Saturday, May 5, 2012

चक्रव्यूह - कविता

आर्ट कनेक्शन 2012 से साभार
(कविता व चित्र: अनुराग शर्मा)

यादों के बंधन
बंधन के बांध
बांध की सीमायें
सीमा पर अन्धकार
अन्धकार का अज्ञान
और उस
अज्ञान की यादें
कभी तो यह चक्र टूटे
कभी तो टूटे ...


44 comments:

  1. क्या बात है!!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 07-05-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-872 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  2. स्मृतियाँ कभी ना छूटे!

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  3. जोर लगा बस उड़ जाना है,
    एक दिन खुद से जुड़ जाना है।

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  4. बड़ा घुमावदार जीवन है....कहीं कुछ टूटता है तो कहीं जुड जाता है !

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  5. कुफ्र का कहर

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  6. अति सुंदर ...इसी तानेबाने में गुंथा है जीवन

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  7. बस एक ही उपाय है साक्षी होना !
    अच्छी रचना .......

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  8. अज्ञान की उल्झनों का सटीक चित्रण!!
    सम्यक् ज्ञान ही मात्र उपाय है।

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  9. बंधन से मुक्ति आसान नहीं .....!

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  10. यादों के बंधन को बांधने की भी सीमायें होती हैं। सीमाओं पर अज्ञान का अंधकार रहता है। हम इसी अंधकार की यादों में जीवन जीते हैं।...बहुत सुंदर भाव हैं।

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  11. कभी तो यह चक्र टूटे
    कभी तो टूटे ...
    बहुत सुंदर।

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  12. संभव नहीं है यादों बाहर आ पाना

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  13. चक्रव्यूह मानसिक स्थिति का एक ऐसा खोल है जिसे सुलझाने में ही जीवन की सारी विधाए मनुष्य उपयोग में लाता है, कभी सुलझता है कभी कर्मयोग स्थान बन जाता है चक्रव्यूह को विकास व विवसता के रूप में यंत्रवत हम उपयोग करते हैं ,शायद नियति भी यही है ......चिन्तनशील अभिव्यक्ति .. शुभकामनयें

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  14. यादों के बंधन ही वो डोर है जो जीवन से बांधे रहती है ....इसी चक्रव्यूह में घुमते घुमते ....आ जाती है जीवन जी शाम ....फिर .....
    ''उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो ....
    न जाने किस गली में जिंदगी कि शाम हो जाये ....''
    यही शेर याद आया पढ़ कर ....
    बहुत सुंदर रचना ....
    बधाई एवं शुभकामनायें .....

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  15. यादों के चक्रव्यूह को वक्त ही तोड़ सकता है ।

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  16. सुन्दर प्रस्तुति ।

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  17. चक्र टूटते ही मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो जाता है ...किंतु मोक्ष इतनी सहज है क्या?
    चाहते हैं जड़ भरत बनना....पर बन कहाँ पाते हैं?

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  18. अच्छी प्रस्तुति । एक प्रयास - अज्ञानता के आवरण मेँ मोह याद नहीँ स्थति है । शब्दोँ की खेती बेमौसम भी तो होती है । औचित्य अहमियत रखता है । और औचित्य पल्लवित होता है मौन की शाख पर । आत्मविनिग्रह के बीज से ।

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  19. yade aur jivan dono ek dusre se bandhe huye hai aur ham eske bina ji nahi sakte.

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  20. यह लखनऊ की भूलभुलैयां है।

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  21. यादें फिर उसी जगह वापस ले जाती हैं जहां से शुरू होता है जीवन ...
    ये जीवन का चक्र है जो जीवन के साथ ही टूटता है ...

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  22. जीवन चक्र यही है ....
    शुभकामनायें आपको !

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  23. कोशिश करता है ,पूरा चक्र तोड़ नहीं पाता, बेचारा अभिमन्यु !

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  24. वाह ... बहुत गहन ... यह चक्रव्यूह ही तो नहीं टूटता

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  25. खुद से बात करना, सवाल करना खुद से।
    बहुत मुश्किल है, जवाब हासिल करना खुद से।
    किसी और से क्‍यों उधार लें मुश्किलें?
    खुद ही बरक्‍स होते हैं, रोज ही खुद से।

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  26. jeevan ki visham paristhitiyon se talmel krati post aabhar .mere blog par svagat hae.

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  27. पर टूटता कहाँ है..उल्टे उलझा ही लेता है..

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  28. @ आहों में क्रंदन

    क्रंदन में नाद

    नाद की लहरियाँ

    लहरियों पर सवार [भाव]

    सवार बलवान

    और उस

    बलवान [भाव] की तीव्रता

    कभी तो यह मंद पड़े.

    कभी तो पड़े ...


    अर्थात् "मर्मान्तक भावों की गति थामे नहीं थमती."

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  29. @@ यादों का सफ़र केवल बुद्धि से तय नहीं किया जा सकता. बौद्धिक विचार केवल 'अवरोधकों' की भूमिका निभाते हैं.

    मैं जब भी अपने ब्लॉग यात्रा पर विहंगम दृष्टि डालता हूँ... कंगाल महसूस नहीं करता अपितु विश्वपटल पर अपने होने का एहसास करता हूँ.

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  30. यह चक्र तो चलते रहना है.
    सुंदर प्रस्तुति.

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  31. बहुत ही गहरी सोच समेटे हैं..ये चंद पंक्तियाँ

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  32. और जो इस चक्र से बाहर हैं, वो इसे miss करते होंगे, यकीनन|

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  33. शानदार शानदार शानदार !!!!!!

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