पुष्पे गन्धं तिले तैलं काष्ठेऽग्निं पयसि घृतम्।भारत की ख्याति तो आज भी कम नहीं है मगर पश्चिमी सभ्यता के उत्थान से पहले की बात ही कुछ और थी। सारी दुनिया से छात्र और विद्वान् भारत आते थे ताकि कुछ नया सीखने को मिले। नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों की ख्याति दूर-दूर तक थी। ऐसा नहीं कि विदेशी यहाँ सिर्फ़ शिक्षा की खोज में ही आते थे। हमलावर यहाँ सोने और हीरे के लालच में आते थे। ज्ञातव्य है कि दक्षिण अफ्रीका व ब्राजील में हीरे मिलने से पहले हीरे सिर्फ़ भारत में ही ज्ञात थे और अठारहवीं शती तक शेष विश्व को हीरे के उद्गम के बारे में ठीक-ठीक ज्ञान नहीं था। व्यापारी आते थे मसालों और धन के लिए और धर्मांध जुनूनी हमलावरों के आने का उद्देश्य धन के अलावा हमारी कला एवं संस्कृति का नाश भी था।
इक्षौ गुडं तथा देहे पश्यात्मानं विवेकतः।।
बहुत से लेखक भी भारत में आए। कुछ हमलावरों के साथ आए तो कुछ अपनी ज्ञान पिपासा को शांत करने के लिए और कुछ अन्य भारतीय संस्कृति एवं धर्म का ज्ञान पाने के लिए। ग्रीक विद्वान् मेगास्थनीज़ भी एक ऐसा ही लेखक था। उसकी पुस्तक "इंडिका" में उस समय के रहस्यमय भारत का वर्णन है। बहुत सी बातें तो साफ़ ही कल्पना और अतिशयोक्ति लगती हैं मगर बहुत सी बातों से पता लगता है कि उस समय का भारत अन्य समकालीन सभ्यताओं से कहीं आगे था।
मेगास्थनीज़ ने लिखा है कि भारतीय लोग मधुमक्खियों के बिना ही डंडों पर शहद उगाते हैं। स्पष्ट है कि यहाँ पर लेखक गन्ने की बात कर रहा है। चूंकि उसके उन्नत देश को मीठे के लिए शहद से बेहतर किसी पदार्थ का ज्ञान नहीं था, शक्कर को शहद समझने में कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कहते हैं कि यह शक्कर सिकंदर के सैनिकों के साथ ही भारत से बाहर गयी।
हिन्दी/फारसी/उर्दू का शक्कर बना है संस्कृत के मूल शब्द शर्करा से। मराठी का साखर और अन्य भारतीय भाषाओं के मिलते-जुलते शब्दों का मूल भी समान ही है। इरान से आगे पहुँचकर हमारी मिठास अरब में सुक्कर और यूरोप में सक्कैरम हो गयी। इस प्रकार अंग्रेजी के शब्द शुगर व सैकरीन दोनों ही संस्कृत शर्करा से जन्मे।
हमसे पंगे मत लेना मेरे यार ... मीठे से निबटा देंगे संसार ...आज जिस शक्कर से सारी दुनिया त्रस्त है, उसकी जड़ में हम भारतीय हैं - हमारी खाण्ड कब कैंडी बनकर दुनिया भर के बच्चों की पसंद बन गई, पता ही न चला। बनाई हुई शर्करा के टुकडों को खण्ड (टुकड़े - pieces) कहा जाता था जिससे खांड और अन्य सम्बंधित शब्द जैसे खंडसाल आदि बने हैं। फारसी में पहुँचते-पहुँचते खण्ड बदल गया कन्द में और यूरोप तक जाते-जाते यह कैंडी में तब्दील हो गया।
वैसे शर्करा या गन्ने की बात आए तो अपने गिरमिटिया बंधुओं को याद करना भी बनता है जिनकी वजह से साखर संसार को सुलभ हो सकी। हाँ गन्ने के रस के आनंद से वंचित ही रहे विदेशी।
गन्ने के खेत आज भी मॉरिशस की पहचान हैं। |
ज्ञानवर्धन का आभार...छोड़े गये प्रश्न पर अजित भाई का शब्दों का सफर शायद कुछ बोले.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति और सही सवाल?
ReplyDeleteachhi post,gyanwardhak.aapne nalanda aur takshila ka ullekha kiya hai,mere shahar se sirf 90 km dur us se bhi purana baudh skikha kendra utkhanan se mila hai SHREEPUR jo aajkal Sirpur kehlata hai.yaha huen sang bhi aaye the,wistaar se post likhunga is par,aur han heeron ki baat bhi kahi aapne uski bhi kai khadaane kimberlite pipe mile hai magar afsos heere ugalne waali dharti aaj mazdooron ki sabse badi mandi ban gayi hai,khair badhai aapko achhi post ki,likhte rahiye gyan humara badhta rahega
ReplyDeleteएक और शानदार जानकारी दी आपने ! इसके लिए धन्यवाद |
ReplyDeleteऔर आपके छोड गए सवाल से
हम अनभिज्ञ है ! पर इसमे से
गुड हमारा प्रिय है ! वो हम लेलेते हैं ! बाक़ी का आप जैसे चाहो
कर लीजिये ! हाँ अगर कोल्हापुर के गुड के बारे में भी कोई जानकारी
हो तो जरुर लिखे ! बहुत मजेदार स्वाद होता है !
वाह जी आज फ़िर कुछ ज्ञान की बातें बता दी आपने ...
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा और रोचक जानकारी.
ReplyDeleteसवाल से हरदम ही भागे हैं सो इस बार भी......
'खांड' (जो मालवा में 'खांडसरी' के नाम से पुकारी जाती है) के बारे में सुन्दर जानकारी देने के लिए धन्यवाद । वैसे, मालवा और राजस्थान में शकर और चीनी पर्याय के रूप में प्रयुक्त होते हैं लेकिन पंजाब हरियाणा में शकर मांगने पर खांड दी जाती है ।
ReplyDeleteमेरे ब्लाग पर आने के लिए अन्तर्मन से कोटिश: धन्यवाद । इस दुनिया के बारे में मेरी जानकारी शून्यवत है । सुझाव और सलाह दीजिएगा ।
'खांड' (जो मालवा में 'खांडसरी' के नाम से पुकारी जाती है) के बारे में सुन्दर जानकारी देने के लिए धन्यवाद । वैसे, मालवा और राजस्थान में शकर और चीनी पर्याय के रूप में प्रयुक्त होते हैं लेकिन पंजाब हरियाणा में शकर मांगने पर खांड दी जाती है ।
ReplyDeleteमेरे ब्लाग पर आने के लिए अन्तर्मन से कोटिश: धन्यवाद । इस दुनिया के बारे में मेरी जानकारी शून्यवत है । सुझाव और सलाह दीजिएगा ।
एक शानदार जानकारी दी आपने !
ReplyDeleteधन्यवाद!
एक बहुत ही अच्छी जान कारी दी आप ने ,
ReplyDeleteखांड और शक्कर ओर गुड़ भी इसी मे सामिल मे क्यो की इन तीनो को बनते मेने देखा हे,तीनो ही देसी तरीके से बनते हे... ओर फ़िर बची मिश्री और चीनी इस बारे कुछ खास नही पता
धन्यवाद अच्छे लेख के लिये
आप वास्तव में बहुत अच्छा लिखते हैं। बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteरोचक जानकारी दी है आपने ..
ReplyDeleteअजीब वक्त है / कुंवर नारायण
ReplyDeleteअजीब वक्त है -
बिना लड़े ही एक देश- का देश
स्वीकार करता चला जाता
अपनी ही तुच्छताओं के अधीनता !
कुछ तो फर्क बचता
धर्मयुद्ध और कीट युद्ध में -
कोई तो हार जीत के नियमों में
स्वाभिमान के अर्थ को फिर से ईजाद करता ।
- कुंवर नारायण
( साभार : सामयिक वार्ता / अगस्त-सितंबर, १९९३ )
wow - very interesting info
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर जानकारी, अपने गुण की तरह शक्कर पूरी दुनिया में घुल मिल गई....:)
ReplyDeleteगुड़, मिश्री और चीनी की व्युत्पत्ति मिली या नहीँ?
जब भारत के बाहर शक्कर के कारखाने लगाने शुरू हुए तो मिस्र और चीन में हड्डियों के चूरे से सफ़ेद की हुई शर्करा को मिस्री और चीनी कहा गया। गुड़ के बारे मे मुझे ठीक से पता नहीं है। अजित भाऊ ने मोनियर विलियम्स और आप्टे के हवाले से गौड़, गुड़, रस, रस-निषेचन गुड़ निर्मित शराब आदि में संबंध बताया गया है जिससे मेरे सहमति नहीं है (http://shabdavali.blogspot.com/2012/06/blog-post_12.html)।
Deleteअर्थात मिस्र व चीन में जा घुली और मिस्री व चीनी बन आ गई :) खूब!!!
Deleteइनके लिए हड्डियों के चूरे से सफ़ेद किया होना अनिवार्य है?
हड्डियों का चूरा, राम राम! अनिवार्यता बिलकुल भी नहीं है लेकिन औद्योगिक क्रान्ति की शुरुआत मे (खासकर विधर्मियों के लिए) प्राथमिकता सुंदर दिखने की थी, उसके पीछे क्या छिपा है इसका कोई मूल्य नहीं था। होता तो उपनिवेशवाद, और दास-व्यापार जैसे क्रूरकर्म न होते!
DeleteAlmost all cane sugar refineries require the use of a specific filter to decolorise the sugar and absorb inorganic material from it. This whitening process occurs towards the end of the sugar refining procedure. The filter may be either bone char, granulated carbon, or an ion exchange system. The granular carbon has a wood or coal base, and the ion exchange does not require the use of any animal products.
Bones from cows are the only type used to make bone char.
Bone char is derived from the bones of cattle from Afghanistan, Argentina, India and Pakistan. The sun-bleached bones are bought by Scottish, Brazilian, and Egyptian marketers, who sell them to the U.S. sugar industry after the bones are first used by the gelatin industry
हे प्रभु !!
Deleteआभार आपका बहुत ही उपयोगी जानकारी है यह!!
oh god - WHAT all are we eating without knowing :(
Deleteबढ़िया जानकारी के लिए आभार अनुराग भाई ...
ReplyDeleteरोचक जानकारी ......
ReplyDelete
ReplyDelete---गुड़ शर्करा का मूल प्राकृतिक रूप है जो अधिकाँश गन्ने से प्राप्त होता है | गन्ने के रस को गाढा करके ठोस रूप में प्राप्त होने से इसे गाढा रस ...गूढ़ ...गुड़ कहा गया | इसीके चूर्ण रूप को खांड..खांडसारी...साखर...शक्कर ...बुरा...तगार आदि कहा गया |
--- चीनी प्रारम्भ में गुड़ से बिना परिष्करण के बनाई जाती थी एवं लाल रंग की होती थी ..आजकल गन्ने के रस को केल्शियम रूप हड्डियों के चूरे से परिस्कृत करके श्वेत चीनी बनाई जाती है ...
--- मिश्री या मिसरी या मिस्वरी ....शर्करा का ही रवेदार (क्रिस्टल) रूप है | मूल रुप से मिश्री बनाने में कृत्रिम रसायनों का प्रयोग नहीं किया जाता, जबकि चीनी बनाने में हानिकारक रसायनों का प्रयोग गन्ने के रस के उपचार/ शुद्ध करने में किया जाता है| अतः मिश्री शर्करा का पवित्र एवं शुद्धतम रूप माना जाता है ....वह शहद की भाँती मीठे का उपमान भी है ...
---- मिस्वरी .. अर्थात मीठे स्वर उत्पन्न करने वाली मिसूरी ...मिसरी ... सुन्दर बचन = मिश्री जैसे बोल ...सौन्दर्य की सभी प्रतिमान सहित स्त्री यानी मिश्री की डली....
डॉ. श्याम गुप्ता,
Deleteगुड़ ठोस होता है द्रव नहीं, इसलिए पतले-गाढ़े की बात व्यर्थ है। द्रव को रस, राब, शीरा आदि कहते हैं। गुड़ संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है गोल या गोला। आश्चर्य नहीं कि गुजराती में गुड को गोल और मराठी में गुल कहते हैं।
अरबों ने भारत/ईरान से गन्ने के रस से शर्करा बनाना सीखा और फिर गुरु गुड़ चेला शक्कर को चरितार्थ करते हुए वे चीनी के बड़े कारखाने लगाने वाले पायनियर बने, ये सर्वमान्य तथ्य है। बाद मे यूरोपीय व्यापार कंपनियों ने भारत में और बाहर सफ़ेद चीनी के कारखाने लगाए। बाहर से आयातित सफ़ेद शर्करा को भारतीयों ने मिस्री (अरबों की) और चीनी (चीनियों की) कहा। एटिहासिक संदर्भ हैं जब बालगंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने जनता को आयातित चीनी का प्रयोग बंद करके देसी खांड/गुड़ का प्रयोग करने का अनुरोध किया था।
भारत हो या परदेस, बड़े कारखानों में शक्कर को सफ़ेद करने का काम हड्डियों के चार से से होता रहा है। मिश्री में कोई ऐसी रासायनिक विशेषता नहीं है जिसके कारण उसे शर्करा के अन्य रूपों से पवित्र या अधिक शुद्ध कहा जाये। यदि वह उन्हीं कारखानों में बनी है।
मिस्री खा के स्वर मीठा होता है? चीनी और गुड़ खाकर?
मि का अर्थ मीठा? यह मिस्वरी किस भाषा का शब्द है? किस ग्रंथ में इसका उपयोग हुआ है, पाठकों का ज्ञानवर्धन तो कीजिये ज़रा ...