क्या आप बता सकते हैं कि मराठी के द्नयानेश्वर, पंजाबी के ग्यानी जी, उर्दू के अन्जान, गुजराती के कृतग्नता और संस्कृत के ज्ञानपीठ में क्या समानता है? बोलने में न हो परन्तु लिखने में यह समानता है कि इन सभी शब्दों में संयुक्ताक्षर ज्ञ प्रयोग होता है।
भारतीय लिपियों में संभवतः सर्वाधिक विवादस्पद ध्वनि "ज्ञ" की ही है। काशी तथा दक्षिण भारत में इसकी ध्वनि [ज + न] की संधि जैसी होती है. हिन्दी, पंजाबी में यह [ग् + य] हो जाता है। गुजराती में यह [ग् + न] है और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में [द् + य + न] बन जाता है। खुशकिस्मती से नेपाली भाषा ने इसके मूल स्वरुप को काफी हद तक बचा कर रखा है. संस्कृत में यह [ज्+ न्+अ] है, हालांकि कई बार विभिन्न अंचलों के लोग संस्कृत पढ़ते हुए भी मूल ध्वनि को विस्मृत कर अपनी आंचलिक ध्वनि का ही उच्चारण करते हैं।
ज्ञ युक्त शब्दों की व्युत्पत्ति भी देखें तो भी यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि इसकी प्रथम ध्वनि ज की है न कि द या ग की। उदाहरण के लिए ज्ञान का मूल ज (knowledge) है। इसी प्रकार यज्ञ का मूल यज धातु है।
यदि 'ज्ञान' शब्द का शुद्ध उच्चारण ढूँढा जाय तो यह कुछ कुछ 'ज्नान' जैसा सुनाई देगा। संज्ञा को 'संज्+ ना' पढ़ा जायेगा, प्रज्ञा 'प्रज्ना' हो जायेगा और विज्ञान 'विज्नान' कहलायेगा। यदि आपने यहाँ तक पढ़ते ही उर्दू के "अन्जान" और संस्कृत के "अज्ञान" (उच्चारण: 'अज्नान') में समानता देख ली है तो कृपया अपने कमेन्ट में इसका उल्लेख अवश्य करें और मेरा नमस्कार भी स्वीकार करें। हिन्दी का ज्ञान सम्बन्धी शब्द समूह यथा जान, अन्जान, जानना आदि भी ज्ञान से ही निकला है। वैसे, मेरा विश्वास है कि अतीत की अंधेरी ऐतिहासिक गलियों में नोलेज (kn-क्न), नो (know), डायग्नोसिस (diagnosis), प्रॉग्नोसिस (prognosis), व नोम (gnome) आदि का सम्बन्ध भी इस ज्ञान से मिल सकता है।
मुझे पता है कि आपमें से बहुत से लोगों को मेरी बात पर यकीन नहीं हो रहा होगा। बचपन से पकड़ी हुई धारणाओं से बाहर आना आसान नहीं होता है। अगली बार जब भी आप ज्ञ लिखा हुआ देखें तो पायेंगे कि मूलतः यह ज ही है जिसके सिरे पर न भी चिपका हुआ है। बेहतर होगा कि एक बार खुद ही ज्ञ को अपने हाथ से लिखकर देखिये।
आपके सुझावों और विचारों का स्वागत है। यदि मेरी कोई बात ग़लत हो तो एक अज्ञानी मित्र समझकर क्षमा करें मगर गलती के बारे में मुझे बताएँ अवश्य। धन्यवाद!
भारतीय लिपियों में संभवतः सर्वाधिक विवादस्पद ध्वनि "ज्ञ" की ही है। काशी तथा दक्षिण भारत में इसकी ध्वनि [ज + न] की संधि जैसी होती है. हिन्दी, पंजाबी में यह [ग् + य] हो जाता है। गुजराती में यह [ग् + न] है और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में [द् + य + न] बन जाता है। खुशकिस्मती से नेपाली भाषा ने इसके मूल स्वरुप को काफी हद तक बचा कर रखा है. संस्कृत में यह [ज्+ न्+अ] है, हालांकि कई बार विभिन्न अंचलों के लोग संस्कृत पढ़ते हुए भी मूल ध्वनि को विस्मृत कर अपनी आंचलिक ध्वनि का ही उच्चारण करते हैं।
ज्ञ युक्त शब्दों की व्युत्पत्ति भी देखें तो भी यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि इसकी प्रथम ध्वनि ज की है न कि द या ग की। उदाहरण के लिए ज्ञान का मूल ज (knowledge) है। इसी प्रकार यज्ञ का मूल यज धातु है।
यदि 'ज्ञान' शब्द का शुद्ध उच्चारण ढूँढा जाय तो यह कुछ कुछ 'ज्नान' जैसा सुनाई देगा। संज्ञा को 'संज्+ ना' पढ़ा जायेगा, प्रज्ञा 'प्रज्ना' हो जायेगा और विज्ञान 'विज्नान' कहलायेगा। यदि आपने यहाँ तक पढ़ते ही उर्दू के "अन्जान" और संस्कृत के "अज्ञान" (उच्चारण: 'अज्नान') में समानता देख ली है तो कृपया अपने कमेन्ट में इसका उल्लेख अवश्य करें और मेरा नमस्कार भी स्वीकार करें। हिन्दी का ज्ञान सम्बन्धी शब्द समूह यथा जान, अन्जान, जानना आदि भी ज्ञान से ही निकला है। वैसे, मेरा विश्वास है कि अतीत की अंधेरी ऐतिहासिक गलियों में नोलेज (kn-क्न), नो (know), डायग्नोसिस (diagnosis), प्रॉग्नोसिस (prognosis), व नोम (gnome) आदि का सम्बन्ध भी इस ज्ञान से मिल सकता है।
मुझे पता है कि आपमें से बहुत से लोगों को मेरी बात पर यकीन नहीं हो रहा होगा। बचपन से पकड़ी हुई धारणाओं से बाहर आना आसान नहीं होता है। अगली बार जब भी आप ज्ञ लिखा हुआ देखें तो पायेंगे कि मूलतः यह ज ही है जिसके सिरे पर न भी चिपका हुआ है। बेहतर होगा कि एक बार खुद ही ज्ञ को अपने हाथ से लिखकर देखिये।
आपके सुझावों और विचारों का स्वागत है। यदि मेरी कोई बात ग़लत हो तो एक अज्ञानी मित्र समझकर क्षमा करें मगर गलती के बारे में मुझे बताएँ अवश्य। धन्यवाद!
Devanagari letters for Hindi, Nepali, Marathi, Sanskrit etc. |
* हिन्दी, देवनागरी भाषा, उच्चारण, लिपि, व्याकरण विमर्श *
अ से ज्ञ तक
लिपियाँ और कमियाँ
उच्चारण ऋ का
लोगो नहीं, लोगों
श और ष का अंतर
आज पहली बार आपके चिट्ठे पर आया और पढ़कर नयी जानकारी मिली | धन्यवाद !
ReplyDeleteहमारे बीच ही अजित वडनेरकर "शब्दों का सफर" नाम से चिट्ठा चलाते हैं, आप उसे जरूर देखें,
http://shabdavali.blogspot.com
साभार,
नीरज रोहिल्ला
gyaan vardhan (ya phir jnaan vardhn :))) ke liye dhanyavaad...
ReplyDeletemujhe marathi (d-n-y) ka gyaan (dnyaan) tha... par itni saari bhashaoon ka nahi....
ab mera naam bhi kai bhashaon mein alag alag tarah se liya jayega...
आपका यह लेख पढ़ कर आज मेरी बड़ी भ्रान्ति दूर हो गयी है ! बाबा रामदेवजी अपने प्रवचनों में हमेशा ज्ञान को जान और विज्ञान को विज्जान बोलते हैं ! और हम लोग यह समझते रहे की बाबा अज्ञान वश बोल रहे हैं !
ReplyDeleteआज आपने ग़लती का एहसास करा दिया ! बाबा राम देव जी से क्षम्मा और आपका अतिशय धन्यवाद !
शुक्रिया.....
ReplyDeleteप्रियवर@चुस्त भारतीय !
मेरी बात का सौदाहरण समर्थन करने के लिए।
उसी की बदौलत आज इस पोस्ट को पढ़ने का भी मौका मिला और आपके ब्लाग पर आने का भी। भाषा संबंधी जानकारियों और जिज्ञासाओं को लगातार साझा करते रहेंगे यह उम्मीद रखता हूं।
अच्छा लगा यहां आकर।
ज के सिरे पर न चिपका हुआ है. घर पर मेरे ज्ञ के उच्चारण के लिए हमेशा टोका जाता रहा है.
ReplyDeleteहम्म्म
ReplyDeleteसुज्ञ जी = सुजन जी
गुरुमुखी में जी, पंजाबी में सुग्य जी
Deleteसु ज् ञ :)
ReplyDeleteञ का तो उच्चारण ही भूल गयी हूँ.काश हिंदी के शिक्षकों को अच्छे से उच्चारण ज्ञान और इसे बच्चों को सिखाना सब से पहले सिखाया जात.
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