(लघुकथा व चित्र: अनुराग शर्मा)
जब मुसलमानों ने मकबूल की जमीन हथियाकर उस पर मस्जिद बनाई तो हिंदुओं के एक दल ने मुकुल की जमीन पर मठ बना दिया। मुकुल और मकबूल गाँव के अलग-अलग कोनों में उदास बैठे हैं फिर भी गाँव में शांति है क्योंकि इस बार कोई यह नहीं कह सकता कि हिंदुओं ने मुसलमान या मुसलमानों ने हिन्दू को सताया है।
जब मुसलमानों ने मकबूल की जमीन हथियाकर उस पर मस्जिद बनाई तो हिंदुओं के एक दल ने मुकुल की जमीन पर मठ बना दिया। मुकुल और मकबूल गाँव के अलग-अलग कोनों में उदास बैठे हैं फिर भी गाँव में शांति है क्योंकि इस बार कोई यह नहीं कह सकता कि हिंदुओं ने मुसलमान या मुसलमानों ने हिन्दू को सताया है।
खुदा और भगवान भी अलग अलग कोने देख रहे हैं ।
ReplyDeleteलोग इंसानियत को भूल गए हैं. इससे वोट नहीं मिलते इसीलिए संप्रदाय ज्यादा महत्व रखता है. खास तौर पर तब जब मजहब मिलते हैं या टकराते हैं. ताकि भुनाए जा सकें.
ReplyDeleteइन्सानियत ही जीवन जीने का सही आधार है हर धर्म मे इन्सानियत को हिइ तर्जीह दी गयी है1
ReplyDeleteबड़ी मुश्किल है - उकसाने का मौका भी तो हो !
ReplyDeleteमुकुल मकबूल एक और एक ग्यारा बन जाते तो शायद कुछ हल निकाल भी लेते ...
ReplyDeleteपर ऐसा होता कहाँ है ...
ReplyDeleteशीर्षक भी कमाल का दिया है आपने आदरणीय।
ऐसा सम्प्रददायिक सद्भाव सदियों से चला आ रहा है और न जाने कब तक चलेगा।
सिर्फ चार लाइनों में ही मन को झखझोर देने वाली बात लिख दी है आपने।
सही लिखा है आपने
ReplyDeleteऐसे साम्प्रदायिक सद्भाव को धिक्कारा ही जा सकता है।
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।