Monday, November 2, 2009

भोर का सपना - कविता

बीता हर पल ही अपना था
विरह-वेदना में तपना था

क्या रिश्ता है समझ न पाया
आज पराया कल अपना था

हुई उषा तो टूटा पल में
भोर का मीठा सा सपना था

रुसवाई की हुई इंतहा
नाम हमारा ही छपना था

सजी चिता तपती प्रेमाग्नि
जीवन अपना यूँ खपना था

बैरागी हों या अनुरागी
नाम तुम्हारा ही जपना था

(अनुराग शर्मा)

25 comments:

  1. बैरागी बनकर अनुरागी
    नाम तुम्हारा जपना था...


    खूब कहा..अच्छी रचना.

    गुरुप्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामना.

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  2. क्या रिश्ता था समझ न पाया
    कल पराया आज अपना हैऔ
    र्बैरागी बनकर अनुरागी
    नाम तुम्हारा जपना था... बहुत खूब
    धन्यवाद और शुभक्ामनायें

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  3. ये उषा कौन है? ;)
    _______________
    "
    सजी चिता तपती प्रेमाग्नि
    जीवन अपना यूं खपना था"

    प्रेम, जीवन और मृत्यु - बस खप जाना और फिर चिता तपना तपाना तापना ? भैया क्या कह दिया आप ने ! सोचे ही जा रहा हूँ...

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  4. बीता हर पल ही अपना था
    बिरह-वेदना में तपना था

    बढ़िया रचना है!
    अच्छा शब्द चयन!
    बधाई!

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  5. बहुत सुंदर रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  6. अकेली पंक्तियाँ अलग-अलग पढने पर एक दो जगह अलग ही भाव देखने को मिले. बढ़िया.

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  7. बहुत सुंदर लगा आप का यह ोर का सपना.
    धन्यवाद

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  8. क्या रिश्ता है समझ न पाया
    आज पराया कल अपना था
    बहुत सुन्दर है -- बहुत अच्छी रचना

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  9. अच्छी रचना है भाई.... साधुवाद..

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  10. क्या रिश्ता है समझ न पाया
    आज पराया कल अपना था

    बेहद सुन्दर और यथार्थ वादी पंक्तियाँ....
    regards

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  11. बड़ी प्यारी अभिव्यक्ति... "क्या रिश्ता है समझ न पाया, आज पराया कल अपना था" कितना कटु सत्य संभवतः हर जीवन में कई रिश्ते ऐसे होंगे... निम्न पंक्तियों ने भी लुभाया..सुन्दर

    सजी चिता तपती प्रेमाग्नि
    जीवन अपना यूं खपना था
    बैरागी हों या अनुरागी
    नाम तुम्हारा ही जपना था

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  12. सधी हुई ,
    सच्ची बात लिए
    कविता पसंद आयी अनुराग भाई
    सादर, स स्नेह
    - लावण्या

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  13. क्या रिश्ता है समझ न पाया
    आज पराया कल अपना था

    हुई उषा तो टूटा पल में
    भोर का मीठा सा सपना था

    सबकी यही उलझने हैं कल के अपने आज पराये कैसे हो जाते हैं....एक सीधी,सच्ची,मीठी सी कविता

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  14. बहुत अच्छी रचना है। बधाई।

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  15. पीडा मुखरित हो उठी है इस रचना में... ह्रदय के अतल गहराई से निकले भाव भी उतने ही हृदयस्पर्शी हैं...
    प्रत्येक पद गहन अर्थ लिए...... अतिसुन्दर रचना.......

    आभार !!

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  16. बैरागी हों या अनुरागी
    नाम तुम्हारा ही जपना था .....

    सुन्दर रचना है ....... शब्द जैसे नगीना जड़े हों ........ और अंतिम पंक्तियाँ तो रचना में घुलती हुयी सी हैं .........

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  17. bahut sunder likha hai shubhkaamnayen

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