पाकिस्तान से अमेरिका आये एक मित्र ने एक बार यह कथा सुनाई थी। वही क़िस्सा आज मातृदिवस के अवसर पर आपकी सेवा में प्रस्तुत है।
एक बार एक पहुँचे हुए सत्पुरुष ने सिनाई पर्वत पर ईश्वर का साक्षात्कार किया। ईश्वर ने उन्हें बताया कि अमुक स्थान में रहने वाला एक वधिक स्वर्ग में उनका साथी होगा। एक वधिक, स्वर्ग में, उनका साथी? सत्पुरुष को आश्चर्य तो हुआ पर बात ईश्वर की थी सो उसका रहस्य जानने के उद्देश्य से वे इस वार्ता के बाद, अपनी पहचान गुप्त रखते हुए उस वधिक को मिले। अतिथि की सेवा करने के उद्देश्य से वह वधिक उन्हें अपने घर ले गया। घर पहुँचकर उन्हें बिठाकर कुछ देर इंतज़ार करने के लिये कहकर यजमान अपनी वृद्ध और जर्जर माँ के पास पहुँचा और उनके हाथ पाँव धोकर बाल संवारे फिर अपने हाथ से खाना खिलाया। तृप्त होकर वृद्धा कुछ बुदबुदाई जिस पर यजमान ने तथास्तु कहा।
अतिथि ने जानने का इसरार किया तो यजमान ने शर्माते हुए बताया कि माँ कहती है कि जन्नत में मूझे हज़रत मूसा का साथ मिलेगा, माँ की ममता को जानते हुए हाँ कह देता हूँ। वर्ना कहाँ एक वधिक, कहाँ स्वर्ग और कहाँ हज़रत मूसा।
तब अतिथि ने कहा, "तुम्हारी माँ की प्रार्थना स्वीकार हो चुकी है, मैं स्वर्ग में तुम्हारा साथी मूसा हूँ।"
पाकिस्तान में रहनेवाले डॉ क़ुरेशी से यह कथा सुनने के बाद मेरे मन में पहला विचार यही आया कि वन्दे-मातरम पर हम भारतीयों का एकाधिकार नहीं है। अन्य संस्कृतियों में भी जन्नत माँ के चरणों में ही मानी जाती है।
मूल आलेख की तिथि: रविवार, 12 मई 2012, मातृदिवस (Mother's Day)
देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम्॥
मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव॥
यान्यनवद्यानि कर्माणि। तानि सेवितव्यानि। नो इतराणि॥
यान्यस्माकम् सुचरितानि। तानि त्वयोपास्यानि। नो इतराणि॥
- तैत्तरीय उपनिषद - शिक्षावल्ली (1-11-2)
एक बार एक पहुँचे हुए सत्पुरुष ने सिनाई पर्वत पर ईश्वर का साक्षात्कार किया। ईश्वर ने उन्हें बताया कि अमुक स्थान में रहने वाला एक वधिक स्वर्ग में उनका साथी होगा। एक वधिक, स्वर्ग में, उनका साथी? सत्पुरुष को आश्चर्य तो हुआ पर बात ईश्वर की थी सो उसका रहस्य जानने के उद्देश्य से वे इस वार्ता के बाद, अपनी पहचान गुप्त रखते हुए उस वधिक को मिले। अतिथि की सेवा करने के उद्देश्य से वह वधिक उन्हें अपने घर ले गया। घर पहुँचकर उन्हें बिठाकर कुछ देर इंतज़ार करने के लिये कहकर यजमान अपनी वृद्ध और जर्जर माँ के पास पहुँचा और उनके हाथ पाँव धोकर बाल संवारे फिर अपने हाथ से खाना खिलाया। तृप्त होकर वृद्धा कुछ बुदबुदाई जिस पर यजमान ने तथास्तु कहा।
माँ - एक कविताजब यजमान अतिथि के पास वापस पहुँचा तो सत्पुरुष ने उससे वृद्धा और उसकी कही बात के बारे में पूछा। यजमान ने हँसते हुए बताया कि माँ अपने बेटे के स्नेह में कुछ भी बोल देती है और मैं तो माँ की भावना का आदर करते हुए तथास्तु कहता हूँ। वरना, जो वह कहती है, वैसा संभव नहीं है।
अतिथि ने जानने का इसरार किया तो यजमान ने शर्माते हुए बताया कि माँ कहती है कि जन्नत में मूझे हज़रत मूसा का साथ मिलेगा, माँ की ममता को जानते हुए हाँ कह देता हूँ। वर्ना कहाँ एक वधिक, कहाँ स्वर्ग और कहाँ हज़रत मूसा।
तब अतिथि ने कहा, "तुम्हारी माँ की प्रार्थना स्वीकार हो चुकी है, मैं स्वर्ग में तुम्हारा साथी मूसा हूँ।"
पाकिस्तान में रहनेवाले डॉ क़ुरेशी से यह कथा सुनने के बाद मेरे मन में पहला विचार यही आया कि वन्दे-मातरम पर हम भारतीयों का एकाधिकार नहीं है। अन्य संस्कृतियों में भी जन्नत माँ के चरणों में ही मानी जाती है।
अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रुच्यते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥
मूल आलेख की तिथि: रविवार, 12 मई 2012, मातृदिवस (Mother's Day)
सकारात्मक उर्जा से भरी हुई ....बहुत बढ़िया पोस्ट ....!
ReplyDeleteमातृसेवा से वधिक भी सत्पुरूषों का सहवासी बना।
ReplyDeleteमातृदिवस पर शुभकामनाएं
सच है! आगे की कहानी मुझे नहीं पता लेकिन विश्वास है कि सत्पुरुष के दर्शन होने से स्वर्ग जाने तक के मार्ग में कई पड़ाव आये होंगे जिनमें से एक निश्चित रूप से पशुदया भी रहा होगा।
Deleteकथा के सारे पड़ाव निष्पत्ति में गर्भित होते है। ईश्वर का सत्पुरुष को संकेत, उपदेश प्रेरणा होती है, वधिक से मिलने की इच्छा महापुरूषों का मात्र जिज्ञासा भाव नहीं होता। पूर्वनिश्चित नियति में भी कर्म-प्रबंध अपरिहार्य है। बोध,दुष्कर्मों का त्याग,पश्चाताप और प्रायश्चित एक नियति, संयोग और पुरूषार्थ के सम्वेत संयोजन से प्रवर्तमान रहता है।
Deleteमां की भावना तो सभी जगह एक सी ही होती है । फर्क तो बेटा बेटी में आ जाता है ।
ReplyDeleteशुभकामनायें ।
wonderful post ..who all are in this picture ?
ReplyDeleteमेरे माता-पिता, अपने पौत्र-पौत्री के साथ!
Deleteजननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥
ReplyDeleteसच है ...माँ का मान तो सबसे बढ़कर है.... माँ को नमन
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया पोस्ट.....
ReplyDelete:-)
वन्दे मातरम ही नहीं, किसी भी शुभ विचार और भावना पर किसी एक देश, धर्म का एकाधिकार नहीं है| पिछले दिनों किसी ब्लॉग पर कुछ असहमति हुई थी, वहां ऐसा जिक्र था कि हम जैसों के लिखने से सच्चे मुसलामानों का अपमान हो रहा है| मेरी समझ में तो मेरी तकलीफ सच्चे मुसलमान के लिए भी थी, जिसकी आवाज मुखर नहीं हो पाती| आपकी पोस्ट में आपके दोस्त के बारे में जानकर यह अंतर और स्पष्ट हो गया कि सच सबके लिए अलग अलग होता है|
ReplyDeleteशायद विषय से हटकर टिप्पणी कर रहा हूँ, वो मुहावरा है न की सावन के अंधे को..... :)
सही कहा संजय. मुसलमानियत की कट्टर से कट्टर परिभाषायें देकर अधिसंख्य मुसलमानों को "चुपचाप भेड़ की तरह हमारे पीछे आओ या मारे जाओ" के तरीके से बदलने की भरपूर कोशिशें देखी जा रही हैं। बन्दूक के ज़ोर पर कहीं अहमदिया, कहीं शिया, बोहरा, कहीं बंगाली तो कहीं सैकुलर के नाम से थोक में क़ौम के दुश्मन भी घोषित किये जा रहे हैं। खुशी की बात यह है कि पाकिस्तान जैसे पतनशील देश में भी हसन निसार और मार्वी सेर्माद जैसी हस्तियाँ इन दरिन्दों के मुक़ाबले के लिये बहादुरी से खड़े हैं। आशा करता हूँ कि भारत के मुसलमानों में भी ऐसे साहसी व्यक्तित्व जल्दी ही सामने आयेंगे। अफ़सोस की बात यह है कि अतिवादी हरकतों पर प्रशासन का ढुलमुल रवैया देखकर इस्लाम का यही अतिवादी मॉडल कई ऐसे ग्रुप भी अपनाने का प्रयास कर रहे हैं जो अपने को कम्युनिस्ट या हिन्दू संस्कृति का ठेकेदार सिद्ध करने पर जुटे हुए हैं। जागरूकता की ज़रूरत है।
Deleteइस विषय पर अब संवेदनशीलता का छद्म भय त्याग कर प्रखरता से विचार प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।
Deleteप्रेरणादाई पोस्ट.
ReplyDeleteसच है, सब सुख है यहाँ..
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteइन पंक्तियों का फ़र्क देखिए...
ReplyDelete
मेरी मां मेरे साथ रहती है...
या
मैं अपनी मां के साथ रहता हूं...
जय हिंद...
...
Deleteकोई कैसे भी कहे
माँ सर्वोपरि रहती है।
वन्दे-मातरम पर हम भारतीयों का एकाधिकार नहीं है। अन्य संस्कृतियों में भी जन्नत माँ के चरणों में ही मानी जाती है।
ReplyDelete...प्रेरक लघुकथा के माध्यम से आपने सुंदर संदेश दिया है।
ईश्वर माँ की प्रार्थना जरुर सुनता है !
ReplyDeleteजी अवश्य! एक वधिक को स्वर्ग के द्वार तक पहुँचाने की इसी शक्ति के कारण माँ का स्थान गुरु और पिता से भी पहले है - हमारी सर्वप्रमुख रक्षक और शिक्षिका!
Deleteरविकर चर्चा मंच पर, गाफिल भटकत जाय |
ReplyDeleteविदुषी किंवा विदुष गण, कोई तो समझाय ||
सोमवारीय चर्चा मंच / गाफिल का स्थानापन्न
charchamanch.blogspot.in
रविकर जी, आपका हार्दिक आभार!
Deleteपाकिस्तान में रहनेवाले डॉ क़ुरेशी से यह कथा सुनने के बाद मेरे मन में पहला विचार यही आया कि वन्दे-मातरम पर हम भारतीयों का एकाधिकार नहीं है। अन्य संस्कृतियों में भी जन्नत माँ के चरणों में ही मानी जाती है।
ReplyDeleteसुन्दर कथा वृतांत के लिए ह्रदय से धन्यवाद् .
प्रवंचना के अतिरिक्त हमारे पास कुछ नहीं है ,समाज का दोगलापन इतना वीभत्स रूप लेगा कभी सोचा न था,माँ को, माँ कहने का साहस यदि करता है ,तो नारी को क्या समझता है,किसी से छिपा नहीं है..../ परम्पराओं ,रुढियों का अनुपालन भी है,वहीँ आदर्श व विकास का आह्वाहन भी ,क्या विडम्बना है .."जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" सूत्र वाक्य का उद्धरण तो जिह्वा पर आता है,कार्य रूप में विस्थापित हो जाता है ......काश नारी को को मात्र उपकार की वस्तु न समझ उसको उसका अधिकार दे देते .....शायद कुछ न्याय कर पाते....साभार
ReplyDeleteजी, सतत प्रयास की आवश्यकता है, मशाल जलाये रखिये!
Deleteबिल्कुल, माँ तो माँ है. चाहे वो संसार के किसी भी कोने में हो.
ReplyDeleteधरती पर साक्षात भगवान ही हैं माता-पिता| वंदेमातरम का विरोध तो टी-आर-पी के लिए करना ही पड़ता है|
ReplyDeleteबिल्कुल, मगर ऐसे अन्ध-विरोधियों की कलई खोलना भी ज़रूरी है।
Deleteबहुत ही ख़ूबसूरत कहानी......भावनाएं तो एक सी ही हैं..हर देश की
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
सुंदर ....
ReplyDeleteआभार आपका !
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteअगर दुनिया मां नहीं होती तो हम किसी की दया पर
या
किसी की एक अनाथालय में होते !
संतप्रवर श्री चन्द्रप्रभ जी
आपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
अनुराग जी.. बहुत ही प्रेरक कथा.. वैसे भी माँ का कोई धर्म, जाति या नेशनलिटी नहीं होती.. वैसे ही माँ की वन्दना अर्थात वंदे मातरम को कोई कैसे इन दायरों में बाँध सकता है!!
ReplyDeleteआपको भी मदर्स डे की हार्दिक शुभकामनायें ...स्वीकार करें
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट!
ReplyDelete--
मातृदिवस की शुभकामनाएँ!
भावनाएं जगह का फरक नहीं करतीं ..सुन्दर सकारात्मक पोस्ट.
ReplyDeleteमदर्स दे की शुभकामना
ReplyDeleteकितनी सुन्दर सुन्दर सी पोस्ट है - अहा !!!
ReplyDeleteआभार आपका |
वन्दे मातरम |
प्रेरक कथा. माताओं की ओर से धन्यवाद .नमन करनेवाले पिताओं को भी प्रणाम!
ReplyDeleteजी, आभार!
Deleteye kissa pahli baar suna....sach hai maa ka darja sabse upar hai
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteप्रेरक कथा। धन्यवाद
ReplyDeleteबेहद अच्छी पोस्ट है !
ReplyDeleteआभार .....
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pranm
bahut sundar prernadayi katha !
ReplyDeleteअनुराग जी, सच कहा मां के चरणों में ही सच्चा स्वर्ग है....
ReplyDeletesundar,prerak aur shikshaprad prastuti ke liye bahut
ReplyDeletebahut aabhar ji.abhi US tour par tha,bete ke laptop
se devnaagri men tippani nahi kar paa raha hun.
Mother's day par haardik badhai aur shubhkamnaayen.
New York men bahut chahal pahal mili Mother's day par.
Bahut se museums men Mother ka ticket free tha,
bhagwan krishN aur bhagwan Ramram ki chhavi bagairdadimnch tatha
ReplyDeletebagairjataon ki hai aur bhagawan shankar dadimoochh v jatajutdari hai
karanh krishnh aurramka lalan palan karne wali ek seadhik mataynthi
shiv ajanma hai unki koi mata nahi hai bina mawale shankar ko dekhne
par maa ki mahima ka patalagjata hai maatujhe pranaam
बहुत प्रेरक कथा
ReplyDeleteयह मनुष्यता की कहानी है - वैश्विक मनुष्यता की।
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