अनुराग शर्मा |
अनुराग शर्मा
दुनिया को जताते हैं, पर हमसे छिपाते हैं
इल्ज़ाम-ए-तोताचश्मी हमपर ही लगाते हैं।
आती हवा का झोंका, उन्हें छूके हमको छू ले
वो इतने भर से हम पर अहसान जताते हैं।
सारा जहाँ हमारा, है जिनका सबसे वादा
बन ईद का वो चंदा बस मुझको सताते हैं।
पुल सबके लिए बनते दीवार मेरी जानिब
दिल मेरा सरे बाज़ार, क्यूँ इतना दुखाते हैं।
मेरे लिये वो मोती, हम उनके लिये मिट्टी
उनके लिये ही अपना, हम भाव गिराते हैं।
फिर भी कहीं कभी जो, अटकेगा काम कोई
दम घुटने लगे मेरा, प्यार इतना लुटाते हैं।
चाहें तो अभी ले लें, चाहें तो बख्श दें सर
यह जान जिनपे हाज़िर, वो जान न पाते हैं॥
इतना भाव भी ना गिराएं कि खान्ग्रेस हो जाएँ :) | सुन्दर |
ReplyDeleteपरम भावहीन स्थिति में ऐसा स्वत: हो जाता है कि -
Deleteवे भाव खाते हैं, हम भाव गिराते हैं
***
अनुराग है उसने कहा, पर प्रीत दिल में थी नहीं
हम किसी अहसान की, बोली लगाते भी तो क्या
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 01 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteआपका आभार!
Deleteकभी दम घुटने तक प्यार जताया भी तो है
ReplyDeleteहक़ है उन्हें कि अपनी क़ीमत बढ़ाये जायें
मतलबी है यह दुनिया वह इसी दुनिया के हैं
न उतरे चाँद से न आकाश पर बिठाया जाए
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteमेरे लिये वो मोती, हम उनके लिये मिट्टी
ReplyDeleteउनके लिये ही अपना, हम भाव गिराते हैं।
बड़े सुंदर भाव हैं !
बहुत सुन्दर
ReplyDelete