वाशिंगटन डीसी की गिलहरी |
अब कहानी है तो विश्वास करने वाले भी होंगे। विश्वास करने वाले हैं तो कन्सपाइरेसी सिद्धांतों वाले भी होंगे। भाई साहब कहने लगे कि बाकी गिलहरियों का क्या? मतलब यह कि जो गिलहरियाँ उस समय सेतु बनाने नहीं पहुँचीं उनके बच्चों की पीठ के बारे में क्या? सवाल कोई मुश्किल नहीं है। उत्तरी अमेरिका में अब तक जितनी गिलहरियाँ देखीं, उनमें किसी की पीठ पर भी रेखायें नहीं थीं। न मानने वालों के लिये तीन सबूत उपस्थित हैं, डीसी, पिट्सबर्ग व मॉंट्रीयल से।
पैनसिल्वेनिया की गिलहरी |
कैनैडा की गिलहरी |
बात यहीं खत्म हो जाती तो भी कोई बात नहीं थी मगर वह बात ही क्या जो असानी से खत्म भी हो जाये और फिर भी इस ब्लॉग पर जगह पाये। पिछले दिनों मैंने पहली बार एक पूर्णतः काली गिलहरी देखी। आश्चर्य, उत्सुकता और प्रसन्नता सभी भावनायें एक साथ आयीं। जानकारी की इच्छा थी, पता लगा कि यह कृष्णकाय गिलहरियाँ मुख्यतः अमेरिका के मध्यवर्ती भाग में पायी जाती हैं लेकिन उत्तरपूर्व अमेरिका और कैनेडा में भी देखी जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि यूरोपीयों के आगमन से पहले यहाँ काली गिलहरियाँ बहुतायत में थीं। घने जंगल उनके छिपने के लिये उपयुक्त थे। समय के साथ वन कटते गये और पर्यावरण भूरी गिलहरियों के पक्ष में बदलने लगा। और अब उन्हीं का बहुमत है।
[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Squirrels as captured by Anurag Sharma]
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
अमेरिका की गिलहरी पर हमारी भी नजर पड़ी थी कि इनमें धारियां क्यों नहीं हैं? सेहत में भी ये बहुत ही तंदरुस्त हैं हमारी देसी गिलहरियों से।
ReplyDeleteसवाल तो जी मुश्किल होते ही नहीं, जवाब मुश्किल होते हैं और वो आपने दे भी दिये हैं।
ReplyDeleteविश्वास होना जरूरी है और ऐसे विश्वास जिससे किसी की हानि न पहुँचती हो बल्कि सदभाव उत्पन्न होता हो, वह श्रेस्यस्कर ही है।
गिलहरी पुराण अत्ति मनभावन है।
जब हम मिथकों को मानते हैं तो उनसे जुडी हर बात सच होती लगती है. राम हमारे आराध्य हैं और निश्चित ही उनका होना केवल मिथक भर नहीं है.
ReplyDeleteगिलहरियों के बारे में इतनी सूक्ष्मता से अवलोकन आप जैसा खोजी ही कर सकता है !
आभार !
बिना धारीवाली भारी-भरकम गिलहरियाँ हमने भी देखीं ,मन में प्रश्न भी उठे ,पर आपने सर्व-सुलभ कर समाधान कर दिया बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteधारियों से देशी गिलहरियों का सौन्दर्य बहुत बढ़ गया।
ReplyDeleteजानकारी नई थी मेरे लिए।
ReplyDeleteजवाब जो मन में आया वह यह कि भगवान राम ने जब उंगलियां फिराई थी, उनके काम से प्रसन्न होकर तब उनकी पीठ पर धारियां आ गईं।
अब वे गिलहरियां तो भारत में ही होंगी ना।
इस एन्गल से कभी नहीं सोचा था !!!
ReplyDeleteगिलहरी की पीठ पर जो धारियां हैं - उसके बारे में एक और कहानी मैंने यहाँ शेयर की थी - और तब सुज्ञ भैया ने यह वाली कहानी वहां सुनाई थी | यदि समय मिले तो ज़रूर पढियेगा | http://ret-ke-mahal-hindi.blogspot.com/2011/07/blog-post_27.html
ReplyDeleteमज़े की बात है कि किसी ने exactly यही मेल (कि बाकी गिलहरियों का क्या? मतलब यह कि जो गिलहरियाँ उस समय सेतु बनाने नहीं पहुँचीं उनके बच्चों की पीठ के बारे में क्या? ) मुझे भी लिखी थी :)
vaise ये बिना धारियों वाली गिलहरियाँ गिलहरी ही नहीं लग रहीं मुझे :( ...... धारियां देखन की आदत जो पडी हुई है :)
सभी प्राणियों के जींस में स्वत : परिवर्तन होते रहते हैं । इसलिए उनमे बदलाव आता रहता है ।
ReplyDeleteबाकि तो दन्त कथाएं हैं --मानो तो सब कुछ , न मानो तो कुछ भी नहीं ।
गिलहरियों पर जानकारी अच्छी लगी ।
जैसे डेनमार्क की या भारत की जर्सी गायों के सामने देसी गाय देख कर अपनी देसी गाय ही को असली गौ माता मानने का मन होता है; वैसे ही अपनी छटंकिया गिलहरी ही गिल्लोरानी लगती है।
ReplyDeleteपुरानी इमेज पुख्ता रहती है मन में!
बाली, सुमात्रा जायेंगे तो और कई मिथक टूटने की प्रबल सम्भावना है. रामायण से जुडी हुई..सुन्दर पोस्ट..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्र प्रस्तुत कियें है आपने अमरीकन और कनाडा की गिलहरियों के.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
@शिल्पा,
ReplyDeleteसुन्दर कथायें, आभार!
@संजय,
सही कहा! सवालोंका क्या, बात तो जवाब में है!
@पांडेय जी,
ReplyDeleteदेसी की बात ही कुछ और है।
पता नहीं गिलहरी वहाँ कैसे काली हो गयी.... जबकि इंसान तो गोरे गोरे होते हैं..:)
ReplyDeleteजैव विविधता के दृष्टान्त .....
ReplyDeleteभारतीय गिलहरियां सुंदर होती हैं, अमेरिकी के मुकाबिल
ReplyDeleteइतने पोज़ देते देते तो गिलहरी थक गई होगी :)
ReplyDeleteथोड़ा क्लोज-अप होता,तो मज़ा दोगुना हो जाता।
ReplyDeleteबहुत सुंदर बातें गिलहरियों के बारे में ..... कहीं की भी हों ये लगती बड़ी प्यारी हैं....
ReplyDeleteभौगौलिक और प्राकृतिक भिन्नता या परिवर्तन पशु -पक्षियों पर भी असर डालते हैं !
ReplyDeleteअरे हाँ वही तो...मेरे दिमाग में भी आया था कि धारी वाली गिलहरियाँ सिर्फ भारत में ही दिखाई पढ़ती हैं.वैसे सच है बिना धारी वाली उतनी सुन्दर नहीं लगतीं .
ReplyDeleteकाली गिलहरी के दर्शन से मन प्रसन्न हो गया. आभार.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको आश्चर्य होगा - अब तक मैं इस सीरीज के title "इस्पात नगरी से " को ही न समझ पाई थी | कल ही पता चला कि यह "steel city " के लिए प्रयुक्त हुआ है :)|
ReplyDeleteइतने प्रकार की गिलहरियों के बारे में पहली ही बार जाना और देखा भी पहली ही बार।
ReplyDeleteप्रकृति ने शायद सर्दियों से बचने के लिए इन्हें मोटा बनाया हो !
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