Friday, August 21, 2015

बुद्धू - लघुकथा

राज और रूमा के विवाह को सम्पन्न हुए कुछ महीने बीत चुके थे। पति-पत्नी दोनों शाम को छज्जे पर बैठे चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। मज़ाक की कोई बात चलने पर रूमा ने कहा, "अगर उस दिन रीना की शादी में आपने मुझे देखा ही न होता तब?"

"तब तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर तुम मुझे देखकर दीदी से बात नहीं करतीं, तो मुझे कैसे पता लगता?" राज ने कहा।

"क्या कैसे पता लगता?" आवाज़ में कुतूहल था।

"वही सब जो तुमने दीदी से कहा?"

"मैंने? कुछ भी तो नहीं। उनसे बस इतना पूछा था कि जलपान किया या नहीं। फिर वे बात करने लगीं।"

"क्या बात करने लगीं? तुमने उनसे मेरे बारे में क्या कहा?" राज कुछ सुनने को उतावला था।

"मैंने तो कुछ भी नहीं कहा था। वे खुद ही तुम्हारी बातें बताने लगी थीं" रूमा ने ठिठोली की।

"मुझे सब पता है, दीदी ने मुझे उसी दिन सारी बात बता दी थी।"

"अच्छा! क्या क्या बताया?"  

"जो कुछ भी तुमने मेरे बारे में कहा। ... वह लड़का जो आपके साथ आया था, वही जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें इतनी सुंदर हैं, लंबी नाक, चौड़ा माथा। इतना सभ्य, शांत सा, इस शहर के दंभी लड़कों से बिल्कुल अलग।"

"क्या? ये सब कहा दीदी ने तुमसे?"

"हाँ, सारी बात बता दी, एक एक शब्द।"

"लेकिन मैंने तो ये सब कहा ही नहीं। सोचा ज़रूर था, लगभग यही सब। लेकिन उनसे तो ऐसा कुछ भी नहीं कहा।"

"सच? तब तो ये भी नहीं कहा होगा कि कद थोड़ा अधिक होता तो बिलकुल अमिताभ बच्चन होता, वैसे संजीव कुमार, धर्मेंद्र, शशि कपूर वगैरा को तो अभी भी मात कर रहा है।"

"बिल्कुल नहीं। हे भगवान! ये दीदी भी न ..."

"समझ गया दीदी की शरारत। बनाने को एक मैं ही मिला था?"

"एक मिनट, कहीं ऐसा तो नहीं कि तुमने भी मेरे बारे में उनसे कुछ नहीं कहा हो?" 

"मैंने? मैं तो कभी किसी से कुछ कहता ही नहीं, उनसे कैसे कहता? ... और फिर, तुम्हें देखने के बाद तो मेरे दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया था।"

"क्या? तुमने मेरी तारीफ़ में उनसे कुछ नहीं कहा था? इसका मतलब यह कि दीदी ने हम दोनों को ही  बुद्धू बना दिया।"

"कमाल की हैं दीदी भी। लेकिन इस मज़ाक के लिए मैं जीवन भर उनका आभारी रहूँगा।"

"मैं भी। दीदी ने गजब का बुद्धू  बनाया हमें।"

राज ने स्वगत ही कहा, "मेरी माइंड रीडर दीदी।" और दोनों अपनी-अपनी हसीन बेवकूफी पर एकसाथ हँस पड़े।

[समाप्त]

Saturday, August 15, 2015

हुतात्मा मदनलाल ढींगरा

ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है कि मैं अपनी ही माँ से पुनर्जन्म लेता रहूँ और इसी पवित्र कार्य के लिए मृत्युवरण करता रहूँ ~ हुतात्मा मदनलाल ढींगरा
स्वतन्त्रता सेनानी मदन लाल ढींगरा
(18 सितंबर 1883 :: 17 अगस्त 1909)
17 अगस्त 1909 के दिन भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के ज्वलंत क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा को ब्रिटेन के भारत सचिव के विशेष राजनीतिक सलाहकार (political aide-de-camp to the Secretary of State for India) 61 वर्षीय अंग्रेज अधिकारी सर विलियम हट कर्ज़न वाईली (Sir William Hutt Curzon Wyllie) की हत्या के आरोप में फांसी पर लटकाकर मृत्युदंड दिया गया था। इन हुतात्मा का अंतिम संस्कार भी देश की धरती पर नहीं हो पाया लेकिन देशप्रेमियों के हृदय में उनकी याद आज भी अमिट है।

 मदनलाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर, 1883 को अमृतसर में हुआ माना जाता है। उनके पिता रायसाहब डॉ दित्तामल ब्रिटिश सरकार में एक सिविल सर्जन थे। प्रतिष्ठित और सम्पन्न परिवार धन और शिक्षा के हिसाब से उस समय के उच्च वर्ग में गिना जाता था। पिता अपने खान-पान और रहन-सहन में पूरे अंग्रेज़ थे जबकि उनकी माँ भारतीय संस्कारों में रहने वाली शाकाहारी महिला थीं। अफसोस की बात है कि ढूँढने पर भी उनका नाम मुझे अब तक कहीं मिला नहीं। अंग्रेजों के विश्वासपात्र पिता के बेटे मदनलाल को जब भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों से सम्बन्ध रखने के आरोप में लाहौर में विद्यालय से निकाल दिया गया, तो उनके पिता ने मदनलाल से नाता तोड लिया। पढ़ने में आता है कि उन दिनों मदनलाल ने क्लर्क, मजदूर, और तांगा-चालक के व्यवसाय किए। बाद में पंजाब छोडकर कुछ दिन उन्होंने मुम्बई में भी काम किया। अपने बड़े भाई बिहारीलाल ढींगरा (तत्कालीन जींद रियासत के प्रधानमंत्री) की सलाह और आर्थिक सहयोग से सन् 1906 में वे उच्च शिक्षा के लिए 'यूनिवर्सिटी कॉलेज' लंदन में यांत्रिक प्रौद्योगिकी में प्रवेश लेने इंगलेंड चले गये।

लंडन टाइम्स, 19 अगस्त 1909 (सौजन्य: executedtoday.com) 
 लंदन में वे विनायक दामोदर "वीर" सावरकर सहित अन्य देशभक्तों के संपर्क में आए और हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी लिया। वे भारतीय विद्यार्थियों के संगठनों 'अभिनव भारत मंडल' और 'इंडिया हाउस' के सदस्य बने। जब भारत से खुदीराम बोस जैसे किशोर सहित अनेक देशभक्तों को फाँसी दिए जाने के समाचार ब्रिटेन पहुँचे तो भारतीय छात्रों के हृदय ब्रिटिश क्रूरता के प्रति क्षोभ से भर गए। मदनलाल ढींगरा ने भी बदला लेने की एक योजना बना ली।

 1 जुलाई 1909 को लंदन के जहाँगीर हाल में 'इंडियन नेशनल एसोसिएशन' तथा 'इंस्टीट्युट आफ इम्पीरियल स्टडीज' द्वारा आयोजित वार्षिक समारोह कार्यक्रम में मदनलाल ढींगरा भी पहुँचे। समारोह का मुख्य अतिथि ब्रिटिश अधिकारी सर वायली अपने भारत विरोधी रवैये के लिए कुख्यात था। मदनलाल ने उस पर अपने रिवाल्वर से गोलियां चला दीं। वाइली की मृत्यु घटनास्थल पर ही हो गई। उसे बचाने के प्रयास में एक पारसी डॉक्टर कोवासजी लाल काका की भी मृत्यु हो गई। कहते हैं कि वाइली को गोली मारने के बाद मदनलाल ने आत्महत्या का प्रयास भी किया लेकिन पकड लिये गए। वायली हत्याकांड की सुनवाई पुराने बेली कोर्ट लंदन में हुई। एक भारतीय नागरिक के ऊपर ब्रिटिश न्यायालय की वैधता को नकारते हुए मदनलाल ढींगरा ने अपनी पैरवी के लिए कोई वकील करने से इंकार कर दिया। 23 जुलाई को इस एकपक्षीय मुकदमे में उन्हें मृत्युदण्ड सुनाया गया जोकि 17 अगस्त सन् 1909 को पैटनविली जेल में फांसी देकर पूरा किया गया। कहते हैं कि मदनलाल ने ब्रिटिश जज को मृत्युदंड के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि वे अपने देशवासियों के बेहतर कल के लिए मरना चाहते हैं।

 मंगल पाण्डेय को अपना आदर्श मानने वाले हुतात्मा मदनलाल ढींगरा को ऊधमसिंह, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, और कर्तार सिंह सारभा जैसे क्रांतिकारी अपना आदर्श मानते थे।

 हमारे स्वर्णिम आज की आशा में अगणित देशभक्तों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। आज हम उन्हें केवल श्रद्धांजलि और आदर ही दे सकते हैं लेकिन यह भी सच है कि उनकी प्रेरणा से हम आने वाली पीढ़ियों के लिए भारत और विश्व को आज से अधिक बेहतर भी बना सकते हैं।

मदनलाल ढींगरा के जीवन के नाट्यरूपांतर का एक अंश
संबन्धित कड़ियाँ
प्रेरणादायक जीवन चरित्र
हुतात्मा खुदीराम बोस
चापेकर बंधु - प्रथम क्रांतिकारी
1857 के महानायक मंगल पाण्डेय
शहीदों को तो बख्श दो
मदन लाल ढींगरा - अङ्ग्रेज़ी विकीपीडिया पर

Thursday, July 30, 2015

मुंशी प्रेमचंद का जन्मदिन - 31 जुलाई

मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ ... मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६)
मुंशी प्रेमचंद का हिन्दी कथा संकलन मानसरोवर
आज मुंशी प्रेमचंद का जन्मदिन है। हिन्दी और उर्दू साहित्य में रुचि रखने वाला कोई विरला ही होगा जो उनका नाम न जानता हो। हिन्दी (एवं उर्दू) साहित्य जगत में यह नाम एक शताब्दी से एक सूर्य की तरह चमक रहा है। विशेषकर, ज़मीन से जुड़े एक कथाकार के रूप में उनकी अलग ही पहचान है। उनके पात्रों और कथाओं का क्षेत्र काफी विस्तृत है फिर भी उनकी अनेक कथाएँ भारत के ग्रामीण मानस का चित्रण करती हैं। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। वे उर्दू में नवाब राय और हिन्दी में प्रेमचंद के नाम से लिखते रहे। आम आदमी की बेबसी हो या हृदयहीनों की अय्याशी, बचपन का आनंद हो या बुढ़ापे की जरावस्था, उनकी कहानियों में सभी अवस्थाएँ मिलेंगी और सभी भाव भी। अपने साहित्यिक जीवनकाल में उन्होने सैकड़ों कहानियाँ और कुछ लेख, उपन्यास व नाटक भी लिखे। उनकी कहानियों पर फिल्में भी बनी हैं और अनेक रेडियो व टीवी कार्यक्रम भी। उनकी पहली हिन्दी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसंबर १९१५ के अंक में "सौत" शीर्षक से प्रकाशित हुई थी और उनकी अंतिम प्रकाशित (१९३६) कहानी "कफन" थी।
जिस युग में उन्होंने लिखना आरंभ किया, उस समय हिंदी कथा-साहित्य जासूसी और तिलस्मी कौतूहली जगत् में ही सीमित था। उसी बाल-सुलभ कुतूहल में प्रेमचंद उसे एक सर्व-सामान्य व्यापक धरातल पर ले आए। ~ महादेवी वर्मा

प्रेमचंद की हिन्दी कथाओं की ऑडियो सीडी
मैं पिछले लगभग सात वर्षों से इन्टरनेट पर देवनागरी लिपि में उपलब्ध हिन्दी (उर्दू एवं अन्य रूप भी) की मौलिक व अनूदित कहानियों के ऑडियो बनाने से जुड़ा रहा हूँ। विभिन्न वाचकों द्वारा "सुनो कहानी" और "बोलती कहानियाँ" शृंखलाओं के अंतर्गत पढ़ी गई कहानियों में से अनेक कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद की हैं। आप उनकी कालजयी रचनाओं को घर बैठे अपने कम्प्युटर या चल उपकरणों पर सुन सकते हैं। प्रेमचंद की कुछ कहानियो से हिन्द युग्म ने एक ऑडियो सीडी भी जारी की थी। कुछ चुनिन्दा ऑडियो कथाओं के लिंक यहाँ संकलित हैं। आशा है आपको पसंद आएंगे। यदि आप उनकी (या अपनी पसंद के किसी अन्य साहित्यकार की हिन्दी में मौलिक या अनूदित) कोई कथा विशेष सुनना चाहते हों तो अवश्य बताइये ताकि उसे रेडियो प्लेबैक इंडिया के साप्ताहिक "बोलती कहानियाँ" कार्यक्रम में सुनवाया जा सके।
मुंशी प्रेमचंद की 57 कहानियों के ऑडियो का भंडार, 4 देशों से 9 वाचकों के स्वर में

(31 जुलाई 1880 - 8 अक्तूबर 1936)
सौत (शन्नो अग्रवाल) [दिसंबर १९१५]
निर्वासन (अर्चना चावजी और अनुराग शर्मा)
आत्म-संगीत (शोभा महेन्द्रू और अनुराग शर्मा)
प्रेरणा (शोभा महेन्द्रू, शिवानी सिंह एवं अनुराग शर्मा)
बूढ़ी काकी (नीलम मिश्रा)
ठाकुर का कुआँ' (डॉक्टर मृदुल कीर्ति)
स्त्री और पुरुष (माधवी चारुदत्ता)
शिकारी राजकुमार (माधवी चारुदत्ता)
मोटर की छींटें (माधवी चारुदत्ता)
अग्नि समाधि (माधवी चारुदत्ता)
मंदिर और मस्जिद (शन्नो अग्रवाल)
बड़े घर की बेटी (शन्नो अग्रवाल)
पत्नी से पति (शन्नो अग्रवाल)
पुत्र-प्रेम (शन्नो अग्रवाल)
माँ (शन्नो अग्रवाल)
गुल्ली डंडा (शन्नो अग्रवाल)
दुर्गा का मन्दिर' (शन्नो अग्रवाल)
आत्माराम (शन्नो अग्रवाल)
नेकी (शन्नो अग्रवाल)
मन्त्र (शन्नो अग्रवाल)
पूस की रात (शन्नो अग्रवाल)
स्वामिनी (शन्नो अग्रवाल)
कायर (अर्चना चावजी)
दो बैलों की कथा (अर्चना चावजी)
खून सफ़ेद (अर्चना चावजी)
अमृत (अनुराग शर्मा)
अपनी करनी (अनुराग शर्मा)
अनाथ लड़की (अनुराग शर्मा)
अंधेर (अनुराग शर्मा)
आधार (अनुराग शर्मा)
आख़िरी तोहफ़ा (अनुराग शर्मा)
इस्तीफा (अनुराग शर्मा)
ईदगाह (अनुराग शर्मा)
उद्धार (अनुराग शर्मा)
कौशल (अनुराग शर्मा)
क़ातिल (अनुराग शर्मा)
घरजमाई (अनुराग शर्मा)
ज्योति (अनुराग शर्मा)
बंद दरवाजा (अनुराग शर्मा)
बांका ज़मींदार (अनुराग शर्मा)
बालक (अनुराग शर्मा)
बोहनी (अनुराग शर्मा)
देवी (अनुराग शर्मा)
दूसरी शादी (अनुराग शर्मा)
नमक का दरोगा (अनुराग शर्मा)
नसीहतों का दफ्तर (अनुराग शर्मा)
पर्वत-यात्रा (अनुराग शर्मा)
पुत्र प्रेम (अनुराग शर्मा)
वरदान (अनुराग शर्मा)
विजय (अनुराग शर्मा)
वैराग्य (अनुराग शर्मा) 
शंखनाद (अनुराग शर्मा)
शादी की वजह (अनुराग शर्मा)
सभ्यता (अनुराग शर्मा)
समस्या (अनुराग शर्मा)
सवा सेर गेंहूँ (अनुराग शर्मा)
कफ़न (अमित तिवारी) [१९३६]