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Thursday, July 3, 2014
आस्तीन का दोस्ताना - कविता
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फूल के बदले चली खूब दुनाली यारों, बात बढ़ती ही गई जितनी संभाली यारों दूध नागों को यहाँ मुफ्त मिला करता है, पीती है मीरा यहाँ ...
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Saturday, January 17, 2009
कुछ शेर और
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पिछली पोस्ट में पाण्डेय जी ने उत्सुकता व्यक्त की थी कि शून्य से नीचे के तापक्रम पर रेल चलती है। बात तो सही है। रेल खूब चल रही है। और हाँ, डि...
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Wednesday, January 14, 2009
चंद अशआर
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संजो के रखो इसे, हाथ से न जाने दो बात निकलेगी तो बेकार चली जायेगी। -x-X-x- जब कभी लोग बुरे वक़्त से गुज़रते हैं गैर बच जाते हैं अपने ही...
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