स्वर स्वतंत्र हैं
लिपियाँ और कमियाँ लिखने के बाद इतनी जल्दी इस विषय पर और लिखना होगा यह सोचा नहीं था। भगवान भला करें आचार्य गिरिजेश राव और जिज्ञासु शिल्पा मेहता का, कि उच्चारण का एक संदर्भ आया और एक इस आलेख को मौका मिला। भारत की क्षमता, संभावना, इतिहास को मद्देनजर रखते हुए जब सद्य-भूत, वर्तमान और निकट भविष्य को देखते हैं तो यह आश्चर्यजनक लगता है कि संसार को अंकशास्त्र, योग, अहिंसा, संस्कृति, नागरी और संस्कृत देने वाले लोग आधुनिक भारतीयों के ही पूर्वज थे। भाषा और लिपि की बाबत मानवता काफी अनम्य रही है लेकिन भारत इस मामले में भी एक महासागर है। तो भी आज अपने ही शब्दों के उच्चारण के बारे में हम हद दर्जे के आलसी नज़र आते हैं। औरों की क्या कहूँ, मुझे खुद भी वर्ष की जगह बरस कहना सरल लगता है। एक पुरानी कविता में मैंने सरबस शब्द का प्रयोग किया था, जब एक प्रसिद्ध संपादिका जी ने कुछ पूछे-गछे बिना उसे सर्वस्व कर दिया तो मुझे ऐसा लगा जैसे उन्होने उस कविता का नहीं, बल्कि मेरा गला मरोड़ दिया था। भले ही उनकी विद्वता के हिसाब से उनका कृत्य सही रहा हो।
व्यंजन ज्ञ के उच्चारण का झमेला तो देश-व्यापी है लेकिन एक स्वर भी ऐसा है जिस पर आम सहमति बनती नहीं दिखती। इन्टरनेट पर उसे समझाने के कई उदाहरण उपस्थित हैं जिनमें से अधिकांश गलत ही लगते हैं। यह स्वर है ऋ, और सबसे अधिक गलत उच्चारण रि और रु के बीच झूलते दिखते हैं कृष्ण जी कहीं क्रिश्न जैसे लगते हैं और कहीं क्रुश्न हो जाते हैं। लगभग यही गति अमृत की भी होती है। संयोग से इस क्रम की पिछली पोस्ट "लिपियाँ और कमियाँ" मेँ “र्“ व्यञ्जन के असामान्य व्यवहार की बात चलाने पर र्यूरी/ॠयूरी और र्याल्/र्याल् जैसे शब्दों का का ज़िक्र आया था। आज उसी चर्चा को आगे बढ़ाते हैं।
स्वर ऋ की बात करने से पहले एक नज़र स्वर और व्यंजन के मूलभूत अंतर पर डालते चलें। सामान्य अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति के अनुसार स्वर वे हैं जिन्हें मुखर पथ (vocal tract) से निर्बाध रूप से निरंतरता के साथ बोला जा सकता है। स्वर में एक नैसर्गिक गेयता है, शायद इसीलिए संगीत स्वरों से बनता है। एक स्वर से दूसरे में संक्रमण स्वाभाविक है। व्यंजनों के साथ ऐसा संभव नहीं है क्योंकि वे बलाघात से बोले जाते हैं और इसलिए वहाँ एक स्थिरता है जो एक व्यंजन की ध्वनि को दूसरे से अलग करती है। सरल शब्दों में कहें तो स्वरों के लिए केवल वायु प्रवाह चाहिए। स्वर को एक बार बोलने के बाद उसे वायु प्रवाह के साथ न केवल जारी रखा जा सकता है बल्कि वायु प्रवाह की दिशा या मात्रा बदलने भर से ही एक स्वर से दूसरे स्वर में निर्बाध गमन संभव है। जबकि व्यंजन का आरंभ और अंत मर्यादित है इसलिए एक व्यंजन से दूसरे में गमन भी लगभग वैसे ही है जैसे किसी दरवाजे से होकर एक कक्ष से दूसरे में प्रस्थान करना। यह बात और है कि अनेक ध्वनियाँ स्वर और व्यंजन की संधि पर खड़ी हैं।
ध्वनियों को पढ़कर समझना आसान नहीं है लेकिन ऋ के उच्चारण को जैसा मैंने समझा है वैसा, लिखकर बताने का प्रयास करता हूँ। प्रयास कितना सफल होता है, यह तो आप ही तय कर पाएंगे।
यदि अभी भी अस्पष्टता है लेकिन अधैर्य नहीं, तो फिर खास आपके लिए है हिन्दी की यह ऑडियो क्लिप। सुनिए (विशेषकर जब RRRRRRRRRR बोला जा रहा है) और अपना फीडबैक दीजिये:
ऋ - डाउनलोड ऑडियो क्लिप
नोट: अपनी ही ऑडियो क्लिप स्वयं सुनने के बाद मुझे अब इस बात पर संशय है कि ऐसी ध्वनियों को केवल ऑडियो के माध्यम से समझाया जा सकता है। फोन पर अक्सर "स" और "फ" की ध्वनियाँ एक सी ही सुनाई देती हैं। इसलिए यदि अभी भी बात स्पष्ट न हो पाई हो तो कमी आपके समझने की नहीं, शायद मेरे समझाने की ही है जो कि व्यक्तिगत कक्षा में आसानी से दूर की जा सकती है।
ॐ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ऌ ॡ ऎ ए ऐ ऒ ऑ ओ औ अं अः
लिपियाँ और कमियाँ लिखने के बाद इतनी जल्दी इस विषय पर और लिखना होगा यह सोचा नहीं था। भगवान भला करें आचार्य गिरिजेश राव और जिज्ञासु शिल्पा मेहता का, कि उच्चारण का एक संदर्भ आया और एक इस आलेख को मौका मिला। भारत की क्षमता, संभावना, इतिहास को मद्देनजर रखते हुए जब सद्य-भूत, वर्तमान और निकट भविष्य को देखते हैं तो यह आश्चर्यजनक लगता है कि संसार को अंकशास्त्र, योग, अहिंसा, संस्कृति, नागरी और संस्कृत देने वाले लोग आधुनिक भारतीयों के ही पूर्वज थे। भाषा और लिपि की बाबत मानवता काफी अनम्य रही है लेकिन भारत इस मामले में भी एक महासागर है। तो भी आज अपने ही शब्दों के उच्चारण के बारे में हम हद दर्जे के आलसी नज़र आते हैं। औरों की क्या कहूँ, मुझे खुद भी वर्ष की जगह बरस कहना सरल लगता है। एक पुरानी कविता में मैंने सरबस शब्द का प्रयोग किया था, जब एक प्रसिद्ध संपादिका जी ने कुछ पूछे-गछे बिना उसे सर्वस्व कर दिया तो मुझे ऐसा लगा जैसे उन्होने उस कविता का नहीं, बल्कि मेरा गला मरोड़ दिया था। भले ही उनकी विद्वता के हिसाब से उनका कृत्य सही रहा हो।
व्यंजन ज्ञ के उच्चारण का झमेला तो देश-व्यापी है लेकिन एक स्वर भी ऐसा है जिस पर आम सहमति बनती नहीं दिखती। इन्टरनेट पर उसे समझाने के कई उदाहरण उपस्थित हैं जिनमें से अधिकांश गलत ही लगते हैं। यह स्वर है ऋ, और सबसे अधिक गलत उच्चारण रि और रु के बीच झूलते दिखते हैं कृष्ण जी कहीं क्रिश्न जैसे लगते हैं और कहीं क्रुश्न हो जाते हैं। लगभग यही गति अमृत की भी होती है। संयोग से इस क्रम की पिछली पोस्ट "लिपियाँ और कमियाँ" मेँ “र्“ व्यञ्जन के असामान्य व्यवहार की बात चलाने पर र्यूरी/ॠयूरी और र्याल्/र्याल् जैसे शब्दों का का ज़िक्र आया था। आज उसी चर्चा को आगे बढ़ाते हैं।
स्वर ऋ की बात करने से पहले एक नज़र स्वर और व्यंजन के मूलभूत अंतर पर डालते चलें। सामान्य अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति के अनुसार स्वर वे हैं जिन्हें मुखर पथ (vocal tract) से निर्बाध रूप से निरंतरता के साथ बोला जा सकता है। स्वर में एक नैसर्गिक गेयता है, शायद इसीलिए संगीत स्वरों से बनता है। एक स्वर से दूसरे में संक्रमण स्वाभाविक है। व्यंजनों के साथ ऐसा संभव नहीं है क्योंकि वे बलाघात से बोले जाते हैं और इसलिए वहाँ एक स्थिरता है जो एक व्यंजन की ध्वनि को दूसरे से अलग करती है। सरल शब्दों में कहें तो स्वरों के लिए केवल वायु प्रवाह चाहिए। स्वर को एक बार बोलने के बाद उसे वायु प्रवाह के साथ न केवल जारी रखा जा सकता है बल्कि वायु प्रवाह की दिशा या मात्रा बदलने भर से ही एक स्वर से दूसरे स्वर में निर्बाध गमन संभव है। जबकि व्यंजन का आरंभ और अंत मर्यादित है इसलिए एक व्यंजन से दूसरे में गमन भी लगभग वैसे ही है जैसे किसी दरवाजे से होकर एक कक्ष से दूसरे में प्रस्थान करना। यह बात और है कि अनेक ध्वनियाँ स्वर और व्यंजन की संधि पर खड़ी हैं।
ध्वनियों को पढ़कर समझना आसान नहीं है लेकिन ऋ के उच्चारण को जैसा मैंने समझा है वैसा, लिखकर बताने का प्रयास करता हूँ। प्रयास कितना सफल होता है, यह तो आप ही तय कर पाएंगे।
- सबसे पहले दो तीन बार स्पष्ट रूप से "र" बोलिए और देखिये किस प्रकार जीभ ने ऊपरी दाँत के ऊपरी भाग को छुआ।
- मुँह से हवा निकालते हुए स्वर "उ" की ध्वनि लगातार निकालें और जीभ की इस स्थिति को ध्यान में रखें।
- "उ" कहते कहते ही जीभ के सिरे को हल्का सा ऊपर करके निर्बाध "ऊ" कहने लगें।
- "ऊ" कहते-कहते ही जीभ के सिरे को हल्के से ऊपर तालू की ओर तब तक ले जाते जाएँ जब तक बाहर आती हवा जीभ से टकराकर प्रतिरोध की ध्वनि उत्पन्न न करे।
- जीभ को थोड़ा समायोजित करके वहाँ रखें जहाँ यह निरंतर ध्वनि RRRRRRR जैसी हो जाये
- यदि आप अब तक इस "ऋ" ध्वनि को सुनकर "र" से उसके भेद को पहचान गए तो काफी है, वरना अगले कदम पर चलते हैं।
- र की ध्वनि पर बिना अटके, झटके से हृषिकेश या हृतिक बोलिए, और उसे सुनते समय आरंभिक "ह" को इगनोर कर आगे की ध्वनि सुनिये तब भी शायद ऋ की ध्वनि स्पष्ट हो जाये
- अगर आप अभी भी अटके हैं तो यकीन मानिए यह ध्वनि आप अङ्ग्रेज़ी द्वारा बेहतर समझ पाएंगे। इंगलिश बोलने वाले लोग अपने शब्दों के बीच में आए "र" को अक्सर अर्ध-मूक सा बोलते हैं जिसे बोलते समय जीभ दाँत, तालू आदि की ओर आए बिना हवा में स्वतंत्र ही रह जाती है। कुछ उदाहरणों से स्पष्ट करने का प्रयास कर रहा हूँ।
- कुछ लोग अङ्ग्रेज़ी शब्द party को पा.र.टी कहकर र को स्पष्ट कहते हैं जबकि कुछ लोग उसे "पा अ टी" जैसे बोलते हैं। इसी प्रकार अङ्ग्रेज़ी शब्द morning को कई भारतीय "र" के साथ मॉ.र.निंग जैसे कहते हैं जबकि कुछ लोग ऐसे कहते हैं कि वह कुछ कुछ मॉण्णिंग या मॉर्णिंग जैसा लगता है। दोनों ही शब्दों को बाद वाली ध्वनि में बोलते हुए सुनिए और उपरोक्त पांचवें बिन्दु की निरंतर RRRRRRR ध्वनि से साम्य देखने - लाने का प्रयास कीजिये।
- अब उन शब्दों का उच्चारण करें जिनमें ऋ बीच में आती है, या संधि होकर अर्ध र जैसी बनती है, यथा - अमृत, मृत, महर्षि और राजर्षि आदि - ध्यान रहे कि ऋ की ध्वनि सुनने में "र" और "अ" के बीच की होगी और उस समय जीभ हवा में स्वतंत्र होगी।
- यदि किसी को आकाशवाणी समाचार पर श्री बरुन हलदर द्वारा पढ़ा जाता "द न्यूज व्येड/उएड बाय बोरेन हाल्डा" जैसा कुछ याद हो तो मुझे लगता है कि उनके कहे "रैड बाय" की ध्वनि में र नहीं "ऋ" जैसा ही कुछ होता था। क्या कोई उनकी किसी ऑडियो क्लिप को ढूंढ सकता है?
- नीचे दिये वीडियो क्लिप में अङ्ग्रेज़ी शब्द read के ऐसे दो उच्चारण सुनाई दे रहे हैं, जिन्हें हम हिन्दी में रीड और रैड जैसे लिखते हैं। पहचानने का प्रयास कीजिये कि "र" की ध्वनि हमारे "र" वाले किसी शब्द, जैसे "राम" या "रीमा" आदि से कितनी अलग है। नोटिस कीजिये कि R की ध्वनि कहने में जीभ हवा में है, "र" जैसे प्रहारावस्था में नहीं। यह उच्चारण निरंतरता के मामले में र की अपेक्षा ऋ के निकट है
यदि अभी भी अस्पष्टता है लेकिन अधैर्य नहीं, तो फिर खास आपके लिए है हिन्दी की यह ऑडियो क्लिप। सुनिए (विशेषकर जब RRRRRRRRRR बोला जा रहा है) और अपना फीडबैक दीजिये:
ऋ - डाउनलोड ऑडियो क्लिप
नोट: अपनी ही ऑडियो क्लिप स्वयं सुनने के बाद मुझे अब इस बात पर संशय है कि ऐसी ध्वनियों को केवल ऑडियो के माध्यम से समझाया जा सकता है। फोन पर अक्सर "स" और "फ" की ध्वनियाँ एक सी ही सुनाई देती हैं। इसलिए यदि अभी भी बात स्पष्ट न हो पाई हो तो कमी आपके समझने की नहीं, शायद मेरे समझाने की ही है जो कि व्यक्तिगत कक्षा में आसानी से दूर की जा सकती है।
* हिन्दी, देवनागरी भाषा, उच्चारण, लिपि, व्याकरण विमर्श *
अ से ज्ञ तक
लिपियाँ और कमियाँ
उच्चारण ऋ का
लोगो नहीं, लोगों
श और ष का अंतर
कुछ अलग । बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteSounds more like the centre sound in the words:
ReplyDeleteFission
Fusion
Vision
Am i right?
काफी नजदीक है। जहां उपरोक्त शब्दों की श/ज़ ध्वनि में जिह्वाग्र कुछ नीचे है वहीं ऋ में जिह्वाग्र ऊपर की ओर है
Deletethanks for taking the trouble. Such a prompt response (in a busy schedule)to a request is genuinely appreciable and appreciated :)
DeleteAnd can you please add an audio to your post on ज्ञ too?
ReplyDeleteये सप्ताहांत तो गया, अगले में संभव हो शायद।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजहां हिन्दी पत्ती में ऋ का उच्चारण 'री' करते हैं, गुजरात में 'रु'. लेकिन आप ने जो समझाया वह बिलकुल दिमाग में बैठ गया।
ReplyDeleteसरबस वाली बात से मुझे अपने हिन्दी के प्रोफ़ेसर आ गए, जिनके अनुसार एक छात्र ने प्रेमचंद को शुद्ध रूप में प्रेमचंद्र और राहुल सांकृत्यायन को राहुल सान्सकृतायन लिखा था।
उपयोगी आलेख।
आभार सलिल जी, पहले सोचा था कि जीभ की स्थिति के रेखाचित्र बनाऊँ, फिर आलस में रह गया कि कहीं उसकी वजह से इतना भी छूट न जाये। प्रेमचंद का नाम शुद्ध करने की मेरी भी बहुत इच्छा होती थी स्कूली दिनों में।
Deleteइतने मनोयोग से ,इतने प्रयत्नपूर्वक हिन्दी वर्णों की शुद्ध रूप मे उच्चारण की जानकारी करने को उत्सुक और जानकारी देने को तत्पर जनों को देख कर लगता है कि हमारी भाषा के दिन बहुरेंगे , इसका पूरा वैभव लोक के सामने प्रत्यक्ष होगा - दोनों ही पक्षों को साधुवाद !
ReplyDeleteयह प्रयास सार्थक लगा. मलयालम मैं भी कठिनाई होती है
ReplyDeleteइस भेद को बहुत ही अच्छे तरीके से समझा दिया आपने.. धन्यवाद...
ReplyDeleteबहुरत उपयोगी आलेख है ... और जिस तरह से आपने इस अंतर को स्पष्ट किया है वो वाकई स्वागत योग्य है ... बहुत बहुत आभार ... संजो कर रखने वाली पोस्ट ...
ReplyDeleteविद्वलापूर्ण लेख के लिए साधुवाद एवम् धन्यवाद !
ReplyDeleteविद्वलापूर्ण लेख के लिए साधुवाद एवम् धन्यवाद !
ReplyDeleteसमझ में आया...शुक्रिया...अभी तक तो हम ऋ का उच्चारण रि के रूप में ही करते थे.
ReplyDeleteवाह. बहुत मेहनत भरा कार्य है यह.
ReplyDeleteज्ञ को संस्कृतनिष्ठ शुद्धतावादी गुणीजन ज्य्ं/ज्अ्ं, शेषजन जनान और हिंदी वाले ग्या भी उच्चारित करते हैं.
(बरुन/वरुण/बॉरुन/बोरेन/वोरेन हलदर, आकाशवाणी दिल्ली पर कतिपय शब्दों के मानक उच्चारण के लिए भी अधिकृत थे)
स्वागतेय पोस्ट ....भाषा को लिखने पढ़ने के अलावा बोलने पर भी ध्यान दिया जाना ज़रूरी है | स्पष्टता से जानकारी देती पोस्ट
ReplyDeleteआपका धन्यवाद!
ReplyDeleteविस्तार से अंतर स्पष्ट किया आपने !
ReplyDeleteज्ञानवर्धक पोस्ट !
काफी महत्वपूर्ण है इस आलेख को बहुत फुरसत में पढूंगी, आभार !
ReplyDeleteमैं अभी तक गलत ही बोलता था। अब समझा। बहुत आभार।
ReplyDeleteमुझे तो पेछली पोस्ट भी पढ्नी पडेगी .ग्यानवर्धक पोस्ट्
ReplyDeleteसर मैं पिछले डेढ़ वर्षों से ऐसे खोज रहा था. आप ने जो बताया वह उससे सीख भी गया. लेकिन महर्षि, राजर्षि में तो मह + र् + षि होगा या मह + ृ + षि। मैं इस सम्बन्ध में अधिक नहीं जनता और यदि कृपा हो तो साथ में स, श, ष में ष का तथा ज्ञ उच्चारण बतलाएं। आपकी बड़ी कृपा होगी।
ReplyDeleteअहा, क्या शानदार लेख है और क्या शानदार विषय है । अब ष के साथ ऋ का भी अभ्यास करेंगे । बहुत धन्यवाद । इस से अच्छा कोई नही समझा सकता।
ReplyDeleteसक्रिय ब्लॉगर होने के उपरांत आपके महत्वपूर्ण आलेखों से वंचित रहा
ReplyDeleteअब क्षतिपूर्ति करूंगा