आज नवम्बर मास का चौथा गुरुवार होने के कारण हर वर्ष की तरह आज संयुक्त राज्य अमेरिका में थैंक्सगिविंग का पर्व मनाया जा रहा है। यह उत्सव है परिवार मिलन का और अपने सुख और समृद्धि के लिये ईश्वर का आभार प्रकट करने के लिये। इस पर्व की परम्परा यूरोप से आये आप्रवासियों और अमेरिका के मूल निवासियों के समारोहों की सम्मिलित परम्परा का संगम है। आधुनिक थैंक्सगिविंग के आरम्भ के बारे में बहुत सी कहानियाँ हैं। सबसे ज़्यादा प्रचलित कथा के अनुसार इस परम्परा की जड़ें आधुनिक मासाचुसेट्स राज्य के प्लिमथ स्थान में 1621 में अच्छी फसल की खुशियाँ मनाने के लिये हुए एक समारोह में छिपी हैं। समारोह वार्षिक हो गया और यूरोपीय निवासियों के पास पर्याप्त भोजन न होने की दशा में वम्पानोआग जाति के मूल निवासियों ने उन्हें बीज देकर उनकी सहायता की।
जैसे इस पर्व के उद्गम के बारे में किसी को ठीक से नहीं पता है वैसे ही किसी को यह नहीं पता कि धन्यवाद या आभार प्रकट करने के इस दिन पर टर्की पक्षी खाने की परम्परा कब से शुरू हुई। अधिकांश लोग इस बात पर सहमत हैं कि आरम्भिक आभार दिवसों पर टर्की नहीं खाई जाती थी। जो भी हो, कालांतर में टर्की इस पारिवारिक पर्व का आधिकारिक भोजन बन गयी। संयुक्त राज्य जनगणना विभाग के एक अनुमान के अनुसार आज के आभार दिवस के लिये पूरे देश में लगभग 24 करोड़ अस्सी लाख टर्कियाँ पोषित की गयीं।
ऐसा नहीं कि आज सारे अमेरिका ने टर्की खाई हो। कुछ समय से लोगों ने टर्की के शाकाहारी विकल्पों के बारे में सोचना आरम्भ किया है। टोफ़र्की एक ऐसा ही विकल्प है। इसके साथ सामान्यतः कद्दू की मिठाई, आलू और करी जैसी सह-डिशें प्रयुक्त होती हैं। बहुत से अमेरिकी परिवारों में आजकल नई पीढी शाकाहारी जीवन शैली अपना रही है। इस वजह से कई जगह बुज़ुर्गों की टर्की के साथ में टोफ़र्की बनाने का प्रचलन भी बढ रहा है। शाकाहारी और वीगन परिवारों द्वारा प्रयुक्त टोफ़र्की मुख्यतः गेहूँ और सोयाबीन के प्रोटीन से बनाया जाता है। हाँ, हमारे जैसे परिवार तो टर्की और टोफ़र्की से दूर भारतीय भोजन की सुगन्ध से ही संतुष्ट हैं।
लेकिन आज की पोस्ट का केन्द्रबिन्दु टर्की या टोफ़र्की नहीं है। आज की यह आभार पोस्ट पिट्सबर्ग निवासी 72 वर्षीय श्री महेन्द्र पटेल के सम्मान में लिखी गयी है जिन्होंने स्थानीय भोजन-भंडार (Pittsburgh food bank) को दस हज़ार डॉलर का अनुदान दिया है। लगभग पाँच वर्ष पहले अपनी पत्नी नीला के कैंसर ग्रस्त होने का समाचार मिलने पर महेन्द्र जी ने प्रभु से उनके ठीक होने की मन्नत मांगी थी। अब पत्नी के स्वस्थ होने पर आभारदिवस पर उन्होंने पिट्सबर्ग के भोजन-भंडार को एक चेक लिखकर प्रभु के प्रति अपना आभार व्यक्त किया है।
सम्बन्धित कड़ियाँ
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* Gift of thanks to food bank - स्थानीय समाचार
* काला जुमा, बेचारी टर्की
* थैंक्सगिविंग - लिया का हिन्दी जर्नल
* 24 करोड़ 80 लाख टर्कियाँ
* इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
* Pumpkin Pie - कद्दू की मिठाई
* Thanksgiving - a poem
टर्की (चित्र: अपार शर्मा द्वारा) |
ऐसा नहीं कि आज सारे अमेरिका ने टर्की खाई हो। कुछ समय से लोगों ने टर्की के शाकाहारी विकल्पों के बारे में सोचना आरम्भ किया है। टोफ़र्की एक ऐसा ही विकल्प है। इसके साथ सामान्यतः कद्दू की मिठाई, आलू और करी जैसी सह-डिशें प्रयुक्त होती हैं। बहुत से अमेरिकी परिवारों में आजकल नई पीढी शाकाहारी जीवन शैली अपना रही है। इस वजह से कई जगह बुज़ुर्गों की टर्की के साथ में टोफ़र्की बनाने का प्रचलन भी बढ रहा है। शाकाहारी और वीगन परिवारों द्वारा प्रयुक्त टोफ़र्की मुख्यतः गेहूँ और सोयाबीन के प्रोटीन से बनाया जाता है। हाँ, हमारे जैसे परिवार तो टर्की और टोफ़र्की से दूर भारतीय भोजन की सुगन्ध से ही संतुष्ट हैं।
लेकिन आज की पोस्ट का केन्द्रबिन्दु टर्की या टोफ़र्की नहीं है। आज की यह आभार पोस्ट पिट्सबर्ग निवासी 72 वर्षीय श्री महेन्द्र पटेल के सम्मान में लिखी गयी है जिन्होंने स्थानीय भोजन-भंडार (Pittsburgh food bank) को दस हज़ार डॉलर का अनुदान दिया है। लगभग पाँच वर्ष पहले अपनी पत्नी नीला के कैंसर ग्रस्त होने का समाचार मिलने पर महेन्द्र जी ने प्रभु से उनके ठीक होने की मन्नत मांगी थी। अब पत्नी के स्वस्थ होने पर आभारदिवस पर उन्होंने पिट्सबर्ग के भोजन-भंडार को एक चेक लिखकर प्रभु के प्रति अपना आभार व्यक्त किया है।
आज के कठिन समय में जब बेरोज़गारों की संख्या बढ रही है और मध्यवर्गीय लोग भी भोजन-भंडारों में दिख रहे हैं, मैंने 10,000 डॉलर (फ़ुडबैंक को) देने का निश्चय किया। ~ श्री महेन्द्र पटेल=============
सम्बन्धित कड़ियाँ
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* Gift of thanks to food bank - स्थानीय समाचार
* काला जुमा, बेचारी टर्की
* थैंक्सगिविंग - लिया का हिन्दी जर्नल
* 24 करोड़ 80 लाख टर्कियाँ
* इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
* Pumpkin Pie - कद्दू की मिठाई
* Thanksgiving - a poem
महेंद्र पटेल जी को हमारी ओर से भी आभार !
ReplyDelete२४ करोड़ टर्की ! यानि लगभग जितनी आबादी उतनी टर्की मार कर खा गए अमरीकी ! यहाँ खामख्वाह बकरों पर बहस चल रही थी . अजाब माया है इस नश्वर संसार की भाई .
ReplyDeleteमहेंद्र पटेल जी जैसा ज़ज्बा काश सब में होता !
उन्हें साधुवाद और शुभकामनायें .
महेंद्र पटेल जी को हमारा नमन ....!
ReplyDeleteआभार दिवस पर महेंद्र पटेल जी का आभार व्यक्त करती इस पोस्ट के लिए आभार!
ReplyDeleteप्रभु के प्रति आभार कि हमें इतनी सुन्दर दुनिया दी।
ReplyDeleteKisi tyohaar ko manaane ka is se sundar tareeka nahi hai ... Doosron ke liye kuch Karna hi Sachs tyohaar manaana hai ... Mahendr Ji me anukarniy kaary kiya hai ...
ReplyDeleteबहुत ही प्यारा सा त्योहार है...अंग्रेजी उपन्यासों में टर्की का जिक्र पढ़-पढ़ कर लगता रहा....इसके पीछे जरूर कोई कहानी होगी..
ReplyDeleteपर कोई कहानी भी नहीं...:(
आपको भी थैंक्स हमें लगातार बढ़िया लेखन पढ़ने का अवसर देते रहने के लिए.
mahendra ji ko aabhar.aapki post ke lie bhi aabhar...:)
ReplyDeleteटोफर्की ....नई जानकारी रही मेरे लिए.
ReplyDeleteमहेंद्र पटेल जी का अभिनन्दन!!
ReplyDeleteउनकी श्रीमति जी के लिए ढेरों शुभकामनाएं!!
इसी ज़ज्बे को कहते है आभार प्रकट करना!!
मैं प्रभु का आभार व्यक्त करता हूँ इस थैंक्सगिविंग डे पर कि श्री महेंद्र पटेल जैसे उदार मनोवृति के इन्सानों के हृदय में अपार करूणा का संचार करता है।
थैंक्स गिविंग दिवस की जानकारी के लिए थैंक यू :)
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत पोस्ट अनुराग जी! महेंद्र जी को मेरा प्रणाम... अक्सर हम परमात्मा से कुछ माँगने ही उसके द्वार पर जाते हैं... कभी सिर्फ उसका धन्यवाद देने भी जाएँ.. और उसका ही क्यों जिसने भी जो भी दिया हो उसका धन्यवाद!!
ReplyDeleteअब देखिये न इतनी अच्छी पोस्ट पढकर जो आनंद प्राप्त हुआ उसके लिए तो आपको धन्यवाद कहना बनता ही है!! वरना कहाँ मिल पाते हम महेंद्र जी से! परमात्मा उनकी पत्नी को आरोग्य प्रदान करे!!
परम्परा की बढि़या जानकारी, पटेल जी के तो क्या कहने.
ReplyDeleteमहेंद्र पटेल जी का शत शत अभिन्दन और आपको सहस्र धन्यवाद!
ReplyDeleteहैलोवीन में भी कोहंडा (कद्दू ) और इसमें भी ....
महेंद्र जी को साधुवाद और शुभकामनायें...
ReplyDeleteआपके माध्यम से महेन्द्र पटेल जी को नमन।
ReplyDeleteहमारी तरफ़ से भी आभार।
ReplyDeleteधन्यवाद दिवस अच्छी परिकल्पना है एक बुरी बात (टर्की-वध) के साथ!
ReplyDeleteखैर, यह तो एक वेजिटेरियन भारतीय का विचार है, जो अन्तिम सत्य नहीं माना जा सकता।
पटेल जी ने जो किया, अनुकरणीय है।
भारत में जो गुप्तदान की परम्परा है वह तो और भी सुन्दर है। पर वह करने वाले लोग कम होते जा रहे हैं।
महेन्द्र पटेल जी को नमन।
ReplyDeleteइस दिन के बारे में पता है, कुछ दोस्त हैं वहाँ जिनसे पहली बार सुना था..
ReplyDeleteमहेंद्र पटेल जी ने बड़ा अच्छा काम किया!!
आभारी होना अच्छी आदत है, परपीड़न के साथ आभारी होना औपचारिकता या उससे भी कुछ आगे की चीज है। नई पीढ़ी कहीं का शाकाहार की तरफ़ रुझान अच्छा लगा।
ReplyDeleteमहेन्द्र पटेल जी ने अनुकरणीय काम किया है। समाज के प्रति सामर्थ्यानुसार अपना दायित्व निभाना ही चाहिये।
प्रभु की कृपा पर आभार प्रकट करने का सबसे अच्छा तरीका -महेन्द्र पटेल जी को नमन !
ReplyDeleteअपनी इस पोस्ट में आपने 'सह डिशें' प्रयुक्त किया है - आधा हिन्दी, आधा अंग्रेजी। लगता है, यह चल निलेगा। तब, इसके आविष्कारक के रूप में आपको जाना जाएगा।
ReplyDeleteमहेन्द्रजी पटेल को मेरे अभिवादन पहुँचाइएगा।
महेंद्र पटेल ज़ी के लिए बार - बार (अत्यधिक)धन्यवाद !!
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