Tuesday, February 28, 2017

फिरकापरस्त - एक कविता

(अनुराग शर्मा)

क्यूबा के कम्युनिस्ट राजवंश का प्रथम तानाशाह
बंदूकों से
उगलते हैं मौत
और जहर
रचनाओं से
जैसे कि जहर और
गोली में बुद्धि होती हो
अपने-पराये का
अंतर समझने की

खुशी से उछल रहे हैं कि
दुश्मनों के खात्मे के बाद
समेट लेंगे उनकी
सारी पूंजी
और दुनिया उनकी
मेहनत से बनी
गिराकर सारे बुत
बताएंगे खुद को खुदा
और बैठकर पिएंगे चुरुट
चलाएँगे हुक्म

समझते नहीं कि जहर
अपने फिरके आप बनाता है
बंदूक की नाल
खुद पर तन जाती है
जब सामने दुश्मन का
कोई चिह्न नहीं बचता
समाचार: अहिंसा का प्रवर्तक भारत झेलता है सर्वाधिक विस्फ़ोट, जेहाद, माओवाद के निशाने पर