Monday, July 1, 2013

मार्जार मिथक गाथा

(अनुराग शर्मा)

बिल्लियाँ जब भी फुर्सत में बैठती हैं, इन्सानों की ही बातें करती हैं। यदि आप कभी सुन पाएँ तो जानेंगे कि उनके अधिकांश लतीफे मनुष्यों के बेढंगेपन पर ही होते हैं। कहा जाता है कि बहुत पहले बिल्लियों के चुटकुले भी बहुरंगी होते थे। फिर धीरे-धीरे आत्म-केन्द्रित इंसान प्रकृति के साथ-साथ बिल्लियों के हास्य-व्यंग्य पर भी कब्जा करता गया और अब तो कोई पढ़ी-लिखी बिल्ली इंसान की कल्पना किए बिना ढंग से हँस भी नहीं सकती है। बिल्लियों के विपरीत इन्सानों के चुट्कुले अपने और दूसरे के बीच के अंतर से उत्पन्न होते हैं। उनमें अक्सर दूसरे देश, धर्म, प्रांत या मज़हब के इन्सानों का ज़िक्र होता है। कभी-कभी उनमें गधे या कुत्ते जैसे सरल प्राणी शामिल होते हैं लेकिन अक्सर तो इंसानी साहित्य की अन्य विधाओं की तरह उनके लतीफों का दायरा भी सीमित ही रह गया है। लेकिन कुछ इंसान दूसरों से अलग हैं। वे इंसानी नस्ल के आगे भी सोचते हैं। मनुष्यमात्र की बात करना उनके लिए स्वार्थ का प्रतिमान है।

ऐसे टुन्नात्मिक प्रवृत्ति वाले लोगों का संसार बिल्ली-कुत्तों के दुख-दर्द, उनके राजनीतिक अधिकार, सरकार द्वारा मछलियों की अभिव्यक्ति के दमन और घोड़े-गदहे-जिराफ़ और गेहूँ-कमल-गुलाब की समानता के अधिकार के बारे में सोचता है। वे दुबले हुए जाते हैं इसीलिए आप सड़क पर खुजलाते आवारा कुत्तों को देख पाते हैं, वरना ज़ालिम नगर पालिका वाले उन्हें कब का पकड़ ले जाते। ये महात्मा लोग जीवित हैं इसीलिए गायें पोलीथीन की थैलियाँ खा सकती हैं, वरना तो भक्तजन गायों को भी पूजनीय देवी बनाकर मंदिरों और गौशालाओं में बांधकर रख देते। इन्हीं की दया से कर्तव्यनिष्ठ कसाई भेड़-बकरियों को मनुष्य की कैद से आज़ादी दिला पाते हैं। ये लोग आमतौर पर हम-आप जैसे अल्पज्ञ और नश्वर प्राणियों को घास नहीं डालते हैं। लेकिन थोड़ी पीने के बाद वे रहमदिल हो जाते हैं। ऊपर से अगर मुफ्त की मिल जाये फिर तो ये निस्वार्थ मनुष्य और भी दरियादिल दिखने लगते हैं।

ऐसी ही एक मुफ्तखोर पार्टी में जब दारूचन्द जी ने मेरे सलाम को इगनोर नहीं किया तो मेरा साहस बढ़ गया। मैं अपने कोला के गिलास को उनकी दारू के पास रखकर एक कुर्सी खींचकर उनके निकट बैठकर उनकी और उनकी मित्र मंडली की बातें ऐसे सुनता गया जैसे फेसबुक की मित्र-सूची से निकाला गया व्यक्ति अपने पुराने गैंग की वाल को पढ़ता है।

"मुहल्ले में चोरियाँ होने लगीं तो सबने कहा कि एक कुत्ता पाल लो।" ये सुरासिंह थे।
"अच्छा! फिर?" बाकियों ने समवेत स्वर में पूछा।
"चोर तो चोर, कुत्ते भी जब मेरे गली से गुज़रते थे, तो अपनी दुम दबाकर दूसरी ओर की दीवार से चिपककर चलते थे, ऐसे गरजता था मेरा टॉम।"
"गोल्डेन रिट्रीवर था कि जर्मन शेपर्ड?"
"बुलडॉग या लेब्रडोर होगा ... "
"अजी बिलकुल नहीं, मेरा टॉम तो शेर का मौसा है, एक खतरनाक बिलौटा।"
"आँय!" कुत्तापछाड़ बिलाव की बात सुनकर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया लेकिन बाकी मंडली को कोई खास आश्चर्य नहीं हुआ। बल्कि यह किस्सा सुनकर पियक्कड़ कुमार "पीके" को अपनी बिल्ली याद आ गई।

पीके की बिल्ली का पिंजरा
"मेरी बिल्ली तो बहुत मक्कार है। रात में अपना पिंजरा छोडकर मेरे बिस्तर में घुस जाती थी" पीके ने कहा।
"अच्छा! फिर?" बाकियों ने समवेत स्वर में पूछा।
"फिर क्या? मैंने कुछ दिन बर्दाश्त क्या किया उसकी तो हिम्मत बढ़ती ही गई। अब तो वह मुझे धकिया कर पूरे बिस्तर पर ही कब्जा करने लगी।"
"ऐसे ही होता है। लोग आते हैं आव्रजक बनकर, फिर देश के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बन जाते हैं।
"आप चुप रहिये! हर बात में राजनीति ले आते हैं ...", लोगों ने सुरासिंह को झिड़का, "फिर? आगे क्या हुआ"
"अब तो मैं सोते समय 10-12 तकिये लेकर सोता हूँ। बिल्ली के पास आते ही एंटी-एयरक्रेफ्ट मिसाइल की तरह एक-एक करके उस पर फेंकना शुरू कर देता हूँ। अकल ठिकाने आ जाती है।

सब सुना रहे थे तो भला अंगूरी प्यारी कैसे चुप रहतीं? अपनी ज़ुल्फें झटककर बोलीं, "मेरी दुलारी तो बस गायब ही हो गई थी!"
"आपसे डरकर?"
"शटअप!"
"अरे इसे छोड़िए, नादान है। आप अपना किस्सा सुनाये" दारूचन्द ने बात सम्भाली।
"कई दिन से लापता थी। पुलिस में रिपोर्ट भी लिखाई। जब कुछ नहीं हुआ तो एक प्राइवेट डिटेक्टिव रखा। उसकी कई हफ्तों की खोज के बाद पड़ोसी नगर के रेसकोर्स में मिली। पड़ोसियों के कुत्ते को भगाकर ले गई थी।
"अरेSSS गज़्ज़ब!" सभी ने आश्चर्य व्यक्त किया।

"आप तो काफी पिछड़े हुए लगते हैं। आपके पास तो बिल्ली नहीं होगी विलायत खाँ जी।"
"पिछड़े होंगे आप। हमारा तो पूरा खानदान ही बिल्लीपालक है। पुरखे शेर-चीते पालते थे। आज के जमाने में उन्हें खिलाने को गरीब लोग कहाँ ढूंढें, सो बिल्ली पालकर शौक पूरा कर रहे हैं।
"तो बिल्ली को खिलाने के लिए चूहे कहाँ ढूंढते हैं?"
"इत्ता टाइम कहाँ है अपने पास। पहले दूध पिलाते थे। अब तो हम कभी चाय पिला देते हैं कभी कॉफी। घटिया नस्ल की बिल्लियाँ कोक-पेप्सी भी पी लेती हैं लेकिन आला दर्जे की बिल्लियाँ रोज़ एक-दो पैग वोदका न पियें तो उन्हें नींद ही नहीं आती है।
"अच्छा! ये बात!" बाकियों ने समवेत स्वर में कहा।
"कभी ज़्यादा तंग करें तो मैं अपनी नशे की गोली भी खिला देता हूँ सुसरियों को।"
"क्या ज़माना आ गया है, आदमी तो आदमी, बिल्लियाँ भी नशा करती हैं।" सभी ने आश्चर्य व्यक्त किया।

"आप बड़े चुप-चुप हैं, आपके घर में बिल्ली नहीं है क्या?"
"जी नहीं! गुज़र गई!"
"कैसे?" सभी ने आश्चर्य से एकसाथ पूछा।
"बड़ी महत्वाकांक्षी थी"
"अच्छा! कैसे गुज़री?" सभी ने आश्चर्य व्यक्त किया।
"खबर फैली हुई थी कि चुनाव आ रहे हैं। सो अपने बच्चों को मुँह में दाबकर ..."
"इलेक्शन में खड़ी हो रही है?"
"चुनाव प्रचार को निकली?"
"ट्रक से कुचल गई?"
अरे नहीं, पूरी बात कहने तो दीजिये।"
"जी!"
"बाल बच्चों समेत गुजरात के लिए गुज़री है। सुना है कि मोदी पीएम बनेंगे तब सीएम की सीट खाली होगी न। हमारी बिल्ली की नज़र उसी पर है।"

[समाप्त]

36 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज मंगलवार (02-07-2013) को "कैसे साथ चलोगे मेरे?" मंगलवारीय चर्चा---1294 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद शास्त्री जी!

      Delete
  2. टुन्नात्मिक प्रवृत्ति वाले लोग...

    हा हा हा

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्पोंसर्ड बाय बेवड़ा एंटरप्राइज़!

      Delete
  3. बिल्लियों की शामत

    ReplyDelete
  4. ’जहाँ तेरी ये नजर है, मेरी जाँ मुझे खबर है’

    गाना याद आ गया जी :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. नज़र बचा के जिए
      सागर बचा के पिए
      गमों के दौर में हम
      गुज़र बचा के किए

      Delete
    2. बढ़िया है सरजी, नजर\सागर\हम बचे रहे

      Delete
  5. कितना कुछ समझती है हमारी बिल्लियाँ, काश हम भी कुछ सीख पाते। दमदार संवाद..

    ReplyDelete
  6. कंटीले कटाक्ष, :)व्यंग्य मनोरंजक रहा शुरू से अंत तक !

    ReplyDelete
  7. चतुर-चालाक होती है बिल्ली ,और यह भी कि चार घर घूमे बिना उसे चैन नहीं पड़ता !

    ReplyDelete
    Replies
    1. बिटिया के घर दस साल से बिल्लियाँ हैं. कभी किसी अन्य के घर घूमने नहीं गईं.
      घुघूती बासूती

      Delete
    2. हमारी तरफ भी ऐसा कहते हैं कि जैसे कुत्ता मालिक के साथ जुड़ता है बिल्लियाँ घर के साथ। ज़बरदस्ती न की जाये तो वे घर बदलने वाले मालिक के साथ जाने के बजाय अपने घर में ही रहना पसंद करेंगी।
      (नोट: बिल्लियों के मामले में मैं निपट अज्ञानी हूँ, मेरा कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं है)

      Delete
  8. @"बाल बच्चों समेत गुजरात के लिए गुज़री है। सुना है कि मोदी पीएम बनेंगे तब सीएम की सीट खाली होगी न। हमारी बिल्ली की नज़र उसी पर है।"
    हम बिल्ली तो नहीं है किन्तु इस बारे में तो हम भी सोच रहे थे की मोदी जी का मायका छूटेगा तो वहा की गद्दी कौन संभालेगा , ऐसा न हो की मायका छूटे और ससुराल भी ढंग का न मिले लड़ने झगड़ने वाली दर्जन भर ननदे जेठानिया देवरानिया ( समाज में जैसा कहा जता है उस हिसाब से ) मिले जो मायके की तरह अपने मन की करने ही न दे फिर काहे को ब्याहा विदेश :)

    ReplyDelete
  9. बिल्लियाँ इतनी चतुर/घाघ प्राणी है , पता ही नहीं था !
    धारदार शानदार व्यंग्य !

    ReplyDelete
  10. बिल्लियों के हर संवाद के पीछे वो मुहावरा याद आता है सौ चूहे खाकर..., बहरहाल मोदी बिल्लियों के यहाँ भी मौजूद हैं। उनका दखल बढ़ रहा है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. दाखल तो वाकई बढ़ रहा है। सबूत यही है कि इस ब्लॉग मे यह शायद पहला ज़िक्र होगा।

      Delete
  11. बहुत शानदार, ये बिल्ली हमारी रामप्यारी ही है.अबकि बार किला फ़तेह करके मानेगी.:)

    रामराम.

    ReplyDelete
    Replies
    1. ताऊ का राज तो जगत-व्यापी है।

      Delete
  12. अरे बाप रे दण्डवत प्रणाम

    ReplyDelete
  13. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन मिलिये ओम बना और उनकी बुलेट से - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  14. क्या सच में बिल्लियां समझदार हैं ... गुजरात का रुख कर के भी ...

    ReplyDelete
  15. वाह ! बात कहाँ से शुरू हुई कहाँ खत्म हुई...रोचक पोस्ट !

    ReplyDelete
  16. मजा आ गया. अभी गाँव आया हूँ और यहाँ बिल्लियों से ही त्रस्त भी हूँ.

    ReplyDelete
  17. बिल्लियों की दूर दृष्टि बडी तेज होती है, चुहे छका कर उसे चतुर तो बना ही देते है....

    ReplyDelete
    Replies
    1. मतलब ये कि ’हर सफ़ल आदमी के पीछे एक औरत’ की तर्ज पर कह सकते हैं कि ’हर तेज बिल्ली के आगे कोई चूहा होता है’ :)

      Delete
  18. कैसी माहिर बिल्लियाँ, सटीक व्यंग......

    ReplyDelete
  19. samat hai billi mari nahi ...aas lagaye hai

    ReplyDelete
  20. क्या वाकई ताऊ रामपुरिया जी की रामप्यारी है

    ReplyDelete

मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।