिखे थे। उसे या तो नकल करना आता है या क्रेडिट लेना। जितना नसीब में था, मैंने झेल लिया, अब वो अपने रास्ते है, मैं अपने। तुम भी उस नामुराद औरत से दूर ही रहो वरना जल्दी ही किसी मुसीबत में फंसोगे।"

"कुछ भी हो, अपनी पत्नी के बुरे वक़्त में उसकी सहायता करना आपका कर्त्तव्य है … आखिर आपकी जीवन-संगिनी है वह ..."

"जब पत्नी थी तब बहुत कर ली सहायता, अब मेरा उससे कोई लेना-देना नहीं उस कमबख्त से" मेरी बात बीच में काटकर उस व्यक्ति ने अपनी बात कही और फोन काट दिया. बात वहीं की वहीं रह गई।

मार्ग कठिन था लेकिन उसकी सहायता कैसे की जाय यह सोचना छोड़ा नहीं था, न मैंने, न रोनित ने। नौकरी करना, घर संभालना, और फिर कुछ समय मिले तो रूबी के रिज्यूमे पर काम करना। पता ही न लगा कितना समय बीत गया। उसे सात्विक और पौष्टिक भोजन नियमित मिले, यह ज़िम्मेदारी श्रीमतीजी ने ले ली थी। वह खाने नहीं आती थी तो वे ही खाना लेकर सुबह शाम उसके पास चली जाती थी।

उस दिन काम करते-करते तबीयत कुछ खराब सी लगने लगी। इसी बीच श्रीमतीजी का फोन आया, "आप जल्दी से आ जाइए, रूबी को ले जाने आए हैं।"

"ले जाने आए हैं? कौन?"

उन्होने बताया कि प्रशासन की ओर से कुछ लोग आकर रूबी से बात कर रहे हैं। कौन लोग हैं, यह तो उन्हें भी ठीक से नहीं पता। मुझसे दफ्तर में रुका न गया और मैं तभी घर चला आया। अपार्टमेंट परिसर के द्वार तक पहुँचा तो रूबी को अफ्रीकी मूल के एक लंबे-तगड़े पुलिस अधिकारी के साथ बाहर आते देखा। मैंने उन्हें रोककर रूबी से सारा किस्सा जानना चाहा। उसके कुछ कहने से पहले ही उस पुलिस अधिकारी ने हमें आश्वस्त कराते हुए विनम्रता से बताया कि वह उसे नगर के महिला सुरक्षा संस्थान में ले जाने के लिए आया है। वहाँ उसके रहने-खाने, मनोरंजन व स्वास्थ्य सेवा का प्रबंध तो है ही, प्रशिक्षित जन उसे वीसा प्रक्रिया सुचारु करने और नई नौकरी ढूँढने में सहायता करेंगे। वह जब तक चाहे, महिला सुरक्षा संस्थान में निशुल्क रह सकती है। नई नौकरी मिलने तक वे लोग ही उसके बेरोज़गारी भत्ते के कागज भी तैयार कराएंगे। इन दोनों के पीछे-पीछे महिला सुरक्षा संस्थान की जैकेट पहने दो श्वेत महिलाओं के साथ ही श्रीमतीजी बाहर आईं। रूबी हमसे विदा लेकर उन महिलाओं के साथ, संस्थान की वैन में बैठकर चली गई और फिर उस पुलिस अधिकारी ने जाने से पहले हमें बेफिक्र रहने की सलाह देते हुए अपना हैट उतारकर विदा ली। उसके इमली के कोयले जैसे स्निग्ध चेहरे पर हैट हटाने से अनावृत्त हुए घने कुंचित केश देखकर न जाने क्यों मुझे नानी के घर बड़े से फ्रेम में लगे जर्मनी में छपे कृष्ण जी की पुरानी तस्वीर की याद आ गई।

सबके जाने के बाद अकेले बचे हम दोनों वहीं खड़े हुए बात करने लगे। संस्थान की महिलाओं ने श्रीमतीजी को बताया था कि रूबी नौकरी छूटने के दिन से ही बेरोजगारी भत्ते की अधिकारी थी और वे उसकी बकाया रकम भी उसे दिला देंगे। अपार्टमेंट वालों ने उसकी स्थिति को देखते हुए उस पर बकाया किराया, बिजली आदि का खर्च पहले ही क्षमा कर दिया था।

"चलो सब ठीक ही हुआ। हमारी उम्मीद से कहीं बेहतर" मैंने आश्वस्ति की साँस लेते हुए कहा।

"अरेSSS"  श्रीमतीजी ऐसे चौंकीं जैसे कोई बड़ा रहस्य हाथ लगा हो, " ... आपने देखा हम कहाँ खड़े हैं?" 

"पार्किंग लॉट में, और कहाँ?"

"ध्यान से देखिये, यह बिल्कुल वही जगह है जहाँ इंगित करते हुए रूबी ने भगवान का जहाज़ उतरने की भविष्यवाणी की थी।"

मैं भ्रमित था, क्या ये सारा घटनाक्रम, वाहन लैंडिंग स्थल, और उस पुलिस अधिकारी का चेहरा-मोहरा संयोगमात्र था?

[समाप्त]
WIN 2014? यह ब्लॉग "बर्ग वार्ता" ब्लॉगअड्डा द्वारा हिन्दी श्रेणी में विन 2014 के लिए पुरस्कार के लिए नामित किया गया है। अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।