(अनुराग शर्मा)
क्रिसमस के आसपास से जो हिमपात आरंभ हुआ वह अभी भी अपना श्वेत सौंदर्य बिखेर रहा है। चाँदनी रातों की तो बात ही अवर्णनीय है लेकिन दिन का सौंदर्य भी कोई कम नहीं। श्वेत-श्याम प्रकृति कितनी सुंदर हो सकती है इसका अनुभव देखे बिना नहीं किया जा सकता। आइये एक चित्रमयी सैर पर निकलते हैं
क्रिसमस के आसपास से जो हिमपात आरंभ हुआ वह अभी भी अपना श्वेत सौंदर्य बिखेर रहा है। चाँदनी रातों की तो बात ही अवर्णनीय है लेकिन दिन का सौंदर्य भी कोई कम नहीं। श्वेत-श्याम प्रकृति कितनी सुंदर हो सकती है इसका अनुभव देखे बिना नहीं किया जा सकता। आइये एक चित्रमयी सैर पर निकलते हैं
घर जाने का मार्ग |
घर से आने का मार्ग |
बर्फ की नदी का किनारा |
लवणों द्वारा बर्फ पिघलाने के बाद की सड़क |
बर्फ पिघलने से पहले श्वेत वालुका सा पथ |
वैदिक ऋषि केवल उषा के सौन्दर्य, मरुत के वेग, वरुण की असीमता पर ही मुग्ध नहीं होता, वह अरण्यानी अर्थात् प्रकृति की ग्राम से दूरी का अनुभव करके भी वियोग से व्याकुल हो जाता हैः
अरण्यान्रण्यान्सौ या प्रेवनश्यति, कथं ग्रामं न प्रच्छसि न त्वाभीरिवविन्दति।
(हे अरण्यानी तुम हमारी दृष्टि से कैसे तिरोहित हो जाती हो, इतनी दूर चली जाती हो कि हम तुम्हें देख नहीं पाते। तुम ग्राम जाने का मार्ग क्यों नहीं पूछती हो ? क्या अकेले रहने में भय की अनुभूति नहीं होती ?) ~ महादेवी वर्मा
शुभ्र ज्योत्सना पुलकित यामिनीम् |
घर के काष्ठ चबूतरे का हाल |
बच्चों का क्लब हाउस उपेक्षित पड़ा है |
शस्य-श्यामलां मातरम् |
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बहुत बढ़िया तस्वीरें.....
ReplyDeleteनर्म बर्फ के साथ कोमल से शब्द....
सादर
अनु
खूबसूरत नजारे!!
ReplyDeleteहम तो दिल्ली की सर्दी से ही तंग थे अब इसे देखकर रजाई से लिकड़ने का जी कतई ना करे सै।
ReplyDeleteपैदल घूमण का मौका थ्या जाये तो रजाई ने परे मारके लिकड़ लेगा, पक्की बात सै:)
Deleteमनमोहक तस्वीरें..... .
ReplyDeleteजितनी सुन्दर तस्वीरें उतने ही सुन्दर संस्कृत श्लोक का चयन |
ReplyDeleteयहाँ कोलकाता की तरफ तो सर्दी लगभग खत्म ही है |
ps-वहाँ क्या 'घर जाने के' और 'घर से आने' के मार्ग अलग-अलग होते हैं ?
सादर
ऐसा ज़रूरी नहीं है लेकिन पुराने रिहायशी इलाकों में अक्सर गलियां एकपक्षीय होती हैं, उस स्थिति में आने जाने का मार्ग अलग हो जाता है। यहाँ पर ऐसा नहीं है लेकिन अपनी सुविधा के लिए मैं दायें मोड़ वाला मार्ग चुनता हूँ इसलिए आने-जाने के मार्ग बादल जाते हैं।
Deleteश्वेत श्यामला मातरम्...
ReplyDeleteकल दिल्ली में बैठे-बैठे हमने भी देखी बर्फ से लदी ख़ूबसूरत पहाड़िया, स्टेडियम के बैक ग्राउंड में :)
ReplyDeleteawww b'ful
ReplyDelete(हे अरण्यानी तुम हमारी दृष्टि से कैसे तिरोहित हो जाती हो, इतनी दूर चली जाती हो कि हम तुम्हें देख नहीं पाते। तुम ग्राम जाने का मार्ग क्यों नहीं पूछती हो ? क्या अकेले रहने में भय की अनुभूति नहीं होती ?) ~ महादेवी वर्मा
ReplyDeleteमहादेवी वर्मा जी को सुन्दर चित्रों सहित याद दिलाने का धन्यवाद
सुन्दर चित्र।
ReplyDeleteवाह..प्रकृति कितनी मोहक है श्वेत-श्याम में भी..आभार इन सुंदर चित्रों के लिए..एक बार हम तीन दिनों के लिए बोस्टन में थे तो कुछ ऐसे ही दृश्य देखे थे..
ReplyDeleteबोस्टन में आज फिर बरफीला तूफान है, कुछ असर हमारे यहाँ भी दिख रहा है।
Deleteइस बार हमने भी ३ दिन तक प्रकृति यह सौंदर्य सेवन किया.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तस्वीरें हैं.
प्रकृति सा खूबसूरत दूसरा कोई नहीं।
ReplyDeleteशुभ्र ज्योत्सना पुलकित यामिनीम के दर्शन कराने के लिए आभार
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 29/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
ReplyDeleteधन्यवाद राजेश जी!
Deleteक्या स्वेत नज़ारे हैं !
ReplyDeleteहैप्पी स्नोविंग ! :)
बर्फ ही बर्फ, कुछ ऐसा ही कामायनी के रचयिता ने सोचा होगा.
ReplyDeleteबेहद सुंदर तस्वीरें ...
ReplyDeleteशुभकामनायें !
तब तक के जीवन में मुझे, इस बरस, पहली बार मुझे लगा, ठण्ड सबसे अधिक है। उससे उबरा भी नहीं था कि आपने 'ये' चित्र दिखा दिए। अब तक नयनाभिराम लगते रहे आपके चित्र, इस बार ऑंखों के जरिए ठेठ भीतर तक कँपकँपा गए।
ReplyDeleteबहुत मोहक चित्र हैं .अरण्यों की बात भी अब दुर्लभ हो गई है,उन्हें बचा कर रखने के लिये मनुष्य सावधान हो जाये इसी में उसका कल्याण है .
ReplyDeleteइक राह पे मेरा आशियाना रखा..,
ReplyDeleteइक राह रखी रोज़ीना खोराँ के लिए..,
इक राह पे मेरा आशिक़ाना सजा..,
एक राह नामे-खुदा के लिए.....
शस्य-श्यामलां मातरम्......bande matram.
ReplyDeleteतस्वीरें देखकर तो आनंद आगया, बहुत सुंदर.
ReplyDeleteरामराम.
oh - how beautiful.... thanks for sharing these lovely images...
ReplyDeleteखूबसूरत मंजर के साक्षी हम भी हुए !
ReplyDeleteधन्यवाद... अपन ने तो यहीं से आखें ठंडी कर लीं...
ReplyDeleteचारो और श्वेत सौंदर्य बिखरा देख कर,
ReplyDeleteऐसे लग रहा है प्रकृति ने श्वेत परिधान पहना हो जैसे !
बहुत सुन्दर चित्र ....
धन्यवाद शिवम!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्रों संग बरफ की चादर ओढ़े धरती और घर का चित्र मन मोह लिया ....
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