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Sunday, March 16, 2014
कालचक्र - कविता
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( अनुराग शर्मा ) बनी रेत पर थीं पदचापें धारा आकर मिटा गई बने सहारा जो स्तम्भ, आंधी आकर लिटा गई बीहड़ वन में राह बनाते, कर्ता धरती ली...
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Sunday, November 25, 2012
एक शाम गीता के नाम - चिंतन
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सुखिया सब संसार है खाए और सोये। दुखिया दास कबीर है जागे और रोये। । ज्ञानियों की दुनिया भी निराली है। जहाँ एक तरफ सारी दुनिया एक दूसरे की...
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