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सेतु पत्रिका
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Tuesday, September 13, 2016
ये दुनिया अगर - कविता
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( अनुराग शर्मा ) बारूद उगाते हैं बसी थी जहाँ केसर मैं चुप खड़ा कब्ज़े में है उनके मेरा घर कैसे भला किससे कहूँ मैं जान न पाऊँ दे न सक...
20 comments:
Wednesday, September 7, 2016
शाब्दिक हिंसा - मत करो (कविता)
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लोग अक्सर शाब्दिक हिंसा की बात करते हुए उसे वास्तविक हिंसा के समान ठहराते हैं. फ़ेसबुक पर एक ऐसी ही पोस्ट देखकर निम्न उद्गार सामने आये. शब्द...
14 comments:
Sunday, August 21, 2016
शिकायत - कविता
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मुद्रा खरी खरी कहती है खोटे सिक्के चलते हैं। साँप फ़ुंकारे ज़हर के थैले क्यों उसमें पलते हैं। रोज़ लड़ा पर हारा सूरज दिन आखिर ढलते ह...
13 comments:
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