Wednesday, August 21, 2019

माण्डूक्योपनिषद

माण्डूक्योपनिषद अथर्ववेद का एक उपनिषद है। मात्र बारह मंत्रों का माण्डूक्योपनिषद सबसे छोटा उपनिषद होने पर भी अति महत्वपूर्ण समझा जाता है। इस अथर्ववेदीय उपनिषद में परमेश्वर के प्रतीक ॐ (प्रणवाक्षर) की व्याख्या के साथ-साथ ब्रह्म की चार अवस्थाओं - जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय - का वर्णन है।

परम्परा में “ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा ...” के शांतिपाठ के बाद माण्डूक्योपनिषद का आरम्भ होता है। ॐ अक्षर की महिमा से आरम्भ करके इस उपनिषद के सातवें मंत्र तक आत्मा के चार पादों का वर्णन है। इसके अनुसार, परम अक्षर ॐ त्रिकालातीत, अनादि-अनंत, और सम्पूर्ण जगत का मूल है। विश्व ब्रह्म से आच्छादित है और यह ब्रह्म चतुष्पद है। ब्रह्म के चार पदों की विशेषताएँ निम्न हैं:


  • प्रथम पाद, यानि जाग्रत अवस्था में ब्रह्म वैश्वानर कहलाता है और वह सात लोक तथा 19 मुखों से स्थूल विषयों का भोक्ता है।
  • द्वितीय पाद में स्वप्नमय निद्रा जैसे सूक्ष्मजगत में ब्रह्म तेजस कहलाता है।
  • ब्रह्म की स्वप्नहीन प्रगाढ़ निद्रा जैसी ज्ञानमय, आनंदमय, प्रलय अवस्था सुषुप्ति कहलाती है।
  • आत्मा का चौथा वास्तविक स्वरूप उसकी तुरीय अवस्था है जिसकी अभिव्यक्ति सरल नहीं क्योंकि यह तुरीयावस्था अन्तःप्रज्ञ, बहिष्प्रज्ञ, उभयप्रज्ञ, प्रज्ञानघन, प्रज्ञ, अप्रज्ञ कुछ भी नहीं, बल्कि शांत, शिव और अद्वैत रूप है। वही आत्मा है और वही साक्षात ब्रह्म का चौथा पद है। 


माण्डूक्योपनिषद में प्रणवाक्षर ॐ की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि ऊँकार  देश-काल से परे, कालातीत, आद्यंतहीन और सर्वव्यापी है। , , तथा , इन तीन मात्राओं से युक्त में ब्रह्मनाद है, ईश्वर की आराधना है।

ओंकार रूपी आत्मा का जो स्वरूप उसके चतुष्पाद की दृष्टि से इस प्रकार निष्पन्न होता है उसे ही ऊँकार की मात्राओं के विचार से इस प्रकार व्यक्त किया गया है कि ऊँ की अकार मात्रा से वाणी का आरंभ होता है और अकार वाणी में व्याप्त भी है। सुषुप्ति स्थानीय प्राज्ञ ऊँ कार की मकार मात्रा है जिसमें विश्व और तेजस के प्राज्ञ में लय होने की तरह अकार और उकार का लय होता है, एवं ऊँ का उच्चारण दुहराते समय मकार के अकार उकार निकलते से प्रतीत होते है। तात्पर्य यह कि ऊँकार जगत् की उत्पत्ति और लय का कारण है।

वैश्वानर, तेजस और प्राज्ञ अवस्थाओं के सदृश त्रैमात्रिक ओंकार प्रपंच तथा पुनर्जन्म से आबद्ध है किंतु तुरीय की तरह अ मात्र ऊँ अव्यवहार्य आत्मा है जहाँ जीव, जगत् और आत्मा (ब्रह्म) के भेद का प्रपंच नहीं है और केवल अद्वैत शिव ही शिव रह जाता है।

॥ अथ माण्डूक्योपनिषद ॥

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
   स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः॥
   स्वस्ति न इन्द्रो वॄद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
   स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
ओमित्येतदक्षरमिदँसर्वं तस्योपव्याख्यानभूतं भवद् भविष्यदिति सर्वमोङ्कार एव।
यच्चान्यत् त्रिकालातीतं तदप्योङ्कार एव ॥1॥

सर्वं ह्येतद् ब्रह्मायमात्मा ब्रह्म सोऽयमात्मा चतुष्पात् ॥2॥

जागरितस्थानो बहिःप्रज्ञः सप्ताङ्ग एकोनविंशतिमुखः स्थूलभुग्वैश्वानरः प्रथमः पादः ॥3॥

स्वप्नस्थानोऽन्तःप्रज्ञः सप्ताङ्ग एकोनविंशतिमुखः प्रविविक्तभुक्तैजसो द्वितीयः पादः ॥4॥

यत्र सुप्तो न कञ्चन कामं कामयते न कञ्चन स्वप्नं पश्यति तत् सुषुप्तम् ।
सुषुप्तस्थान एकीभूतः प्रज्ञानघन एवानन्दमयो ह्यानन्दभुक् चेतोमुखः प्राज्ञस्तृतीयः पादः ॥5॥

एष सर्वेश्वर एष सर्वज्ञ एषोऽन्तर्याम्येष योनिः सर्वस्य प्रभवाप्ययौ हि भूतानाम् ॥6॥

नान्तःप्रज्ञं न बहिष्प्रज्ञं नोभयतःप्रज्ञं न प्रज्ञानघनं न प्रज्ञं नाप्रज्ञम् ।
अदृष्टमव्यवहार्यमग्राह्यमलक्षणं अचिन्त्यमव्यपदेश्यमेकात्मप्रत्ययासारं प्रपञ्चोपशमं शान्तं शिवमद्वैतं चतुर्थं मन्यन्ते स आत्मा स विज्ञेयः ॥7॥

सोऽयमात्माध्यक्षरमोङ्करोऽधिमात्रं पादा मात्रा मात्राश्च पादा अकार उकारो मकार इति ॥8॥

जागरितस्थानो वैश्वानरोऽकारः प्रथमा मात्राऽऽप्तेरादिमत्त्वाद्वाऽऽप्नोति ह वै सर्वान् कामानादिश्च भवति य एवं वेद ॥9॥

स्वप्नस्थानस्तैजस उकारो द्वितीया मात्रोत्कर्षात् उभयत्वाद्वोत्कर्षति ह वै ज्ञानसन्ततिं समानश्च भवति नास्याऽब्रह्मवित्कुले भवति य एवं वेद ॥10॥

सुषुप्तस्थानः प्राज्ञो मकारस्तृतीया मात्रा मितेरपीतेर्वा मिनोति ह वा इदं सर्वमपीतिश्च भवति य एवं वेद ॥11॥

अमात्रश्चतुर्थोऽव्यवहार्यः प्रपञ्चोपशमः शिवोऽद्वैत एवमोङ्कार आत्मैव संविशत्यात्मनाऽऽत्मानं य एवं वेद ॥12॥
       
॥ अथर्ववेदीय माण्डूक्योपनिषद समाप्त ॥

Thursday, August 8, 2019

कुछ पुस्तकें मेरी, कुछ सेतु की

क्या आपने इनमें से कोई पुस्तक पढ़ी है? अधिक जानकारी के लिये संदर्भित पुस्तक के चित्र पर क्लिक कीजिये
India as an IT Superpower
Anurag Sharma
अनुरागी मन कथा संग्रह :: लेखक: अनुराग शर्मा
Basic Hindi 2 Workbook :: Sonia Taneja
Paco's Atlas And Other Poems
By John Thieme
Aesthetic Negotiations :: Sunil Sharma
सेतु, मासिक पत्रिका
हिंदी व अंग्रेज़ी में
कुछ और सुंदर, रोचक, उपयोगी, त्रुटिहीन पुस्तकें शीघ्र आ रही हैं। पुस्तकें एमेज़ॉन पर उपलब्ध हैं, अधिक जानकारी के लिये संदर्भित पुस्तक के चित्र पर क्लिक कीजिये।

Tuesday, July 9, 2019

कुछ साक्षात्कार

विडियो Video


हिंदी सम्पादन की चुनौतियाँ - टैग टीवी कैनैडा पर अनुराग शर्मा, सुमन घई और शैलजा सक्सेना
Anurag Sharma with Suman Ghai and Shailja Saxena on Tag TV Canada



मॉरिशस टीवी पर डॉ. विनय गुदारी के साथ अनुराग शर्मा का साक्षात्कार
Anurag Sharma's Interview by Dr. Vinay Goodary on Mauritius TV



आप्रवासी साहित्य सृजन सम्मान का फ़्रैंच समाचार French News about MGI Mauritius Award



अनुराग शर्मा का साक्षात्कार (अंग्रेज़ी में) In discussion with Sparsh Sharma (English)

ऑडियो Audio
एनएचके (जापान) पर अनुराग शर्मा से नीलम मलकानिया की वार्ता
Neelam Malkania speaks to Anurag Sharma on NHK Radio (Japan)

रेडियो सलाम नमस्ते (अमेरिका) पर अनुराग शर्मा का साक्षात्कार
Hindi Interview with Anurag Sharma on Radio Salam Namaste, Texas





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