बाग़-बगीचे, ताल-तलैया
लहड़ू, इक्का, नाव ले गये
घर, आंगन, ओसारे सारे
खेत, चौपालें, गाँव ले गये
कुत्ते, घोड़ा, गाय, बकरियाँ
पीपल, बरगद छाँव ले गये
रोटी छीनी, पानी लीला
भेजा, हाथ और पाँव ले गये
चौक-चौक वे भीख मांगते
जिनकी कुटिया, ठाँव ले गये
"आधी सदी का क़िस्सा" एक रोचक भविष्य की गाथा है जो तकनीकी विकास द्वारा संसार की वर्तमान समस्याओं के हल के साथ-साथ नयी मानसिक समस्याओं का यथार्थ निरूपण करती है। एक अलग सा भविष्य पुराण
सन 2068: वैज्ञानिक प्रगति ने संसार को एक वैल-कनेक्टेड विश्व-नगरी में बदल दिया है।
किताबें तो 2043 में छपी अंतिम पुस्तक के साथ डिजिटल युग के चरमोत्कर्ष पर ही समाप्त हो गई थीं। तब तक कुछ किताबें डिजिटल स्वरूप में प्राचीन-तकनीक वाले कम्प्यूटरों में रह गई थीं। लेकिन अब तो कम्प्यूटर होते ही नहीं। एक अति-तीव्र हस्तक में ही सब कुछ होता है। सारी जानकारी तो केंद्रीय बिग-क्लाउड पर रहती है। लेकिन बिग-क्लाउड के अचानक इस बुरी तरह बिगड़ जाने की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। किसी को ठीक से पता नहीं कि बिग-क्लाउड को हुआ क्या था। दुर्भाग्य से उसकी मरम्मत के मैनुअलों की इलेक्ट्रॉनिक प्रतियाँ भी बिग-क्लाउड पर ही रखी होने के कारण अब अप्राप्य हैं। एक ही व्यक्ति से उम्मीद है। वह है जॉनी बुकर।जॉनी बुकर वर्तमान क्लाउड के मूल निर्माताओं में से एक है। कभी वह बिग-क्लाउड परियोजना का प्रमुख था। बल्कि सच कहें तो वही इस विचार का जनक था कि संसार को केवल एक क्लाउड की ज़रूरत है। उसी के प्रयत्नों के कारण संयुक्त राष्ट्र ने सभी देशों पर दवाब डालकर पूरे विश्व की समस्त जानकारी को एक केंद्रीय क्लाउड में डाला, जिसे बिग-क्लाउड का नाम दिया गया।
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