Sunday, July 18, 2021

एकाकी कोना

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

मन में इक सूना कोना है
जिसमें छिप-छिपके रोना है
अपनी पीर सम्भालो आप ही
कहके किससे क्या होना है॥

गलियों-गलियों फिरता मारा
रात विवश और दिन बेचारा
जागृत मनवा चैन न पाता
भाग्य में अपने कब सोना है॥

ग़र्द-गुबार और छींटें गंदी
इधर-उधर से हम पर पड़तीं
दुनिया धोने निकले थे अब 
तन-मन अपना ही धोना है॥ 

सीमित रिश्ते सतही नाते
खुद से बाहर सोच न पाते
जीते जी जिससे भी मिल लो
शव अपना खुद ही ढोना है॥

सुख आभासी दुःख आभासी
जीवन माया, या बस छाया
जो भी मिला इसी जीवन का
अपना क्या था जो खोना है॥

10 comments:

  1. जय मां हाटेशवरी.......
    आपने लिखा....
    हमने पढ़ा......
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें.....
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.......
    दिनांक 20/ 07/2021 को.....
    पांच लिंकों का आनंद पर.....
    लिंक की जा रही है......
    आप भी इस चर्चा में......
    सादर आमंतरित है.....
    धन्यवाद।
    जय मां हाटेशवरी.......
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    दिनांक 20/ 07/2021 को.....
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    सादर आमंतरित है.....
    धन्यवाद।

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  2. मन में इक सूना कोना है
    जिसमें छिप-छिपके रोना है
    अपनी पीर सम्भालो आप ही
    कहके किससे क्या होना है॥

    बहुत सुंदर रचना । जीवन के यथार्थ को कहती हुई ।

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  3. अंतर के दर्द को सुंदर शब्दों में पिरोया है, जीवन के यथार्थ को जीकर ही उससे पार ज़ाया जा सकता है

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  4. सुंदर और अनुपम सृजन।

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  5. अति सुन्दर भाव सृजन ।

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  6. भाव पूर्ण अभिव्यक्ति। सुंदर सरल

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