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सेतु पत्रिका
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Monday, May 1, 2017
डर लगता है - कविता
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सुबह-सुबह न रात-अंधेरे घर में कोई डर लगता है बस्ती में दिन में भी उसको अंजाना सा डर लगता है जंगल पर्वत दश्त समंदर बहुत वीराने घूम चु...
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Sunday, April 9, 2017
असलियत - कविता
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इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते न ही छिपते हैं रक्तरंजित हाथ। असलियत मिटती नहीं है। बहुत देर तक नहीं छिपा सकोगे बगल में छुरी। भ...
12 comments:
Tuesday, February 28, 2017
फिरकापरस्त - एक कविता
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( अनुराग शर्मा ) क्यूबा के कम्युनिस्ट राजवंश का प्रथम तानाशाह बंदूकों से उगलते हैं मौत और जहर रचनाओं से जैसे कि जहर और गोली में ...
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