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Monday, November 2, 2009
भोर का सपना - कविता
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बीता हर पल ही अपना था विरह-वेदना में तपना था क्या रिश्ता है समझ न पाया आज पराया कल अपना था हुई उषा तो टूटा पल में भोर का मीठा सा सपन...
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