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Friday, June 7, 2019
कविता: अनुनय
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अनुराग शर्मा सुबह की ओस में आँखें मुझे भिगोने दो युगों से सूखी रहीं आँसुओं से धोने दो कभी उठा तो बिखर जाऊंगा सहर बनकर बहुत थका हू...
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Saturday, October 10, 2015
तुम और हम - कविता
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( शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा ) तुम खूब रहे हम खूब रहे तुम पार हुए हम डूब रहे अपना न मुरीद रहा कोई पर तुम सबके मतलूब रहे तुम धूप ह...
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