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Thursday, November 27, 2025

❤️ जीवन को भरपूर जिया, खुश हो कर हर पल ❤️

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

बचपन से तूफ़ानी लहरों में उतरने लगा था,
घबराया जब भँवर में जीवन ठहरने लगा था।
लहरें दुश्मन, तैरना आता नहीं, डूबने को आया,
उस बहाव से ही, मैंने जीने का प्रण अपनाया।

रातों जागकर भी कोई किताब रास न आई, 
ठोकरें खूब लगीं, सफलता पास न आई।
शाला में पिछड़ा, मिला असफलता का उपहार,
अपनों की आँखों में देखी, निराशा और हार। 

दोस्तों पर विश्वास कर धन भी लुटाया,
बुद्ध संसार ने जमकर मुझे बुद्धू बनाया।
साँप-सियारों के जंगलराज में कोई कैसे रहे?
फिर भी रखा दिल साफ़, ज़माना जो चाहे कहे।

बेइंतहा मोहब्बत कर जब आँख बंद की थी, 
प्रेमिल कसमें खानेवालों ने ही विषपुटी दे दी थी। 
तकिया भीगता है, जब यादों की बाढ़ आती है,
आँसू नहीं गिनता, लेकिन पीड़ा भी कुछ सिखाती है।

जब-जब चैकमेट मिली, तब-तब अहंकार टूटा था,
शतरंज के राजा ने समझा, जीने का हर दाँव झूठा था।
कै़रम में रानी नहीं आती, पर फ़ाउल हो जाता है,
फिर भी मुस्कुराकर, मन अगली बारी में लग जाता है।

जानता हूँ ये सब हार नहीं हैं, ये मेरी जीवन शैली हैं,
फटे-पुराने पत्ते पाकर, हारने वाली बाज़ियाँ खेली हैं।
जीतकर भी अपनों और आदर्शों के लिये जीवन हारा है,
मीरा-सुकरात ने भी तो विष, अमृत समझ स्वीकारा है॥

Friday, October 17, 2025

उलटबाँसी सूरज की

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

सुबह के सूरज की तो 
शान ही अलग है
ऊँचे लम्बे पेड़ों पर

शाम की बुढ़ाती धूप भी
देर तक रहती है मेहरबान
उपेक्षित करके छोटे पौधों को

यह भी कमाल है कि
छोटे पौधे बढ़ सकते थे
काश! धूप उन तक पहुँच पाती।

Sunday, April 14, 2024

खिलाते नहीं (हिंदी ग़ज़ल)

अनुराग शर्मा

अनुराग शर्मा

कदम राजपथ से हटाते नहीं
गली में मेरी अब वे आते नहीं।

कहीं सच में आ ही न जाये कोई
किसी को बेमतलब बुलाते नहीं।

अंधेरे में खुश नापसंद रोशनी 
खिड़की से परदा उठाते नहीं।

नहीं होने देंगे कसक में कमी
घावों को दिल से मिटाते नहीं।

जो बातें हुईं और न होंगी कभी
उन्हें भी कभी भूल पाते नहीं।

भावुक बहुत हैं कृपालु नहीं
कभी भाव अपना गिराते नहीं।

उसूलों के पक्के सदा से रहे
खाते बहुत हैं, खिलाते नहीं॥

Saturday, March 30, 2024

हमसे छिपाते हैं (हिंदी ग़ज़ल)

अनुराग शर्मा

अनुराग शर्मा


दुनिया को जताते हैं, पर हमसे छिपाते हैं
इल्ज़ाम-ए-तोताचश्मी हमपर ही लगाते हैं।

आती हवा का झोंका, उन्हें छूके हमको छू ले
वो इतने भर से हम पर अहसान जताते हैं।

सारा जहाँ हमारा, है जिनका सबसे वादा 
बन ईद का वो चंदा बस मुझको सताते हैं।

पुल सबके लिए बनते दीवार मेरी जानिब 
दिल मेरा सरे बाज़ार, क्यूँ इतना दुखाते हैं।

मेरे लिये वो मोती, हम उनके लिये मिट्टी 
उनके लिये ही अपना, हम भाव गिराते हैं।

फिर भी कहीं कभी जो, अटकेगा काम कोई 
दम घुटने लगे मेरा, प्यार इतना लुटाते हैं।

चाहें तो अभी ले लें, चाहें तो बख्श दें सर
यह जान जिनपे हाज़िर, वो जान न पाते हैं॥

Tuesday, June 13, 2023

बेगाने इस शहर में

(अनुराग शर्मा)

बाग़-बगीचे, ताल-तलैया
लहड़ू, इक्का, नाव ले गये

घर, आंगन, ओसारे सारे
खेत, चौपालें, गाँव ले गये

कुत्ते, घोड़ा, गाय, बकरियाँ
पीपल, बरगद छाँव ले गये

रोटी छीनी, पानी लीला
भेजा, हाथ और पाँव ले गये

चौक-चौक वे भीख मांगते
जिनकी कुटिया, ठाँव ले गये

Tuesday, May 23, 2023

बीती को बिसार के...

(अनुराग शर्मा)

कुछ अहसान जताते बीती
और कुछ हमें सताते बीती

चाह रही फूलों की लेकिन
किस्मत दंश चुभाते बीती

जिन साँपों ने डसा निरंतर
उनको दूध पिलाते बीती

आस निरास की पींगें लेती
उम्र यूँ धोखे खाते बीती

खुल के बात नहीं हो पाई
ज़िंदगी भेद छुपाते बीती

जिनको याद कभी न आये
उनकी याद दिलाते बीती॥

Saturday, July 9, 2022

काव्य: भाव-बेभाव

(अनुराग शर्मा)

प्रेम तुम समझे नहीं, तो हम बताते भी तो क्या
थे रक़ीबों से घिरे तुम, हम बुलाते भी तो क्या 

वस्ल के क़िस्से ही सारे, नींद अपनी ले गये
विरह के सपने तुम्हारे, फिर डराते भी तो क्या

जो कहा, या जैसा समझा, वह कभी तुम थे नहीं
नक़्शा-ए-बुत-ए-काफ़िर, हम बनाते भी तो क्या

भावनाओं के भँवर में, हम फँसे, तुम तीर पर
बिक गये बेभाव जो, क़ीमत चुकाते भी तो क्या

अनुराग है तुमने कहा, पर प्रीत दिल में थी नहीं
हम किसी अहसान की, बोली लगाते भी तो क्या

Saturday, July 31, 2021

काव्य: वफ़ा

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

वफ़ा ज्यूँ हमने निभायी, कोई निभाये क्यूँ
किसी के ताने पे दुनिया को छोड़ जाये क्यूँ॥

कराह आह-ओ-फ़ुग़ाँ न कभी जो सुन पाया
ग़रज़ पे अपनी वो फिर-फिर हमें बुलाये क्यूँ॥

सही-ग़लत की हमें है तमीज़ जानेमन
न करें क्या, या करें क्या, कोई बताये क्यूँ॥

झुलस रहा है बदन, पर दिमाग़ ठंडा है
जो आग दिल में लगी हमनवा बुझाये क्यूँ॥

थे हमसफ़र तो बात और हुआ करती थी
वो दिल्लगी से हमें अब भला सताये क्यूँ॥

जो बार-बार हमें छोड़ बिछड़ जाते थे 
वो बार-बार मेरे दर पे अब भी आयें क्यूँ॥

वफ़ा ज्यूँ हमने निभायी, कोई निभाये क्यूँ
किसी के ताने पे दुनिया को छोड़ जाये क्यूँ॥
***

Tuesday, November 10, 2020

* मैत्री *

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

दुश्मनी जमके हमसे है ठाने
दोस्ती किससे है वही जाने

हमने दरियादिली नहीं देखी
खूब सुनते हैं उसके अ‍फ़साने

अंजुमन में सभी हैं अपने वहाँ
घर से बेदर हमीं हैं अनजाने

कुछ जला न धुआँ ही उट्ठा है
न वो शम्मा न हम हैं परवाने

कुछ तो है खास मैं नहीं जानूँ
यूँ नहीं सब हुए हैं दीवाने

जाने क्या कह दिया है शर्मा ने
हमसे अब वे लगे हैं शर्माने

Sunday, October 4, 2020

हिंदी ग़ज़ल

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

पछताना क्या क्या यूँ रोना
हुआ नहीं यदि था जो होना

कल न था कल होना है जो 
जीवन है बस पाना-खोना

चना अकेला भाड़ बड़ा है
मन में यह दुविधा न ढोना

टूटी छत बिखरी दीवारें
तन मिट्टी पर मन है सोना

याद खिली मन के कोने में
हुआ सुवासित कोना कोना


Sunday, August 2, 2020

रक्षाबंधन पर्व की बधाई

श्रावणी पूर्णिमा की बधाई
(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)


राखी रोली आ पहुँचे हैं
याद बहन की आई है।

कैसी हैं क्या करती होंगी
हिय में छवि मुस्कायी है।

है प्रेम छलकता चिट्ठी में
इतराती एक कलाई है।

अक्षत का संदेश स्नेहवत
शुभ-शुभ दिया दिखाई है।

अनुराग भरे अक्षर सारे
शब्दों में भरी मिठाई है॥

Sunday, July 26, 2020

भूल रहा हूँ

चित्र: रीतेश सब्र
(शब्द: अनुराग शर्मा)


यादों के साथ खेल मधुर खेल रहा हूँ
इतना ही रहा याद के कुछ भूल रहा हूँ

सब कुछ हमेशा याद भला कैसे रहेगा
यह भी नहीं कि बातें सभी भूल रहा हूँ

हर याद के साथ चुभी टीस सी दिल में
अच्छा है के उस हूक को मैं भूल रहा हूँ

आवाज़ तुम्हारी सदा पहचान लूंगा मैं
बोली थीं क्या, मैं इतना ज़रा भूल रहा हूँ

ये कौन हैं, वे कौन, रहे कैसे मुझे याद
मैं रहता कहाँ, कौन हूँ मैं भूल रहा हूँ॥

Sunday, June 28, 2020

मरेंगे हम किताबों में

(शब्द और चित्र: अनुराग शर्मा)


मरेंगे हम किताबों में, वरक होंगे कफ़न अपना
किसी ने न हमें जाना, न पहचाना सुख़न अपना

बनाया गुट कोई अपना, न कोई वाद अपनाया
आज़ादी सोच में रखी, यहीं हारा है फ़न अपना

कभी बांधा नहीं खुद को, पराये अपने घेरों में
मुहब्बत है ज़ुबाँ अपनी, जहाँ सारा वतन अपना

नहीं घुड़दौड़ से मतलब, हुए नीलाम भी न हम
जो हम होते उन्हीं जैसे, वही होता पतन अपना

भले न नाम लें मेरा,  मेरा लिखा वे जब बोलें
किसी के काम में आये, यही सोचेगा मन अपना

भीगें प्रेम से तन-मन, न जीवन हो कोई सूखा
न कोई प्रेम का भूखा, नहीं टूटे स्वपन अपना

मीठे गीत सब गायें, लबों पर किस्से हों अपने
चले जाने के बरसों बाद, हो पूरा जतन अपना॥

Sunday, January 12, 2020

मुझे याद है

मुझे याद हैं
लोहड़ी की रातें
जब आग के चारों ओर
सुंदर मुंदरिये हो
के साथ गूंजते थे
खिलखिलाते मधुर स्वर

मुझे याद हैं
नन्ही लड़कियाँ
जो बनतालाब की शामों को
रोशन कर देती थीं
अपनी चुन्नी में लपेटे
जगमगाते जुगनुओं से।

मुझे याद हैं
वे दिन जब
यौवन और बुढ़ापा
नहीं लगा सके थे
सेंध
मेरे शैशव में

मुझे याद हैं
अनमोल उस
बचपन की यादें
जब दौड़ता था मैं
ताकि छू सकूँ नन्ही उंगलियों से
क्षितिज पर डूबते सूरज को

मुझे याद हैं
सुहाने विगत की बातें
सब याद है मुझे

🙏 मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!


Thursday, March 14, 2019

सत्य - लघु कविता

(अनुराग शर्मा)

सत्य नहीं कड़वा होता
कड़वी होती है कड़वाहट

पराजय की आशंका और
अनिष्ट की अकुलाहट

सत्यासत्य नहीं देखती
मन पर हावी घबराहट

कड़वाहट तो दूर भागती
सुनते ही सत्य की आहट

Friday, January 11, 2019

दोस्त - द्विपदी

- अनुराग शर्मा


अपने नसीब में नहीं क्यों दोस्ती का नूर।
मिलते नहीं क्यों रहते हो इतने दूर-दूर॥

समझा था मुझे कोई न पहचान सकेगा।
यह होता कैसे दोस्त मेरे हैं बड़े मशहूर

सोचा था मुलाक़ात होगी दोस्तों के साथ।
मसरूफ़ रहे वर्ना मिलने आते वे ज़रूर॥

हम चाहते थे चार पल दोस्तों के साथ।
वह भी न हुआ दोस्त मेरे हो गये मगरूर॥

सोचा था बचपने के फिर साथी मिलेंगे।
ये हो न सका दोस्त मेरे हैं खट्टे अंगूर॥

दो पल न बिताये न जिलायी पुरानी याद।
तिनका था मैं,  दोस्त मेरे थे सभी खजूर॥

Tuesday, January 1, 2019

काव्य: संवाद रहे

अनुराग शर्मा 

नश्वरता की याद रहे
जारी अनहदनाद रहे

मन भर जाये दुनिया से
कोई न फ़रियाद रहे

पिंजरा टूटे पिञ्जर का
पक्षी यह आज़ाद रहे

न हिचके झुकने में, उनके
जीवन में आह्लाद रहे

कभी सीखने में न चूके
वे सबके उस्ताद रहे

जितनों की सेवा संभव हो
बस उतनी तादाद रहे

भूखे पेट न जाये कोई
और भोजन में स्वाद रहे

अहं कभी न जकड़ सके
कोई उन्माद रहे

कड़वी तीखी बातें भूलें
खट्टी मीठी याद रहे

कभी रूठ जायें वे
चलता सब संवाद रहे

घर से छूटे जिनकी खातिर
घर उनका आबाद रहे॥


नव वर्ष 2019 की मंगलकामनाएँ

Friday, July 27, 2018

आदमी (ग़ज़ल)

(शब्द और चित्र: अनुराग शर्मा)

आदमी यह आम है बस इसलिये नाकाम है
कामना मिटती नहीं, कहने को निष्काम है।

ज़िंदगी है जब तलक उम्मीद भी कैसे मिटे
चार कंधों के लिये तो भारी तामझाम है।

काली घटा छाई हुई उस पे अंधेरा पाख है
रात ही बाकी है इसकी सुबह है न शाम है।

तारे हैं गर्दिश में और चाँद पे छाया गहन
धूप से चुंधियाते दीदों को मिला आराम है।

अश्व हो आरोही या, तृष्णा कभी जाती नहीं
घास भी मिलती नहीं पर चाहता बादाम है।

सात पीढ़ी को सँवारे दौड़ाभागी में जुटा
दो घड़ी का हो बसेरा, इतना इंतज़ाम है।

वीतरागी होने का, उपदेश डाकू दे रहे
बोलबाला झूठ का, सच अभी गुमनाम है।

बेईमानी का सफ़र, पूरा नहीं जिसका हुआ
वह डकैती का सभी पर थोपता इल्जाम है।

अपराध अपना हो भले पर दोष दूजे को ही दें
बच्चे बगल में छिप गये, नगर में कोहराम है।

हाशिये पर कर दिये निर्देश जिनसे लेना था
रहनुमा कारा गये जब पातकी हुक्काम है।

पाप पहले भी हुए अफ़सोस उनका लाज़मी
पर और भी होते रहेंगे, क्यों नहीं विश्राम है?

निस्सार है संसार इसमें अर्थ सारा व्यर्थ है
एक बेघर* ही यहाँ हर गाँव का खैयाम है।

प्रात से हर रात तक, भागना है बदहवास
ज़िंदगी के द्वीप की यह यात्रा अविराम है।

यात्रा लम्बी रही और फिर स्थानक आ गया 
हो गये जो भस्मसात, उनको मिला आराम है।

* अनिकेत

Tuesday, November 22, 2016

स्वप्न - एक कविता

ये स्वप्न कहाँ ले जाते हैं
ये स्वप्न कहाँ ले जाते हैं

सच्चे से लगते कभी कभी
ये पुलाव खयाली पकाते है

सपने मनमौजी होते हैं
कोई नियम समझ न पाते हैं

ज्ञानी का ज्ञान धरा रहता
अपने मन की कर जाते हैं

सब कुछ कभी लुटा देते
सर्वस्व कभी दे जाते हैं

ये स्वप्न कहाँ से आते हैं
ये स्वप्न कहाँ से आते हैं

पिट्सबर्ग की एक सपनीली सुबह



Sunday, May 25, 2014

क्यूँ नहीं - कविता

(चित्र व पंक्तियाँ: अनुराग शर्मा)

इंद्र्धनुष
है नाम लबों पर तो सदा क्यूँ नहीं देते,
जब दर्द दिया है तो दवा क्यूँ नहीं देते

ज़िंदा हूँ इस बात का एहसास हो सके
मुर्दे को मेरे फिर से हिला क्यूँ नहीं देते

है गुज़री कयामत मैं फिर भी न गुज़रा
ये सांस जो अटकी है हटा क्यूँ नहीं देते

सांस ये चलती नहीं है दिल नहीं धड़के,
जाँ से मिरी मुझको मिला क्यूँ नहीं देते

सपनों में सही तुमसे मुलाकात हो सके,
हर रात रतजगे को सुला क्यूँ नहीं देते


(प्रेरणा: हसरत जयपुरी की "जब प्यार नहीं है तो भुला क्यों नहीं देते")

 अहमद हुसैन और मुहम्मद हुसैन के स्वर में