कैनेडा, संयुक्त राज्य, जापान और भारत के कुछ अलग से द्वारों की पुरानी पोस्ट "मेरे मन के द्वार - चित्रावली" की अगली कड़ी प्रस्तुत है। प्रस्तुत सभी चित्र अमेरिका महाद्वीप में लिए गए हैं।
मन गवाक्ष फिर फिर खुल जाये, शीतल मंद समीर बहाये (इस्कॉन मंदिर माउण्ड्सविल, वेस्ट वर्जीनिया) |
पंथी पथ के बदल रहे पर पथ बेचारे वहीं रहे (इस्कॉन मंदिर माउण्ड्सविल, वेस्ट वर्जीनिया) |
मन की बात सुना भी डालो, यह दर आज खुला ही छोड़ो
(पैलेस ऑफ गोल्ड, इस्कॉन मंदिर माउण्ड्सविल, वेस्ट वर्जीनिया)
द्वार भव्य है भवन अनूठा, पर मेरा तो मन है झूठा
(पैलेस ऑफ गोल्ड, इस्कॉन मंदिर माउण्ड्सविल, वेस्ट वर्जीनिया)
प्यार का इज़हार करेंगे, रोज़ तेरे द्वार करेंगे
(मांटेगो बे, जमयिका)
द्वार बंद कोई आ न पाता, मन मानस सूना रह जाता
(ओचो रिओस, जमयिका)
स्वागत है ओ मीत हमारे, चरण पड़े जो इधर तुम्हारे
(ओचो रिओस, जमयिका)
सपने में हर रोज़ जगाते, खुली आँख वह द्वार न पाते
(परदेस के एक भारतीय ढाबे में भित्तिचित्र)
दिल खुला दर भी खुला था, मीत फिर भी न मिला था
(नॉर्थ पार्क, पिट्सबर्ग)
वसुंधरा का प्यार है, खुला-खुला ये द्वार है
(नॉर्थ पार्क, पिट्सबर्ग)
दस द्वारे को पिंजरा, तामे पंछी कौन, रहे को अचरज रहे, गए अचम्भा कौन। ~ (संत कबीर?)
(नॉर्थ पार्क, पिट्सबर्ग)
[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Photos by Anurag Sharma]
* सम्बन्धित कड़ियाँ ** इस्पात नगरी से - श्रृंखला
* मेरे मन के द्वार - चित्रावली
वाह ! बहुत सुंदर !
ReplyDeleteआशा की किरणों का प्रवेशद्वार,मन गवाक्ष !!
ReplyDeleteखूबसूरत एहसास!
ReplyDeleteदस द्वारे को पिंजरा, तामे पंछी कौन, रहे को अचरज रहे, गए अचम्भा कौन। ~ (संत कबीर?)
ReplyDeleteमन गवाक्ष फिर फिर खुल जाये, शीतल मंद समीर बहाये
सभी द्वार सन्देश देते चित्रों को सन्देश परक बनाने की कला और उसे परोसना मन को भ गया बेहतरीन ही नहीं अद्भुत
सभी द्वार सन्देश देते चित्रों को सन्देश परक बनाने की कला और उसे परोसना मन को भा गया बेहतरीन ही नहीं अद्भुत
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteमन की वसुंधरा में क्या पता उसको क्या नहीं भाया,
दिल खुला, दर भी खुला था, मीत फिर भी न आया।
:) वाह, गोदियाल जी
Deleteबहुत ही सुंदर चित्र और साथ में गहन चिंतन.
ReplyDeleteरामराम.
इन द्वार-चित्रों का संक्षिप्त परिचय भी बन पड़े तो आनन्द दोगुना हो जाय।
ReplyDeleteपरिचय जोड़ दिया है,सुझाव का शुक्रिया!
Deleteअभिनव प्रयोग !
ReplyDeleteबहुत सुंदर ....
ReplyDeleteझलकियाँ पसंद आयीं ...आभार !
ReplyDeleteधन्यवाद शास्त्री जी!
ReplyDeleteद्वार-द्वार भटका मन, कहीं पार अटका ....!
ReplyDeleteगवाक्ष के चौखट में खुला मन.
ReplyDeleteचित्र बोलते हैं, आपके शब्दों ने उन्हें अनुनादित कर दिया।
ReplyDeleteकबीर हम सभी की आत्मा में जज्ब हो चुके हैं कहीं भी चले जाएँ, वे साथ होते हैं।
ReplyDeleteतस्वीरें कितना कुछ बयां कर जाती हैं ! बहुत सुंदर।
ReplyDeletenice :)
ReplyDeletei loved the green dreamy one.. ( भारतीय ढाबा)
क्या गज़ब के गवाक्ष -अभी हाल में तो हमने एक में प्रवेश भी पा लिया !
ReplyDeleteसुनहरी धूप ले के आते हैं ये गवाक्ष ...
ReplyDeleteसुन्दर हैं तस्वीरें ...
waah
ReplyDeleteमनमोहक प्रस्तुति... सुन्दर तस्वीरें देख तबियत खुश हो गई ... आभार
ReplyDeleteसभी चित्र बहुत बढ़िया!
ReplyDeletevidesh ke abhI chitr badiyaa hai.
ReplyDeleteVinnie
सुन्दर चित्रावली और वर्णन मनभावन |
ReplyDeleteआदरणीय श्री शर्मा जी,
ReplyDeleteअभिवादन |
शब्द और चित्र का बेहतरीन काम्बिनेसन ,एक एक पंक्ति में बड़ी -बड़ी बाते आप कह गए गए हैं |जनाब |
www.drakyadav.blogspot.in
आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 6 अगस्त से 10 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
ReplyDeleteकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
धन्यवाद!
Deleteअति सुन्दर प्रस्तुति...
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