अनुराग शर्मा |
अनुराग शर्मा
कदम राजपथ से हटाते नहीं
गली में मेरी अब वे आते नहीं।
कहीं सच में आ ही न जाये कोई
गली में मेरी अब वे आते नहीं।
कहीं सच में आ ही न जाये कोई
किसी को बेमतलब बुलाते नहीं।
अंधेरे में खुश नापसंद रोशनी
खिड़की से परदा उठाते नहीं।
नहीं होने देंगे कसक में कमी
घावों को दिल से मिटाते नहीं।
घावों को दिल से मिटाते नहीं।
जो बातें हुईं और न होंगी कभी
उन्हें भी कभी भूल पाते नहीं।
भावुक बहुत हैं कृपालु नहीं
कभी भाव अपना गिराते नहीं।
उसूलों के पक्के सदा से रहे
खाते बहुत हैं, खिलाते नहीं॥
"कदम राजपथ से हटाते नहीं
ReplyDeleteगली में मेरी अब वे आते नहीं।"
वाह
अब जम चुके हैं रक्तबीज हो गए हैं
उगेंगे कैक्टस राजपथ पर ही पड़े रहेंगे |
बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह क्या खूब लिखा है आपने .. लाज़वाब गज़ल सर।
ReplyDelete----
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १६ अप्रैल २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आपका हार्दिक आभार!
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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