अट्ठारह घंटे तक एक ही स्थिति में बैठे रहना कितनी बड़ी सजी है इसे वही बयान कर सकता है जिसने भारत से अमेरिका का हवाई सफ़र इकोनोमी क्लास में किया हो. अपन तो इस असुविधा से इतनी बार गुज़र चुके हैं कि अब यह सामान्य सी बात लगती है. मुश्किल होती है परदेस में हवाई अड्डे पर उतरने के बाद आव्रजन कार्यवाही के लिए लम्बी पंक्ति में लगना.
आम तौर पर कर्मचारी काफी सभ्य और विनम्र होते हैं. खासकर भारतीय होने का फायदा तो हमेशा ही मिल जाता है. कई बार लोग नमस्ते कहकर अभिवादन भी कर चुके हैं. फिर भी, हम लोग ठहरे हिन्दुस्तानी. वर्दी वाले को देखकर ही दिल में धुक-धुक सी होने लगती है. खैर वह सब तो आसानी से निबट गया. अब एक और जांच बाकी थी. हुआ यह कि इस बार साम्बाशिवं जी ने बेलपत्र लाने को कहा था जो हमने दिल्ली में कक्कड़ साहब के पेड़ से तोड़कर एक थैले में रख लिए थे. यहाँ आकर डिक्लेर किये तो पता लगा कि आगे अपने घर की फ्लाईट पकड़ने से पहले फूल-पत्ती-जैव विभाग की जांच और क्लियरेंस ज़रूरी है. अरे वाह, यहाँ तो अपना भारतीय बन्दा दिखाई दे रहा है. चलो काम फ़टाफ़ट हो जाएगा.
नेम प्लीज़
शर्मा
कैसे हैं शर्मा जी? नेपाल से कि हिन्दुस्तान से?
दिल में आया कहूं कि हिन्दी बोल रहा है और पासपोर्ट देखकर भी देश नहीं पहचानता, कमाल का आदमी है. मगर फिर बात वहीं आ गयी कि हुज्जतियों से बचकर ही रहना चाहिए, खासकर जब वे अधिकारी हों.
कितने साल से हैं यहाँ?
कोई सात-आठ साल से
सात या आठ
हूँ... सात साल आठ महीने...
तो ऐसा कहिये न.
कब गए थे हिन्दुस्तान?
एक महीना पहले.
अब कब जायेंगे?
पता नहीं... अभी तो आये हैं.
हाँ यहाँ आके वहाँ कौन जाना चाहेगा?
भंग पीते हैं क्या?
नहीं तो!
तो ये पत्ते किसलिए लाये हैं? क्या देसी बकरी पाली हुई है?
किसी ने पूजा के लिए मंगाए हैं.
नशीले हैं?
नहीं बेल के हैं
कौन सी बेल?
एक फल होता है. थोड़ा जल्दी कर लीजिये, मेरी फ्लाईट निकल जायेगी.
एक घंटे की हुज्जत के बाद साहब को दया आ गयी.
चलो छोड़ दे रहा हूँ आपको. क्या याद करेंगे किस नरमदिल अफसर से पाला पडा था.
फ्लाईट तो निकल चुकी थी. चलते-चलते मैंने पूछा, "क्या नाम है आपका? भारत में कहाँ से हैं आप?"
"माय नेम इज खान... सलीम खान! इस्लामाबाद से."
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इस व्यंग्य का ऑडियो आवाज़ पर उपलब्ध है. सुनने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें.
निःशब्द हूँ.. पर क्या ये संस्मरण है??? :)
ReplyDeleteखान साहब नरमदिल निकले, खाली फ़्लाईट छुड़वा कर मान गये। अब आप ये सोचिये कि यदि पत्थरदिल होते तो? :))
ReplyDeleteकहानी सटीक लगी...आभार
ReplyDeleteयहाँ वहां कहाँ कहाँ है तूं खान जय जय जय हिन्दुस्तान
ReplyDeleteYou really made me laugh..lol
ReplyDeleteवाह !!
ReplyDeleteबहुत खूब सलीम खान साहब...(ullu da....)
शर्मा जी....ये तो उनका नरमी का इश्टाइल था..कहीं जो गर्मी का इश्टाईल दिखाते तो क्या होता....??
बहुत ही आँख खोलू प्रस्तुति ....
आपका आभार....
हम्म!! क्या कहें खान साहब को. एक खान साहब ने तो हमारा कटहल का अचार पहचान कर भी बेल्जियम में कूड़े के हवाले करवा दिया.
ReplyDeleteये होती है नरमदिली इतनी पूछ-ताछ के बाद भी नरम दिल वाले है..और फ्लाइट भी छूट गई...बढ़िया संस्मरण..
ReplyDeleteha ha ha ha...:):)
ReplyDeleteकहानी सटीक लगी...
ReplyDeleteकहानी के अंत में लिखना ..
ReplyDelete"माय नेम इज खान... सलीम खान! इस्लामाबाद से."
..काफी झन्नाटेदार है. इतना बेहतरीन अंत कम ही पढ़ने को मिलता है.
kahini bahu hi achhi the lekin my name is.....passport dekho
ReplyDeleteकहानी (या सही घटना)का अंत तो वाकई झन्नाटेदार था..
ReplyDeleteकहानी का अंत एक दम बढ़िया...मानसिकता बताता हुआ....
ReplyDeleteकित्ते नरम दिल थे......आप खामखाँ सेंटिया रहे है ...
ReplyDeleteशुक्र करे इस खान का... हमारी तो पानी की बोतल ही फ़िंकवा दी थी एक देसी बंदे नै, ओर फ़िर फ़िंन लेंड मै हमारी हमारी नयी टूथ पेस्ट... ओर अब मै सभी को यही राय देता हुं कि जब भी विदेश आये अपने हेंड बेग मै खाने पीने का कोई भी समान मत लाये.... वेसे मै बहुत गर्म दिमाग का हुं ओर झट लड पडता हुं, मेरे बोलने पर दोनो जगह मुझे कानून जो लिखत रुप मै था दिखाया ओर मै चुप हो गया... वर्ना बहुत ज्यादा पंगा पडता..खान साहब सच मे नर्म दिल थे
ReplyDeleteइसे कहते है पाठको को जोर का झटका धीरे से देना
ReplyDeleteकाश आप नेपाल के होते तो इतनी फजीहत नहीं होती !
ReplyDeleteसच में बड़े नरम दिल निकले खान साहब !
ReplyDeleteaapki post kahani kam sansmaran jyada lag rahi hai...
ReplyDeletepata nahi kyon !!
वैसे शाहरुख़ ख़ां माइ नेम इज़ ख़ान पार्ट टू बना सकते हैं, इस घटना पर।
ReplyDeletekolkata airport par mujhe rasgulle aur mishtidoi saari khani padi thi :D
ReplyDeletevery nice ending of the story!
कहानी सम्पूर्ण है. भूमिका है, कथ्य है और उपसंहार भी है.
ReplyDeleteइतनी छोटी कहानियां मुझे बहुत पसंद है. संवाद चुटीले हैं और चरित्रों का निर्माण करते हुए से हैं.
तो ये पत्ते किसलिए लाये हैं? क्या देसी बकरी पाली हुई है?
यहाँ पर आप मुझे विचलित कर जाते हैं, मस्तिष्क में आया कि कितना दुर्भाग्य है कि अपनी ज़मीन को छोड़ देने के बाद भी उस ऑफिसर के भीतर पूर्वाग्रह बचे रह जाते हैं.
वैसे ये सच्चाई की अमेरिका में ऐसा अक्सर होता है ... पर आपकी कहानी इतनी लाजवाब तरीके से लिखी गयी है की मज़ा आ गया पढ़ कर ... बरबस मुस्कान आ गयी एक बार तो ...
ReplyDeleteये सही रहा ...वैसे मुझे बहुत चिड होती है immigration की लाइन से
ReplyDeleteतय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि खुश हुआ जाए या दुखी। कुछ भी सूझ नहीं पड रहा। हॉं, विचलित अवश्य हूँ।
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