इस साल की शुरूआत होते-होते डॉ. अरविन्द मिश्रा ने जब सुर असुर का झमेला शुरू किया तब हमें खबर नहीं थी कि हम भी इसके लपेटे में आ जायेंगे. लेकिन हम भी क्या करें, दूर देश के झमेलों में टंगड़ी उड़ाने की आदत अभी गयी नहीं है पूरी तरह से. उस पर तुर्रा ये कि डॉ. साहब ने एक पोस्ट और लिखी थी जिसका हिसाब करना बहुत ज़रूरी था. इस आलेख का शीर्षक था - असुर हैं वे जो सुरापान नहीं करते!
जब अपने ही खाने में कोई रूचि न हो तो दूसरे लोग क्या खा पी रहे हैं इसमें हमें क्या रूचि हो सकती है फिर भी सुरापान की बात से लगा कि इस विषय पर रोशनी तो पड़नी ही चाहिए वरना कई भाई लोग अँधेरे का दुरुपयोग कर लेंगे. सो भैया वार्ता शुरू करते हैं दूर देश से जिसका नाम है सुरस्थान. इस राष्ट्र को विभिन्न कालों में लोगों ने अपने-अपने जुबानी आलस के हिसाब से अलग-अलग नामों से पुकारा है. इतिहासकारों के हिसाब से सुरस्थान के उत्तर में उनका पड़ोसी राष्ट्र था असुरस्थान. कभी यह द्विग्म सुरिस्तान-असुरिस्तान कहलाया तो कभी सीरिया-असीरिया. असीरिया के निवासी असीरियन, असुर या अशुर हुए और सुरिस्तान के निवासी विभिन्न नामों से प्रसिद्ध हुए. जिनमें एक नाम सूरी भी था जिसका मिस्री भाषा में एक रूप हूरी भी हुआ. संस्कृत/असंस्कृत का स और ह का आपस में बदल जाना तो आपको याद ही होगा. तो हमारा अंदाज़ ऐसा है कि अरबी परम्पराओं की हूर का सम्बन्ध इंद्रलोक की अप्सराओं से है ज़रूर.
यह दोनों ही क्षेत्र प्राचीनतम मानव सभ्यताओं की जन्मस्थली कहे जाने वाले मेसोपोटामिया के निकट ही हैं. वही मेसोपोटामिया जहां कभी सुमेरियन सभ्यता खाई खेली. बल्कि फारसी भाषा के सुरिस्तान-असुरिस्तान तो ठीक वहीं हैं. क्या देवासुर संयुक्त समुद्र मंथन अभियान में सुमेरु पर्वत का प्रयुक्त होना कुछ अर्थ रखता है? अभी तो पता नहीं मगर आगे देखेंगे हम लोग. वैसे यवन लोग सुमेरु और असीरिया लगभग एक ही स्थान को कहते थे. सत्य जो भी हो परन्तु इन सभी स्थानों की भौगोलिक स्थितियों में काफी ओवरलैप तो है ही. हिब्रू भाषा में असुरिस्तान को अस्सुर और पहलवी में अथुर कहा गया है. बाद में अरबी में सीरिया को अल-शाम और असीरिया को अल-जज़ीरा कहा गया.
इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर ऐतिहासिक खनन और खोजें हुई हैं जिनकी जानकारी इंटरनेट पर सर्वत्र उपलब्ध है. उदाहरण के लिए ढाई हज़ार साल पहले के असीरियन राजा असुर बनिपाल के बारे में जानकारी यहाँ विकिपीडिया पर है.
हम संस्कृत को देवभाषा कहते हैं. क्या होता अगर इसे सुरवाणी कहते? क्या सुरवाणी शब्द का तद्भव सुरयानी हो सकता है? अगर हो सकता है तो ध्यान रखिये कि असीरिया की भाषा को अरबी में सुरयानी कहते हैं. एक संभावना यह भी है कि निरंतर चलते देवासुर संग्राम के कारण इनकी सीमाएं गड्डमड्ड होती रही हों. यह तो था भारत से बाहर एक भौगोलिक दर्शन. अगले अंक में देखेंगे एक वैदिक आश्चर्य! तब तक के लिए आपकी ज्ञानपूर्ण टिप्पणियों का इंतज़ार रहेगा.
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वैसे तो मैं पीता नहीं, इसलिए असुर हुआ, पर जानकारी पाने में कोई बुराई भी नहीं:)
ReplyDeleteachchha yaad dilaya Anurag sir main sur hoon.. :)
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पर हमेशा ही कुछ सीखने को मिलता है।
ReplyDeleteवैदिक आश्चर्य का इंतजार रहेगा।
आभार।
अहुरमज़्द के बारे में भी कुछ कहना था। अगले लेख की इतनी प्रतीक्षा क्यों करा रहे हैं? अभी छापिए न !
ReplyDeleteगिरिजेश, अहुरमाजदा की बात आयेगी मगर वैदिक आश्चर्य (या shock) के बाद. प्रतीक्षा कराने की इच्छा नहीं है मगर कम्प्यूटर पर हिन्दी में लिखना मेरे लिए अभी सिद्ध नहीं हुआ है इसलिए "थोड़ी, थोड़ी पीया करो..." का पालन करना पडेगा.
ReplyDeleteमैं तो भई सुर हूँ और इस टिप्पणी को करते वक्त भी सुर में ही हूँ. :)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा पढ़ना.
बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी है -वर्णित पूरा क्षेत्र ही पुरा इतिहास के अध्ज्ञान के लिए बहुत उर्वर क्षेत्र है -हूर सुर की संगिनियां न ?
ReplyDelete"असुर हैं वे जो सुरापान नहीं करते!"
ReplyDeleteBahut Gahraa raaj chhupaa hai isme !!
सीरिया की शराब और देवासुर संग्राम का बढ़िया रिश्ता जोड़ा है!
ReplyDeleteजो पी कर भी सुर में रहे, वह सुरसुर ।
ReplyDeleteजब सुर के साथ सूरा का साथ हो तो
ReplyDeleteअसुर से भी निभ जाती है।:)
कभी कभी दोनो के सिर पर भी सींग उग आते हैं
पहचानना ही कठिन हो जाता है कौन क्या है?
अच्छी पोस्ट भैया
वैदिक आश्चर्य का इंतजार है।
आपकी पोस्ट पर हमेशा ही कुछ सीखने को मिलता है।
ReplyDeleteक्या साहब, सीरिया और सुरों का रिश्ता जोड दिया।
ReplyDeleteबहुत अच्छे।
आर्य पूरे ग्लोब पर ही काबिज थे. दुनिया टूट फूट कर कैसे बंटी. प्लेटोनिक मूवमेंट की बात अगर की जाये तो शायद पूर्व वैदिक सभ्यता के तार पूरी दुनिया में ही जुड़े निकलेंगे..
ReplyDeleteजानकारी देने का शुक्रिया .. जिस ब्लॉग का जिक्र आपने शुरू में किया है
ReplyDeleteवहाँ इतनी तफसीली में बात नहीं राखी गयी थी , आपके यहाँ इस कमी
को पूरा किया गया है ,,, अगली प्रविष्टि का इंतिजार है ! आभार !
यानि हम सुर है ही जी:)
ReplyDeleteखुश हुआ वीराना-ए-मस्जिद को देखकर
ReplyDeleteमेरी तरह खुदा का भी खाना खराब है
असुरों की भीड में शामिल होकर अच्छा लग रहा है।
चमत्कृत कर दिया आपने इस पोस्ट से। वाह।
हाय यह रेवेलेशन - हम असुर हुये! :(
ReplyDeleteयह तो अजित वड़नेरकर के ब्लॉग छाप मजा आ रहा है, सुर असुर शब्द से परिचय में!
ReplyDeleteकाश मै सुर होता
ReplyDeleteतथ्यपरक जानकारी के लिए शुक्रिया ... आपका यह लेख बहुत अच्छा लगा .. इसका तात्पर्य यह है कि जिन्हें हम देवता, देवी, दानव इत्यादि कहते हैं ... वो कुछ और नहीं ऐतिहासिक सभ्यता के लोग थे ... अन्धविश्वास का शिकार हम उन्हें वेदी पर बिठा दिए ...
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट। समूचे एशिया में सांस्कृतिक ऐक्य रहा है। ऐतिहासिक भाषाविज्ञान ने इसे प्रमाणित भी किया है।
ReplyDeleteरोचक विषय उठाया है आपने ! खूब जानकारियाँ मिलेंगी..!
ReplyDeleteपूरी श्रृंखला क्रम से पढ़ रहा हूँ ! आभार ।
बताते जाइए। हम यह ज्ञान पीने की कोशिश में हैं।
ReplyDeleteघुघूती बासूती