दर्द मेरा न वो ताउम्र कभी जान सकेबेपरवाही यही उनकी मुझे मार गई॥
तेरे मेरे आँसू की तासीर अलहदा है बेआब नमक सीला, वो दर्द से पैदा है |
और उनके वजूहात को भी जानता हूँ मैं
पर उनके बहाने से जब टूटती हो तुम
बेवजहा बहुत मुझसे जो रूठती हो तुम
तुम मुझको जलाओ तो कोई बात नहीं है
अपनी उँगलियों को भी तो भूनती हो तुम
ये बात मेरे दिल को सदा चाक किए है
यूँ तुमसे कहीं ज़्यादा मैंने अश्क पिये हैं
मिटने से मेरे दर्द भी मिट जाये गर तेरा
तो सामने रखा है तेरे सुन यह सर मेरा
तेरे दर्द का मैं ही हूँ सबब जानता हूँ मैं
सब दर्द तेरे सच हैं सखी, मानता हूँ मैं।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 11 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद यशोदा जी!
Deleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteतेरे दर्द का मैं ही हूँ सबब जानता हूँ मैं
ReplyDeleteसब दर्द तेरे सच हैं सखी, मानता हूँ मैं .... वाह, हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ
धन्यवाद कुलदीप!
ReplyDeleteहार्दिक आभार!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ! ईमानदार स्वीकारोक्ति !
ReplyDeleteवाह ! इस तरह जो दूसरों के दर्द समझ लेते है वही उनसे मुक्त हो सकते हैं और वही दूसरों को मुक्त कर सकते हैं..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सभी पंक्तियाँ !
ReplyDeleteमिटने से मेरे दर्द भी मिट जाये गर तेरा
ReplyDeleteतो सामने रखा है तेरे सुन यह सर मेरा................सुंदर
बहुत सुन्दर सभी पंक्तियाँ ! ईमानदार स्वीकारोक्ति !
ReplyDeleteअनुराग चाचा..सभी बेहतरीन...!
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबेहतरीन!
ReplyDeleteसाथी के दिल का दर्द और उसको जानना .... सखी के लिए कितना अच्छा है ये शायद वाही जान सकता है .... दिल को छूती बातें बहुत अच्च्छी लगीं ...
ReplyDeleteवाह . सुंदर :)
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