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वैजयंती की मुस्कान |
* गवेधुक - वैजयन्ती माला *
(चित्र व परिचय: अनुराग शर्मा)
प्रसिद्ध अभिनेत्री और नृत्यांगना वैजयंतीमाला बाली लोक सभा सांसद रह चुकी हैं| वैजयंती माला का जन्म 13 अगस्त 1936 को मैसूर के एक आयंगर परिवार में हुआ। वे गॉल्फ़ की खिलाड़ी हैं और आज भी भरतनाट्यम का नियमित अभ्यास करती हैं| उनका विवाह डॉ. चमन लाल बाली के साथ हुआ। उन्हें जन्मदिन की अग्रिम शुभकामनायें!
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प्राकृतिक मोती - वैजयंती के बीज |
जन्माष्टमी आकर गई ही है। पूरा देश कृष्णमय हो रहा है। भगवान श्रीकृष्ण का वर्णन आने पर मयूरपंख और वैजयंती माला का ज़िक्र आना भी स्वाभाविक है। आज की इस पोस्ट का विषय भी यही दूसरी वाली वैजयंती माला है। भारतीय ग्रंथों के अनुसार यह वैजयंतीमाला श्रीकृष्ण के सीने पर सुशोभित होती है। शुभ्र श्वेत से लेकर श्यामल तक लगभग पाँच रंगों में उपलब्ध इसके मोती जैसे बीज प्राकृतिक रूप से ही छिदे हुए होते हैं और बिना सुई के ही माला में पिरोये जा सकते हैं। इसकी राखी और ब्रेसलैट आदि भी आसानी से बनाये जा सकते हैं। वैजयंती के पौधे का वैज्ञानिक नाम Coix lacryma-jobi है। संस्कृत में इसका एक नाम गवेधुक भी है। इसे अंग्रेज़ी में जॉब्स टीयर्स (job's tears) भी कहते हैं। चीनी में चुआंगू और जापानी में हातोमूगी के नाम से जाना जाता है। इसके मोती/बीज/दाने अमेरिका में चीनी किराने की दुकानों के साथ-साथ ऐमेज़ोन डॉट कॉम पर सरलता से उपलब्ध है जबकि भारत में भोज्य पदार्थ, सौन्दर्यबोध या पूजा सामग्री सभी प्रकार से हमारी परम्परा के अनेक अंगों की भांति यह पौधा भी उपेक्षित रह गया है।
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गवेधुक के मोती जैसे फल वाला जंगली पौधा |
ऐसा माना जाता है कि चावल के स्थान पर वैजयंती खाने से शरीर के कॉलेस्टरॉल में - विशेषकर बुरे कॉलेस्टरॉल में -कमी आती है। परंतु यह धारणा भी है कि यह दवाओं के साथ - विशेषकर डायबिटीज़ में - विचित्र व्यवहार कर सकता है। वैसे भी किसी भी दवा के सेवन के समय भोज्य पदार्थों के बारे में विशिष्ट सावधानी रखने की सलाह दी जाती है। वैजयंती एक जिजीविषा भरा पौधा है जो भारत के समस्त मैदानी क्षेत्रों में आराम से उग आता है। कीड़े-बीमारियों आदि से नैसर्गिक रूप से सुरक्षित वैजयंती के बीज हिन्द-चीन क्षेत्र के अनेक देशों में भोजन के लिये आटे के रूप में या चावल के विकल्प के रूप में खाये जाते हैं। कोरिया और चीन में इसके पेय और मदिरा भी बनाई जाती है। जापान में इसका सिरका और थाइलैंड में चाय भी बनती है। आश्चर्य नहीं कि यह पौधा भारतीय खेतों में अपने आप उग आता हो और अज्ञानवश खरपतवार समझकर उखाड़ दिया जाता हो। वैजयंती के बीज आरम्भ में धवल और नर्म
होते हैं। कच्चे बीज को आसानी से छीला जा सकता है। पकने के साथ ही यह कड़े और स्निग्ध होते जाते है।
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यह खर-पतवार वैजयंती नहीं है |
वैसे पूजा सामग्री आदि बेचने वाले कुछ उद्यमी पहले से ही वैजयंती माला बेचते रहे हैं। लेकिन पिछले दिनों से वास्तु और ज्योतिष के फ़ैशन में आने के बाद से जहाँ रत्न आदि के व्यापार में उछाल आया है वहाँ वैजयंती माला के चित्र भी इंटरनैट पर दिखने लगे हैं। (
वैजयंती माला का एक चित्र यहाँ देखा जा सकता है।) इन आधुनिक घटनाओं से इतर बहुत से भारतीय घरों में वैजयंती के पौधे लम्बे समय से लगे हैं। मेरे परिवार के कुछ घरों में भी ये पौधे हैं और उसके बीज (मोती या दाने) मेरे पास पिट्सबर्ग में भी रहे हैं। लेकिन सामान्यजन में इसकी जानकारी कम है। कई वर्ष पहले अंतर्जाल पर शायद किसी वैज्ञानिक पहेली में भी केलि के पौधे को वैजयंती बताया जा रहा था।
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केलि (कैना लिली) भी वैजयंती नहीं है - यह चित्र गिरिजेश राव द्वारा |
लेकिन इस बार जब एक आत्मीय की फ़ेसबुक वाल पर केलि के लिये वैजयंती नाम देखा तो पहचान के इस भ्रम पर रोशनी डालने के लिये वैजयंती पर लिखने का मन किया। लगता है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्रों में केलि के पौधे (कैना लिली) को किसी भ्रमवश वैजयंती समझा जा रहा है। इसके फूलों के तो हार भी बनते नहीं देखे, माला - वह भी वैजयंती - बनने की तो सम्भावना ही नहीं दिखती। पेड़-पौधों व पशु-पक्षियों के नामों के विषय में आलस अवाँछनीय होते हुए भी भारत में सामान्य है। ऐसे अज्ञान को बढावा देकर हम अन्जाने ही अपनी विरासत से दूर होते जा रहे हैं। सोमवल्ली जैसे पौधों की पहचान तो आज असम्भव सी दिखती है। ऐसे में ज़रूरत है कि भ्रम को बढावा देने से बचा जाये और जहाँ कहीं, जितनी बहुत पहचान बाकी रह गयी है उसे बचाया जाये।
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गवेधुक, वैजयंती, जॉब्स टीयर्स - कितने नाम! |
जब वैजयंती (या गवेधुक) पर लिखने की सोची तो यूँ ही मन में आया कि एक पौधा पिट्सबर्ग में उगाकर भी देखा जाये। कई गमलों में बीज लगाने के बाद उनमें से एक में घास-फूस जैसा जो कुछ भी उगा उसे उगने दिया। एक महीने में ही वैजयंती का पौधा अपनी अलग पहचान बताने लायक बड़ा हो गया है। यहाँ प्रस्तुत चित्र उसी पौधे का है। यह पौधा कुश घास जैसा दिखता है और मोती आने से पहले इसे ठीक से पहचान पाना या सामान्य घास से अलग कर पाना कठिन है। घास जैसे पौधों पर गिरिजेश ने पिछले वर्ष एक बहुत बढिया आलेख लिखा था, यदि आप फिर से पढना चाहें तो उसका लिंक इस आलेख के नीचे दिया गया है। आभार!
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वैजयंती घास का सौन्दर्य |
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"नहीं! वह सपना नहीं हो सकता।" देवकी ने कहा, "वह यहीं था, मेरे पास। मेरी नासिका में अभी तक उसकी वैजयंती माला के पुष्पों की गंध है। मेरे कानों में उसकी बाँसुरी के स्वर हैं। उसने छुआ भी था मुझे ..."
"तो तुम्हारा कृष्ण वंशी बजाता है?'' वसुदेव हँस पड़े, ''तुम्हें किसने बताया कि वह वंशी बजाता है? यादवों का राजकुमार वंशी बजाता है। वह ग्वाला है या चरवाहा कि वंशी बजाता है। तुमने कब देखा कि वह वैजयंती माला धारण करता है?"
[डॉ नरेंद्र कोहली के उपन्यास वसुदेव से एक अंश - लगता है नरेंद्र कोहली भी वैजयंती-माला को किसी खुशबूदार फूल का हार ही मान रहे हैं]
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आप सभी को कृष्ण जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक बधाई!
सम्बन्धित कड़ियाँ
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वैजयंती - विकीपीडिया
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कास, कुश, खस, दर्भ, दूब, बाँस के फूल और कुछ मनबढ़
बहुत बढ़िया...संजो कर रखने वाली पोस्ट..
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा
अनु
अनुराग जी, बहुत सारी जानकारी मिली इस पौराणिक वनस्पति के विषय में.. इसका सम्बन्ध भगवान हरि से है यह तो जानता था, लेकिन इतने सारे गुण.. शायद हरि के उर पर सुशोभित होता था..
ReplyDeleteअभिनेत्री वैजयंतीमाला के विषय में अपने गुरुदेव के. पी.सक्सेना की बात याद आती है कि एक सज्जन अपने पुत्र के फ़िल्मी ज्ञान की प्रशंसा में कहते हैं उसे अभिनेत्री वैजयंतीमाला की स्पेलिंग सही-सही लिखना आता है.. उतनी ही दुर्लभ स्पेलिंग है जितने दुर्लभ इस वनस्पति के गुण!! :)
पहली इतना कुछ देखा जाना इस पौधे के विषय में .... संग्रहणीय जानकारी....
ReplyDeleteकई वर्ष पूर्व मेरे घर में भी यह पौधा लगा था, मोती वाली घास के नाम से पुकारते थे|
ReplyDeleteफिर से लगाइये. बरेली, बदायूँ, रामपुर में स्वाभाविक रूप से खूब फलते देखा है इसे!
Deleteखुबसूरत जानकारी के लिए कदापि आभार नहीं बस चरण वंदना
ReplyDelete_/\_
Deletesangrahniy prastuti.aabhar..प्रोन्नति में आरक्षण :सरकार झुकना छोड़े
ReplyDeleteबहुत उपयोगी पोस्ट..धन्यवाद
ReplyDeleteஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
!!!!!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!!!!!
!!!!!!!!!! हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!!!!!!!!
ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभ-कामनाएं
बहुत बहुत आभार इस पोस्ट के लिए | न तो वैजयंती के बारे में जानती थी, न ही देवकी वासुदेव जी के इस संवाद को | अब पहली बार आपके चित्रों से ही जाना की जो "गले में वैजन्ती माला" सुना बचपन से, वह है क्या :)
ReplyDeleteपढ़ा तो था'...उर बैजंती माल' पर कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया,आभूषण से लेकर खाने और औषधि के रूप में इसके उपयोग की चर्चा अच्छी लगी.कई लोगों के भ्रम दूर कर दिए आपने और कइयों को नई जानकारी दी !
ReplyDeleteआरती कुञ्ज बिहारी की
ReplyDeleteगिरधर कृष्ण मुरारी की
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गले उर वैजन्ती माला
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धन्य हो आपका
आपका हार्दिक आभार!
Deleteदिलचस्प जानकारी .
ReplyDeleteकभी सोचा न था .
हमारे लिए तो किसी शोध से कम नहीं .
एक समय मेरे घर में वैजयंती के खूब पौधे थे आजकल नहीं हैं - २-१ मौसमों बाद वापस लगेंगे ही दुबारा। पिताजी ने भी हमें केलि और वैजयंती का अंतर खेतों क्यारियों के बीच घुमाते समझाया था।
ReplyDeleteअंतस में सोंधापन हो तो कुछ चीजें कभी और कहीं नहीं बदलतीं। धरित्री ने कभी स्वयं को पलामू और पिट्सबर्ग करके देखा भी कहाँ!
इस बहुत सुन्दत, सचित्र आलेख का आभार अनुराग सर!
आपने इसके पुष्प का चित्र नही लगाया, अभी तक हम अपने इस फोटो मे बचपन से वैजयण्ती का ही फूल देखते आये है :)
ReplyDeleteविस्मृत वनस्पति को पुनर्जीवन!!
ReplyDeleteशोध युक्त प्रेरक आलेख अभिलेख!! आभार
पोस्ट पढ़ने के बाद ध्यान आया कि बहुत बार हाथ में ऐसी राखी बंधी जिनमें ये प्राकृतिक मोती होते थे लेकिन यही वैजयंती हैं, इस पर गौर नहीं किया था कभी| यह लेख पढ़ने के बाद गौर कर रहा हूँ कि कितनी ही ऐसी चीजें थीं जिन्हें हम देखते थे लेकिन उन पर गौर नहीं करते थे और आज जब वो अप्राप्य हैं तो पछताते हैं|
ReplyDeleteहोमवर्क जबरदस्त रहता है आपका|
अरे मैंने तो कभी इस शब्द के अर्थ के बारे में सोचा ही नहीं था. इसका फल तो कौड़ियों जैसा दिखता है.
ReplyDeleteअनुराग जी अभी तक मैं समझता था की वैजन्ती माला कभी ना कुम्हलाने वाले फूलों की माला होती है. इस पोस्ट से नयी जानकारी मिली. अब मैं भी कोशिश करूँगा की इस पौधें को अपनी छत पर उगाऊ.देखता हूँ इसके बीज कहाँ से मिलेंगे.
ReplyDeletebahut achchi jankari mili aur ham bhi apni bagiya me ise lgayenge............aabhar
ReplyDeleteमेरे लिए सर्वथा नयी जानकारी है ...आभार
ReplyDeleteवैजयंती के बारे में सुना जरुर था , इतने विस्तार से पहली बार जाना .
ReplyDeleteप्राकृतिक रूप से बिंध सकने वाले मोती जैसे इसके बीज अजूबा ही है .
केलि और वैजन्ती दोनी के तस्वीर इनके अंतर को सपष्ट कर रहे हैं .
रोचक जानकारी के लिए आभार !
अत्यन्त रोचक व मनोहारी वर्णन, जंगल के फूलों से जंगल में श्रंगार..
ReplyDeleteवैजयंती समग्र -यहाँ जीते हुए शील्ड को चल वैजयंती कहा जाता है ..
ReplyDeleteयह विजयोल्लास का प्रतीक लगती है .....
Bahut hi rochak baaten pataa chaleen isi bahane.
ReplyDelete............
कितनी बदल रही है हिन्दी!
सुना बहुत त्यहा .. आज जानकारी भी हो आगयी ...
ReplyDeleteवैजन्ती के रहस्य को सबके सामने लाने का शुक्रिया ... श्री कृष्ण जन्मदिन की बधाई ...
jankari ke liye aabhar :)
ReplyDeleteवर्षों पहले नागपंचमी को एक सँपेरे ने मुझे वैजयंती के फल दिये थे ,फिर कुछ वर्ष पहले एक छात्रा ने- जस के तस हैं ,कभी खराब नहीं हुये .पर इतनी जानकारी नहीं थी .भार आपका !
ReplyDeleteएक बेहतरीन पोस्ट के लिए आभार। पता नहीं यहां राजस्थान के बीकानेर शहर में इसे उगा पाउंगा या नहीं, पर प्रयास करूंगा। कई दुर्लभ पौधे प्रकृति की विशिष्ट कृपा के चलते हम अपने छोटे से बगीचे में आसानी से उगा लेते हैं। इसके लिए भी प्रयास करेंगे।
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस महोत्सव पर बधाईयाँ और शुभ कामनाएं
ReplyDeleteआपको भी स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई! अमर हो स्वतंत्रता!
Deleteएक बेहतरीन पोस्ट के लिए आभार। आपको भी स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteलिखना बढ़िया है। उगा कर लिखना और भी बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत रोचक....
ReplyDeleteडॉ नरेंद्र कोहली के उपन्यास वसुदेव से एक अंश भी रोचक लगा....
आपका आभार इस महत्वपूर्ण लेख के लिए , इससे पहले मुझे वैजयंती के बारे में सिवा उस माला के कुछ नहीं पता था !
ReplyDeleteदुबारा धन्यवाद अनुराग भाई !
इसका बीज कहाँ मिलगा ??
ReplyDeleteहुक़्म कीजिये, भिजवा देंगे!
Deleteकाफी समय से नई पोस्ट नहीं आई ?
ReplyDeleteSave Environment ....Save Earth...
ReplyDeleteAnuragji..great post! Very informative. I only knew and remember the garland with 'Vajayanti'...Now I will try to plant it too in my little garden. Thanks for this wonderfully written and detailed post. How's your plant doing?
ReplyDeleteआभार आपका इतनी सुन्दर जानकारी के लिए ...!!इससे आपकी लगन व निष्ठा भी समझ में आ रही है ....!!
ReplyDeleteबहुत सार्थक एवं सारगर्भित पोस्ट ...!!
शुभकामनायें ...!!
इस प्राकृतिक मोती को जानकार सुखद आश्चर्य हुआ कि सही में हम कितना कुछ नहीं जानते हैं .
ReplyDeleteAnurag ji, I stumbled upon this post while searching for Vajayanti mala. I've had this mala for more than 11 years without realizing its importance. A friend of my parents gave seeds of this plant to my father just saying it yields beautiful seeds that can be used as jewellery and a general remark that they are very good. My father, an avid gardener, planted it and lo and behold, we soon had the plants that gave the yield of the pious seeds. Without my knowledge, my father picked the seeds and sorted them by their shades of colour and mom got our family jeweller to make mala and ear rings and gifted these with my wedding stuff. I wore them occasionally but they mostly sat in my dresser. I normally use Rudraksh mala and only recently I saw a picture of these seeds in a jaap mala that I started searching for the real meaning of these seeds. Thanks to your blog, I gained quite an insight. Will check out the rest of your blog as well. Pardon me, I can read and write Hindi very well, but my Hindi typing skills are very poor, so replying in English. Do visit my blog site and stay connected.
ReplyDeletewhere can I get the plant?
ReplyDeleteFrom where can I get a plant of Vajayanti
ReplyDeletebahut acchi post likhi apne apka bahut=2 abhar
ReplyDeleteनई जानकारी। आभार ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteI'm growing this plant in huge quantity since 2014. It's still not common for society. I'm using it spiritually as well as commercially.anybody can take seeds and plants free of cost from me. My number is 7060090020. विनय पाराशर.
ReplyDelete🙏
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