(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)
वफ़ा ज्यूँ हमने निभायी, कोई निभाये क्यूँ
किसी के ताने पे दुनिया को छोड़ जाये क्यूँ॥
कराह आह-ओ-फ़ुग़ाँ न कभी जो सुन पाया
ग़रज़ पे अपनी बार-बार वह बुलाये क्यूँ॥
सही-ग़लत की है हमको तमीज़ जानेमन
न करें क्या, या करें क्या, कोई बताये क्यूँ॥
झुलस रहा है बदन, पर दिमाग़ ठंडा है
जो आग दिल में लगी हमनवा बुझाये क्यूँ॥
थे हमसफ़र तो बात और हुआ करती थी
वो दिल्लगी से हमें अब भला सताये क्यूँ॥
जो बार-बार हमें छोड़ बिछड़ जाता था
वो बार-बार मेरे दर पे अब भी आये क्यूँ॥
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बेहतरीन ग़ज़ल, किसी से उम्मीद रखना ही दुःख का कारण है, राज यह खुल जाए तो अब कोई झाँसे में आए क्यों
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeletehaa
ReplyDeletehaan
ReplyDeleteपता नहीं क्या बात है टिप्पणी नहीं हो पा रही है !
ReplyDeleteबहुत सुंदर बेहतरीन पंक्तियाँ....
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